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यूपी चुनाव : कैसे यूपी की 'डबल इंजन’ सरकार ने केंद्रीय योजनाओं को पटरी से उतारा 

महामारी के वर्षों में भी, योगी आदित्यनाथ की सरकार प्रमुख केंद्रीय योजनाओं को पूरी तरह से लागू नहीं कर पाई। 
Modi
कानपुर देहात, 14 फरवरी 2022, सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और अन्य लोगों के साथ कानपुर देहात जिले में एक जनसभा को संबोधित करते हुए। (फोटो:एएनआई)

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी के नेता बार-बार इस बारे में दावे कर रहे हैं कि चुनावी राज्य में लोगों को कई केंद्रीय योजनाओं से कैसे और कितना लाभ हुआ है वह भी खासकर महामारी के दौरान। हालाँकि, योगी सरकार के तहत उत्तर प्रदेश में इनमें से कुछ योजनाओं के कार्यान्वयन की समीक्षा करने से उनके ये दावे  गलत साबित हो जाते हैं। महामारी के वर्षों में भी, जब लोगों की जरूरत अधिक थी तब भी राज्य में, ये योजनाएं तथाकथित 'डबल इंजन' सरकार के तहत विफल रहीं थी।

ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत काम से इनकार

यह कार्यक्रम एक जीवन-रक्षक योजना है क्योंकि यह ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगार लोगों को  निर्धारित दैनिक मजदूरी दर पर कुछ सप्ताह का काम मुहैया कराती है। आधिकारिक आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि योगी सरकार ने हर वर्ष लाखों लोगों को योजना के तहत काम नहीं दिया था, जबकि कोई श्रमिक काम की मांग करता है तो उसे काम देना अनिवार्य शर्त है। [नीचे चार्ट देखें]

पहले महामारी वर्ष (2020-21) में काम की मांग करने वाले व्यक्तियों की संख्या में भारी वृद्धि देखी गई थी (जो 1.57 करोड़ थी) लेकिन वास्तव में केवल 1.1 करोड़ लोगों को ही काम मिला, शेष 41 लाख लोगों काम से इनकार कर दिया गया। यह उन सभी का लगभग एक चौथाई हिस्सा था जो काम चाहते थे। याद रखें कि 2020 में अप्रैल-मई में पूर्ण लॉकडाउन हुआ था और उसके बाद कुछ और महीनों तक प्रतिबंध जारी रहे थे। श्रीमिकों को समर्थन की आवश्यकता हताश और सार्वभौमिक थी। फिर भी, यूपी की 'डबल इंजन' सरकार इस संकट को संभाल नहीं पाई।

दोष का एक बड़ा हिस्सा उस इंजन के साथ है – जिसे केंद्र सरकार कहते हैं - क्योंकि वह हमेशा की तरह, धन आवंटित करने के मामले में तंग मिजाज की दिखी। लेकिन दोष का दूसरा हिस्सा उनके जूनियर इंजन, यानि योगी सरकार पर भी है, क्योंकि उन्होंने आवंटन की अधिक मांग नहीं की (कम से कम सार्वजनिक ज्ञान में) और न ही उन्होंने तीव्र संकट से निपटने के लिए कोई अन्य व्यवस्था की।

मुफ़्त खाद्यान्न योजना का ज़रूरत से कम इस्तेमाल 

केंद्र सरकार ने सभी राशन कार्ड धारकों को मुफ्त अनाज (प्रति व्यक्ति 5 किलो) प्रदान करने की योजना शुरू की थी ताकि वे लॉकडाउन और नौकरियों न होने के संकट से बच सकें। योजना - जिसे प्रधान मंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना कहा जाता है - को बाद में मार्च 2021-22 तक बढ़ा दिया गया था।

जैसा कि नीचे दिए गए चार्ट से पता चलता है (जिस डेटा को, खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग दिसंबर 2021 के खाद्य अनाज बुलेटिन से लिया गया है) कि मई 2020 में पीएमजीकेएवाई के पांच चरणों के बीच यूपी को मार्च 2022 तक कुल 68 लाख टन चावल और  71 लाख टन गेहूं आवंटित किया गया था। हालांकि, केवल 47 लाख टन चावल और 60 लाख टन गेहूं ही गोदामों से उठाया गया था। 

यानी दिसंबर 2021 तक लगभग 21 लाख टन चावल और 11 लाख टन गेहूं वितरण के लिए नहीं उठाया गया था। जैसा कि चार्ट से पता चलता है, यह अंतर मुख्य रूप से दूसरे वर्ष में पैदा हुआ है, जो कि 2021-22 का वर्ष है, जिसमें कोविड की दूसरी घातक लहर देखी गई थी जब लाशों को गंगा नदी में तैरते देखा गया था।

बल्कि यह चिंताजनक बात है कि 'डबल इंजन' सरकार इस अभूतपूर्व संकट में भी असहाय लोगों को कुछ राहत नहीं दे सकी। दरअसल, इस बात का भी अंदेशा है कि विधानसभा चुनाव होने के कारण साल की आखिरी तिमाही में अनाज का वितरण करने के लिए अनाज को रोक कर रखा गया हो। अगर ऐसा है तो यह एक निर्दयी रणनीति से कम नहीं है, खासकर क्योंकि कथित तौर पर पीएम मोदी और सीएम योगी की तस्वीरों वाले पैकेटों के माध्यम से खाद्य सामग्री वितरित की जा रही थी।

ग़रीबों के लिए आवास?

