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घोसी उप-चुनावः बीजेपी के चौहान के साथ ही राजभर का इम्तिहान, दल-बदल बना चुनावी मुद्दा

घोसी सीट के लिए हो रहा उप-चुनाव कई मायने में अहम और दिलचस्प है। यहां दारा के साथ ओपी की प्रतिष्ठा भी दांव पर है। एक तरफ सपा है और दूसरी तरफ बीजेपी व सुभासपा। घोसी उप-इस चुनाव में सबसे अहम मुद्दा है दल-बदल और लोकल बनाम बाहरी।
UP Politics
भाजपा प्रत्याशी दार सिंह चौहान और सपा प्रत्याशी सुधाकर सिंह

उत्तर प्रदेश के मऊ जिले की घोसी विधानसभा सीट के लिए 5 सितंबर, 2023 को होने जा रहे उप-चुनाव में भाजपा प्रत्याशी दारा सिंह चौहान के साथ सुभासपा मुखिया ओमप्रकाश राजभर की प्रतिष्ठा भी दांव पर है। दोनों ही नेता दल-बदल के माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं। दारा सिंह चौहान सपा के विधायक थे। उनके इस्तीफे से खाली हुई सीट पर उप-चुनाव होने जा रहा है। लेकिन इस बार विपक्षी ही नहीं उनके अपने भी दारा सिंह चौहान से खफा हैं। नाराजगी का आलम यह है कि जिस रोज उन्हें बीजेपी का टिकट मिला, तभी अमिला कस्बे के उनके खिलाफ होर्डिंग टांगी गई, "दलबदलुओं की खैर नहीं।"

सत्ता के लिए बार-बार आस्था बदलने वाले सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर के लिए भी यह उप-चुनाव उनके सियासी ताकत का इम्तिहान लेने आया है। इस चुनाव के नतीजे बताएंगे कि लोकसभा चुनाव में उनकी बीजेपी में कितनी और क्या हैसियत रहेगी? यूपी मंत्रिमंडल में उन्हें जगह मिलेगी या फिर बीजेपी उन्हें झुनझुना थमाएगी?

साल 2022 के विधानसभा चुनाव में ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी घोसी सीट पर मिलकर चुनाव लड़े थे। पिछले साल हुए चुनाव में दारा सिंह चौहान ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी बीजेपी के विजय राजभर को 22 हजार 216 मतों से हराया था। उन्हें कुल एक लाख 8 हजार 430 वोट मिले थे। बीजेपी कैंडिडेट विजय राजभर ने 86 हजार 214 और बीएसपी के वसीम इकबाल ने 54 हजार 248 वोट हासिल किया था।

उत्तर प्रदेश के मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने की चर्चा के बीच बीजेपी ने दारा सिंह चौहान को घोसी उप चुनाव में मैदान में उतारा है। बीजेपी ने उनके साथ ओमप्रकाश राजभर को भी परखने का इंतजाम कर दिया है। इस सीट पर दोनों नेता सालों से अपनी मजबूती का झंडा बुलंद करने का दावा करते रहे हैं।

घोसी सीट के लिए हो रहा उप-चुनाव कई मायने में अहम और दिलचस्प है। यहां दारा सिंह के साथ ओपी की प्रतिष्ठा भी दांव पर है। एक तरफ सपा है और दूसरी तरफ बीजेपी व सुभासपा। घोसी उप-इस चुनाव में सबसे अहम मुद्दा है दल-बदल और लोकल बनाम बाहरी। पिछले चुनाव में सपा के दारा सिंह चौहान करीब दस फीसदी ज्यादा वोट लेकर चुनाव जीते थे। बीजेपी के साथ इस बार सुभासपा की ताकत है। लड़ाई को तिकोना बनाने वाली बीएसपी अबकी वाकओवर दे चुकी है। कांग्रेस ने भी अपना प्रत्याशी मैदान में नहीं उतारा है। घोसी में अल्पसंख्यक वोटर सर्वाधिक हैं। दारा के साथ राजभर के वोटर जुड़े हैं तो मुसलमान कट गए हैं। घोसी सीट के लिए हो रहे उप-चुनाव में सपा और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला देखने को मिल सकता है।

