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यूपी: पीलीभीत में गैंगरेप के बाद जलाई गई दलित किशोरी की मौत, न्याय की लड़ाई जारी

महज़ 16 साल की नाबालिग लड़की को कथित सामूहिक दुष्कर्म के बाद डीजल डालकर ज़िंदा जलाने की घटना पूरे समाज को शर्मसार करती है। वहीं, 75 फ़ीसदी झुलसने के बावजूद पीड़िता का पुलिस को बयान देना वाकई हिम्मत वाली बात है।
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प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार : TL

उत्तर प्रदेश का पीलीभीत एक बार फिर सुर्खियों में है। 7 सितंबर को कथित  गैंगरेप की शिकार पीड़िता की सोमवार, 19 सितंबर को अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई है। इस मामले में अपराधियों ने दलित नाबालिग के साथ दुष्कर्म के बाद पर डीजल डालकर आग लगा दी थी। गंभीर हालात में पीड़ित का लखनऊ के अस्पताल में इलाज चल रहा था। लेकिन 12 दिन बाद पीड़िता जिंदगी की जंग हार गई।

नबालिग पीड़िता को आईसीयू में रखा गया था और लगातार निगरानी की जा रही हैं। हालांकि होश आने के बाद पीड़िता ने पूरी वारदात के बारे में पुलिस को जानकारी दी थी। जिसके आधार पर पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ पॉक्सो और एससी/एससी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर दो आरोपियों को गिरफ्तार किया था। इस मामले में अस्पताल के डॉक्टर भी पीड़िता के हिम्मत की दाद दे रहे हैं, जिसने मरते दम तक न्याय के लिए संघर्ष किया।

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क्या है पूरा मामला?

प्राप्त जानकारी के मुताबिक घटना पीलीभीत के माधोटांडा थाना क्षेत्र की है। यहां के कुंवरपुर गांव में पीड़िता का घर है। सात दिसंबर को वारदात के समय पीड़िता के पिता घास काटने गए थे और मां मायके में थी। पीड़िता बिल्कुल अपने घर में अकेली थी, तभी गांव में ही रहने वाले दोनों लड़के घर में घुसे और उन्होंने उसके साथ बलात्कार किया। फिर लड़की पर डीजल डाला और उसे जला दिया। परिवारवाले आनन-फानन में लड़की के घर वाले उसे जिला अस्पताल लेकर गए। जहां 3 दिन तक इलाज के बाद डॉक्टरों ने उसे लखनऊ के अस्पताल के लिए रेफर कर दिया था। जिसके बाद पीड़ित का इलाज केजीएमयू (मेडिकल कॉलेज) में प्लास्टिक सर्जरी यूनिट में चल रहा था। जहां उसकी सोमवार सुबह मौत हो गई।

यहां ध्यान रहे कि लड़की के साथ ये घटना सात सितंबर को हुई थी, लेकिन इस मामले में एफआईआर 10 सितंबर को दर्ज की गई थी। इस मामले में पुलिस की नींद तब टूटी जब पीड़ित लड़की का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। इस वीडियो में पीड़िता कहती नजर आ रही हैं कि गांव के ही 2 युवकों ने उसका रेप किया और उसको डीजल डालकर जला दिया।

पुलिस का क्या कहना है?

इस मामले में पीलीभीत के एसपी दिनेश पी ने मीडिया को बताया कि घटना संज्ञान में आने के बाद पुलिस ने आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। अब उनके खिलाफ गैंगस्टर एक्ट की कार्रवाई भी की जाएगी। उन्होंने बताया कि पीड़ित परिवार को एससी/एसटी एक्ट की सहायता राशि 4 लाख 12 हजार 500 रुपए उनके खाते में भेज दिए गए हैं।

बता दें कि दोनों आरोपियों पर 376, 307, 504 और 506 सहित पाक्सो एक्ट जैसी गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया था। लेकिन अब किशोरी की मौत के बाद 307 की जगह 302 लगा दी गई है और गैंगस्टर एक्ट भी लगाया जा रहा है।

शासन पर उठते सवाल और पुलिस का निराशाजनक रवैया

साल 2017 में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से राज्य में दलितों की स्थिति दिन-प्रतिदिन बदतर होने के आरोप लग रहे हैं, जिसकी तस्दीक़ राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के हालिया आंकड़े भी कर रहे हैं जो बताते हैं कि प्रदेश में दलितों के ख़िलाफ़ अत्याचार के मामले कम होने के बजाय बढ़े हैं।

एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2021 में देश भर में दलितों के खिलाफ 50,744 मामले दर्ज हुए थे। इसमें 13,146 मामले सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही सामने आए थे। जबकि साल 2020 में देश भर में 50,202 मामलों में 12,714 मामले यूपी में थे। वहीं साल 2019 में 45,876 मामलों में 11,829 मामले यूपी में दर्ज हुए थे। साल 2020 से 2021 में दलितों के खिलाफ 423 व साल 2019 की अपेक्षा 1317 मामले अधिक सामने आए हैं।

वहीं दलित महिलाओं के साथ यौन हिंसा की बात करें तो, एनसीआरबी की ताजा रिपोर्ट कहती है कि साल 2021 में दलित महिलाओं के साथ यौन शोषण के 671 मामले दर्ज हुए, उनमें सबसे अधिक यूपी में 176 मामले हैं। जबकि साल 2020 में 132 मामले दर्ज हुए थे। साल 2021 में 198 दलितों की हत्या हुई है व साल 2020 में 214 हत्याएं हुई थीं। हालांकि हत्या के मामले में भी यूपी नंबर एक पायदान पर ही है।

ये विडंबना ही है कि मजबूत कानूनों के बावजूद भी सभी शोषण-उत्पीड़न के मामले पुलिस थानों में दर्ज़ भी नहीं हो पाते। कुछ मीडिया और राजनीतिक पार्टियों के हस्तक्षेप के कारण सबकी नज़र में आ जाते हैं, लेकिन ज्यादातर किसी तहखाने में ही छिपे रहते हैं। पुलिस प्रशासन की बात करें तो, हाथरस गैंगरेप और हत्या के मामले को ‘अंतरराष्ट्रीय साजिश’ से जोड़ने वाली योगी सरकार और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के आधार गैंगरेप नहीं होने का दावा करने वाली यूपी पुलिस के रवैए पर सीबीआई चार्जशीट के बाद कई सवाल उठे। यही नहीं उसके बाद भी अन्य कई मामलों में लगातार पुलिस कटघरे में खड़ी नज़र आई। आलम ये है कि वंचित, शोषित लोग न्याय की आस में दर-बदर भटक रहे हैं तो वहीं पुलिस पीड़ित को और प्रताड़ित कर रही है। कुल मिलाकर देखें तो सत्ता में वापसी के बाद भी बीजेपी की योगी सरकार कानून व्यवस्था और महिला सुरक्षा के मोर्चे पर विफल ही नज़र आती है।

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