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यूपी चुनाव : अयोध्या के प्रस्तावित  सौंदर्यीकरण में छोटे व्यापारियों की नहीं है कोई जगह

अयोध्या के व्यापारियों ने आरोप लगाया है कि प्रस्तावित लेआउट के परिणामस्वरूप दुकानों और अन्य व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को बड़े पैमाने पर ध्वस्त या उन दुकानों का ज़्यादातर हिस्सा तोड़ दिया जाएगा।
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अयोध्या (उत्तर प्रदेश): "आप हमको उखाड़ेंगे, और हम आपको वोट देंगे!" अभय कुमार ने उत्तर प्रदेश सरकार के प्रति सवाल उठाया। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कार्यकर्ता कुमार की एक दुकान है, जो अयोध्या धाम (पुराने अयोध्या शहर) में हनुमान गढ़ी मंदिर की ओर जाने वाली गली में है जहां देवताओं पर चढ़ावे के लिए प्रसाद बेचा जाता है। 

कुमार उन दुकानदारों में से हैं जिनकी दुकाने या व्यावसायिक प्रतिष्ठान अयोध्या विकास प्राधिकरण (एडीए) द्वारा तैयार किए गए मास्टर प्लान की प्रस्तावित सड़क चौड़ीकरण परियोजना से या तो आंशिक रूप से या पूरी तरह से ध्वस्त हो जाएंगे।

अयोध्या के व्यापारियों ने एडीए के समक्ष परियोजना के प्रति अपना विरोध दर्ज कराया है, और आरोप लगाया है कि प्रस्तावित लेआउट के परिणामस्वरूप दुकानों और अन्य वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों को बड़े पैमाने पर ध्वस्त कर दिया जाएगा। मास्टर प्लान में शहर के कई हिस्सों को सड़क चौड़ीकरण परियोजना के नाम पर चिन्हित किया गया है।

वर्षों की कानूनी लड़ाई के बाद, 9 नवंबर, 2019 को, सुप्रीम कोर्ट ने विवादित 2.77 एकड़ जमीन, जहां एक बार बाबरी मस्जिद थी, को राम मंदिर बनाने के लिए एक ट्रस्ट (राम जन्मभूमि न्यास) को सौंपने का आदेश दिया था। फैसले के बाद प्रस्तावित भव्य मंदिर का निर्माण, शहर के विकास और सौंदर्यीकरण का कार्य प्रगति पर है।

उसी गली में कपड़े की दुकान के मालिक नितिन कुमार ने कहा कि उन्हें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कोई शिकायत नहीं है। वे केवल पुनर्वास और उससे  होने वाले नुकसान के प्रति उचित मुआवजा चाहते हैं। 

उन्होंने अपना गुस्सा ज़ाहिर करते हुए कहा कि, "आश्वासन पर आश्वासन दिए जा रहे हैं, लेकिन जमीन पर कुछ नहीं हो रहा है। अधिकारी कहते रहते हैं कि हमें समायोजित करने के लिए व्यावसायिक परिसरों का निर्माण किया जा रहा है, लेकिन ये सभी दावे फर्जी हैं।"

मास्टर प्लान के तहत प्रस्तावित विध्वंस अभियान में नितिन को अपनी दुकान का आठ फीट हिस्से का नुकसान होगा। नतीजतन, उसके पास केवल 10 फीट जमीन रह जाएगी, जिसमें उसका निवास और उसकी दुकान भी है। मुआवजे के नाम पर, उन्हें जाहिर तौर पर 70,000 रुपये की पेशकश की जा रही है, जो "एक पिलर तक खड़ा करने के लिए अपर्याप्त" है।

"पहले, यह सहमति हुई थी कि मुआवजे को संरचनाओं के मालिक और किरायेदारों के बीच 60:40 के अनुपात में विभाजित किया जाएगा। अब, फंड का 90 प्रतिशत मकान मालिक और संरचनाओं के मालिक के पास जा रहा है। बाकी उन दुकानदारों को दिया जा रहा है जो दशकों से किरायेदार के रूप में अपनी दुकानें चला रहे हैं।"

जिस जमीन पर दुकानें और आवास हैं, वह हनुमान गढ़ी और अन्य मंदिर ट्रस्टों की है। जब भूमि सुधार के हिस्से के रूप में जमींदारी उन्मूलन अधिनियम, 1950 के तहत भूमि की सीलिंग शुरू हुई, तो जमींदारों, आम तौर पर महंत या संतों ने अपने ट्रस्ट को उनके द्वारा चलाए जा रहे मंदिरों के नाम पर पंजीकृत कराया था।

