यूपी: युवाओं को रोजगार मुहैय्या कराने के राज्य सरकार के दावे जमीनी हकीकत से मेल नहीं खाते हैं!
लखनऊ: पिछले एक महीने से शिवांगी शर्मा अपने मोबाइल फोन का (इंटरनेट) डेटा पैक भरा पाने में असमर्थ हैं क्योंकि उनका परिवार मौजूदा दौर में गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा है। ऐसा तब है, जब भारत के पास इस समय दुनिया की सबसे किफायती मोबाइल इंटरनेट योजनायें चल रही हैं। उत्तर प्रदेश (यूपी) में जौनपुर जिले की रहने वाली यह 21 वर्षीया निवासी तदर्थ आधार पर सफाई कर्मी के बतौर नौकरी कर रही थी, लेकिन पिछले साल जून में उन्हें अपने काम से हाथ धोना पड़ा। दो महीने का पारिश्रमिक भी अभी तक बकाया है।शर्मा एक आर्थिक रूप से तंगहाल परिवार से आती हैं। तदर्थ रोजगार के छिन जाने से उनका अध्यापिका बनने का सपना चकनाचूर हो गया है।
“जब सरकार ने हमें दिसंबर 2020 में नियुक्त किया था तो मैं खुश थी। कोरोना की पहली लहर के दौरान विभिन्न पदों के लिए 43 पदों की रिक्तियां थीं। हमें कोरोना योद्धाओं के तौर पर सम्मानित किया गया था, लेकिन अब हमारे पास कोई नौकरी नहीं है।”
न्यूज़क्लिक से अपनी बातचीत में वे बताती हैं, “दिसंबर 2020 को अधिसूचना जारी की गई थी, और तब हमारी सेवाओं को तीन महीनों के लिए लिया गया था। हमसे कह दिया गया था कि अप्रैल में हमारी सेवाओं की जरूरत नहीं है, लेकिन फिर 3 मई को हमें फिर से बुला लिया गया। हमें जरा भी अहसास नहीं था कि यह नौकरी सिर्फ 12 दिनों के लिए थी, क्योंकि 30 मई को विभिन्न ग्रेडस के लिए तदर्थ नौकरियों के लिए चयनित सभी 43 लोगों की काम से छुट्टी कर दी गई थी।”
घर चलाने में अपने नाई का काम करने वाले पिता का हाथ बंटाने की कोशिश करने वाली शिक्षिका बनने की चाह रखने वाली इस युवती पर 21,000 रूपये का कर्ज है जिसे उन्होंने शिक्षा में स्नातक (बी.एड) कोर्स में प्रवेश पाने के लिए लिया था। शर्मा का कहना है कि उन्होंने नौकरी पाने के बाद ही इस कर्ज को लिया था और उन्हें यकीन था कि नौकरी से मिलने वाले वेतन से वे जल्द ही इस कर्ज को चुकता कर देंगी, लेकिन अब उनके सारे सपने बिखरकर चकनाचूर हो चुके हैं।
32 वर्षीय सुजीत कुमार सरोज को भी इसी अधिसूचना के आधार पर जौनपुर चिकित्सा विभाग में एक्स-रे टेक्नीशियन के पद पर नियुक्त किया गया था और फिर उसी तरीके से उनकी भी छुट्टी कर दी गई थी।
इन सभी 43 उम्मीदवारों ने इस कदम का विरोध किया है और राज्य के विभिन्न अधिकारीयों को दर्जनों पत्र लिखकर उन्हें नौकरियों पर बहाल करने और उनकी सेवाओं को दोबारा से लेने का अनुरोध किया जा चुका है।
वे कहते हैं, “मैंने अपने पिता की गाढ़ी कमाई का ढेर सारा पैसा खर्चकर पैरामेडिकल की पढ़ाई पूरी की है। यह बेहद शर्मनाक है कि हमारे पास नौकरियां नहीं हैं। मेरे पिता एक किसान हैं, और हमें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए उन्होंने कितना संघर्ष किया है, इस बात से हम बखूबी परिचित हैं। मैं एक शिक्षित व्यक्ति हूँ, और मैं जाकर मनरेगा में काम नहीं कर सकता हूँ। फिर भी, जो लोग दिहाड़ी मजदूरी पा रहे हैं वे हमसे बेहतर स्थिति में हैं क्योंकि उनके पास कम से कम आय का एक निश्चित स्रोत तो है। उन्हें हर हर दो महीने बाद नौकरी से निकाल दिए जाने का भय तो नहीं है।” उन्होंने आगे कहा, “जिला मुख्य चिकित्साधिकारी ने हमें आश्वस्त किया था कि जल्द ही हमें वापस काम पर रख लिया जायेगा, लेकिन इस संबंध में अभी तक कुछ भी नहीं किया गया है।”
