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सूखी गंगा पर कैसे चलेंगे जलपोत? क्या ‘बंदरबांट’ के लिए बनाया गया बंदरगाह?

बंदरगाह के इर्द-गिर्द गाय-भैस और गधे जुगालीकरते नजर आते हैं। पिछले चार सालों में बनारस-कलकत्ता अंतर्देशीय जलमार्ग पर लगातार न कोई जलपोत चला और न ही माल की ढुलाई हो सकी।
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सूखे की मार झेल रहे चंदौली ज़िले के ताहिरपुर और मिल्कीपुर गांव के किसानों की कीमती जमीनें उस बंदरगाह परियोजना के लिए अधिग्रहीत की जा रही है जो सफेद हाथी साबित हो चुकी है। भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (आईडब्ल्यूएआई) ने हल्दिया-वाराणसी के बीच जलयान से माल की ढुलाई शुरू कराने के लिए बनारस के रामनगर के समीप राल्हूपुर में करीब 206 करोड़ की लागत से बंदरगाह का निर्माण कराया है, जो बालू की नहर की तरह ढह चुकी है।

इस परियोजना को अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट बताकर सरकार को बरगलाया जा रहा है और किसानों को भी। आरोप है कि अफसर पीएम का नाम लेकर किसानों की जमीन और घर हथियाने के लिए उन पर दबाव डाल रहे हैं। स्थानीय लोगों का आरोप यह भी है कि आईडब्ल्यूएआई जिन किसानों की जमीन पर नजरें गड़ाए हुए हैं, उनमें ज्यादातर दलित हैं, जिनका पुनर्वास किए बगैर जमीनें अधिग्रहीत नहीं नहीं की जा सकती हैं।

मनमानी का आलम यह है कि राल्हूपुर में बने बंदरगाह की जमीन के एवज में किसानों का जितना मुआवजा दिया गया था, उतना मिल्कीपुर और ताहिरपुर के किसानों को देने के लिए भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण तैयार नहीं हैं। इतना ही नहीं, प्राधिकरण के अफसर यह भी बताने के लिए तैयार नहीं हैं कि जिस बंदरगाह और फ्रेट विलेज के लिए गरीब किसानों की जमीनों हथियाने के लिए उन पर दबाव बनाया जा रहा है, उससे विकास को कैसे रफ्तार मिलेगी? पिछले चार सालों में इस परियोजना पर पैसे तो पानी की तरह बहाए गए, लेकिन माल की ढुलाई से सरकार को फूटी कौड़ी भी नहीं मिली। नंगा सच तो यह है कि गंगा में चलाई  जाने वाली समूची अंतर्देशीय जलमार्ग योजना लालफीताशाही के फरेब का शिकार हो गई है।

भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (आईडब्ल्यूएआई) ने हल्दिया-वाराणसी के बीच जलयान से माल की ढुलाई के लिए दशकों से कोशिश कर रही है, लेकिन नतीजा, वही ‘ढाक के तीन पात’। पूरी तरह फ्लाप हो चुकी इस परियोजना को परवान चढ़ाने के लिए आईडब्ल्यूएआई ने बनारस के रामनगर में गंगा के किनारे बंदरगाह का निर्माण कराया है। इस बंदरगाह से माल की ढुलाई भले ही नहीं हो पा रही है, लेकिन इसे आधुनिक सुविधाओं से लैस करने के लिए पानी की तरह पैसे जरूर बहाए जा रहे हैं। यह बंदरगाह भले ही सिर्फ दिखावा साबित हो रहा है, लेकिन इसके नाम पर जमीनों के अधिग्रहण का दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है। शुरुआत में इस परियोजना के लिए 70 एकड़ जमीन की जरूरत बताई गई थी। करीब 38 एकड़ में बंदरगाह, जेटी, प्रशासनिक भवन, बिजली घर सहित सड़क मार्ग का निर्माण कराया जा चुका है।