सरकार द्वारा अधिग्रहण से बचने के लिए सारी जमीन ट्रस्ट को दान कर दी गई थी। इसके बाद ट्रस्ट ने जमीन को स्थानीय लोगों को पट्टे पर दिया था जिन्होंने छोटे व्यावसायिक केन्द्रों या दुकानों का निर्माण किया और उन्हें दुकानदारों को किराए पर दिया था। ये व्यवस्थाएं हाल के दिनों में नहीं, बल्कि दशकों पहले हुई तय की गई थीं।

अब, जब विध्वंस का प्रस्ताव रखा गया है, ट्रस्ट और जिन लोगों ने दुकानों का निर्माण करवाया था, उन्होंने मुआवजे का दावा किया है। इसलिए फंड अब तीनों के पास जा रहा है, जिसमें दुकानदारों को कम से कम राशि और अधिकतम 1.25 लाख रुपये मिल रही है।

"हमें मुआवज़ा नहीं मिल रहा है, लेकिन एक किस्म का अनुदान मिल रहा है," उन्होंने यह कहते हुए समझाया कि वह दुकान के लाभार्थियों की तीसरी पीढ़ी से हैं। उन्होंने कहा, "मेरे दादाजी ने दुकान लगाई थी, मेरे पिता इसे चलाते रहे और अब मैं इस विरासत को आगे बढ़ा रहा हूं। मेरे पास कमाई का कोई दूसरा स्रोत नहीं है।"

"अनुदान क्यों, उचित मुआवजा क्यों नहीं?" -- एक ऐसा प्रश्न है जो व्यापक रूप से पूछा जा रहा है। पवित्र शहर के मूल निवासी अभय, जिनकी भी गली में एक दुकान है, ने बताया कि जब अयोध्या एक तीर्थ स्थल के रूप में उभरा, तो स्थानीय लोगों ने दुकानों को किराए पर ले लिया था। यहां की अधिकांश संपत्ति नजूल भूमि (लोगों के कल्याण के लिए इस्तेमाल की जाने वाली गैर-कृषि भूमि) है, जिसकी मिल्कियत मंदिर ट्रस्ट के पास है।

"दुकानदारों ने स्थानीय जमींदारों से 5 लाख रुपए पर करीब एक दशक पहले अग्रिम भुगतान कर दुकाने किराए पर लीं थीं। दुकानदारों के साथ समस्या यह है कि उनके पास जमीन के स्वामित्व को दिखाने के लिए कोई कागज नहीं है, जिसमें तीन-चार पीढिय़ों से उनके कब्जे को छोड़कर, उनकी वहाँ दुकानें हैं। अगर सरकार मुआवजे की घोषणा भी करती है, तो वे अपने कानूनी स्वामित्व को साबित करने के लिए बिना कागजात के दावा कैसे करेंगे? उन्होंने कहा, दूसरा, अगर सरकार दुकानदारों को मुआवजा देती है, तो इसका मतलब है कि यह है जमीन पर दुकानदारों के कानूनी अधिकारों को स्वीकार करना। इससे मुकदमों को बढ़ावा मिलेगा।" 

गया प्रसाद, जो पिछले 25 वर्षों से प्रसाद की दुकान चला रहे हैं, प्रस्तावित विध्वंस से पहले मुआवजा और पुनर्वास भी चाहते हैं। उन्होंने मांग की, "दुकान तोडने से पहले हम लोगों का पुनर्वास होना चाहिए ताकि रोजी रोटी चलती रहे।"

अभय कुमार पांडेय का मानना है कि परिवारों की कई पीढ़ियों के स्वामित्व वाली इन दुकानों का भावनात्मक मूल्य किसी भी राशि से कहीं अधिक है और इसकी भरपाई नहीं की जा सकती है। लेकिन उन्होंने कहा कि सरकार और प्रशासन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अयोध्या के विकास से व्यापारियों को भी लाभ मिले और उन्हें अपना व्यवसाय नए सिरे से शुरू करने के लिए सम्मानजनक मुआवजा मिले।

"हमने राम जन्मभूमि आंदोलन और कारसेवा में भी योगदान दिया था। अब, भाजपा राम भक्तों की आजीविका छीनना चाहती है और राम के नाम पर वोट भी मांगती है। वे पुछते हैं कि, हम ऐसी पार्टी को वोट क्यों देंगे?" 

