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यूपी: केंद्र ने चुनाव से पहले गन्ने की एफआरपी बढ़ाई; किसान बोले विफलताओं को छुपाने का ढकोसला

किसानों ने कहा कि राज्य में योगी आदित्यनाथ सरकार जो गन्ने की क़ीमत 400 रुपये प्रति क्विंटल करने का "वादा" करके सत्ता में आई थी, उसने अपने साढ़े चार साल के कार्यकाल में "एक पैसा" तक नहीं बढ़ाया।
यूपी: केंद्र ने चुनाव से पहले गन्ने की एफआरपी बढ़ाई; किसान बोले विफलताओं को छुपाने का ढकोसला
'प्रतीकात्मक फ़ोटो'

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने बुधवार को उचित और लाभकारी मूल्य (एफआरपी) में वृद्धि को मंजूरी दे दी। यह एक न्यूनतम मूल्य है जिसे चीनी मिलों को गन्ना उत्पादकों को 290 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से भुगतान करना है जो कि पिछले वर्ष की तुलना में पांच रुपये अधिक है।

विपणन वर्ष 2021-22 (अक्टूबर-सितंबर) के लिए गन्ने का उचित और लाभकारी मूल्य बढ़ाने का निर्णय नई दिल्ली में हुई कैबिनेट की बैठक में लिया गया। हालांकि, इस फैसले का कई किसान यूनियनों और गन्ना किसानों द्वारा विरोध किया जा रहा है जो कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जीवन रेखा है। उन्होंने कहा कि राज्य में योगी आदित्यनाथ सरकार जो गन्ने के लिए 400 रुपये प्रति क्विंटल देने का "वादा" करके सत्ता में आई थी, उसने अपने साढ़े चार साल के कार्यकाल में "एक पैसा" नहीं बढ़ाया है। उन्होंने कहा कि केंद्र पांच रुपये की बढ़ोतरी कर किसानों के साथ 'मजाक' कर रहा है।

खाद्य और उपभोक्ता मामलों के मंत्री पीयूष गोयल ने कैबिनेट की बैठक के बाद मीडिया को जानकारी देते हुए कहा, “10% की मौलिक वसूली दर के लिए एफआरपी को बढ़ाकर 290 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया है। 10% से अधिक रिकवरी में प्रत्येक 0.1 प्रतिशत की वृद्धि के लिए 2.90 रुपये प्रति क्विंटल का प्रीमियम प्रदान किया जाएगा।"

गन्ने के लिए एफआरपी बढ़ाने के केंद्र के फैसले पर तंज कसते हुए भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने व्यंग्यात्मक रूप से इसे "ऐतिहासिक निर्णय" कहा।

टिकैत ने कहा, “पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश सहित उत्तर भारत में कई राज्य हैं जहां स्टेट एडवायजरी प्राइस (एसएपी) पहले से ही एफआरपी से अधिक है। इन राज्यों की मिलों को एसएपी का पालन करना है। अब सवाल यह उठता है कि सरकार का यह फैसला गन्ना किसानों के लिए कैसे फायदेमंद होगा। सरकार को हमें फॉर्मूला भी बताना चाहिए।”

बीकेयू नेता ने न्यूज़क्लिक को बताया, “पश्चिमी उत्तर प्रदेश की रीढ़ कहे जाने वाले गन्ना पट्टी के किसान हमेशा बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमो और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती को याद करते हैं, जिन्होंने अपने कार्यकाल के पांच वर्षों में कीमतों में 115 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि की थी। 2007 में जब मायावती ने कार्यभार संभाला तो गन्ने की कीमत 125 रुपये प्रति क्विंटल थी। उन्होंने इसे पांच साल में बढ़ाकर 240 रुपये कर दिया। अखिलेश यादव ने भी अपनी समाजवादी सरकार के पांच साल में इसके मूल्य में 65 रुपये बढ़ा दिया। मौजूदा सरकार पिछली सरकार की तुलना में कमजोर साबित हो रही है, क्योंकि उसने कीमतों में एक पैसा भी वृद्धि नहीं की है।"

ध्यान रहे, टिकैत ने पिछले साल सीएम योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की थी और एसएपी को 325 रुपये से बढ़ाकर 400 रुपये करने की मांग की थी।

एक अन्य किसान ने कहा, “साल 2017 के बाद से, जब आदित्यनाथ ने सत्ता संभाली थी, गन्ने के लिए एसएपी में केवल 10 रुपये की वृद्धि की गई है। दरों को संशोधित किए चार साल से अधिक समय हो गया है। डीजल, यूरिया और कीटनाशकों की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण लागत बढ़ रही है।”

इस बीच, पंजाब सरकार द्वारा गन्ना किसानों के लिए स्टेट एग्रीड प्राइस (एसएपी) में 35 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी को मंजूरी देने के एक दिन बाद अर्थात किसानों के आंदोलन के बाद और केंद्र द्वारा एफआरपी में पांच रुपये की वृद्धि के बाद योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने अक्टूबर में आगामी क्रशिंग सेशन शुरू होने से पहले गन्ने के खरीद मूल्य में वृद्धि करने का निर्णय लिया है।

गन्ना मूल्य बढ़ाने और किसानों के सभी बकाया भुगतान के अलावा सीएम ने यह भी घोषणा की कि सरकार किसानों के खिलाफ मामले वापस लेगी और खेतों में फसल की खूंटी को जलाने के लिए उन पर लगाए गए जुर्माने को रद्द करेगी। उन्होंने लखनऊ में अपने आवास पर राज्य के लगभग 150 किसानों के प्रतिनिधिमंडल के साथ बातचीत करते हुए यह बात कही।

अखिल भारतीय किसान सभा (एआईकेएस) यूपी के महासचिव मुकुट सिंह ने कहा, “केंद्र के लिए कीमतों में केवल पांच रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि करना अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए एक दिखावा है; पिछले चुनावों के दौरान किए गए वादे के मुताबिक इसे पूरा नहीं किया गया। यहां तक कि योगी सरकार ने साढ़े चार साल में कीमतों में एक रुपये की बढ़ोतरी नहीं की है। वे भी कीमतों में पांच से दस रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि करेंगे जो 335 रुपये हो जाएगा। जब डीजल और कीटनाशकों की कीमतें आसमान छू रही हैं तो ऐसे में इससे किसानों को क्या फायदा होगा? उन्होंने कहा कि यह सिर्फ चुनावी हथकंडा है और कुछ नहीं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

UP: Centre Hikes Sugarcane FRP Ahead of Polls; an “Eyewash” to Hide Failures, Say Farmers

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