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यूपी: अब झांसी में अवैध खनन की रिपोर्टिंग करने गए पत्रकार पर हमला, कहां है कानून व्यवस्था? 

प्रदेश में पत्रकारों के ख़िलाफ़ जिस तरह से मार-पीट और मुक़दमे दर्ज हो रहे हैं उससे तो यही लगता है कि आने वाले दिनों में राज्य में पत्रकारिता और पत्रकारों की दशा और खराब हो सकती है।
Ashish Saag

कुछ ही दिन पहले उत्तर प्रदेश में पेपर लीक मामले में बलिया के पत्रकारों को निशाना बनाया गया था। अभी ये मामला शांत भी नहीं हुआ था की अब झांसी में अवैध स्टोन क्रशर के खिलाफ रिपोर्टिंग करने गए एक पत्रकार के साथ मारपीट की खबर सामने आ रही है। खबरों के मुताबिक झांसी में बीते कुछ दिनों से अवैध स्टोन क्रशर की खबर प्रमुखता से अखबारों में छापी जा रहीं थी, जिसके चलते पत्रकार को एक भीड़ द्वारा मारा गया, जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है।

बता दें कि इससे पहले बीते साल नवंबर में बांदा के पत्रकार आशीष सागर ने अवैध बालू खनन की रिपोर्ट को लेकर पुलिस पर टॉर्चर का आरोप लगाया था। इसके अलावा आज शनिवार, 16 अप्रैल को जब ये खबर लिखी जा रही है बलिया शहर पूरी तरह से बंद है। ये बंद शासन-प्रशासन का विरोध है, अन्याय के खिलाफ पत्रकारों की एकजुटता है। वैसे प्रदेश में 2017 में जब से योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार सत्ता में आई है, तब से राज्य में अक्सर ही मीडिया के दमन और पत्रकारों पर हमलों संबंधी आरोप भी लगते रहे हैं।

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कमेटी अगेंस्ट असॉल्ट ऑन जर्नलिस्ट्स की एक रिपोर्ट बताती है कि 2017 में यूपी में योगी आदित्‍यनाथ के मुख्‍यमंत्री बनने से लेकर फरवरी 2022 तक राज्‍य में 48 पत्रकारों पर शारीरिक हमले हुए, 66 के ख़िलाफ़ केस दर्ज या उनकी गिरफ़्तारी हुई। इस दौरान 78 फीसदी मामले वर्ष 2020 और 2021 में महामारी के दौरान दर्ज किए गए।

क्या है पूरा मामला?

मीडिया में आई खबरों के मुताबिक झांसी में कुछ दिनों पहले पहाड़ की खदान में किए गए विस्फोट से पास में स्थित एक मंदिर का कुछ हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया था, जिसके चलते कन्या भोज में अफरा-तफरी मच गई थी, साथ ही कई आस-पास के मकानों की दीवारों में भी दरारें पड़ गई थीं। तब से पहाड़ की खदान में किए गए विस्फोट का मुद्दा मीडिया में छाया हुआ था। इन्हीं सब अवैध स्टोन क्रशर की रिपोर्टिंग करने गए पत्रकार मिलन परिहार के साथ मार-पीट की खबर है।

न्यूज़लॉन्ड्री की रिपोर्ट के मुताबिक पत्रकार मिलन परिहार के साथ दैनिक जागरण और दैनिक स्वदेश के लिए काम करने वाले शशिकांत तिवारी भी रिपोर्टिंग के लिए गए थे। पत्रकार मिलन कहते हैं, “अवैध खनन के खिलाफ लगातार रिपोर्टिंग कर रहा हूं। इसको लेकर मैंने खनन अधिकारी को भी सूचना दी थी। शुक्रवार को मैं और मेरे साथी पत्रकार अवैध खनन को लेकर फिर से रिपोर्टिंग करने गए थे। लेकिन वहां स्टोन संचालकों ने हमें बंधक बना लिया। वह मुझे घसीटकर अपने ऑफिस ले गए और वहां मेरे साथ मारपीट की गई।”