आजीविका की क़ीमत पर विकास

व्यापारियों ने कहा कि वे सरकार की विकास परियोजनाओं का विरोध नहीं कर रहे हैं क्योंकि यह पर्यटन को आकर्षित करेगा, जिससे उनके व्यवसाय को और बढ़ावा मिलेगा। लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि विकास गतिविधियों को उनकी आजीविका की कीमत पर नहीं किया जाना चाहिए।

मनोज जायसवाल की गली में 20 साल से दुकान है। इस योजना के तहत वे भी अपनी 18 फुट लंबी दुकान का 11 फुट हिस्सा खो देंगे। उन्होंने कहा, "मैं अपनी पूरी दुकान को गिराने की पेशकश कर रहा हूं, लेकिन सरकार को एक वैकल्पिक जगह आवंटित करनी चाहिए ताकि मैं अपने पांच लोगों के परिवार का भरण-पोषण कर सकूं।"

अयोध्या के प्रस्तावित विकास के विचार के विपरीत, कई व्यापारी "खेल में एक बड़ी योजना" देखते हैं। "भाजपा सरकार हमें बेदखल करना चाहती है और अयोध्या में जमीन बड़े उद्योगपतियों को सौंपना चाहती है, जो ऐसे मॉल का निर्माण किया जाएगा जहां छोटे व्यापारी कभी किराए पर एक छोटी दुकान भी नहीं ले पाएंगे। उन्होंने कहा, इसलिए, शहर के विकास और सौंदर्यीकरण के नाम पर, सरकार के पास खेल की एक बड़ी योजना है।"

अगरबत्ती के निर्माता, पवन तिवारी ने व्यंग्यात्मक रूप से कहा, "अयोध्या को स्वर्ग बनाया जाएगा और अयोध्यावासी को स्वर्गवासी। 

मोहभंग और आक्रोश के बीच कुछ लोग भगवान राम के नाम पर अपनी दुकानें छोड़ने को तैयार हैं। गली में बिंदी, सिंदूर और अन्य कॉस्मेटिक आइटम बेचने वाले राजू साहू ने कहा, "बरसों से इतना झेला है, और भी झेल लेंगे।"

वे प्रस्तावित सड़क चौड़ीकरण परियोजना के तहत अपनी 25 फीट लंबी दुकान में से करीब 10 फीट हिस्सा खो देंगे, जहां वह अपने परिवार के साथ रहते हैं। उन्होंने कहा, "दुकान और मकान एक ही है। इतनी हैसियत है नहीं की कहीं दुसरी जगह जमीन ले ली जाए।"

चुनाव का कारक?

प्रस्तावित विध्वंस अभियान के खिलाफ बढ़ती नाराजगी के साथ, विपक्ष इस मुद्दे को भुनाने की पूरी कोशिश कर रहा है। इनमें समाजवादी पार्टी के नंद कुमार गुप्ता, अयोध्या के उद्योग और व्यापार ट्रस्ट के प्रमुख हैं। वे बीजेपी प्रत्याशी विवेक प्रकाश गुप्ता के खिलाफ वोटरों को लामबंद कर रहे हैं। 

उन्होंने कहा, "कई व्यापारियों, खासकर छोटे व्यापारियों का भाजपा से मोहभंग हो रहा है क्योंकि यह उनकी आजीविका पर सीधा हमला है।"

उन्होंने कहा कि 5 अगस्त 2020 को राम मंदिर (भूमि पूजन) के उद्घाटन के दिन भी छोटे दुकानदारों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वागत के लिए सड़कों से हटा दिया गया था। वे पुछते हैं कि, "इस नए, मॉल जैसी अयोध्या में उनका स्थान कहां है जिसे भाजपा बनाना चाहती है?" 

उन्होंने कहा कि तथाकथित प्रस्तावित विकास योजना, भाजपा के ताबूत में आखिरी कील साबित होगी।

अन्य व्यापारियों के निकाय भी हैं जो प्रस्तावित विध्वंस का विरोध कर रहे हैं लेकिन उन्हें उम्मीद है कि सरकार उनकी बात सुनेगी।

लेकिन अचल कुमार गुप्ता, जो पिछली तीन पीढ़ियों से एक भोजनालय चला रहे हैं,  ने कहा कि विपक्ष केवल "राजनीतिक लाभ" के लिए व्यापारियों को "गुमराह" कर रहा है। उन्होंने कहा, "हम इस मुद्दे को सक्रिय रूप से आगे बढ़ा रहे हैं और प्रशासन के साथ उलझ रहे हैं," उन्होंने कहा कि उनके ट्रेडर्स यूनियन ने मास्टर प्लान तैयार करने से पहले किए गए हवाई सर्वेक्षण के खिलाफ सरकार के साथ "कड़ा विरोध" दर्ज किया था। 

