Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

यूपी चुनाव: सोनभद्र और चंदौली जिलों में कोविड-19 की अनसुनी कहानियां हुईं उजागर 

ये कहानियां उत्तर प्रदेश के सोनभद्र और चंदौली जिलों की हैं जिन्हे ऑल-इंडिया यूनियन ऑफ़ फ़ॉरेस्ट वर्किंग पीपल (AIUFWP) द्वारा आयोजित एक जन सुनवाई में सुनाया गया था। 
UP Elections
चंदौली में टीकाकरण के संबंध में स्वास्थ्य कार्यकर्ता एक बुजुर्ग महिला से बात करते हुए (फोटो-ANI)

"माफिया और गैंगस्टरों के साम्राज्य को धराशायी किया गया, और राज्य में शांति भंग करने का प्रयास करने वाले सभी लोगों के खिलाफ कार्रवाई की गई है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे कौन हैं; निर्दोष नागरिकों की भूमि पर अतिक्रमण करने वाले लोगों को खामियाजा भुगतना पड़ेगा," उक्त बातें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कही। उन्होंने फिर से यूपी में कोविड प्रबंधन को 'दुनिया में सबसे सर्वश्रेष्ठ' बताया है।

चंदौली और सोनभद्र के निवासी, जहां 7 मार्च को यूपी चुनाव होने हैं, उनसे कहा गया कि वे बताएं कि दुनिया में सबसे बेहतर कोविड प्रबंधन से सरकार का क्या मतलब है और उनसे खामियाजा भुगतने वाले कुछ लोगों के बारे में भी टिप्पणी करने को कहा गया। 

जबकि कोविड-19 से संबंधित नुकसान मुख्य रूप से स्वास्थ्य मुद्दों और मृत्यु से जुड़े हुए हैं, 21-28 दिसंबर, 2021 तक ऑल-इंडिया यूनियन ऑफ फॉरेस्ट वर्किंग पीपल (एआईयूएफडब्ल्यूपी) द्वारा आयोजित जन सुनवाई में महामारी के दौरान हुई मौतों, बढ़ते कर्ज और संकट पर लोगों ने जानकारी दी।  

विभागीय प्रताड़ना, झूठे मुकदमे दायर करना, रिश्वतखोरी, पैसे की जबरन वसूली और लापरवाही की कहानियां, विशेष रूप से आदिवासियों और अन्य पिछड़े समुदायों द्वारा सामना की जाने वाली कहानियां भी इन क्षेत्रों में सबसे अधिक सामने आई हैं। जनसुनवाई के दौरान सुनाई गई अधिकांश कहानियाँ आदिवासियों के खिलाफ वन और पुलिस विभागों द्वारा किए गए अन्याय और अत्याचारों को उजागर करती हैं।

सोनभद्र में, 233 परिवारों की कहानियों को कवर करते हुए 40 मामले जमा किए गए, और चंदौली में, 693 परिवारों की कहानियों को कवर करते हुए 15 मामले जमा किए गए। सोनभद्र और चंदौली के इन बयानों से पता चलता है कि क्रमशः 95 प्रतिशत और 53 प्रतिशत मामले,  महामारी के दौरान लोगों द्वारा सामना की जाने वाली समस्याएं थीं और जो महामारी के दौरान अचानक बेतरतीब बढ़ गईं, जैसे कि वन विभाग या पुलिस अधिकारियों का अत्याचार।

बिरसा की पार्वती गोंड हमें बताती हैं, "वन विभाग बार-बार हमें हमारी मूल वन भूमि खाली करने की धमकी देता है। जब हम मना करते हैं, तो वे हमें फर्जी मुकदमों में फसाने की धमकी देते हैं। सरकार ने कई मौकों पर नगर ग्राम, मझौली, दुधी प्रखंड से कानूनी दस्तावेजों पर हमारे समुदाय के सदस्यों के अंगूठे के निशान जबरन लिए हैं।" 

