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यूपीः राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो न्याय यात्रा' से कांग्रेस को कितना फायदा?

"भारत न्याय यात्रा कांग्रेस और विपक्ष के दूसरे दलों के लिए भी बेहतर नतीजे दे सकती है। राहुल गांधी अलग तरह के राजनीतिक नेता हैं। वह जनहित के मामलों के मुद्दों को प्रमुखता से उठाते हैं।" 
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फोटो साभार : एक्स

लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन में सीटों के बंटवारे की ऊहापोह के बीच प्रदेश कांग्रेस के नेताओं के सामने राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा को सफल बनाने की जिम्मेदारी है। 16 फरवरी 2023 को यह यात्रा उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले में प्रवेश करेगी और सैयदराजा में जनसभा के बाद आगे बढ़ जाएगी। न्याय यात्रा यूपी के जिन 13 जिलों से गुजरेगी उसमें लोकसभा की 27 सीटें हैं और ज्यादातर सीटों पर कांग्रेस की हालत बेहद खराब है। चंदौली में तो कांग्रेस पिछले चालीस साल से कोई चुनाव नहीं जीत पाई है। राहुल गांधी के सामने यूपी में कांग्रेस के खोए हुए जनाधार हासिल करने की चुनौती सबसे बड़ी है।

राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के नौबतपुर से चंदौली जिले में प्रवेश करेगी। सैयदराजा में जनसभा के बाद राहुल इसी दिन पीडीडीयू नगर (मुगलसराय) पहुंचेंगे और यहां से पड़ाव के लिए रवाना होंगे। कांग्रेस की भारत जोड़ो न्याय यात्रा 16 से 22 फरवरी तक उत्तर प्रदेश में रहेगी। चंदौली के बाद गाजीपुर राबर्ट्सगंज, वाराणसी, जौनपुर सदर, मछली शहर, भदोही, मिर्जापुर, प्रयागराज, फूलपुर, कौशांबी, बांदा-चित्रकूट, अमेठी, फैजाबाद, सुल्तानपुर, रायबरेली, फतेहपुर, लखनऊ, मोहनलालगंज, बाराबंकी, हरदोई, उन्नाव, कानपुर, अकबरपुर, हमीरपुर, जालौन और झांसी से होकर न्याय यात्रा आगे जाएगी। पिछले साल राहुल गांधी ने तमिलनाडु में कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक की यात्रा की थी। कांग्रेस यात्रा की वजह लोगों के लिए आर्थिक राजनीतिक और सामाजिक न्याय बता रही है। पार्टी के नेताओं का कहना है संविधान, लोकतंत्र ख़तरे में है, जिसे बचाने के लिए न्याय यात्रा शुरू की गई है।

चुनावी नजरिये से देखें तो राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा जिन रास्तों से गुजरने वाली है वहां कांग्रेस स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। चंदौली में साल 1984 में कांग्रेस की चंदा त्रिपाठी ने जीत दर्ज की थी। इस सीट पर कांग्रेस के बाद जनता दल, तीन बार बीजेपी, सपा, बसपा, फिर सपा और फिर दो मर्तबा बीजेपी ने जीत दर्ज की थी। गाजीपुर में कांग्रेस आखिरी बार साल 1984 में चुनाव जीती थी और जैनुल बशर सांसद बने थे। चंदौली जिले में कांग्रेस पिछले कई सालों से विधानसभा का कोई चुनाव नहीं जीत पाई है। यह स्थिति तब है जब कांग्रेस के कद्दावर नेता पंडित कमलापति त्रिपाठी ने इस जिले में विकास की गंगा बहाई थी। चंदौली को अगर धान का कटोरा का रुतबा हासिल है तो इसका श्रेय कांग्रेस को जाता है। बांध-बंधियां कांग्रेस ने ही बनवाया और चंदौली में नहरों का जाल भी इसी पार्टी ने बिछाया।