"हमने मुख्यमंत्री से मुलाकात की और उन्हें व्यापारियों की आजीविका पर विध्वंस के प्रभाव से अवगत कराया था। हमने उनसे विकास परियोजना को पुरानी अयोध्या से नई अयोध्या में स्थानांतरित करने का भी आग्रह किया था। हमें उनके द्वारा आश्वासन दिया गया है कि हमें एक सम्मानजनक राशि मिलेगी और दुकानों के निर्माण के लिए मुआवजा भी मिलेगा। और हमें उम्मीद है कि सरकार अपनी बात पर कायम रहेगी।'

उन्होंने कहा कि सड़क को 24 मीटर (दोनों तरफ से 12 मीटर) चौड़ा करने का प्रस्ताव है। उन्होंने कहा, "हमने इसे 18 मीटर (सड़क के दोनों किनारों पर नौ मीटर) तक कम करने की अपील की है।"

उन्होंने कहा कि अगर सरकार अपनी बात पर विफल रहती है, तो व्यापारी बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन करेंगे क्योंकि विध्वंस से क्षेत्र के सैकड़ों व्यापारियों की आजीविका छिन जाएगी। उन्होंने कहा, "सरकार ने हमें आश्वासन दिया है कि एक सर्वेक्षण किया जाएगा, फिर दिसंबर तक लाभ और मुआवजा दिया जाएगा।"

सरकार द्वारा मांगी गई प्रस्तावित महा योजना पर हजारों व्यापारियों ने अपनी आपत्तियां दर्ज कराई हैं, लेकिन उनमें से किसी को भी अब तक सरकार ने उनके आपत्ति पत्रों की प्राप्ति की पावती नहीं दी है.

उन्होंने माना कि प्रस्तावित परियोजना के खिलाफ भारी नाराजगी है, जिससे पवित्र शहर में भाजपा के जनाधार में सेंध लग सकती है। उन्होंने कहा, "हम अपने विधायक और सांसद के साथ भी बैठक कर रहे हैं और सक्रिय रूप से जिला प्रशासन के साथ मामले को आगे बढ़ा रहे हैं।"

अयोध्या में सात चरणों में चल रहे यूपी विधानसभा चुनाव के पांचवें चरण में 27 फरवरी को मतदान होना है। समाजवादी पार्टी के तेज नारायण पांडे उर्फ पवन पांडेय और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वेद प्रकाश गुप्ता के बीच कड़ा मुकाबला होता दिख रहा है।

गुप्ता ने राज्य में 2017 के विधानसभा चुनाव में पांडे को 50,440 मतों के अंतर से हराया था।

यहां राजनीतिक पर्यवेक्षकों का सुझाव है कि दोनों उम्मीदवारों की जीत और हार बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के उम्मीदवार को मिले वोटों की संख्या पर निर्भर करती है क्योंकि इस सीट पर दलित मतदाताओं की अच्छी खासी आबादी है।

उन्होंने कहा, "अगर दलितों ने पूरे दिल से बसपा को अपना समर्थन जारी रखा, तो इससे सपा को फायदा होगा। और अगर उनका वोट भाजपा में चला गया, तो भगवा पार्टी की जीत निश्चित है।"

विध्वंस निश्चित है

अयोध्या के नगर आयुक्त विशाल सिंह, जो अयोध्या विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष भी हैं, ने कहा कि सौंदर्यीकरण परियोजना आवश्यक थी क्योंकि दुनिया राम मंदिर का दौरा करेगी और इसलिए बेहतर भीड़ प्रबंधन की जरूरत है।

उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया कि, "सौंदर्यीकरण परियोजनाएं अक्सर कुछ असुविधा का कारण बनती हैं, लेकिन यह व्यापारियों और बड़े पैमाने पर लोगों के हित में है। इसलिए, यह निश्चित है और इसे किया जाएगा। प्रभावित होने वाली दुकानों की संख्या की पहचान करने के लिए एक सर्वेक्षण किया गया है।" 

उन्होंने कहा, "हम लोगों को विश्वास में लेकर आम सहमति पर पहुंचेंगे। एक गाइडलाइन तैयार की गई है और प्रभावित लोगों को मुआवजा देने के लिए एक फॉर्मूला तैयार किया गया है।" उन्होंने विस्तार से बताया कि भूस्वामियों को सर्किल रेट के अनुसार मुआवजा दिया जाएगा और किराए पर रहने वाले दुकानदारों को असुविधा के लिए मुआवजा दिया जाएगा।

उन्होंने कहा, "उन्हें नए बाजार परिसरों में भी बसाया जाएगा, जिन्हें शहर के छह स्थानों पर विकसित किया जा रहा है।"

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

UP Elections: In Proposed Beautification of Ayodhya, Small Traders Find No Place

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