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यूपी: मैनपुरी में पुलिस हिरासत में कथित 'यातना' से दलित व्यक्ति की मौत पर परिवार का प्रदर्शन  

पुलिस ने दावा किया कि सोमवार को भूरे नाम के जिस व्यक्ति को उठाया गया था, उसकी अस्पताल में प्राकृतिक कारणों से मौत हुई।
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प्रतीकात्मक तस्वीर।

लखनऊ: एक दलित व्यक्ति, भूरे (54) की पुलिस हिरासत मे हुई मौत के बाद उत्तर प्रदेश के मैनपुरी थाना के बाहर बुधवार को व्यक्ति के परिवार द्वारा विरोध प्रदर्शन किया गया। मेन रोड जाम किया गया।

पीड़ितों के परिवार के सदस्यों, रिश्तेदारों और परिचितों सहित प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि भूरे की मौत शारीरिक यातना के कारण हुई, लेकिन पुलिस ने दावा किया कि प्राकृतिक कारणों से अस्पताल में उसकी मौत हुई।

प्रदर्शनकारियों ने पुलिस के खिलाफ नारे लगाए और थाने के पुलिस वालों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की।

बता दें कि कोर्ट के गैर जमानती वारंट के बाद पुलिस ने भूरे को सोमवार को पकड़ा था और बुधवार को परिवार को सूचित किया गया कि उसकी मौत हो गयी।

मैनपुरी के सीओ संतोष कुमार ने बताया, “वारंट जारी होने के बाद पुलिस ने भूरे को गिरफ्तार किया था और दो दिन पहले जेल भेज दिया गया। भूरे पुलिस हिरासत मे था लेकिन उसकी मौत अस्पताल मे हुई। हमारी सहानुभूति परिवार के साथ है। हम मौत के कारणों के लिए न्यायिक जांच की मांग करेंगे।”

मैनपुरी कोतवाली क्षेत्र मे गिहार कॉलोनी का रहने वाला था भूरे। उसके सात बच्चे हैं।

मृतक की बेटी पायल ने न्यूज़क्लिक को बताया, "हमें नहीं मालूम किस अपराध मे हमारे पिता को पुलिस ने घर से उठाया। घर से जाते समय वे स्वस्थ थे लेकिन उनको इतना टार्चर किया गया कि दो दिन मे ही उनकी मृत्यु हो गयी।"

पायल ने आरोप लगाया, "सोमवार रात को मेरे पिता काम से वापस आए और परिवार के साथ भोजन कर रहे थे तभी अचानक पुलिस वालों का समूह हमारे घर मे घुसा और वे उन्हें उठा कर ले गया। जब हमने उनकी गैर कानूनी गिरफ्तारी का विरोध किया तो पुलिस वालों ने हमें पीटा और हमारे साथ बुरा व्यवहार किया।"

इस बीच, समाजवादी पार्टी ने घटना की न्यायिक जांच की मांग की है।

मैनपुरी से लोकसभा सांसद डिंपल यादव ने यूपी पुलिस पर मनमानी का आरोप लगाते हुए जेल में कैदी की मौत पर भाजपा सरकार पर निशाना साधा और दोषी पुलिसकर्मियों को सख्त सजा देने की बात कही।

उन्होंने अपने एक हिंदी ट्वीट मे कहा, “उत्तर प्रदेश मे पुलिस हिरासत मे मौतें नहीं रुक रही हैं। मैनपुरी कोतवाली क्षेत्र की पुलिस ने भूरे की हत्या कर दी। दोषी पुलिसकर्मियों को सख्त सजा दी जाने चाहिए।”

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मैनपुरी से समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक राजू यादव, जो मृतक के परिवार से मिले थे, उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया, “ यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ साल पहले भूरे का भाई भी मारा गया था वह भी इसी गति को प्राप्त हुआ था। उस पर 15 साल पुराना संपत्ति-विवाद का मामला था। सोमवार को पुलिस हिरासत मे ले गई थी और दो दिन बाद उसकी मौत हो गई।”

समाजवादी नेता ने मांग की कि उत्तर प्रदेश सरकार को मृतक के परिवार को 20 लाख रुपये मुआवजा दिया जाए।

