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यूपी: भर्ती परीक्षा का निरस्त होना योगी सरकार की नीयत और नीति पर कई सवाल खड़े करता है?

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पर तीन साल पहले हुई UPSSSC ग्राम विकास अधिकारी परीक्षाभर्ती को निरस्त कर हज़ारों युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ करने का आरोप लग रहा है। 
यूपी: भर्ती परीक्षा का निरस्त होना योगी सरकार की नीयत और नीति पर कई सवाल खड़े करता है?

UPSSSC ग्राम विकास अधिकारी भर्ती परीक्षा करीब तीन साल बाद निरस्त हो गई है। इसमें धांधली के आरोप लगे थे, हालांकि आयोग की तरफ से अब तक कोई ठोस जवाब सामने नहीं आया है। लेकिन सवाल बरकरार है कि सरकार के भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस के दावे के बीच बार-बार सरकारी भर्तियों में भ्रष्टाचार के मामले कैसे सामने आ रहे हैं।

‘रामराज’ में छात्र सरकारी नौकरी की तलाश में सालों-साल तैयारी करते हैं। उम्मीद से परीक्षा देते हैं, और फिर कुछ लोगों की धांधली, भ्रष्टाचार और नकारेपन से हजारों ईमानदार छात्रों की मेहनत, पैसा और समय एक पल में ही सब बर्बाद हो जाता है। ज़रा सोचिए आख़िर इसका जिम्मेदार कौन है?

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार एक ओर रोज़गार मेला लगाने की बात कर रही है तो वहीं दूसरी ओर तीन साल पहले हुई भर्ती परीक्षा को निरस्त कर हज़ारों युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ कर रही है। बीते चार साल में चार लाख नौकरियों का दावा करने वाली बीजेपी की योगी सरकार प्रदेश के युवाओं को रोज़गार देने के नाम पर रोज़ अपनी ही फ़ज़ीहत करवाती नज़र आ रही है।

परीक्षा हुई, रिजल्ट आया और फिर भर्ती ही निरस्त हो गई!

आपको बता दें कि यूपी में साल 2018 के दिसंबर महीने में ग्राम पंचायत अधिकारी, ग्राम विकास अधिकारी और समाज कल्याण पर्यवेक्षक के 1953 पदों पर भर्ती के लिए परीक्षा कराई गई थी। परीक्षा में 9 लाख से अधिक अभ्यर्थियों ने हिस्सा लिया था। अगस्त 2019 में लिखित परीक्षा का रिजल्ट आया, फिर धांधली के आरोप लगे, किसी और ने नहीं खुद उत्तर प्रदेश के ग्रामीण विकास मंत्री राजेंद्र सिंह मोती ने लगाए और मार्च 2021 में यूपी अधीनस्थ सेवा चयन आयोग यानी UPSSSC यानी उत्तर प्रदेश सब-ऑर्डिनेट सर्विसेज सिलेक्शन कमीशन ने परीक्षा ही निरस्त कर दी।

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शायद आपको याद हो, बीती दीपावली में उत्तर प्रदेश सरकार और प्रशासन एक ओर जहां दीपावली के अवसर पर दीपोत्सव कार्यक्रम की तैयारी में लगे थे तो वहीं दूसरी ओर UPSSSC के अभ्यर्थी योगी सरकार और प्रशासन के खिलाफ मोर्चा खोल ब्लैक दिवाली की बात कर रहे थे। ट्विटर पर हैशटैग ट्रेंड करवा रहे थे। यही नहीं सरकार की नीतियों के खिलाफ धरना देकर लखनऊ में काली दिवाली मनाने का संकल्प भी लिया गया था।

इसे भी पढ़ें: यूपी: आख़िर कब UPSSSC अभ्यर्थियों की ज़िंदगी होगी रौशन, 2 बरस से लटकी भर्तियां पूरी होंगी?

मालूम हो कि ये अभ्यर्थी आयोग द्वारा आयोजित साल 2018 में लिखित परीक्षा पास करने के बाद 8-10 बार UPSSSC आयोग के सामने प्रदर्शन कर चुके हैं। ट्विटर पर कैंपेन चला चुके हैं। सीएम योगी आदित्यनाथ सहित तमाम सांसद और विधायकों से मदद की गुहार लगा चुके हैं। लेकिन अब तक इन उम्मीदवारों की सुनवाई नहीं हुई। और आखिरकार सरकार ने बरसों से लटकी इन भर्तियों को निरस्त कर उन हज़ारों युवाओं का भविष्य अंधेरे में डूबा दिया, जो सरकारी नौकरी की आस लगाए बैठे थे। इसके लिए 24 मार्च को UPSSSC के परीक्षा नियंत्रक की ओर से नोटिफ़िकेशन भी जारी कर दिया गया है।

प्रचार में बहार है, यूपी का युवा नौकरी से बाहर है!