समाजवादी पार्टी ने राजपूत बिरादरी के सुधाकर सिंह को मैदान में उतारकर बीजेपी के अपर कास्ट समीकरण को गड़बड़ा दिया है। सुधाकर सिंह राजपूत हैं और ब्राह्मणों व भूमिहारों में भी उनकी मजबूत पकड़ है। बीजेपी के पारंपरिक वोट इस बार सुधाकर सिंह के पाले में नजर आ रहे हैं। बीजेपी के दारा सिंह चौहान के पास भले ही सत्ता की ताकत है, लेकिन इनका कद छोटा करने के लिए चौहान के चार अन्य प्रत्याशियों ने पर्चा दाखिल किया है। अपनी सीट बचाने के लिए सपा ने सिर्फ बीजेपी ही नहीं, सुभासपा और निषाद पार्टी को तगड़ी चुनौती दी है।

घोसी उप-चुनाव के नतीजे दारा सिंह चौहान के निजी रसूख और उनके राजनीतिक भविष्य के लिए अहम साबित होगा। जिस दमदारी के साथ बीजेपी उनको वापस लाई है, अगर वह जीतते हैं तो कद और बढ़ेगा। अगर वह पराजित होते हैं तो उनकी सियासी जमीन खिसक सकती है। वह बीजेपी शासन में वनमंत्री रह चुके हैं। इस चुनाव में चौहान का सीधा मुकाबला सुधाकर सिंह से होगा, जो सपा के कद्दावर नेता हैं। वह साल 1996 से सियासत में सक्रिय हैं।

कानून की पढ़ाई करने वाले सुधाकर सिंह ने साल 1996 में नत्थूपुर विधानसभा सीट से चुनाव जीता था। साल 2012 में यही सीट घोसी कही जाने लगी। दूसरी मर्तबा भी सुधाकर विधायक बने, लेकिन साल 2017 की मोदी लहर में वो बीजेपी के फागू चौहान से पराजित हो गए। फागू राज्यपाल बना दिए गए घोसी सीट खाली हो गई और उपचुनाव में बीजेपी ने विजय राजभर को टिकट दिया। सुधाकर सिंह सपा समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरे और सिर्फ 1,773 वोटों से चुनाव हार गए। साल 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में सपा ने उनका टिकट काट दिया।

कांटे के मुकाबले में फंसी घोसी सीट

समाजवादी पार्टी के सामने घोसी सीट को बचाने की चुनौती है तो बीजेपी को अपने साख की चिंता है। राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि इस चुनाव में यह साफ हो जाएगा कि जो पार्टी विधानसभा जीतेगी, वही लोकसभा में भी परचम फहराएगी। सपा मुखिया अखिलेश यादव लगातार दावा कर रहे हैं कि यूपी में पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक अब सपा के साथ हैं। इस बार उनके दावों का भी इम्तिहान होगा। पिछले विधानसभा चुनाव में सपा और सुभासपा के बीच गठबंधन हुआ था।

सियासी दलों से रिश्ता तोड़ने और जोड़ने में माहिर ओपी राजभर के लिए भी यह चुनाव इसलिए भी अहम है क्योंकि इनकी ताकत को परखने का इम्तिहान इनके अपने अपने घर में होने जा रहा है। ऐसे में घोसी सीट पर लड़ाई दिलचस्प होने के आसार हैं। सियासी गलियारों में घोसी सीट आगामी लोकसभा चुनाव के लिए जबर्दस्त दांव मानी जा रही है। दारा चुनाव जीतते हैं तो बीजेपी यूपी में अपने गठबंधन को मजबूती से पेश कर इंडिया गठबंधन पर सवाल खड़ा कर सकती है।

क्या ओपी का जादू अब भी असरदार?