दूसरे चरण में दोनों गांवों की करीब 121 बीघा (पक्का) जमीन का अधिग्रहण किया जाना है। बंदरगाह के विस्तार के लिए मिल्कीपुर में 13.74 हेक्टेयर यानी 33.95 एकड़ जमीन चाहिए तो ताहिरपुर में 16.50 हेक्टेयर यानी 40.77 एकड़ की जरूरत है। मिल्कीपुर में आईडब्ल्यूएआई पौने तीन हेक्टेयर यानी 6.79 एकड़ जमीन हासिल कर चुका है और बाकी भूमि उसे खरीदनी है। सिंचाई विभाग की डेढ़ एकड़ जमीन भी इस महकमे के नाम दर्ज हो चुकी है। इसी तरह ताहिरपुर में 40.77 एकड़ के मुकाबले 2.47 एकड़ खरीदी जा चुकी है। इतनी जमीन सरकारी है जो बंजर के रूप में दर्ज है। आईडब्ल्यूएआई यह जमीन भी हासिल कर चुका है। मिर्जापुर जिले के कुछ गांवों की जमीनों पर भी इस महकमे की नजर है। आईडब्ल्यूएआई के अफसरों के निशाने पर दशकों पुराना तथागत विहार चैरटेबल ट्रस्ट भी है, जिसकी स्थापना दशकों पहले शैक्षणिक, सामाजिक और सांस्कृतिक उत्थान के लिए किया गया था।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, दूसरे चरण में जिस मकसद से जमीन का अधिग्रहण किया जा रहा है उसमें कार्गो पार्किंग, इलेक्ट्रिक सिटी स्टेशन, पावर हाउस, रेलवे ट्रैक, टीनशेड, टर्मिनल आदि का निर्माण कराया जाना है। बनारस और मिर्जापुर की सीमा पर बसे चंदौली के ताहिरपुर और मिल्कीपुर के किसान बंदरगाव के विस्तार योजना का कड़ा विरोध कर रहे हैं। साथ ही आईडब्ल्यूएआई की जल परिवहन योजना को फर्जी करार दे रहे हैं। ताहिरपुर के किसान जितेंद्र कुमार गौतम कहते हैं, "तीन महीने पहले आईडब्ल्यूएआई के अफसर पुलिस फोर्स के साथ पत्थर का पिलर लेकर हमारे गांव में आए और दलितों की जमीन जबरिया कब्जाने लगे। किसानों को न कोई मुआवजा दिया गया और न ही पुनर्वास की व्यवस्था की गई। अफसरों की दबंगई का किसानों ने कड़ा विरोध किया तो वो लौट गए। लेकिन जाते-जाते यह धमकी जरूर दे गए कि अगली दफा बुल्डोजर लेकर आएंगे। तब जमीन भी लेंगे और घर भी ढहा देंगे।"  

जितेंद्र कहते हैं, "सूखे की मार से चंदौली के किसान-मजदूर पहले से ही तबाह हैं। हमारा घर और हमारी जमीनें ही छीन ली जाएंगी तो हम कहां जाएंगे? यह बंदरगाह किसानों की बर्बाद की पटकथा लिख रहा है। लगता है कि आईडब्ल्यूएआई के अफसर हमें किसान बने रहने नहीं देना चाहते हैं। सब कुछ वो ले लेंगे तो हमारे पास न जमीन बचेगी, न अपना घर। हमें आशंका है कि हमारी जमीनें पहले बंदरगाह के नाम ली जाएंगी और बाद में उसे उद्योगपतियों के हवाले कर दिया जाएगा। जिस बंदरगाह के उद्घाटन के बाद चार सालों में एक जहाज भी माल लेकर नहीं आया, उसके भविष्य क्या होगा, यह अंगूठाटेक आदमी भी समझ आसानी से समझ सकता है? हमें तो अपने खेत और घर खोने का डर सता रहा है। जनप्रतिनिधियों को हमारी मुश्किलों से कोई सरोकार नहीं है। यह ठीक है कि हमने जनप्रतिनिधि चुनकर संसद में भेजे हैं, लेकिन हमारे जनप्रतिनिधि किसी लायक नहीं हैं? उन्हें हमारी मुश्किलें सुनने के लिए फुर्सत कहां है। उन्होंने यह भी नहीं सोचा कि जिन किसानों ने उन्हें संसद में भेजा है, वो आगे उनका क्या हाल करेंगे?"