पार्वती गोंड की तरह उसी गांव की भुगनी गोंड याद करती हैं और बताती हैं कि, "वन विभाग खेत को जोतने के लिए 500 रुपये की रिश्वत मांगता है। विभाग को रिश्वत देने के बाद भी उन्हे धमकी और मौखिक गालियां दी जाती हैं।"

दुधी ब्लॉक के सयाल गांव के मनकुंवर गोंड बताते हैं, "वन और पुलिस विभाग हमारे कृषि क्षेत्रों को नष्ट कर रहे हैं और हमें खेती की गतिविधियों करने से रोक रहे हैं। उन्होंने हमारी झोपड़ी को नष्ट कर दिया और हमें अपनी पुश्तैनी जमीन पर एक नया घर नहीं बनाने दिया है।"

चंदौली जिले के सुखदेवपुर गाँव की रीता याद करती हैं, "गाँव में लगभग 100 दलित परिवार हैं। 2010 में, इस गाँव के 40 परिवारों ने वन अधिकार अधिनियम 2006 के अनुसार व्यक्तिगत वन अधिकार के दावे प्रस्तुत किए थे। 7 दिसंबर, 2021 को, जब गांव में कोई पुरुष सदस्य नहीं था, वन विभाग बिना किसी पूर्व सूचना के खड़ी फसलों वाले खेतों की खुदाई करने के लिए जेसीबी मशीनों के साथ आ गया था।"

ये उन घटनाओं की झलक हैं जिनका सामना सोनभद्र और चंदौली में लोगों को करना पड़ा था, जहां उनके अस्तित्व और आजीविका को उन लोगों द्वारा खतरा पैदा किया गया और शोषण किया गया जिन्हें उनकी रक्षा करनी चाहिए थी।

बच्चे शिक्षा से चूक रहे हैं

"स्कूल बंद होने के कारण बच्चों की शिक्षा बुरी तरह प्रभावित हुई है। अंततः जब स्कूल फिर से खुले तो शिक्षकों को छात्रों को वापस भेजना पड़ा क्योंकि पढ़ाने के लिए पर्याप्त पाठ्यपुस्तकें नहीं थीं। इसके परिणामस्वरूप कुछ छात्रों ने स्कूल नहीं जाने का विकल्प चुना है।" उक्त बातें नया बस्ती, गांव घूम नगर, दुधी ब्लॉक की राजकुमारी ने बताई हैं।

सोनभद्र जिले में जनसुनवाई के दौरान सुनाए गए लगभग सभी मामलों में लॉकडाउन के दौरान बच्चों और उनकी शिक्षा पर पड़े प्रभाव पर भी प्रकाश डाला गया। इसके अतिरिक्त, आजीविका के नुकसान के साथ, अधिकांश माता-पिता अपने बच्चों के लिए ऑनलाइन शिक्षा का खर्च नहीं उठा सकते थे।

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा शिक्षा, महिला और बच्चे, युवा और खेल पर संसदीय स्थायी समिति द्वार साझा किए गए, आंकड़ों के अनुसार, जून 2021 में महामारी के कारण 5.5 लाख से अधिक बच्चे स्कूल से बाहर थे। यूपी की स्थिति की कल्पना करें जब यह कम इंटरनेट वाले राज्यों में से एक है, जो डिजिटल विभाजन को और बढ़ाता है और इस तरह शिक्षा तक पहुंच कम होती है।  इसके अलावा, चंदौली में, रिपोर्ट किए गए 7 प्रतिशत मामले छात्रों की छात्रवृत्ति को रद्द करने या उन्हे रोक देने से संबंधित थे। जनविरोधी तंत्र और खराब प्रशासन के कारण पर्याप्त डिजिटल बुनियादी ढांचा न मिलने के परिणामस्वरूप एक पूरी पीढ़ी को शिक्षित होने से नुकसान हो रहा है।