एक्स-रे ऑपरेटर का कहना था, “मैं एक कच्चे घर में रहता हूँ। घर में मेरी पत्नी है, बूढ़े माँ-बाप हैं जिनकी देखभाल और एक बहन है जो अब शादी की उम्र में पहुँच गई है, इन सभी की देखभाल का दायित्व मेरे कंधों पर है। लेकिन मेरे पास कोई नौकरी नहीं है। मैं मुख्यमंत्री (सीएम) से अनुरोध करता हूँ कि हमें स्थायी नौकरी प्रदान करें जिससे एक स्थायी आय के प्रति हम आश्वस्त हो सकें। मुझे 16,000 रूपये प्रति माह का भुगतान किया जा रहा था, और आज मैं 14,000 रूपये प्रति माह पर भी काम करने के लिए तैयार हूँ, लेकिन यह काम स्थायी होना चाहिए और हमें नौकरी की सुरक्षा मिलनी चाहिए।”
गौरतलब है कि यूपी सरकार ने पिछले पांच वर्षों के दौरान 4.5 लाख युवाओं को रोजगार देने का दावा किया है। नवंबर 2021 में एक सार्वजनिक संबोधन में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि सरकार ने पारदर्शी चयन प्रक्रिया के माध्यम से उत्तर प्रदेश में 4.5 लाख से अधिक युवाओं को रोजगार मुहैय्या कराने का काम किया है।
लेकिन यूपी सरकार के दावों के बावजूद, बेरोजगार युवाओं ने विभिन्न राजकीय विभागों में भर्ती की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन किये हैं। इस प्रकार के विरोध प्रदर्शनों के दौरान उन्हें कड़कड़ाती ठंड में पुलिस की लाठियों का सामना करना पड़ा है। पूर्वी उत्तरप्रदेश के प्रयागराज में, भर्ती अधिसूचना प्रकिया में हो रही देरी से बेरोजगार युवाओं में बेहद आक्रोश व्याप्त है। उन्होंने सरकार के खिलाफ विरोधस्वरूप बेरोजगार रैली निकाली।
न्यूज़क्लिक की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इन साढ़े चार वर्षों के दौरान सुप्रसिद्ध डबल-इंजन की सरकार के कार्यकाल के दौरान 25 से 29 वर्ष की आयु वर्ग के युवा पुरुषों और महिलाओं के मामले में बेरोजगारी की दर 8.8% से 15.9% अर्थात लगभग दोगुनी हो चुकी है। 20-24 वर्ष के अन्य आयु वर्ग में जो बेरोजगारी की दर पहले से ही अकल्पनीय 23.1% पर बनी हुई थी, इसी अवधि में हैरान कर देने वाली दर से बढ़कर 31.5% हो चुकी है।
ऐसा जान पड़ता है कि इस डबल इंजन सरकार की पथभ्रष्ट आर्थिक नीतियों का सबसे बड़ा खामियाजा महिलाओं को भुगतना पड़ रहा है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईइ) के आंकड़ों के मुताबिक, उन महिलाओं के बीच में बेरोजगारी की दर जिनके पास काम नहीं हैं और काम पाने की इच्छुक हैं, के बीच में बेरोजगारी की दर जो 2018 के मध्य में (32%) थी उसमें लगातार बढ़ोत्तरी ही हुई है, जो 2020 के आखिरी महीनों में छलांग लगाकर 71% तक पहुँच चुकी थी, जब राज्य महामारी की दूसरी विनाशकारी लहर से जूझ रहा था और अंततः मई-अगस्त 2021 में 48% तक पहुंचा था।
राज्य की राजधानी लखनऊ में रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार, रतन मणि लाल का कहना है कि यूपी में राजनीतिक दलों के बीच में अपने-अपने चुनाव अभियानों में बेरोजगारी का मसला सबसे कम चर्चा वाला मुद्दा है।
उन्होंने कहा, “बेरोजगारी का मुद्दा बहुत बड़ा है, और यह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को महंगा पड़ सकता है या मुख्य विपक्षी पार्टी को मदद पहुंचा सकता है। सबसे आश्चर्यजनक पहलू यह है कि इनमें से कोई भी राजनीतिक दल इस पर गंभीरता से काम नहीं कर रहा है। राज्य के नौजवान मौजूदा बेरोजगारी की स्थिति, पेपर लीक और नौकरियों की अधिसूचना में हो रही देरी से बुरी तरह से खफा हैं।”
सीएमआईई के अनुसार, दिसंबर में बेरोजगारी की दर नवंबर माह के 7% की तुलना में बढ़कर 7.9% हो गई है। इस थिंक टैंक ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा है कि दिसंबर में शहरी बेरोजगारी दर बढ़कर 9.3% हो चुकी है, जो नवंबर में 8.2% थी, जबकि ग्रामीण बेरोजगारी दर 6.4% से बढ़कर 7.3% हो चुकी है।
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें
UP: Ground Reality Doesn't Match State Govt's Claims on Providing Employment to Youth
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