पूर्वांचल में कांग्रेस के पास सालों से कोई कद्दावर नेता नहीं रहा। यही वजह है कि पूर्वांचल में पार्टी की हालत सबसे ज्यादा कमजोर है। पूर्वांचल के सोनभद्र जिले की राबर्ट्सगंज लोकसभा सीट कांग्रेस के रामप्यारे पनिका आखिरी बार साल 1984 में सांसद बने थे। इसके बाद कांग्रेस की जमीन खिसकती चली गई और इन सीटों पर पार्टी का खाता कभी नहीं खुला। वाराणसी लोकसभा सीट पर कांग्रेस के डा.राजेश मिश्र साल 2004 में आखिरी बार चुनाव जीते थे। मछलीशहर और जौनपुर सदर लोकसभा सीट पर भी साल 1984 के बाद कांग्रेस कभी कामयाब नहीं हुई। भदोही और इलाहाबाद में भी दशकों से कांग्रेस अपना खाता नहीं खोल पाई है। बुंदेलखंड के बांदा-चित्रकूट में भी कांग्रेस दशकों से कामयाब नहीं हो सकी है।

चुनावी नहीं, वैचारिक यात्रा 

दूसरी ओर, कांग्रेस का कहना है कि यह राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को चुनाव से जोड़कर न देखा जाए। यह यात्रा चुनावी नहीं, वैचारिक यात्रा है। यह सामाजिक न्याय की लड़ाई है। संविधान, लोकतंत्र को ख़तरा है, सरकार निरंकुश है। वह विपक्ष को संविधान के अंदर तय जगह नहीं दे रही है। सत्तारूढ़ बीजेपी ने देश के लोगों को डराकर चुप कराने की कोशिश की है। उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय कहते हैं, "कांग्रेस की 'भारत जोड़ो यात्रा' अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए निकाली जा रही है। इसका मकसद लोगों को आर्थिक असमानता, सामाजिक ध्रुवीकरण और राजनीतिक तानाशाही के प्रति जागरूक करना है। इस यात्रा में आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक न्याय पर जोर होगा और जनता को लोकतंत्र और संविधान की रक्षा के प्रति जागरूक किया जाएगा। साथ ही बेरोज़गारी, किसानों की दिक्क़त, अर्थव्यवस्था की धीमी रफ्तार, भ्रष्टाचार और गवर्नेंस का मुद्दा भी प्रमुखता से उठाया जाएगा।"

अजय राय यह भी कहते हैं, "भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी सभी को प्यार, सेवा और करुणा से जोड़ना चाहते हैं। इस यात्रा का चुनावी राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है। मौजूदा दौर में भारत में मीडिया, संस्थागत ढांचे, न्यायपालिका, संसद सभी पर क्रूर हमले हो रहे हैं। पत्रकारों को डराया-धमकाया जा रहा है। सरकार की पैरवी करने वाले पत्रकारों को पुरस्कृत किया जाता है। बीजेपी चाहती है कि भारत चुप और शांत रहे। वो यह भी चाहते हैं कि जो भारत का है उसे ले सकें और उसे अपने करीबी दोस्तों को दे सकें। बीजेपी का मकसद देश की संपत्ति को चंद पूंजीपतियों को सौंपना है। देश का चौथा खंभा ही नहीं, न्यायपालिका और लोकतंत्र खतरे में है। जब विदेशी कंपनियां कारोबार करने के लिए चीन का साथ छोड़ रही हैं तो बीजेपी उसे अहमियत दे रही है।"

शुरू में कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा को पिछले साल गंभीरता से नहीं लिया जा रहा था, लेकिन राहुल गांधी की राजनीतिक छवि निखारने में इस यात्रा ने अहम भूमिका निभाई है। इस यात्रा से कांग्रेस के समर्थकों का उत्साह जरूर बढ़ा है। इस यात्रा ने राहुल की छवि बदल दी है। लोग अब उन्हें गंभीरता से लेते हैं और सुनते हैं। चंदौली के वरिष्ठ पत्रकार राजीव मौर्य कहते हैं, "भारत न्याय यात्रा कांग्रेस और विपक्ष के दूसरे दलों के लिए भी बेहतर नतीजे दे सकती है। राहुल गांधी अलग तरह के राजनीतिक नेता हैं। वह एक स्टेट्समैन राजनीतिज्ञ की तरह दिखने की कोशिश कर रहे हैं। राहुल जनहित के मामलों के मुद्दों को प्रमुखता से उठाते हैं और अडानी जैसे कारपोरेटरों के भ्रष्टाचार पर वह बेबाकी से मुखर होकर बोलते हैं। वह अकेले ऐसे नेता है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला करने का कोई मौका नहीं चूकते हैं।"