गरीब परिवारों को आवास प्रदान करना पीएम मोदी और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी या भाजपा का एक और पसंदीदा विषय रहा है। प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण (पीएमएवाई-जी) का डेटा जिसके तहत ऐसे घर उपलब्ध कराए जाते हैं (और जो आधिकारिक पोर्टल पर उपलब्ध हैं) से पता चलता है कि योगी सरकार ने अपने पहले वर्ष 2017-18 में आठ लाख से अधिक घरों का निर्माण कर एक धमाकेदार शुरुआत की थी। उसके बाद, पूर्ण घरों की वार्षिक संख्या 2020-21 तक कम हो गई, जो केवल 37,711 (या 0.38 लाख) घर ही बनाए गए। [नीचे चार्ट देखें]

फिर, अपने कार्यकाल के अंतिम वर्ष में, और जब उन्हे कठिन चुनाव का सामना करन पड़ा तो योगी की सरकार फिर से घर बनाने के उन्माद में चली गई, और कथित तौर पर 9.86 लाख घरों को पूरा कर लिया गया। एक बार फिर यह लापरवाही का प्रदर्शन लगता है कि घर मिलने पर लोग खुश हो जाएंगे और इसलिए बीजेपी को वोट देंगे। हालाँकि, यह गरीबों की प्रति उनकी चिंता और दक्षता का भांडा फोड़ता है जिसका दावा भाजपा लगातार करती है - "सोच ईमानदार, काम दमदार" जोकि उनका प्रमुख चुनावी नारा है।

ग़रीबों के लिए रसोई गैस?

प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (पीएमयूवाई) के तहत गरीब परिवारों को मुफ्त रसोई गैस कनेक्शन और सब्सिडी वाले सिलेंडर को दोबारा भरा जाना था। एलपीजी सिलेंडर पर सब्सिडी जून 2020 से वापस ले ली गई थी और तब से गैस सिलेंडर की कीमतों में उछाल आया है। पीएमजीकेएके के तहत, केंद्र सरकार ने यह भी घोषणा की थी कि महामारी संकट से निपटने के लिए 2020 में तीन महीने तक मुफ्त सिलेंडर भरा जाएगा।

10 मार्च, 2021 को राज्यसभा में पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री द्वारा दिए गए उत्तर (संख्या 1891) के अनुसार, यूपी में पीएमयूवाई के तहत 1.47 करोड़ कनेक्शन दिए गए थे। मंत्री द्वारा 21 सितंबर, 2020 को दिए गए एक अन्य उत्तर (नंबर 1246) के अनुसार, खुदरा में रसोई गैस सिलेंडर बेचने वाली तेल विपणन कंपनियों ने यूपी में 2019-20 (अगस्त 2020 तक) में 1.41 करोड़ सिलेंडर रिफिल के रूप में और 2020-21 में 2.30 करोड़ रिफिल के रूप में दिए थे। यानी 2019-20 में रिफिल की संख्या प्रति लाभार्थी लगभग 0.95 सिलेंडर और 2020-21 में प्रति लाभार्थी 1.6 सिलेंडर थी।

साफ है कि साल भर में एक या दो सिलेंडर लेने से पता चलता है कि यह योजना काम नहीं कर रही है, इसका मुख्य कारण यह है कि सब्सिडी वापस लेने के बाद अब गैस सिलेंडर की कीमतें बहुत अधिक हैं। मंत्री ने राज्यसभा को बताया कि 2019-20 में देश भर में औसत रिफिल 3.01 सिलेंडर प्रति पीएमयूवाई लाभार्थी था।

'डबल इंजन' सरकार के नेतृत्व में यूपी देश के औसत से काफी पीछे चल रहा है। मंत्री ने स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है कि "पीएमयूवाई लाभार्थी परिवार द्वारा निरंतर आधार पर एलपीजी को अपनाना और उसका उपयोग करना कई कारकों पर निर्भर करता है जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ भोजन की आदतें, घर का आकार, खाना पकाने की आदतें, एलपीजी की कीमत, मुफ्त जलाऊ लकड़ी और गोबर की आसान उपलब्धता आदि शामिल हैं।"

यूपी में केंद्रीय योजनाओं के क्रियान्वयन के इन उदाहरणों से पता चलता है कि योगी आदित्यनाथ की 'गतिशील' सरकार वास्तव में मोदी सरकार की अपनी योजनाओं को लागू करने में भी पिछड़ी हुई है।

ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि योजनाओं में ही कमियां मौजूद हैं (जैसे मनरेगा की अपर्याप्त धनराशि या उज्ज्वला में सब्सिडी न देना) और राज्य में योजना को ठीक से लागू करने में असमर्थता के कारण भी ऐसा हुआ है। संक्षेप में, दोनों इंजन की भाप खत्म हो गई हैं, और इसलिए भाजपा का एक ठोस वोट बैंक बनाने वाली ऐसी योजनाओं से लाभान्वित होने वाले लोगों के बारे में प्रचार अतिशयोक्तिपूर्ण है या उसे बढ़ा चढ़ा कर पेश किया जा रहा है।

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