जबरन बेदखली

सोनभद्र में, 78 प्रतिशत मामले सरकार द्वारा अत्याचार से संबंधित थे और अन्य 35 प्रतिशत मामले जाति और भूमि संबंधित अत्याचार वाले मामले थे। पुश्तैनी जमीन से बेदखल करने के लिए सुखदेव और उनके परिवार को वन और पुलिस विभाग लगातार परेशान कर रहा है। वन विभाग ने उन्हें घर और दीवारें बनाने की अनुमति नहीं दी है और उनके खिलाफ अक्सर फर्जी मुकदमे दर्ज किए जाते हैं। शिकायत दर्ज कराने के लिए पुलिस से संपर्क किया जाता है तो उन्हे दुत्कार दिया जाता है और धमकी दी जाती है।

काम और मजदूरी नहीं होने के कारण कोई राहत नज़र नहीं आती है क्योंकि सरकारी अधिकारी लगातार परेशान कर रहे हैं। विभिन्न ब्लॉकों से जबरदस्ती बेदखली, खड़ी फसलों को जलाने आदि की सूचना मिलती रहती है। 

जिले से ऐसी और भी कई कहानियां मिली हैं, जो गरीबों के उत्पीड़न के प्रति राज्य सरकार की ढिलाई और उत्पीड़न में सक्रिय सहयोग की ओर इशारा करती हैं। दुर्भाग्य से ऐसी कहानियां सिर्फ एक जिले तक सीमित नहीं हैं।

चंदौली जिले में निजी एजेंसियों, उच्च जाति के लोगों और सरकारी एजेंसियों द्वारा उत्पीड़न के 100 प्रतिशत मामले रिपोर्ट किए हैं। इनमें लगभग 80 प्रतिशत मामले सरकार द्वारा किए गए अत्याचारों से संबंधित थे, जैसे वन विभाग, पुलिस अधिकारी और राशन की दुकानें आदि। लगभग 20 प्रतिशत मामले भू-माफिया और उच्च जाति द्वारा अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के परिवारों की भूमि हथियाने के लिए गए अत्याचारों से संबंधित हैं।

अन्याय की अनगिनत कहानियां

रोजी-रोटी और राशन से वंचित परिवार 

उत्तर प्रदेश में कई स्थानों पर उत्पीड़ित और हाशिए के समुदायों को टीकाकरण से वंचित होने या टीकाकरण का प्रमाण नहीं देने पर राशन से वंचित किया गया। सोनभद्र जिले में राशन लेने के लिए जबरन टीकाकरण अभियान चलाया गया, जिसमें 20 प्रतिशत मामलों में ऐसा किया गया बताया गया है।

गाँव में लगभग 18 प्रतिशत मामले पीने के पानी की अनुपलब्धता से संबंधित थे, 35 प्रतिशत  अवैतनिक मजदूरी से संबंधित थे और 13 प्रतिशत मामले महामारी के दौरान खराब सरकारी नीतियों के कारण लोगों द्वारा लिए गए कर्ज से संबंधित थे।

सोनभद्र के दुधी प्रखंड के मझौली गांव के रामदास कहते हैं, ''हमारे गांव में पीने के पानी की काफी किल्लत है.''

उन्होंने आगे कहा, "हमने सामूहिक रूप से 23 मार्च, 2018 को अपने सामुदायिक वन अधिकारों का दावा किया था। महामारी के दौरान हमारी किल्लत बढ़ गई थी। पानी की कमी के कारण, हम अपनी फसलों की खेती और अपने खेतों में काम नहीं कर सके। हमारे गांव के लोगों ने कुएं की खुदाई करने का फैसला लिया लेकिन इनकार कर दिया गया। वन अधिकारी आए और कुएं को मिट्टी से फिर से भर दिया, और इस तरह पानी के हमारे सभी प्रयास रुक गए। हमें अपने वित्तीय संकट के दौरान पानी की टंकियों से पानी खरीदना पड़ा। इससे पहले दिसंबर 2020 में, एक जंगल अधिकारी हमारे जंगल में आए और हमारे घरों में से एक को नष्ट कर दिया। उन्होंने कहा कि, वन अधिकारियों द्वारा इस तरह के हमले महामारी के दौरान हमारे लिए एक सामान्य घटना बन गए थे।" 