राजीव कहते हैं, "भारत न्याय यात्रा की सफलता इस दौरान उठाए गए मुद्दों पर निर्भर करेगी। यह देखना होगा कि वह कितने वजनदार तरीके से मुद्दों को उठाते हैं। पिछली मर्तबा भारत जोड़ो यात्रा में 'नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान' नारा लगाया गया था। इस नारे को राहुल काफी दिनों से प्रयोग कर रहे हैं। अब देखने की बात होगी कि राहुल की इस यात्रा को इंडिया के सहयोगी दलों का कितना समर्थन मिलेगा। यूपी में कांग्रेस बीजेपी की खामियां तो गिना देती है लेकिन वह वैकल्पिक मॉडल नहीं दे पा रही है। प्रचार के मामले में वह बीजेपी का मुकाबला करने में सक्षम नहीं हैं। कांग्रेस और विपक्षी दलों को लगता है कि लोग जब मोदी सरकार से नाराज होंगे तो उनके पाले में आएंगे, लेकिन पिछले एक दशक ऐसा नहीं हो पा रहा है। सियासत में जब तक विपक्ष सक्रिय नहीं होगा और अपने काम को लेकर जनता के बीच नहीं जाएगा, तब तक वोटर उनके पीछे नहीं आएंगे।"

टूटेगी राजनीतिक जड़ता

राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा को काशी पत्रकार संघ के पूर्व अध्यक्ष एवं राजनीतिक विश्लेषक प्रदीप श्रीवास्तव अलग नजरिये से देखते हैं। वह कहते हैं, "राहुल गांधी की इस न्याय यात्रा के कई पहलू हैं। आमतौर पर विश्लेषण वोट के नजरिये से होता है। नतीजे क्या होंगे, कहा नहीं जा सकता, लेकिन यूपी की राजनीति में एक खास किस्म की जड़ता पैदा हो गई है वह टूटेगी। आंदोलन और जन-अभियान को नई दिशा मिलेगी। राजनीति दृष्टि से आजादी से पहले और उसके बाद भी चंदौली की जमीन वैचारिक संघर्षों की जमीन रही है। अंग्रेजों के खिलाफ भी चंदौली ने लड़ाइयां लड़ी है। तमाम शहादतें हुईं।"

"चंदौली समाजवादियों की बड़ी प्रयोगशाला रही है। राजनीतिक और वैचारिक शून्यता आ गई है। चंदौली की राजनीति बाहुबलियों और जातियों के इर्दगिर्द घूम रही है। चंदौली को हमें राजनीतिक नजरिये सोचना होगा और फैसला लेना होगा। वहां ताजी हवा के झोंके की तरह रहेगी राहुल गांधी को भारत जोड़ो न्याय यात्रा। सैयदराजा में राहुल गांधी की सभा के कई मायने निकलेंगे। वह अल्पसंख्यकों को यह भरोसा दिलाने की कोशिश कर सकते हैं कि कांग्रेस उनके साथ खड़ी है। वैसे भी सिर्फ यूपी ही नहीं, राजनीति का जो मौजूदा परिवेश है और जिस तरह से अल्पसंख्यकों को सत्तारूढ़ दल ने निशाने पर ले रखा है उससे देश के मुस्लिमों को समझ में आ गया है उसकी बेहतरी कांग्रेस के साथ में रहने से है। उत्तर प्रदेश में भी यही स्थिति है। मुस्लिम समुदाय की खामोशी बताती है कि उन्होंने राजनीतिक नजरिये से फैसला ले रखा है और उनका फैसला कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के पक्ष में ही जाएगा।"