ताहिरपुर के किसान महेंद्र कुमार, इकबाल अहमद, अशोक कुमार, आनंद कुमार के मुताबिक बंदरगाह के नाम पर भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण और प्रशासनिक अफसर दोनों ही धमका रहे हैं। ताहिरपुर और मिल्कीपुर में दर्जनों दलित परिवार हैं जिन पर आईडब्ल्यूएआई की सख्ती जारी है। गाहे-बगाहे प्रशासनिक अधिकारी भी डरा-धमका रहे हैं और खेती करने से मना कर हैं। जेल में डालने की धमकी दी जा रही है। किसान इसलिए भी ज्यादा परेशान हैं कि सफेद हाथी साबित हो रही योजना के लिए उनकी उपजाऊ जमीन तो जाएगी ही, छत भी छिन जाएगी। तब हमारे सामने आजीविका का बड़ा संकट खडा हो जाएगा।"

मिल्कीपुर व ताहिरपुर के ग्राम प्रधान कन्हैया लाल राव किसानों के साथ खड़े हैं। वह कहते हैं, "बंदरगाह के नाम पर दलित किसानों पर जमीन छोड़ने के लिए लगातार दबाव बनाया जा रहा है। पूर्वजों ने घर और जमीन का जो कागज-पत्तर किसानों को दिया था, उसे उन्हें दिखाया जा रहा है और अनुरोध भी किया जा रहा है कि अगर खेती छोड़ दी तो कंगाल हो जाएंगे। अब किसानों को बेदखल कर दिया जाएगा तो वो कहां जाएंगे? बैगर नोटिस और पुनर्वास के किसानों की जमीनों पर बार-बार खंभे गाड़कर कब्जा करने की कोशिशें की जा रही हैं। विरोध करने पर बुल्डोजर से घर ढहाने की धमकी दी जा रही है। कुछ किसानों के पास हुकुमनामा है, जिसे प्रशासन मानने के लिए तैयार नहीं है। उस जमीन को अब बंजर बताया जा रहा है। मिल्कीपुर और ताहिरपुर में इस समस्या का सामना करने वाले अधिकतर परिवार दलित हैं। ये लोग इन दिनों खेती और बाद के दिनों में दिहाड़ी मजदूरी कर अपने परिवार का पेट पालते हैं।"

ताहिरपुर के दलित किसान विजय कुमार कहते हैं, "हम लोग अपने पूर्वजों के समय से इसी जमीन पर खेती-बाड़ी करते आ रहे हैं। बहुत से जवान अब बूढ़े हो गए हैं। बहुतों को अब बताया जा रहा है कि उनकी जमीन बंजर है, जिसपर हम लोगों ने अतिक्रमण कर रखा है। जमीन ही हमारी आजीविका का मुख्य साधन है और सबका परिवार इस पर निर्भर है। हमें अगर बेदखल कर दिया जाएगा, तो हम कहां जाएंगे और क्या करेंगे? "

पुनर्वास किया नहीं, उजाड़ने को तैयार

बंदरगाह के नाम पर किसानों की जमीन दिलाने के लिए चंदौली के जिलाधिकारी संजीव सिंह पर भी खासा दबाव है। कुछ दिन पहले उन्होंने जिले के एक तेज-तर्रार एसडीएम अविनाश कुमार की मुगलसराय तहसील में तैनाती की है। वह किसानों को समझाने के लिए ताहिरपुर और मिल्कीपुर में बैठक और बातचीत कर रहे हैं। किसानों की मुश्किल यह है कि अगर उनकी जमीनें बंदरगाह में निकल गईं तो उनके सामने भूखों मरने की नौबत आ जाएगी। दिलचस्प बात यह है कि भूमि अधिग्रहण से पहले बंदरगाह की उपयोगिता की न तो समीक्षा की गई और न ही इलाकाई किसानों की भौगोलिक, सामाजिक, आर्थिक पहलुओं की पड़ताल कराई गई है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि दलित और अल्पसंख्यक किसानों जमीन ऐसी योजना के लिए ली जा रही है जिसका कोई भविष्य ही नहीं है। महकमें के अफसर यह तह बता पाने की स्थिति में नहीं हैं कि रामनगर के बंदरगाह पर माल लेकर जलपोत कब उतरेंगे? वैसे भी भूमि अधिग्रहण से संबंधित एक मामले में सर्वोच्च न्यायालय हाल ही में यह स्पष्ट कर चुका है कि राज्य द्वारा उचित न्यायिक प्रक्रिया का पालन किए बिना नागरिकों को उनकी निजी संपत्ति से ज़बरन वंचित करना मानवाधिकार और संविधान के अनुच्छेद 300-ए के तहत प्राप्त संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन है।

