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क्या यूपी पुलिस नाकामी छिपाने के लिए छात्रों, पत्रकारों, एक्टविस्ट को निशाना बना रही है?

CAA के विरोध में सबसे ज्यादा गिरफ्तारियां उत्तर प्रदेश में हुई हैं। अभी तक इस मामले में कुल 164 मुकदमों में 879 लोग गिरफ्तार हुए हैं। अकेले राजधानी लखनऊ में 19 दिसंबर को 200 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया है।
CAA Protest

देश भर में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) का जोरदार विरोध हो रहा है। देश की राजधानी दिल्ली से लेकर सुदूर ग्रामीण इलाकों के लोग भी इस विरोध में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहे हैं। 19 दिसंबर को जब देशभर के लोग नागरिकता संशोधित कानून के विरोध में सड़कों पर उतरे तो सोशल मीडिया पर इतिहासकार रामचंद्र गुहा का एक वीडियो खूब वायरल हु्आ। वीडियो में पुलिस गुहा को न सिर्फ हिरासत में लेती दिखाई देती है बल्कि इस दौरान उनके साथ बदसुलूकी भी करती है। इस वीडियो को लेकर सोशल मीडिया और तमाम जगहों पर सरकार की खूब आलोचना हुई। हालांकि बाद में रामचंद्र गुहा को पुलिस ने छोड़ दिया लेकिन इसी दिन अलग-अलग इलाकों से पुलिस ने कई छात्रों, समाजिक कार्यकर्ताओं, बुद्धजीवियों और नागरिक समाज के लोगों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया है।

नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में सबसे ज्यादा गिरफ्तारियां उत्तर प्रदेश में हुई हैं। अभी तक इस मामले में कुल 164 मुकदमों में 879 लोग गिरफ्तार हुए हैं। अकेले राजधानी लखनऊ में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में 19 दिसंबर को 200 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया है। इसमें मानवाधिकार कार्यकर्ता और अधिवक्ता मो. शोएब, पूर्व आईपीएस अधिकारी एसआर दारापुरी, रंगकर्मी दीपक कबीर, सामाजिक कार्यकर्ता सदफ जाफर, माधवी कुकरेजा और अरुंधती धुरु भी शामिल हैं। इस दौरान द हिन्दू के पत्रकार उमर राशिद को पुलिस ने हिरासत में लिया।

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सामाजिक कार्यकर्ता सदफ जाफर की गिरफ्तारी उस समय हुई जब वह इस प्रोटेस्ट के बाद हुए उपद्रव का फेसबुक लाइव कर रही थीं। अब उन पर दंगा भड़काने, पब्लिक प्राॅपर्टी को नुकसान पहुंचाने समेत 14 धाराएं लगा दी गई हैं।

सदफ की बहन नाहिद वर्मा ने एक फेसबुक पोस्ट जारी किया, जिसमें सदफ के 19 दिसंबर से गायब होने की सूचना दी है। नाहिद ने कहा कि पुलिस ने सदफ के हाथ और पैरों पर लाठियां बरसाईं। उनके पेट पर लातें मारी हैं, जिससे उन्हें इंटरनल ब्लीडिंग होने लगी। नाहिद ने आगे बताया कि वे सदफ से मिलने जेल गई थीं और उनकी जमानत की कोशिश कर रही हैं।

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गौरतलब है कि लखनऊ के परिवर्तन चौक पर जब शरारती तत्वों ने पुलिस पर पत्थर फेंकना शुरू किया तो सदफ ने इसे फेसबुक पर लाइव कर दिया। जब पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया तो भी वह लाइव ही थीं। इनमें से एक वीडियो में वह यह कहती दिख रही हैं यहां तो पुलिस और प्रदर्शनकारियों में मिलीभगत है। जो लोग पत्थर फेंक रहे हैं पुलिस उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रही है। इस वीडियो के अंत में साफ देखा जा सकता है कि फेसबुक लाइव करते वक्त उनकी गिरफ्तारी हुई है।

वीडियो में जफर पुलिस वालों से कहती दिख रही हैं कि 'आप उन्हें रोक क्यों नहीं रहे हैं? जब लोग पत्थर फेंक रहे हैं आप खड़े होकर तमाशा देख रहे हैं। हेल्मेट का क्या इस्तेमाल है? आप लोग कुछ क्यों नहीं कर रहे हैं।'

अगले वीडियो में जब एक पुलिस वाला उन्हें गिरफ्तार करने आ रहा है तो वह कह रही हैं आप मुझे क्यों अरेस्ट कर रहे हैं। उन लोगों को अरेस्ट कीजिये जो पत्थर फेंक रहे हैं। इसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है।