वह आगे कहते हैं, “क्रशर संचालकों ने साजिश कर वहां एक महिला को बुलाया और मेरे साथ बदतमीजी करवाई और मुझे महिला से पिटवाया गया। मेरे हाथ-पैर में चोट आई है। क्रशर संचालकों का बहुत ज्यादा नुकसान हो रहा था इसलिए उन्होंने मेरे साथ मारपीट की।”

सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में भी साफ देखा जा सकता है कि झांसी में द न्यूज़ एक्सप्रेस के नाम से ऑनलाइन पोर्टल चलाने वाले पत्रकार मिलन परिहार को भीड़ पीट रही है। इस भीड़ में एक महिला भी चप्पल से पत्रकार को पीट रही है।

इस संबंध में झांसी प्रेस क्लब के अध्यक्ष मुकेश वर्मा ने न्यूज़लॉन्ड्री से कहा, “दोनों पत्रकार अवैध स्टोन क्रशर की रिपोर्टिंग के लिए गए थे जहां उनके साथ मारपीट की गई। क्योंकि स्टोन संचालक भाजपा नेता सुशील गुप्ता का है, इसलिए अवैध स्टोन क्रशर के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई। हम अभी पुलिस की कार्रवाई का इंतजार कर रहे हैं। अगर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होती है तो विरोध प्रदर्शन करेगें।”

इस पूरे मामले पर न्यूज़लॉन्ड्री के पत्रकार अश्विनी कुमार सिंह ने स्थानीय पुलिस का एक वीडियो भी शेयर किया है, जिसमें झांसी देहात के एसपी नैपाल सिंह कहते हैं, “गरौठा थानाध्यक्ष से इस मामले में रिपोर्ट मांगी है। जो भी दोषी हैं उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।”

शासन-प्रशासन द्वारा प्रताड़ना की कोशिश

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में पत्रकारों के ख़िलाफ़ जिस तरह से मार-पीट और मुक़दमे दर्ज हो रहे हैं उससे तो यही लगता है कि प्रशासन और सरकार को सबसे ज़्यादा ख़तरा पत्रकारों से ही है और आने वाले दिनों में राज्य में पत्रकारों की दशा और खराब हो सकती है। हाल ही में प्रकाशित कई मीडिया रिपोर्ट्स कहती हैं कि पत्रकारों पर सबसे ज्यादा हमले राज्य और प्रशासन की ओर से किए गए हैं। ये हमले कानूनी नोटिस, एफआईआर, गिरफ़्तारी, हिरासत, जासूसी, धमकी और हिंसा के रूप में सामने आए हैं। वहीं, शारीरिक हमलों की बात करें तो सूची बहुत लंबी है। कम से कम 50 पत्रकारों पर पांच साल के दौरान शारीरिक हमला किया गया। इसमें जानलेवा हमले से लेकर हल्की-फुल्की झड़प भी शामिल हैं। हमलावरों में पुलिस से लेकर नेता और दबंग व सामान्य लोग शामिल हैं। ज्यादातर हमले रिपोर्टिंग के दौरान किए गए।

पत्रकारों को अपना काम करने के चलते बर्बर तरीके से मारने, डराने-धमकाने समेत कई मामले सामने आ चुके हैं। मीडिया की आजादी से संबंधित ‘रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स’ की सालाना रिपोर्ट में प्रेस की आजादी के मामले में भारत 180 देशों में लगातार 142वें स्थान पर है, यानी ये देश पत्रकारिता के लिए बेहद खतरनाक है। इसमें से उत्तर प्रदेश की स्थिति और ज्यादा दयनीय है। यहां पर आए दिन सच को उजागर करने वाले पत्रकारों पर मुकदमें और गिरफ्तारी की खबरें सुर्खियां बनी रहती हैं। योगी सरकार भले ही प्रदेश में 'रामराज्य' और 'बेहतर कानून व्यवस्था' का दावा करती हो, लेकिन जमीनी पत्रकार तस्वीर इससे उलट ही देखते हैं।

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