घोसी विधानसभा क्षेत्र में घोसी में करीब सवा चार लाख वोटर हैं। सर्वाधिक वोटर मुस्लिम, दलित और यादव हैं, जो सपा को ताकत देते नजर आ रहे हैं। अंसारी फैक्टर भी सपा के पक्ष में है। बीजेपी के पास राजभर हैं और चौहान (नोनिया-पिछड़ी जाति) हैं। पूर्वांचल में ओमप्रकाश राजभर को पहले करिश्माई नेता माना जाता था, लेकिन अब उनका जादू उस तरह असर नहीं करता दिखता। उनके करीबी महेंद्र राजभर ने बगावत कर दिया है। महेंद्र ने अपनी एक नई पार्टी बनाई है, जिसका नाम है 'सुहेलदेव स्वाभिमान पार्टी'। उन्होंने ओपी राजभर के सामने तगड़ी चुनौती खड़ी की है। वह पूर्वांचल में घूम-घूमकर राजभर समुदाय के लोगों को बता रहे हैं, "ओमप्रकाश राजभर सिर्फ अपने और अपने बेटों के लिए राजनीति कर रहे हैं। अपने कुनबे के लिए वो राजभर समाज को बेच रहे हैं। लोकसभा चुनाव में अपने बेटों सांसद बनाने के लिए बीजेपी के साथ गए हैं। जो व्यक्ति परिवारवाद की बेड़ियों में जकड़ा हो, वो आखिर अपने समाज का भला कैसे कर सकता है? "

ओमप्रकाश राजभर की सुभासपा के कई दिग्गज नेता अब महेंद्र राजभर के पाले में आ गए हैं, जिनमें चंद्रशेखर राजभर भी शामिल हैं। चंद्रशेखर कहते हैं, "सुभासपा मूल सिद्धांतों से भटक गई है। ओपी अब कार्यकर्ताओं को नहीं सुनते। इनके सियासत का लक्ष्य सिर्फ इनका कुनबा है। राजभर समुदाय के दूसरों लोगों के लिए सुभासपा में कोई जगह नहीं है।"

13 प्रत्याशियों ने दाख़िल किया पर्चा

घोसी सीट के लिए 17 अगस्त को नामांकन का आखिरी दिन था। कुल 13 प्रत्याशियों ने पर्चा दाखिल किया है। बसपा-कांग्रेस ने अपने प्रत्याशियों को मैदान में नहीं उतारा है। घोसी के रिटर्निंग ऑफिसर सुरेश कुमार के मुताबिक, नामांकन के आखिरी दिन समाजवादी पार्टी के सुधाकर सिंह ने चार सेट में पर्चा दाखिल किया। जन अधिकार पार्टी ने मुसलमान वोटरों में सेंध लगाने लिए अफरोज आलम को टिकट दिया है। इसी मकसद से दो अन्य मुस्लिम प्रत्याशी सनाउल्लाह आजमी और सलाउद्दीन अंसारी भी मैदान में हैं। बहुजन मुक्ति पार्टी ने सपा को घेरने के लिए रविंद्र प्रताप सिंह को टिकट दिया है। शुक्रवार को नामांकन पत्रों की जांच होगी। नाम वापसी की तारीख 21 अगस्त तय की गई है। इसी दिन चुनाव चिह्न भी बांटे जाएंगे।

17 अगस्त 2023 को सपा प्रत्याशी सुधाकर सिंह के नामांकन के दौरान पार्टी के जिलाध्यक्ष को नामांकन कक्ष में जाने से रोके जाने पर जमकर बवाल हुआ। सपाइयों की पुलिस से तीखी नोकझोंक हुई। सपा कार्यकर्ताओं का कहना था कि जब भाजपा के जिलाध्यक्ष अपने प्रत्याशी के साथ नामांकन कक्ष में जा सकते हैं तो सपा के जिलाध्यक्ष को क्यों रोका जा रहा है?