बता दें कि सदफ जाफर सामाजिक कार्यकर्ता होने के साथ ही थियेटर आर्टिस्ट भी हैं। वे यूपी कांग्रेस की सदस्य हैं और कई मुद्दों पर लिखती रहती हैं। फिलहाल वे फिल्ममेकर मीरा नायर की फिल्म ‘अ सूटेबल बॉय’ भी कर रही हैं।

इस पूरे मामले पर फिल्ममेकर मीरा नायर ने सदफ की गिरफ्तारी का विरोध किया है। मीरा ने ट्वीट कर कहा, ‘ये हमारा भारत है। ‘सूटेबल बॉय’ की हमारी एक्ट्रेस सदफ जफर लखनऊ में शांति के साथ प्रदर्शन कर रही थीं। उन्हें पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और उन्हें बुरी तरह पीटा। उनकी रिहाई के लिए मुझे सपोर्ट करें।’

इस संबंध में प्रियंका गांधी ने भी सदफ के समर्थन में ट्वीट कर कहा, ‘हमारी महिला कार्यकर्ता सदफ जफर पुलिस को बता रही थीं कि उपद्रवियों को पकड़ो और उन्हें पुलिस ने बुरी तरह से मारा पीटा और गिरफ्तार कर लिया। वो दो छोटे-छोटे बच्चों की मां हैं। ये सरासर ज्यादती है। इस तरह का दमन एकदम नहीं चलेगा।’

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय लल्लू और पार्टी विधानमंडल दल की नेता आराधना मिश्रा ने सोमवार 23 दिसंबर को सदफ से जेल में मुलाकत की। उन्होंने मीडिया को बताया कि कांग्रेस का लीगल सेल सदफ की बेल की लगातार कोशिश कर रही है। लल्लू के मुताबिक, ‘सदफ की गिरफ्तारी सरासर गलत है। वे शांतिपूर्ण प्रोटेस्ट कर रही थीं। उनकी बेल के लिए हमने लीगल सेल से प्रदीप सिंह और गंगा सिंह को लगाया हुआ है।'

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, हजरतगंज पुलिस थाने के एसएचओ डीपी कुशवाहा ने कहा, ‘हमारी टीम ने परिवर्तन चौक के पास अन्य हिंसक प्रदर्शनकारियों के साथ सदफ को भी गिरफ्तार किया। उन्हें जेल भेजा गया है। हमारे पास 19 दिसंबर को हुए प्रदर्शन में उनकी भागीदारी के पर्याप्त वीडियो सबूत हैं। वह अपनी गिरफ्तारी के विरोध में अदालत में अपील कर सकती हैं।’

19 दिसंबर को ही लखनऊ में हिंसक प्रदर्शनों के मामले में रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी एस आर दारापुरी को गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया है। उन पर पुलिस ने हिंसा भड़काने और साजिश रचने का आरोप लगाया गया है।
IPS
हज़रतगंज के पुलिस क्षेत्राधिकारी अभय कुमार मिश्र ने इस संबंध में मीडिया से कहा, ''एस आर दारापुरी को हिंसा भड़काने और साजिश रचने के मामले में धारा 120 बी के तहत गिरफ़्तार किया गया है। उन्हें शुक्रवार को ही हिरासत में ले लिया गया था और फिर शनिवार को जेल भेज दिया गया। इस मामले में गिरफ़्तारियों का क्रम अभी जारी है।'

एस आर दारापुरी के परिजनों के मुताबिक पुलिस ने उन्हें प्रदर्शन से पहले ही नज़रबंद कर रखा था और उन पर निगरानी रखी जा रही थी। इन लोगों के मुताबिक एस आर दारापुरी को इसलिए जेल भेजा गया है क्योंकि वो नागरिकता संशोधन क़ानून का विरोध कर रहे थे।

बता दें कि एस आर दारापुरी आईपीएस रहे हैं और उत्तर प्रदेश पुलिस में महानिरीक्षक के पद से रिटायर हुए हैं। सामाजिक मामलों और आंदोलनों में उनकी अक्सर भागीदरी रही है। फिलहाल वह कैंसर की बीमारी से जूझ रहे हैं।