सर्वोच्च न्यायालय के मुताबिक, कानून से शासित किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में राज्य कानून की अनुमति के बिना नागरिकों से उनकी संपत्ति नहीं छीनी जा सकती है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि कानून से संचालित कल्याणकारी सरकार होने के नाते सरकार संवैधानिक सीमा से परे नहीं जा सकती। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला हिमाचल प्रदेश की विद्या देवी नामक एक निरक्षर महिला के मामले में दिया था जिसकी जमीन राज्य सरकार ने साल 1967-68 में सड़क निर्माण के लिए उसकी अनुमति के बगैर अधिगृहीत कर ली थी। सुप्रीम कोर्ट ने विद्या देवी बनाम हिमाचल प्रदेश सरकार व अन्य’ मामले में सुनवाई के दौरान सरकार के ‘एडवर्स पजेशन’ के तर्क को नकार दिया था। साथ ही संविधान के अनुच्छेद 136 और अनुच्छेद 142 के तहत अपने अधिकार का प्रयोग करते हुए राज्य सरकार को आदेश दिया था कि वह महिला को आठ सप्ताह के भीतर मुआवज़ा और अन्य कानूनी लाभ प्रदान करे।

गाय-भैंस, गधे करते हैं जुगाली

बनारस के रामनगर के समीपवर्ती गांव राल्हूपुर में आईडब्ल्यूएआई के बंदरगाह का उद्घाटन 12 नवंबर 2018 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था। उस समय इस बंदरगाह को जल परिवहन कि दिशा में मील का पत्थर बताया गया था और दावा किया गया था कि इसके जरिये सस्ती दरों पर माल की ढुलाई हो सकेगी। फ्रेट विलेज बनने पर विकास की रफ्तार तेज होगी। ताजा स्थिति यह है कि यह बंदरगाह सन्नाटे में है। बंदरगाह के इर्द-गिर्द गाय-भैस और गधे जुगाली करते नजर आते हैं। पिछले चार सालों में बनारस-कलकत्ता अंतर्देशीय जलमार्ग पर लगातार न कोई जलपोत चला और न ही माल की ढुलाई हो सकी।

बंदरगाह के उद्घाटन के समय पीएम मोदी

रामनगर के बंदरगाह में 5.586 हेक्टेयर में मल्टी मॉडल टर्मिनल का निर्माण कराया गया है। यहां 200 मीटर लंबा और 42 मीटर चौड़ा गंगा नदी पर जेट्टी बनाई गई है। प्रशासनिक भवन का निर्माण कार्य पूरा हो चुका है। लोडिंग अनलोडिंग के लिए 50 टन क्षमता के दो मोबाइल हार्बर क्रेन खड़े हैं और वो जंग खा रहे हैं। यात्रियों को चढ़ने उतरने के लिए फ्लोटिंग जेट्टी और सीढ़ी का निर्माण कार्य पूर्ण हो चुका है। इस बंदरगाह को दिल्ली-हावड़ा रेल मार्ग से जोड़ने लिए नजदीकी जिवनाथपुर स्टेशन से नई सिंगल लाइन बिछाई जा रही है। यह रेलवे लाइन 5.6 किमी लंबी होगी।

भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (आईडब्ल्यूएआई) के उपाध्यक्ष जयंत सिंह के मुताबिक, रामनगर का बंदरगाह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट और हल्दिया-वाराणसी जलमार्ग-1 का अहम हिस्सा है। इस बंदरगाह का जुड़ाव बांग्लादेश तक से होगा। भविष्य में दोनों देशों के व्यापारियों और उद्यमियों के माल को तय स्थान तक पहुंचाने में सहूलियत होगी। साथ ही व्यापारिक रिश्तों को मजबूती भी मिलेगी। बांग्लादेश के ढाका से कोलकाता व हल्दिया, पटना को जोड़ते हुए जलमार्ग बना है। रामनगर के राल्हूपुर में बने बंदरगाह के समीप प्रस्तावित फ्रेट विलेज के लिए भी भूमि अधिग्रहण की तैयारी है।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, फ्रेट विलेज का निर्माण दो चरणों में होना है। आईडब्ल्यूएआई को प्रथम चरण में 74 एकड़ और दूसरे चरण के लिए 26 एकड़ भूमि की जरूरत है। आईडब्ल्यूएआई को अभी तक करीब 10 एकड़ जमीन मिल पाई है। महकमे के अफसरों का दावा है कि भूमि अधिग्रहण में आ रही अड़चनों से फ्रेट विलेज योजना रफ्तार नहीं पकड़ पा रही है।