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने ग्राम पंचायत अधिकारी की परीक्षा को निरस्त होने पर तंज कसते हुए कहा कि तीन साल से नियुक्ति का इंतजार कर रहे युवाओं की आंखों में इस निर्णय से अंधेरा छा गया है। वाड्रा ने गुरुवार को ट्वीट किया “वीडीओ 2018 की परीक्षा देकर युवाओं ने 2021 तक नियुक्ति का इंतजार किया। तारीख पर तारीख आती गई। लेकिन नियुक्ति न मिली। हर नई तारीख एक पत्थर की तरह चोट करती थी। कल भर्ती निरस्त हो गई। इन युवा आंखों में अंधेरा छा गया।”

प्रियंका गांधी ने योगी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, “सीएम साहब के प्रचार में ही बहार है मगर यूपी का युवा नौकरी से बाहर है।''

क्या है पूरा मामला?

बीते साल 9 नवंबर को UPSSSC अभ्यर्थियों ने लखनऊ में सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आवास के सामने 2018 की अटकी भर्तियों को पूरा करने की मांग को लेकर धरना दिया। अपने शांतिपूर्ण धरने के दौरान अभ्यर्थियों ने पुलिस पर बर्बरता का आरोप भी लगाया। अभ्यर्थियों ने पुलिस पर बल प्रयोग के साथ ही भद्दी गालियां और लाठियों से पीटने की बात तक कही थी।

तब एक एक सफल अभ्यर्थी ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में बताया था, “UPSSSC द्वारा ग्राम पंचायत अधिकारी (VDO) की भर्ती के लिए विज्ञापन मई 2018 को जारी किया गया था। इसके बाद 22 और 23 दिसंबर 2018 को भर्ती परीक्षा का आयोजन हुआ। 28 अगस्त 2019 को करीब 8 महीने बाद परीक्षा का रिजल्ट जारी हुआ। इसके बाद डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन (डीवी) के लिए उम्मीदवारों को तारीख पर तारीख मिलती रही। आखिर में इस साल जब 12 मार्च से डीवी शुरू हुआ तो 18 मार्च को रोक दिया गया। इसके बाद अब तक मामला ठप पड़ा है। रिजल्ट आए लगभग साल भर से ज्यादा का समय हो गया है, अब तक डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन ही नहीं हो पाया है, भर्ती पूरी होने की बात तो बहुत दूर की है।”

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आख़िर क्यों नहीं हो पा रही थी नियुक्ति?

उम्मीदवारों के मुताबिक VDO की भर्ती का 28 अगस्त 2019 को रिजल्ट आने के बाद 5 बार डीवी का शेड्यूल बदला, 4 बार कैलेंडर में इसका जिक्र हुआ और 1 बार फाइनल नोटिस आया लेकिन प्रक्रिया पूरी नहीं की गई।

इस संबंध में सबसे पहले आयोग से 3 सितंबर 2019 को एक कैलेंडर जारी किया गया जिसमें कहा गया कि अक्टूबर 2019 के चौथे सप्ताह में उम्मीदवारों का डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन कराया जा सकता है।

इसके बाद 5 अक्टूबर 2019 को एक कैलेंडर जारी किया गया इसमें कहा गया कि नवंबर 2019 में डीवी कराया जा सकता है। इसके बाद तीसरा कैलेंडर 3 दिसंबर 2019 को आया जिसमें कहा गया कि जनवरी 2020 के पहले सप्ताह में डीवी कराया जा सकता है। आखिरी और चौथा कैलेंडर जिसमें वीडीओ के डीवी का जिक्र था वो 31 जनवरी को जारी किया गया और इसमें फरवरी में डीवी कराए जाने की बात कही गई। 6 फरवरी, 2020 को अभ्यर्थी आयोग में भूख हड़ताल तक पर बैठ गए। जिसके बाद आयोग द्वारा 29 फरवरी 2020 को एक नोटिस जारी किया गया जिसमें कहा गया कि 1553 उम्मीदवारों का डीवी 12 मार्च से 2 जून तक कराया जाएगा। बाकी बचे 399 उम्मीदवारों का डीवी जांच के बाद होगा।

इस दौरान अभ्यर्थी लगातार आयोग के खिलाफ धरना प्रदर्शन कर रहे थे और आयोग द्वारा हर बार जल्द ही डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन शुरू करने का आश्वासन देकर वापस भेज दिया जाता था।

इस मामले में भ्रष्टाचार का एंगल कई सवाल उठाता है!