कुछ इसी तरह के मामले में, एक 28 वर्षीय दलित व्यक्ति, जिसे जालसाजी के एक मामले में फतेहपुर पुलिस ने पूछताछ के लिए बुलाया था, उसकी कथित तौर पर नवंबर 2022 में पुलिस हिरासत में मौत हो गई थी।

एक महिला द्वारा पार्किंग मुद्दे को लेकर लवकेश शर्मा पर प्रयागराज थाने मे केस दर्ज कराया था उसे पुलिस पकड़ कर ले गई थी। उसकी दो दिन बाद पुलिस हिरासत मे मौत हो गई थी।

उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले में 8 नवंबर, 2021 को कथित रूप से पुलिस हिरासत में एक युवा मुस्लिम की मौत के बाद विवाद छिड़ गया।

मृतक के परिजनों का आरोप है कि पुलिस ने उसे हवालात में प्रताड़ित किया, जिससे उसकी मौत हो गई। पुलिस ने, हालांकि, दावा किया कि अभियुक्त ने लॉकअप वॉशरूम में जाने पर अपनी जैकेट के हुड के ड्रॉस्ट्रिंग का उपयोग करके खुद को मार डाला।

उत्तर प्रदेश में हिरासत में सबसे ज्यादा मौतें दर्ज की गईं

भूरे या लवकेश की पुलिस हिरासत मे मौत कोई अकेली घटना नहीं है। पिछले कुछ सालों मे सभी राज्यों और केंद्र शाषित प्रदेशों मे उत्तर प्रदेश मे पुलिस हिरासत मे सब से अधिक मौतें रिपोर्ट की गई हैं।

जुलाई 2022 में, केंद्रीय राज्य गृह मंत्री, नित्यानंद राय ने लोकसभा को बताया कि 2021-22 में, अकेले यूपी में कुल 501 हिरासत में मौतें हुईं, जो कि उत्तर प्रदेश में हिरासत में हुई मौतों (2,544) का पांचवां हिस्सा है। देश। जबकि इससे पहले यानी 2020-21 में हिरासत में मौत के 451 मामले दर्ज किए गए थे.

फरवरी में, नित्यानंद राय ने संसद को बताया कि पांच साल में राज्य में पुलिस हिरासत में 41 लोगों की मौत हुई है। इनमें से 2021-22 में आठ, 2020-21 में आठ, 2019-20 में पांच, 2018-19 में 11 और 2017-18 में 10 मौतें दर्ज की गईं।

हालांकि मानव अधिकार कार्यकर्ताओं का दावा है कि उत्तर प्रदेश पुलिस हिरासत मे मौतों का सरकार द्वारा जो डेटा दिया गया है मौतों की संख्या उससे अधिक है।

ऋषि नाम के एक मानव अधिकार कार्यकर्ता ने न्यूज़क्लिक को बताया, "प्रशासन केवल उन लोगों पर विचार करता है जो पुलिस हिरासत में मर जाते हैं, लेकिन जो लोग अस्पतालों में चोटों के कारण दम तोड़ देते हैं, उन्हें प्राकृतिक मौत माना जाता है। यूपी में पुलिस हिरासत में मौतें किसी भी अन्य राज्य की तुलना में अधिक हैं। दो लोगों (अतीक-अशरफ) को पुलिस हिरासत में मार दिया गया था। गौरतलब है कि हाल ही मे (15 अप्रैल को) प्रयागराज में तीन हमलावरों द्वारा मीडिया के सामने सरेआम मारा गया था, लेकिन प्रशासन उन्हें पुलिस हिरासत में हुई मौत नहीं मानेगा। दुखद है कि हर दिन पुलिस यातना के कारण कैदी मर रहे हैं लेकिन हमेशा की तरह पुलिस प्राकृतिक मौत का दावा करती है। इस तरह वे आंकड़ों में हेरफेर करते हैं लेकिन राज्य की सच्चाई किसी से छिपी नहीं है।"

अंग्रेजी मे प्रकाशित मूल लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें :

UP: Family Protests as Dalit Man Dies of Alleged ‘Torture’ in Police Custody in Mainpuri

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