क्या है जलमार्ग विकास योजना

केंद्र सरकार ने सड़कों का ट्रैफिक कम करने और सस्ते माल ढुलाई के लिए उत्तर भारत में चार जलमार्ग बनाया है। इनमें एक है नेशनल वॉटर वे-1 जो यूपी, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल से गुजरेगा। इस जलमार्ग से कोलकता, पटना, हावड़ा, इलाहाबाद, वाराणसी जैसे शहरों को जोड़ा गया है। वॉटरवे-1 पर चार मल्टी मॉडल टर्मिनल-वाराणसी, साहिबगंज, गाजीपुर और हल्दिया बनाए गए हैं। जल मार्ग पर 1500 से 2000 मीट्रिक टन क्षमता वाले जहाजों को चलाने के लिए कैपिटल ड्रेजिंग के जरिए 45 मीटर चौड़ा गंगा चैनल तैयार किया गया है। पहला वॉटर-वे तैयार करने का जिम्मा इनलैंड वॉटरवेज अथॉरिटी ऑफ इंडिया (आईडब्ल्यूएआई) को सौंपा गया है। दावा किया गया था कि गंगा में जहाजों से माल ढुलाई से देश की जीडीपी में बढ़ोतरी होगी और आर्थिक क्षेत्र में नए अवसर पैदा होंगे।

राष्‍ट्रीय जलमार्ग संख्या-एक, गंगा-भागीरथी-हुगली नदी तंत्र में स्थित है। इस जलमार्ग पर स्थित प्रमुख शहर इलाहाबाद, वाराणसी, मुगलसराय, बक्सर, आरा, पटना, मोकामा, बाढ, मुंगेर, भागलपुर, फरक्का, कोलकाता और हल्दिया है। इसी तरह साल 1988 में धुबरी से सादिया तक 891 किमी तक के जलमार्ग को राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या-2 घोषित किया गया था।  धुबरी ब्रह्मपुत्र नदी पर पहला बड़ा टर्मिनल है। तीसरा राष्ट्रीय जलमार्ग उद्योग मंडल और चंपकारा नहर के साथ पश्चिमी समुद्रतट नहर (कोट्टापुरम से कोल्‍लम) के बीच स्थित है। गोदावरी और कृष्‍णा नदी से लगा काकीनदा-पुडुचेरी नहर (1078 किलो मीटर) को 2008 में राष्‍ट्रीय जलमार्ग-4 घोषित किया गया है।

आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने जलमार्ग विकास परियोजना के तहत साल 2018 में राष्ट्रीय जलमार्ग-1 के विकास के  लिए 5,369.18 करोड़ रुपये के निवेश को मंजूरी दी थी। इस परियोजना में विश्व बैंक प्रमुख साझेदार है, जो इसके लिए वित्त एवं तकनीकी सहायता मुहैया करा रहा है। आईडब्ल्यूएआई के अफसर सरकार को समझाते आ रहे हैं कि सड़क परिवहन की औसत लागत 1.5 रुपये प्रति टन प्रति किलो मीटर और रेलवे के लिए यह एक रुपये प्रति टन है। जलमार्ग से प्रति टन माल की ढुलाई कराने पर खर्च महज 25 से 30 पैसे प्रति किलो मीटर आएगा। एक लीटर ईंधन से सड़क परिवहन के ज़रिये 24 टन प्रति किलोमीटर और रेल परिवहन के ज़रिये 85 टन प्रति किलोमीटर माल की ढुलाई हो सकती है, जबकि जलमार्ग के जरिये इससे अधिकतम 105 टन प्रति किलोमीटर तक माल की ढुलाई की जा सकती है। भूतल परिवहन के मुकाबले जलमार्ग परिवहन कहीं अधिक किफायती एवं पर्यावरण के अनुकूल माध्‍यम है। माल ढुलाई की लागत कम होने पर उत्‍पादों के मूल्‍य में भी गिरावट आएगी।

गंगा छिछली, कैसे चलेंगे जलपोत?