विपक्ष के पास बीजेपी की काट नहीं

चंदौली के वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक डा.अनिल यादव को लगता है कि यूपी में राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा से कांग्रेस का वोट बैंक थोड़ा बढ़ सकता है, लेकिन बीजेपी के धार्मिक मुद्दों की काट उनके पास नहीं है। अयोध्या के राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा के बाद बीजेपी ने जनमानस पर गहरा असर छोड़ा है। हिन्दुत्व का एक ही काट है जातीय ध्रुवीकरण है जो कांग्रेस के पक्ष में नहीं दिख रहा है। हाल के दिनों में ज्ञानवापी का मुद्दा अब सुलगने लगा है। कोर्ट ने जब से व्यास तहखाने को खोलने का आदेश दिया है तब से माहौल बदलता जा रहा है। तहखाने में दर्शनार्थियों की तादाद बढ़ गई है। पूर्व जिला जज डा.एके विश्वेश का बनारस में बड़े पैमाने पर स्वागत-सम्मान हुआ। कई जगह दलील दी कि उन्होंने ज्ञानवापी का फैसला न्याय के तराजू पर दिया है। हमें लगता है कि राहुल गांधी की यात्रा का असर पड़ेगा, लेकिन उनके पास कोई मंत्र नहीं है जो बीजेपी के धार्मिक मुद्दों को पीछे छोड़ सके। राहुल गांधी की यात्रा से विशेष प्रभाव नहीं पड़ेगा। कमलापति त्रिपाठी के बाद यहां कांग्रेस को कोई नेता ऐसा नहीं हुआ जो जनता से संवाद स्थापित करता रहा हो। यही वजह है कि चंदौली में कांग्रेस का वजूद हासिये पर आ गया है।

चंदौली के जनवादी नेता अजय राय को लगता है कि राहुल गांधी की भारत न्याय यात्रा जरूर असर दिखाएगी। उनकी यात्रा जिले में चर्चा का विषय है। राहुल अच्छा मुद्दा उठा रहे हैं। वह कहते हैं, "कारपोरेट घरानों को घेराबंदी वजनदार तरीके से कर रहे हैं। जनता के बुनियादी मुद्दे भी उठा रहे हैं। मोदी एक तरफ किसानों का हिमायती बनने का नाटक करते हैं तो दूसरी ओर उनकी मांगों की उपेक्षा करते हैं। किसान जब अपनी जायज मांग उठाते हैं तो उन पर लाठी और गोलियां चलवाते हैं। देश का किसान दुर्दशा का शिकार है, इसलिए लोग राहुल और जनवादी दलों की तरफ आशा भरी नजरों से देख रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार में देश बहुत कमज़ोर हुआ है और लोगों के लोकतांत्रिक अधिकार छिनते जा रहे हैं। सरकारी संस्थान डूब रहे हैं। अल्पसंख्यकों और कमज़ोर वर्ग के खिलाफ़ नफ़रत और हिंसा बढ़ी है। विपक्षी नेताओं के खिलाफ़ केंद्रीय जांच एजेंसियों का दुरुपयोग हुआ है और संविधान ख़तरे में है। राहुल गांधी जिस तरह से आज मेहनत कर रहे हैं उसी तरह एक दशक पहले शुरू किए होते तो यूपी की तस्वीर कुछ और होती।"

अजय राय के मुताबिक, "भारत जोड़ो न्याय यात्रा से राहुल गांधी की छवि बेहतर हुई है और उनका राजनीतिक कद बढ़ा है। चंदौली में किसानों की ज़िंदगी में बहुत सी मुश्किलें हैं। हम गांवों में जाते हैं तो किसानों, महिलाओं, मजदूरों और आदिवासियों के हालात देखकर हमें काफी दुख होता है। इस हालात के लिए लोग नेताओं को ज़िम्मेदार मानते हैं। राहुल गांधी की यह यात्रा ऐसे वक़्त हो रही है, जब विपक्ष के सामने चुनौती है कि कैसे भाजपा को लगातार तीसरा आम चुनाव जीतने से रोका जाए? अगर बीजेपी तीसरी बार चुनाव जीतती है तो सिर्फ विपक्ष ही नहीं, भारतीय संविधान, सेक्युलरिज़्म, सोशलिज़्म और लोकतंत्र का दिवाला पिट जाएगा।"

(लेखक बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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