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यूपी: न्यूनतम मानदेय की मांग को लेकर आशा कार्यकर्ताओं का प्रदर्शन, CM को सौंपा ज्ञापन 

आशा कार्यकर्ता और संगिनी (सहायक) द्वारा ज्ञापन सौंपने का काम, सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस (सीटू) के बैनर तले किया गया।
यूपी: न्यूनतम मानदेय की मांग को लेकर आशा कार्यकर्ताओं का प्रदर्शन, CM को सौंपा ज्ञापन 

मंगलवार के दिन, बड़ी संख्या में आशा कार्यकर्ता और संगिनी (सहायक) उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में विधानसभा के सामने अपनी मांगों को लेकर इकठ्ठा हुईं, ये काम सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस (सीटू) के बैनर तले किया गया।

न्यूज़क्लिक अंग्रेज़ी में प्रकाशित अब्दुल अलीम जाफरी की रिपोर्ट के अनुसार, आशा कार्यकर्ताओं के एक प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यालय को दस सूत्रीय मांगों का एक ज्ञापन सौंपा। इन मांगों में उन्होंने उन कठिनाइयों को उजागर किया है जिसका वे सामना कर रही हैं। हालांकि सरकार की ओर से कोई वादा नहीं किया गया।

उनकी मांग है कि फ्रंटलाइन वर्कर्स के रूप में COVID-19 ड्यूटी पर प्रतिनियुक्त सभी स्कीम वर्कर्स की अधिसूचना जारी की जाए, महामारी प्रबंधन में लगे सभी स्वास्थ्य और फ्रंटलाइन वर्कर्स के लिए सुरक्षात्मक उपाय की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए, ड्यूटी के दौरान मरने वाले सभी फ्रंटलाइन वर्कर्स को 50 लाख रुपये का बीमा कवर दिया जाए, पूरे परिवार के लिए COVID-19 के इलाज के लिए इलाज के खर्च का कवरेज हो,10,000 रुपये प्रति माह का अतिरिक्त COVID-19 जोखिम भत्ता और लंबित बकाया का भुगतान हो। उन्होंने अपनी आय में वृद्धि की भी मांग की और राज्य सरकार के कर्मचारियों के स्तर तक अपग्रेड करने की मांग की। इन फ्रंटलाइन वर्करों ने मांगें पूरी नहीं होने पर सीएम आवास के बाहर प्रदर्शन करने की धमकी भी दी है।

ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ आंगनवाड़ी वर्कर्स एंड हेल्पर्स (एआईएफएडब्ल्यूएच) की सचिव वीणा गुप्ता ने आशा कर्मियों को संबोधित करते हुए कहा कि हजारों लोगों की जान बचाते हुए कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में अब तक कई आशा कार्यकर्ता शहीद हो चुकी हैं। लेकिन यह देश के लिए शर्मनाक है कि सरकार महामारी के दौरान उनके निस्वार्थ कार्यों को मान्यता देने और उन्हें स्थायी कर्मचारियों के रूप में नियमित करने के लिए तैयार नहीं है। गुप्ता ने आशा कर्मियों से कहा कि वे अपनी मांगों को पूरा करने के लिए संघर्ष जारी रखें।

गुप्ता ने अपने संबोधन में कहा कि पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश जैसे अन्य राज्यों में आशा कर्मियों को प्रति माह 10,000 रुपये से अधिक का वेतन मिल रहा है लेकिन उत्तर प्रदेश में आशा कर्मियों को केवल 2,000 रुपये ही मिल रहे हैं। उन्होंने आगे कहा कि उन्हें बिना छुट्टी के लगभग 24 घंटे ड्यूटी पर रखा जा रहा है। गुप्ता ने मांग की कि आशा कर्मियों को 21,000 रुपये प्रति माह न्यूनतम वेतन दी जाए, साथ ही पेंशन, ईपीएफ, ईएसआई और मुफ्त चिकित्सा जैसे सामाजिक सुरक्षा लाभ भी दिए जाएं।

यूनियन के सदस्य दिलीप शुक्ला ने कहा कि वे राज्यपाल के साथ-साथ एनएचएम उत्तर प्रदेश के मिशन निदेशक को इन मांगों का एक ज्ञापन पहले ही सौंप चुके हैं। उनकी मांगों में मानदेय में वृद्धि, हर साल वेतन में 1,000 रुपये की अतिरिक्त वृद्धि, COVID ड्यूटी के लिए विशेष भत्ता, उन आशाओं के आश्रितों को 50 लाख रुपये मिले जिनकी महामारी (फ्रंटलाइन वर्कर्स के लिए सरकार द्वारा घोषित बीमा योजना के तहत) के कारण मृत्यु हो गई।

आशा कार्यकर्ता और संगिनी वेलफेयर एसोसिएशन की प्रदेश अध्यक्ष सीमा सिंह ने कहा कि सरकार ने उन्हें COVID-19 की दूसरी लहर समाप्त होने के बाद बिल्कुल छोड़ दिया है। उन्होंने कहा कि “हम इस भीषण गर्मी में घर-घर जाते हैं। हममें से कुछ बीमार भी पड़ जाते हैं, लेकिन हम अपना काम जारी रखते हैं क्योंकि हम जानते हैं कि अगर हम बैठ जाते हैं, तो बहुतों को नुकसान होगा। लेकिन सरकार हमारी दुर्दशा को नहीं समझने पर अड़ी है।"

ज्ञात हो कि प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्र में 1 लाख 56 हजार से अधिक तथा शहरी क्षेत्र में साठ हजार से अधिक आशा कार्यकर्ता हैं। आशा और आशा संगिनी को केंद्र से 1500 रुपये तथा राज्य से 750 रुपये दिया जाता था। बीते साल यूपी विधानसभा चुनावों से पहले और आशा कार्यकर्ताओं के आंदोलन के बाद दिसंबर महीने में उन्हें राज्य की ओर से 750 रुपये की जगह 1500 रुपये प्रतिमाह मानदेय देने का ऐलान किया गया था। इस तरह आशा कार्यकर्ताओं को केंद्र व राज्य दोनों की ओर से दी जाने वाली राशि 3,000 रुपये हुई थी। वहीं संगिनियों की संख्या प्रदेश में करीब 8 हजार है। इनके भी मानदेय में 750 रुपये प्रति महीना वृद्धि का ऐलान किया गया था।

बता दें कि उत्तर प्रदेश में आशा कार्यकर्ता अपनी मांगों को लेकर लगातार प्रदर्शन व आंदोलन करती रही हैं। बीते साल अक्टूबर महीने में उन्होंने अपनी नौ सूत्रीय मांगों को लेकर धरना प्रदर्शन किया था। आशा व संगिनी कार्यकर्ता लगातार सरकार पर आरोप लगाती रही हैं कि सरकार उनके साथ सौतेला व्यवहार करती रही है।

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