बनारस से हल्दिया के बीच जलमार्ग पर जलयान चलाने में सबसे बड़ी बाधा है गंगा में गहराई की कमी। नदी विशेषज्ञों के मुताबिक, जलपोत चलाने के लिए गंगा में न पर्याप्त चौड़ाई है, न ही सभी साजो-समान से लैस टर्मिनल। उच्च क्षमता वाले जलयानों की कमी भी एक बड़ी चुनौती है। गंगा में बने जलमार्ग पर हर साल गाद भर जाती है, जिसके चलते कोई भी व्यवसायी जलयान उतारने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। बनारस के पत्रकार विनय मौर्य कहते हैं, "टैक्स पेयर का अरबों रुपये खर्च करने के बावजूद राष्ट्रीय जलमार्ग प्राधिकरण इस योजना को रफ्तार नहीं दे सका। साल भर जल की समुचित मात्रा का आभाव, माल परिवहन के लिए जलयानों की कमी, उचित टर्मिनल, रैंप और मकैनिकल हैंडलिंग के आभाव में इस योजना ने दम तोड़ दिया है।"

प्राधिकरण के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि गर्मी के दिनों में गंगा नदी में कई स्थानों पर रेत के बड़े-बड़े टीले उभर जाते हैं। ऐसे में भला कौन कारोबारी गंगा में जलयान चलाने के लिए धन खर्च करने की हिम्मत जुटा पाएगा। इसी साल गाजीपुर के जमानिया के पास गंगा में करीब 14 किमी तक पत्थर के उस रास्ते में पाए गए, जिस रास्ते में जलपोतों को चलाया जाना है।
 
कितना ढोया गया माल

रामनगर स्थित लाल बहादुर शास्त्री बंदरगाह के उद्घाटन से पहले अक्टूबर 2018 में 1620 किलोमीटर लंबे वॉटरवे से गंगा के जरिए वाराणसी से कोलकाता के हल्दिया के बीच माल ढुलाई हुई थी। उस समय पेप्सिको के माल से भरे 16 कंटेनर के साथ मालवाहक जहाज एमवी आरएन टैगोर कोलकाता से वाराणसी पहुंचा था। वापसी में यही जहाज इलाहाबाद से इफको का उर्वरक लेकर लौटा था। उस समय दावा किया गया था कि आजादी के बाद देश में इनलैंड वॉटरवे पर किसी कंटेनर पोत की यह पहली यात्रा है।

चार साल पहले उद्घाटन के पूर्व इसी रविंद्रनाथ टैगोर जलपोत में लाया गया था कार्गो

इसके बाद 20 फरवरी 2021 को 40 टन धान की भूसी लेकर एक जलपोत इलाहाबाद, मुगलसराय, बक्सर, बलिया, आरा, पटना, मोकामा, मुंगेर, भागलपुर, साहिबगंज, फरक्का, पाकुड़ होते हुए जल मार्ग से कोलकाता पहुंचा। आईएफबी एग्रो इंडस्ट्रीज के प्रतिनिधि राकेश कुमार के मुताबिक, धान की भूसी को जल मार्ग से कोलकाता भेजने में 2.70 रुपये प्रति किलो के हिसाब से भाड़े का भुगतान करना पड़ा है, जबकि दावा किया गया था कि खर्च 25 से 30 पैसे ही आएंगे।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक वाराणसी-हल्दिया के बीच जल परिवहन शुरू करने के लिए सरकार रामनगर बंदरगाह को अव पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) के हवाले करना चाहती है। इसके लिए टेंडर प्रक्रिया शुरू की गई, लेकिन कोई आगे ही नहीं आया।
 