गौरतलब है कि लखनऊ में ही रहने वाले मैग्सेसे पुरस्कार विजेता और सोशलिस्ट पार्टी के नेता संदीप पांडे को भी पुलिस ने विरोध प्रदर्शन के मद्देनज़र नज़रबंद रखा था। उन्होंने मीडिया को बताया कि पुलिस ने 19 दिसंबर को होने वाले प्रदर्शनों से पहले कई बुद्धिजीवियों को नज़रबंद कर रखा गया था। ताकि ये लोग न तो खुद प्रदर्शनों में पहुंच सकें और न ही दूसरों से वहां पहुंचने की अपील कर सकें।

संदीप पांडे के अनुसार, ''हम लोग प्रदर्शनों में हुई हिंसा की निंदा करते हैं और विरोध प्रकट करने के लिए शांतिपूर्ण तरीकों में ही विश्वास करते हैं। ये हिंसा कुछ शरारती तत्वों द्वारा की गई जिन्हें रोकने में पुलिस नाकाम रही। पुलिस अपनी नाकामी को छिपाने के लिए बुद्धिजीवियों और शांतिप्रिय लोगों को प्रताड़ित कर रही है।''
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19 दिसंबर को ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस से काशी हिंदू विश्वविद्यालय के छात्रों समेत पुलिस ने लगभग 70 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है। प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि बनारस में शांतिपूर्ण प्रदर्शन होने के बावजूद पुलिस ने लोगों के साथ बर्बरतापूर्ण व्यवहार किया है।

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की छात्रा आकांक्षा ने न्यू़ज़क्लिक को बताया, ‘19 दिसंबर को हमारा प्रदर्शन शांतिपूर्ण था, पुलिस ने इसके बावजूद हमारे कई साथियों को हिरासत में ले लिया, लगभग 16 साथियों को जेल भेज दिया है। छात्रों पर गंभीर धाराएं लगाई गई हैं, कई ऐसे भी छात्र हैं जिनका कुछ अता-पता ही नहीं है कि वो कहां हैं। पुलिस ने जिनको गिरफ्तार किया है, उन पर NSA यानी राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगाए जाने की बाते भी कही जा रही हैं।'

पुलिया कार्रवाई पर संगठनों ने जताया विरोध

 

इन तमाम गिरफ्तारियों पर अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति (एडवा) की प्रदेश उपाध्यक्ष मधु गर्ग ने रविवार, 22 दिसंबर को बयान जारी कर कहा कि पुलिस और प्रशासन केवल एक ही समुदाय के लोगों को टारगेट न बनाए। विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों में कई अन्य जाति और धर्म के लोग भी शामिल थे।

वहीं, महिला फेडरेशन की अध्यक्ष आशा मिश्रा ने कहा, 'पुलिस प्रदर्शनकारियों के घर में घुसकर उनकी बहन बेटियों से अभद्र व्यवहार न करे। पुलिस निर्दोषों के साथ दोषियों जैसा व्यवहार न करे।'

रेड बिग्रेड की संस्थापिका उषा विश्वकर्मा ने अपनी बात रखते हुए कहा कि लोग अपनी बात रख सकें, सरकार को उन्हें यह अधिकार देने चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि प्रदेश में बढ़ रही इस हिंसा को रोकना चाहिए, नहीं तो इससे देश का बहुत नुकसान होगा।

सांझी दुनिया की सचिव रूप रेखा वर्मा ने कहा, 'पुलिस गलत और सही के बीच का फर्क को समझे। ऐसे ही किसी पर सख्त धाराएं न लगाए। उन्होंने कहा कि डीजीपी पुलिस अधिकारियों को प्रदर्शनकारियों के परिवारीजनों से अच्छा व्यवहार करने के निर्देश दें।'

प्रगतिशील लेखक संघ (प्रलेस) ने प्रदर्शन में शामिल लोगों के पुलिस उत्पीड़न का आरोप लगाया है। प्रलेस लखनऊ इकाई की अध्यक्ष किरण सिंह ने मानवाधिकार कार्यकर्ता मो. शोएब, एसआर दारापुरी, रंगकर्मी दीपक कबीर, सदफ जाफर, माधवी कुकरेजा और अरुंधती धुरु को तुरंत रिहा करने की मांग की है।

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जन संस्कृति मंच (जसम) ने इस सबंध में कहा, ‘संघ-बीजेपी परिवार भावनाओं को उकसाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हो गए हैं। इस मक़सद के लिए वे सरकार की हर मशीनरी का अनुचित इस्तेमाल करने के लिए भी तत्पर हैं। हम नागरिकता संशोधन कानून को रद्द करने तथा पुलिस दमन की जांच कराने की मांग का समर्थन करते हैं। 

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