लीलावती बीदर के एक स्कूल में प्रतिदिन 50 रुपये के मेहनताने पर खाना बनाती थी। उसका पति, विकलांग है और एक विकलांग भाभी भी उस पर निर्भर है। लेकिन जब कोविड संबंधित  लॉकडाउन शुरू हुआ, तो स्कूल बंद हो गए, लीलावती के पास न तो कोई अन्य नौकरी थी और न ही आमदनी थी। मशीन पर उसके अंगूठे का निशान न मिलने के कारण वह राशन नहीं ले सकी। जब भोजन की कमी गंभीर हुई तो उसके रिश्तेदारों ने अंततः मदद की। सरकार ने कोई मदद नहीं दी।

राम दुलारे का बेटा गुजरात के सूरत में एक प्रवासी मजदूर के रूप में काम करता था, जो एक पाइपलाइन ठेकेदार के तहत काम करता था। उसे हर महीने 10,000 रुपये देने का वादा किया गया था। लेकिन जब मार्च में अप्रत्याशित रूप से लॉकडाउन की घोषणा की गई, तो ठेकेदार ने उसका वेतन देने से इनकार कर दिया। वह कई अन्य मजदूरों के साथ कई दिनों तक सूरत में फंसा रहा। रहने के अस्वच्छ के हालात, पैसे की कमी और भोजन की कमी ने उन्हें दूसरों के साथ सोनभद्र में अपने पैतृक गांव वापस लौटने का निर्णय लिया। वे कई दिनों तक पैदल चले और वापस जाते समय रास्ते में पुलिस ने उनपर शारीरिक हमले किए। कोई आय और जीवित रहने के साधन नहीं होने के कारण, उन्हें उच्च ब्याज दर पर व्यक्तिगत ऋण लेने पर मजबूर होना पड़ा। इससे वे आर्थिक रूप से अपंग हो गए।

चंदौली में 13 फीसदी मामले ठेकेदार या ग्राम पंचायत द्वारा मनरेगा का भुगतान न करने से जुड़े हैं।

परशवा गांव की मुनिया अभी भी अपने पति (नंदू) की मौत के लिए न्याय की तलाश में है और उसकी बकाया मजदूरी के उचित भुगतान की मांग कर रही है।

मुनिया कहती हैं, ''कोविड काल के दौरान होली के ठीक बाद मार्च 2021 में नंदू बिहार के डेहरी-ऑन-सोन में परशवा के 14 लोगों और अन्य गांवों के आठ लोगों को लेकर काम पर गया था।  नियाजू साह, जो परशवा का रहने वाला है, ठेकेदार था जो ग्रामीणों को एक ठेके पर काम पर ले गया था जिसमें मजदूरों को 400 रुपये प्रति व्यक्ति प्रति दिन की दर से मजदूरी देने का फैसला किया गया था और साथ ही हर 15 दिन में नकद भुगतान देने का वादा किया गया था। एक महीने तक काम करने के बाद, किसी भी मजदूर को ठेकेदार ने मजदूरी का भुगतान नहीं किया था। उन्हें जो कुछ मिला वह भोजन खरीदने का पैसा था जिसके बाद, मजदूरों ने किसी तरह से वापसी की व्यवस्था करने के लिए कुछ पैसे की व्यवस्था की और ठेकेदार को सूचित करने के बाद अपने गांवों के लिए रवाना हो गए, वापस आने के बाद अचानक नंदू की तबीयत खराब हो गई और कुछ दिनों बाद उसकी मौत हो गई। जब मैंने ठेकेदार से उसकी बकाया मजदूरी की मांग की तो वह पैसे देने को तैयार हो गया, लेकिन कई महीनों के बाद भी नंदू की मजदूरी का भुगतान नहीं किया गया। ठेकेदार ने एक भी उस मजदूर के वेतन का भुगतान नहीं किया है जिन्हे वह काम करने के ठेके पर लेकर गया था। सभी मजदूरों के परिवार के सदस्य बकाया मजदूरी पाने के लिए ठेकेदार के चक्कर लगा रहे हैं। इस पूरे क्षेत्र में स्थानीय ठेकेदार मजदूरों को काम के लिए ठेके पर ले जाते हैं, लेकिन मजदूरी का भुगतान समय पर नहीं किया जाता है।"