विपक्ष का आरोप

गंगा में जलपोत के संचालन और रामनगर बंदरगाह को लेकर कांग्रेस कई मर्तबा सरकार पर हमले बोल चुकी है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व विधायक अजय राय इस योजना को मूर्खतापूर्ण कदम करार देते हैं। वह कहते हैं, "जनता की गाढ़ी कमाई उस योजना पर लुटाई जा रही है जो कभी फलीभूत होने वाली है ही नहीं। जब गंगा में पानी ही नहीं तो जलपोत चलेगी कैसे?  सिर्फ सरकारी धन के बंदरबांट के लिए इसे शुरू किया गया है। कोई यह बताने के लिए क्यों नहीं तैयार है कि बंदरगाह के लोकार्पण के बाद कितने जलपोत गंगा में चले और कितना माल ढोया गया?  समंदर होता तो शायद जल परिवहन का लाभ मिलता।"

अप्रैल महीने में गंगा में उभरे बालू के टीलों को कैसे पार करेंगे जलपोत

वो आगे कहते हैं कि, “पहले केंद्र सरकार इस आशय का श्वेत-पत्र जारी करे की वाटरवे-1 पर कितने शिप चले और कितने माल की ढुलाई हुई? इस योजना से सरकार को कितना मुनाफा हुआ? वैसे भी यह बंदरगाह पीएम  के उद्घाटन के बाद से सवालों के घेरे में है। वाटरवे परियोजना एक दिन पूरी तरह फेल हो जाएगी और मशीनें कबाड़ में बेचने पड़ेंगे।"

 इसे ख़ब्तुल हवास परियोजना कहें

उत्तर प्रदेश उद्योग व्यापार प्रतिनिधिमंडल के वाराणसी जोन के अध्यक्ष विजय आईडब्ल्यूएआई भी इस योजना पर सवालिया निशान खड़ा करते हैं। वह कहते हैं, " वाटरवे-1 योजना सिर्फ मजाक है। इस योजना को लेकर गाहे-बहाहे शिगूफे छोड़े जाते हैं, इवेंट के दौरान शूटिंग्स होती है। मीडिया योजना को चर्चा का केंद्र बनाती है और सरकार वाहवाही लूटती है। बाद पता चलता है कि योजना रेत की नहर की तरह दफन हो गई।"

कपूर आगे कहते हैं, “रामनगर बंदरगाह तक उद्यमियों के लिए कोई सुविधा नहीं है। भाड़े पर सब्सिडी भी नहीं दी जा रही है। माल की बुकिंग की जिम्मेदारी शिपिंग कार्पोरेशन कोलकाता की एक एजेंसी को सौंपी गई है, लेकिन वो अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करने में तनिक भी दिलचस्पी नहीं दिखा रही है।"  

गंगा की पारिस्थितिकी के जानकार डा.अवधेश दीक्षित कहते हैं, "रामनगर का बंदरगाह जलमार्ग-एक का हिस्सा है। बंदरगाह पर 206 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं, मगर सुविधाओं का कहीं अता-पता नहीं है। इस प्रोजेक्ट के बर्बाद होने का सबसे बड़ा करण है गंगा का गलत सर्वेक्षण। सिर्फ बड़ा ख्वाब देख लेने भर से कुछ नहीं होता। गंगा में जलपोत चलाने पर हर साल अरबों रुपये ड्रेजिंग पर खर्च करना पड़ेगा। जलपोत चलाने के लिए गर्मी के दिनों में गंगा नदी में तीन मीटर तक गहराई को मेंटन कर पाना कठिन है। 15 अक्टूबर के बाद गंगा की स्थिति खराब होने लगती है।" 
 
बनारस में भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (आईडब्ल्यूएआई) का दफ्तर मकबूल आलम रोड पर है। इस चमचमाते दफ्तर में बतकही में मशगूल और भागदौड़ करते कर्मचारियों को देखकर लगता है कि यह किसी परियोजना का दफ्तर है। यहां सहायक जलीय सर्वेक्षक संजय कुमार शुक्ला से संपर्क हुआ तो उन्होंने कोई भी जानकारी देने से मना कर दिया। हालांकि बाद में उन्होंने अनौपचारिक तौर पर बातचीत में दावा किया, "हमने जलमार्ग तैयार कर दिया है। अगर कोई कारोबारी अपना माल जलमार्ग से लाने के लिए तैयार नहीं है तो इसके लिए आईडब्ल्यूएआई क्या कर सकता है? जब तक कारोबारियों और व्यापारियों की सोच नहीं बदलेगी, तब तक न गंगा नदी में जलपोत चल सकेंगे और न माल की ढुलाई संभव हो पाएगी।"

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