चुनाव ‘इंडिया’ बनाम ‘एनडीए’ के बीच

मऊ के एक्टिविस्ट एवं कारोबारी सावंत सिंह "न्यूज़क्लिक " से कहते हैं, "घोसी उपचुनाव को भाजपा जीतेगी तो यह माना जाएगा कि उसका गठबंधन यूपी में मजबूत है। सपा अपनी सीट बचा लेती है तो ‘इंडिया’ गठबंधन में अखिलेश यादव का कद बढ़ सकता है। अगर भाजपा चुनाव जीत गई तो यूपी में ‘इंडिया’ गठबंधन पर भी तमाम सवाल खड़े होंगे। फिलहाल यह चुनाव ‘इंडिया’ बनाम एनडीए के बीच होगा। पिछले निकाय चुनाव में बसपा के अरशद जमाल ने बीजेपी प्रत्याशी को भारी मतों पराजित किया था। घोसी लोकसभा सीट भी बसपा के पास है। घोसी में सपा इसलिए बीजेपी को तगड़ी चुनौती दे रही है क्योंकि उप-चुनाव में बसपा मैदान में नहीं है।"

सावंत यह भी कहते हैं, "बीजेपी प्रत्याशी दारा सिंह बाहरी प्रत्याशी हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि उन्हें उनके नाम से कम मौसम विज्ञानी रूप में अधिक जाना जाता है। वो कब, किस दल में चले जाएंगे, कोई भरोसा नहीं। अमिला कस्बे में लोगों ने उनके खिलाफ होर्डिंग टांगी है जिसमें उनके खिलाफ आक्रोश व्यक्त किया गया है। इनका विरोध इस बात के लिए हो रहा है कि अपने सियासी मुनाफे के लिए उन्होंने घोसी की जनता पर चुनाव का बोझ दोबारा डाल दिया है। दूसरी बात, सपा के वोटों में सेंधमारी के लिए तीन मुस्लिम प्रत्याशियों को मैदान में उतारा गया हैं, तो बीजेपी को कमजोर करने के लिए चौहान समुदाय के पांच प्रत्याशी खड़े किए हैं। चौहान को पिछली बार मुस्लिम, यादव, चौहान, राजभर के वोट मिले थे। इस बार देखिए कितना समर्थन मिलता है।"

मऊ के साहित्यकार मनोज सिंह घोसी सीट के लिए हो रहे उप-चुनाव का बेबाक विश्लेषण करते हैं। वह कहते हैं, "घोसी इलाके की जनता चुनाव के मूड में नहीं थी। उस पर अनावश्यक चुनाव लादा गया। बीजेपी ने घोसी में बाहरी और दलबदलू नेता थोपा है। मऊ में पहले सिद्धातों की राजनीति होती थी और अब यह चुनाव पोलिटिकल पर्यटकों के इर्द-गिर्द घूम रहा है। सपा प्रत्याशी सुधाकर सिंह स्थानीय हैं, जबकि दारा सिंह चौहान आजमगढ़ के निवासी हैं। लोगों के दिमाग में यह बात भी चल रही है कि बीजेपी को चौहान ही देना था तो मऊ के किसी चौहान नेता को टिकट देते।"

मनोज यह भी कहते हैं, "अभी बहुत सी चीजें साफ नहीं है। जो बात साफ है वो यह है कि बीजेपी के लोग भी दारा सिंह चौहान से खफा हैं। फारवर्ड वोट कम है, लेकिन हार-जीत का फासला कम करने में अहम भूमिका अदा करते हैं। पूर्व मंत्री कल्पनाथ राय के बाद मऊ में उनके जैसे तेवर का कोई नेता उभरा तो दूसरा नाम सुधाकर सिंह का लिया जा सकता है। छात्र जीवन से सियासत करने वाले सुधाकर उसूलों में यकीन रखते है। बीजेपी के पास सत्ता की ताकत है और उसके दम पर वह कोई करिश्मा करती है तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।"

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