उत्तर प्रदेश के ग्रामीण विकास मंत्री राजेंद्र सिंह मोती ने लिखित परीक्षा परिणाम आने के अगले ही दिन 29 अगस्त, 2019 को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को इस संबंध में एक पत्र लिखा। पत्र में गड़बड़ी की बात कहते हुए मंत्री जी ने भर्ती की प्रक्रिया को स्थगित कर जांच की मांग की।

इस पत्र में राजेंद्र सिंह ने दो अभ्यर्थियों के रोल नंबर शेयर कर कहा कि कार्बन-कॉपी के हिसाब से इन दोनों ने लगभग पांच प्रश्न हल किए हैं, जबकि मूल कॉपी में सम्पूर्ण गोले हैं। दोनों अभ्यर्थी उत्तीर्ण हैं। कार्बन कॉपी और ओएमआर शीट में अंतर का मतलब है कि भर्ती में गड़बड़ी हुई है।

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राजेंद्र सिंह ने लिखा, “मुझे लगता है कि इस धांधली में अधीनस्थ चयन सेवा आयोग की पूरी तरह से संलिप्तता है। प्रदेश के मेधावी बच्चों के साथ ये बहुत बड़ा अन्याय है और प्रदेश सरकार की ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ एक मजाक है।”

इसके बाद भर्ती में जांच शुरू हुई। आयोग सितंबर से फरवरी तक डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन के नाम पर सब कुछ टालता रहा। फिर भारी विरोध और दबाव के बीच जैसे-तैसे 12 मार्च से डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन शुरू हुआ और 18 मार्च को एक बार फिर महामारी और लॉकडाउन की वजह से अनिश्चित काल तक के लिए रोक दिया गया।

जांच के बाद फिर जांच और नतीजा कुछ नहीं!

इसी बीच लॉकडाउन के दौरान ही 20 जून, 2020 को आयोग ने एक और नोटिस जारी कर बताया कि ग्राम पंचायत अधिकारी भर्ती के संबंध में एक स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम यानी कि SIT बनाई गई है। भर्ती की प्रक्रिया SIT की रिपोर्ट आने के बाद ही आगे बढ़ाई जाएगी।

हालांकि कई सफल अभ्यर्थियों का कहना था कि जिस तरह सरकार और प्रशासन इस मामले में टालमटोल कर रहे हैं उससे तो यही लगता है कि सरकार भर्ती को पूरा नहीं करना चाहती, बल्कि लटकाना चाहती है। क्योंकि जब डीवी शुरू हुआ तो एक दिन में केवल 30 लोगों को बुलाया गया, जबकि इससे पहले 200 से 300 लोगों को बुलाया जाता था। उसी तरह जब रिजल्ट आया था, तभी ये बताया गया कि कॉर्बन कॉपी और ओरिजनल OMR में मिलान के बाद ही रिजल्ट आ रहा है। फिर मंत्री जी की शिकायत आई, जिसके बाद दो सदस्यीय कमेटी बैठी, तो उसने भी 1553 अभ्यर्थियों को फेयर घोषित कर दिया। लेकिन अब फिर SIT जांच शुरू हो गई है। ये कब तक चलेगी पता नहीं।

भ्रष्टाचार मामले में सरकार की नीयत और नीति अलग-अलग है?

गौरतलब है कि अमर उजाला में सूत्रों के हवाले से प्रकाशित ख़बर के अनुसार, ग्राम विकास अधिकारी की भर्ती वही परीक्षा है, जिसके पहले अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष सीबी पालीवाल ने इस्तीफा दे दिया था। ग्राम विकास अधिकारी परीक्षा की तर्ज़ पर, इन परीक्षाओं के निरस्तीकरण के लिए कोई कारण आयोग या अधिकारियों की तरफ़ से नहीं रखा गया है।

न्यूज़क्लिक ने इस संबंध में आयोग के अधिकारियों से संपर्क करने की कोशिश की। ईमेल द्वारा अभ्यर्थियों की बातों को आयोग के समक्ष रखा है लेकिन खबर लिखे जाने तक हमें कोई जवाब नहीं मिला है, जैसे ही जवाब आएगा, खबर अपडेट की जाएगी। इस परीक्षा के निरस्तीकरण के लिए आयोग की तरफ़ से जारी पत्र में कहीं भी कारण नहीं बताया गया है। इन तीन परीक्षाओं के साथ ही कुछ और परीक्षाओं को आयोग ने निरस्त किया है। ख़बरों के मुताबिक़, जिस एजेंसी को ग्राम विकास अधिकारी और पंचायत अधिकारी वाली परीक्षा को रेगुलेट करने की ज़िम्मेदारी दी गई थी, उसी एजेंसी को इन आगामी परीक्षाओं की ज़िम्मेदारी भी दी गई थी।

गौरतलब है कि भर्ती को आए करीब तीन साल का समय हो गया, आंतरिक जांच में क्या गड़बड़ियां सामने आईं। जांच में दोषी पाए गए लोगों पर क्या कार्रवाई हुई इस पर आयोग की तरफ से अब तक कोई ठोस जबाव सामने नहीं आया है। ऐसे में एक महत्वपूर्ण सवाल ये भी उठता है कि सरकार के भ्रष्टाचार पर जीरों टॉलरेंस के दावे के बीच बार-बार सरकारी भर्तियों में भ्रष्टाचार के मामले कैसे सामने आ रहे हैं, क्या सरकार की नीयत और नीति अलग-अलग है?

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