स्वास्थ्य संबंधी सहायता से इनकार

चंदौली और सोनभद्र में, 15 प्रतिशत मामले स्वास्थ्य सेवाओं न मिलने से संबंधित थे और 20 प्रतिशत मामले स्वास्थ्य-विशिष्ट मुद्दों से संबंधित थे।

उनके भाई रामदेव कहते हैं, "बिमलेश यादव की तबीयत तब खराब हो गई जब उनका ऑक्सीजन का स्तर काफी गिर गया था। हमने ऑक्सीजन के लिए कई बार सीएमओ से संपर्क किया। कहीं से भी ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं हो सकी और ऑक्सीजन की कमी और अस्पताल की लापरवाही के कारण बिमलेश की मौत हो गई।" उन्होंने यह भी कहा, "वह अपने परिवार में एकमात्र कमाने वाला व्यक्ति था। उनकी मृत्यु के बाद, उनके परिवार को न तो सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली पारिवारिक लाभ योजना का लाभ मिला और न ही सरकार द्वारा घोषित कोई कोरोना मृत्यु मुआवजा ही मिला। उनकी पत्नी को विधवा पेंशन का लाभ भी नहीं मिल पा रहा है।"

सोनभद्र के रामगोपाल की हालत भी बिमलेश जैसी ही थी, क्योंकि उन्हे भी अस्पताल में इलाज और दवा से इनकार कर दिया गया था।

सोनी गोंड का भाई अनपरा में काम करता था। उन्हें बुखार हो गया और भर्ती होने के एक दिन बाद ही उनका निधन हो गया। उनके शरीर को एक एम्बुलेंस में ले जाया गया, और सरकारी अधिकारियों ने उनका अंतिम संस्कार किया। परिवार को शव देखने या मृतक का अंतिम संस्कार करने की अनुमति भी नहीं दी गई थी।

चंदौली में हमने जो अनोखी बात सुनी, उनमें से आयुष्मान स्वास्थ्य कार्ड के मामलों (13 प्रतिशत) के बारे में था जो कार्ड निष्क्रिय थे।

गांव लक्ष्मणपुर निवासी श्यामदेई ने सरकार द्वारा जारी स्वास्थ्य कार्ड के काम नहीं करने के कारण लिए गए कर्ज की जानकारी दी। श्यामदेई की पत्नी सुनीता की मई 2021 से तबीयत खराब चल रही थी। रॉबर्ट्सगंज के एक निजी अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। जब उसकी तबीयत और बिगड़ने लगी, तो उसे सर सुंदरलाल चिकित्सालय ले जाया गया, जिसे बीएचयू अस्पताल के नाम से जाना जाता है। जब इलाज के दौरान अल्ट्रासाउंड किया गया तो उसके पेट में ट्यूमर पाया गया। सर्जरी की जरूरत थी, लेकिन श्याम देई और उनके परिवार के पास पैसे नहीं थे। उन्होंने इलाज के लिए प्रधानमंत्री जन आरोग्य बीमा योजना के तहत जारी बीमा कार्ड का उपयोग करने के लिए कई निजी अस्पतालों से संपर्क किया, लेकिन अस्पतालों ने उन्हें बताया गया कि उनका बीमा कार्ड निष्क्रिय है, और उन्हें उस स्वास्थ्य कार्ड से इलाज के लिए भुगतान नहीं किया जा सकता है। ऐसे में श्यामदेई को अलग-अलग स्रोतों से 1.5 लाख रुपये तक का कर्ज लेना पड़ा।

निजी कंपनियां लूट रही हैं

निजी सूक्ष्म-वित्त कंपनियों ने सबसे गरीब लोगों के बीच अपनी सूदखोरी प्रथाओं को बढ़ा दिया है और स्थानीय राज्य के अधिकारियों के सहयोग से, अक्सर उनका शोषण करने के लिए महामारी के अवसर का फायदा उठाया है। महामारी के दौरान निजी कंपनियों ने लोगों की मौजूदा दुर्दशा को बढ़ाते हुए लूट अभियान चलाने के लिए महामारी को अवसर में बदल दिया। चंदौली में माइक्रोफाइनेंस कंपनियों द्वारा जबरन वसूली के लगभग 7 प्रतिशत मामले सामने आए हैं।

लक्ष्मणपुर गांव की कैलाशी कहती हैं, "हमारे क्षेत्र में कई माइक्रोफाइनेंस कंपनियां सक्रिय हैं। उनमें से एक कैशपार समूह है जो समूह बनाकर जरूरतमंद गरीब समुदाय की महिलाओं को ऋण के रूप में वित्तीय सहायता प्रदान करता है। ऋण के लिए किश्तों का भुगतान किया जा सकता है। एक सप्ताह से 15 दिन या एक महीने के लिए इस शर्त के साथ कि यदि समूह का कोई व्यक्ति उक्त तिथि पर किश्त का भुगतान करने में विफल रहता है, तो क़िस्त का भार समूह के सदस्यों पर पड़ेगा।

कैलाशी बताती हैं कि क्षेत्र के लगभग हर गांव में 15-20 महिलाओं ने माइक्रोफाइनेंस कंपनियों से कर्ज लिया है। कर्ज वसूली में ये सभी माइक्रोफाइनेंस कंपनियां खुले तौर पर आरबीआई के दिशा-निर्देशों की अवहेलना करती हैं और बेरहमी से बकाया वसूल करती हैं। समूह पर दबाव बनाते हुए किश्तों की प्रतिपूर्ति भी जबरन की जाती है। कोविड के दौरान, आरबीआई ने 3-4 महीने के लिए किसी भी ऋण वसूली पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। उसके बाद, जब ऋण वसूली की प्रक्रिया शुरू हुई, तो माइक्रोफाइनेंस कंपनियों ने पिछली किश्तों को ब्याज़ के साथ इकट्ठा  किया, ऐसा करने वालों में कैशपार समूह भी उनमें से एक था। किस्त जमा नहीं करने की स्थिति में गांव में कंपनी के एजेंट ने कर्ज़ लेने वाली महिला को स्थानीय थाने से बुलाकर कर्ज की किस्त जमा करने की धमकी दी। 

जब हम इन जिलों को चुनाव की तारीखों की ओर बढ़ते हुए देखते हैं, तब भी कोई यह सोच रहा होता है कि खामियाजा कौन भुगत रहा है और सबसे अच्छे प्रबंधन का प्रतिनिधित्व कौन करता है। गुस्से और दुख से भरी सैकड़ों कहानियों से यह स्पष्ट है कि राज्य के वादे और कुछ नहीं बल्कि उनके खेल के मामले में अर्थहीन शब्दावली और जनविरोधी के शब्दकोश हैं।

सार्वजनिक जाँच समितियाँ 'और' सत्य, जवाबदेही और न्याय आयोग (भारत में कोविड-19 महामारी पर जन आयोग)' एक सामूहिक प्रयास है जो पूरे भारत में गठित है, जो सार्वजनिक जाँच समितियों के गठन की प्रक्रिया में है, जो लोगों को जाँच/सवाल करने और पहल करने के लिए राज्य और निजी क्षेत्र की जवाबदेही मांगने की सार्वजनिक प्रक्रिया को सशक्त बनाती है।  लेखक इस प्रक्रिया के हिस्सा हैं।

इविता दास दिल्ली में स्थित एक शहरी शोधकर्ता हैं जो जाति और आवास के मुद्दों पर काम करती हैं। वह पाकिस्तान इंडिया पीपुल्स फोरम फॉर पीस एंड डेमोक्रेसी से जुड़ी हैं। वी आर श्रेया बेंगलुरु में स्थित एक स्वतंत्र शोधकर्ता और संचार क्यूरेटर हैं।

अंग्रेजी में प्रकाशित इस मूल आलेख को पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें:- 

UP Elections: Uncovering the Tale of COVID-19 Losses and Withering Rights in Sonbhadra and Chandauli Districts

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest