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यूपी: बेमौसम बारिश ने धो डाले मिर्च किसानों के अरमान, निकाले आंसू ग़ायब की मुस्‍कान

"पिछले दो साल से मिर्च उत्पादक किसान बेहाल हैं। हमारी हालत जुआरियों की तरह है। ये हरी मिर्च कभी हमें भारी मुनाफा दे जाती है तो कभी खून के आंसू रोने पर विवश कर देती है।"
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उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल इलाके में मिर्च की खेती ऐसे जुए की तरह हो गई है जिसे किसान बोता तो है लेकिन मुनाफे की कोई गारंटी नहीं होती। पिछले दो साल से मिर्च की खेती कर रहे किसानों की कमाई न्‍यूनतम हो गई है। सब्जी मंडियों में किसान औने-पौने दाम पर मिर्च बेचने को विवश हैं। पूर्वांचल में मिर्च की सर्वाधिक खेती मिर्जापुर के क्रियात इलाके में होती है लेकिन बेमौसम की बारिश ने हजारों किसानों को बर्बाद कर दिया। ज्यादातर किसानों की फसलें सड़ गई और उन्हें उखाड़कर गेहूं अथवा सरसों की खेती करनी पड़ रही है। बनारस, मिर्जापुर, अहरौरा, सोनभद्र, गाजीपुर, चंदौली, जौनपुर, आजमगढ़ और देवरिया की सब्जी मंडियों में मिर्च लेकर आ रहे किसानों के बुझे हुए चेहरों पर गायब मुस्कान इस बात को तस्दीक करती है कि वो इस बार भी गंभीर संकट में हैं।

बनारस का एक कस्बा है राजातालाब। यहां सब्जियों की एक बड़ी मंडी भी है। सबसे अधिक हरी मिर्च इसी मंडी से कोलकत्ता, मुंबई, दिल्ली, पटना जाती है। यहां हमारी मुलाकात आढ़ती ललित पटेल से हुई तो उनकी आंखें डबडबा गईं। ललित मिर्च की खेती भी करते हैं। बोले, "दो साल से मिर्च हमें धोखा दे रही है। साल 2021 में दाम अच्छा मिला तो अगले साल 2022 में मिर्च की खेती का रकबा बढ़ा दिया लेकिन दाम अच्छा नहीं मिला। किसी तरह से पैसे का इंतजाम करके मिर्च की खेती की तो बारिश ने सारे अरमान धो डाले। ज्यादातर किसानों की फसल बर्बाद हो गई। खासतौर पर उन किसानों की जिन्होंने बलुई दोमट जमीन में मिर्च की खेती कर रखी थी। बेमौसम की बरिश के बाद जो फसल बची भी उस पर वायरस ने हमला बोल दिया। जिन किसानों ने किसी तरह अपनी फसल बचा ली, वो मंडी में अपनी उपज लेकर जरूर पहुंच रहे हैं लेकिन तोड़ाई की लागत भी मुश्किल से निकल पा रही है। पूर्वांचल की सभी मंडियों में हरी मिर्च कौड़ियों के भाव बिक पा रही है। दाम इतने अधिक गिर गए हैं कि सोनभद्र के तमाम किसानों ने इसकी तोड़ाई ही बंद कर दी है। घाटे से उबरने के लिए कुछ किसान गेहूं, सरसों, चना और मटर की बुआई कर रहे हैं।"

ललित पटेल इस बात से आहत हैं कि किसानों की आमदनी दोगुना करने के लिए डबल इंजन सरकार दावे तो बहुत कर रही है लेकिन सच कुछ और ही है। वह कहते हैं, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमारी मिर्च विदेशों बेचने के बड़े-बड़े सपने दिखाए थे। उम्मीद जगी थी कि हमारी मिर्च बाहर जाएगी तो हम मालामाल हो जाएंगे। हमारी उपज को तो राजातालाब मंडी में ही कोई नहीं पूछ रहा है। मंडी समिति के नुमाइंदे किसानों के साथ मनमानी करते हैं। हमारी मिर्च सात-आठ सौ रुपये कुंतल की दर से बिक रही है और हमसे 14 से 15 रुपये की दर से मंडी शुल्क वसूला जा रहा है। मिर्च की खेती करने वाले किसानों की हालत जुआरियों जैसी हो गई है, जिसमें सिर्फ घाटा है। खाद-बीज और दवाएं बेचने वाली कंपनियों को इस बात से मतलब नहीं कि हमारी जमीन बेजार हो रही है। उचित मूल्य न मिलने से किसान बेहाल हैं। हमारे हालात ऐसे हो गए हैं कि हम न अपने बच्चों को पढ़ा पा रहे हैं और न ही ठीक से अपना पेट भर पा रहे हैं।"

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सरकार की दोषपूर्ण नीतियां

16 दिसंबर 2023 को बनारस में हरी मिर्च का औसत मूल्य प्रति कुंतल 1720 रुपये, चंदौली में 1650 रुपये, गाज़ीपुर में 1700रुपये, जौनपुर 1850 रुपये, मिर्जापुर में 1200 रुपये, राबर्ट्सगंज में 1250 रुपये, देवरिया में 1400 रुपये, गोरखपुर में 1420 रुपये, फैजाबाद में 1975रुपये रहा। हैरत की बात यह है कि किसानों से मंडी शुल्क की वसूली भले ही ज्यादा दाम पर की जा रही है लेकिन उनकी उपज तो औने-पौने दाम पर ही बिक रही है। भारी भरकम शुल्क वसूले जाने के बावजूद मंडियों में किसानों और आढ़तियों के लिए सुविधाएं नदारद हैं। राजातालाब मंडी में सब्जी बेचने पहुंचे प्रगतिशीलकिसान पप्पू सिंह से मुलाकात हुई तो उन्होंने अपनी परेशानियों की फेहरिस्त गिना डाली। पप्पू मिर्जापुर के मझवा प्रखंड के मेड़ियां गांव के निवासी हैं। इस गांव में करीब1400 बीघे में मिर्च की खेती होती है। हालांकि इस गांव के किसान टमाटर, गेहूं, मटर, चना, मूंगफली का उत्पादन भी करते हैं। पप्पू सिंह ने अबकी 12 बीघे में मिर्च बो रखी थी जो बारिश की भेंट चढ़ गई।

मिर्च की बात आई तो पप्पू सिंह भावुक हो गए। बोले, "खेती की लागत निकाल पाना मुश्किल हो गया है। हम मिर्च, टमाटर और मटर की खेती करते हैं। हमने अपने खेतों में सेमनीज-3131 और नामधारी 1101 प्रजाति का मिर्च लगा रखा था। अक्टूबर में बारिश हुई तो मिर्च की फसलों को भारी नुकसान पहुंचा। रही-सही कसर हाल में आए चक्रवात मिचौंग ने पूरी कर दी। मिर्च की सारी फसल पूरी तरह बर्बाद हो गई। मिर्च की कमाई माटी हो गई। हमने दस बीघे जमीन में मिर्च की बुआई कराई थी। वायरस के हमले के बाद मिर्जापुर के क्रियात इलाके में मिर्च की खेती करने वाले ज्यादातर किसान बर्बाद हो गए। ज्यादातर किसानों ने अपने खेतों में लगी मिर्च को उखाड़ फेंका और गेहूं-सरसों की फसल बो दी।"

"अभी तो मिर्च आठ सौ से एक हजार रुपये प्रति कुंतल की दर पर बिक रही है। हालात ऐसे ही रहे तो दाम तीन-चार पर आ जाएगा। मिर्च की खेती करने वाले किसानों की समूची पूंजी डूब गई है। सिंचाई, बुआई, खाद, बीज, तोड़ाई और माल भाड़, पल्लेदारी और मंडी शुल्क मिला दें तो किसानों को एक पैसे का मुनाफा नहीं मिल रहा है। चाहें तो भी अपनी उपज यूं ही फेंक नहीं सकते क्योंकि मिर्च की खेती में किसानों ने सिर्फ पैसा ही नहीं अपना पसीना भी बहाया है।"

मिर्च की खेती का पर होने वाले खर्च का ब्योरा देते हुए पप्पू सिंह कहते हैं, "पलेवा पर 1200, कल्टीवेटर से जुताई पर 1200, मिर्च के बीज पर 2100, नर्सरी तैयार करने पर नौ सौ रुपये, मिर्च रोपते समय 2500 रुपये, दो बार निराई पर 8000 रुपये, पांच से छह बोरी डाई उर्वरक पर 7500, गुड़ाई पर 2200 रुपये और मिट्टी चढ़ाने पर 2800 रुपये का खर्च आता है। इसके अलावा कई मर्तबा कीटनाशक भी छिड़कना पड़ता है जिस पर प्रति एकड़ 3000 से 3500 रुपये खर्च आता है। इसके अलावा मिर्च की फसल की सिंचाई पर भी करीब 3500 रुपये खर्च करने पड़ते हैं। फसल तैयार होने पर तोड़ाई 160-180 रुपये एक दिन की मजूरी देनी पड़ती है और एक मजदूर रोजाना 50 से 55 किलो मिर्च ही तोड़ पाता है। इसके बाद किसान मंडी में अपनी उपज लाते हैं उसका खर्च अलग होता है।"

"आखिर में सरकार भी किसानों से मंडी शुल्क वसूल करती है। मिर्च भले ही पांच-छह सौ रुपये कुंतल की दर से बिके, लेकिन मंडी के अधिकारी 1200 से 1500 रुपये रुपये प्रति कुंतल की दर से वसूली करते हैं। पल्लेदारी के लिए दो-तीन रुपये प्रति बोरे अलग से देने पड़ते हैं जिसका ब्योरा आढ़तियों की रसीद में शामिल नहीं होती है। राजातालाब मंडी में किसी चीज की सुविधा नहीं है। पीने और नहाने के लिए पानी तक नहीं है। शौचालय का इंतज़ाम नहीं है। शौच तक के लिए किसानों को दस रुपये देने पड़ते हैं। इतना कुछ झेलने के बाद किसानों बारे में जुमलेबाज नेता दावा करते हैं कि किसानों के दिन फिर गए हैं और आमदनी दोगुनी हो गई है। सच यह है कि मौजूदा दौर में सिर्फ आढ़तिए ही मालामाल हो रहे हैं। किसानों की हालत को पहले से भी ज्यादा बदतर है। भारी घाटे से जूझ रहे मिर्च उत्पादक किसान आखिर कैसे जिंदा रहेंगे? सरकार को चाहिए कि घाटे से उबारने के लिए हमारे नुकसान की भरपाई करे।"

इस बार भी रो रहे किसान

मेड़िया गांव में मिर्च के कई और बड़े उत्पादक हैं। करतार सिंह, सतीश कुमार सिंह, विधु शेखर सिंह, राजकुमार सिंह, गुलाब सिंह, विष्णु शरण सिंह, मिठाई सिंह, बलवंत सिंह आदि ने बड़े पैमाने पर मिर्च की खेती की थी, लेकिन वो बेमौसम की बारिश की भेंट चढ़ गई। मिर्च की खेती की लागत निकाल पाना इनके लिए मुश्किल हो गया है। मिर्जापुर के चौधरीपुर बसारतपुर, मझवां, अदलपुरा, शहंशाहपुर, कठेरवां, मवैया, मढ़ियां, सीखड़, भुवालपुर, लालपुर, रामगढ़, बिट्ठलपुर, बगहां, धनैता, खानपुर, मंगरहां, मिश्रपुरा, मुंदीपुर, तम्मनपट्टी, सोनवर्षा, ईश्वरपट्टी, हासीपुर, छीतकपुर, भदैता आदि गांवों में मिर्च उत्पादक किसान इस बार भी रो रहे हैं। जिन किसानों ने किसी तरह से फसल बचा रखी है उसमें भी गुर्चा की बीमारी का प्रकोप है।

सोनभद्र में मिर्च की बड़े पैमाने पर खेती होती है। मंगुराही गांव के प्रगतिशील किसान प्यारेलाल मौर्य कहते हैं, "पिछले दो साल से मिर्च उत्पादक किसान बेहाल हैं। हमारी हालत जुआरियों की तरह है। ये हरी मिर्च कभी हमें भारी मुनाफा दे जाती है तो कभी खून के आंसू रोने पर विवश कर देती है। पिछले साल की तरह इस बार भी मिर्च का रेट तना ज्यादा गिर गया है कि तोड़ाई और ढुलाई का खर्च नहीं निकल पा रहा है। मिर्च तोड़ने के लिए सस्ते मजदूर भी नहीं मिल पा रहे हैं। बहुत से किसानों ने अपनी उपज खेतों में ही छोड़ दी है।"

सोनभद्र के मंगुराही गांव के किसान परमानंद मौर्य, राजेंद्र प्रसाद, विश्वनाथ मौर्य, बंदरदेवा के नरेंद्र सिंह पटेल, राहुल सोनकर, बरबसपुर खुटहनियां गांव के सूर्यमणि यादव, बंशनारायण कहते हैं, "पहले बेमौसम की बारिश की मार झेलनी पड़ी और अब रेट गिर जाने की वजह से घाटा उठाना पड़ रहा है। सरकारी की दोषपूर्ण नीतियों के चलते किसान मुसीबत में हैं। उपज ढोने वाली गाड़ी किराया तक वसूल नहीं हो पा रहा है? डबल इंजन की सरकार कोई ऐसी तरकीब निकाले जिससे किसानों को आंसू न बहना पड़े।"

सोनभद्र के अतरौलिया गांव के किसान अनिल पटेल कहते हैं कि मिर्च की खेती में बहुत सारी चुनौतियां हैं। इसे लगाने से लगायत काटने तक में पांच से छह महीने लगते हैं। खुले बाजार में रेट 20 से 30 रुपये है और मंडियों का हाल यह है कि मिर्च कौड़ियों के दाम बिक रही है। हमारा सवाल यह है कि आखिर मुनाफा कौन लूट रहा है?"

मिर्च ने बदली पंचम की किस्मत

पूर्वांचल में मिर्च की खेती भले ही तमाम किसानों के लिए जी का जंजाल बन गई है लेकिन कुछ ऐसे भी है जिन्होंने इससे मोटा मुनाफा कमाया है। इन्हें में एक हैं चंदौली जिले के रइया रामगढ़ के प्रगतिशील किसान पंचम निषाद। करीब 84 बीघे में इन्होंने मिर्च की खेती की है। पंचम पहले सेमनीज-3131 और नामधारी 1101 प्रजाति की मिर्च की खेती करते थे। फसलों में रोग लगने से इन्हें भारी घाटा हुआ। अबकी इन्होंने खेती का पैटर्न बदल दिया। वह कहते हैं, "मिर्च की खेती से पहले हमने रबी सीड्स के हैदराबाद स्थित फार्म को देखा। वहां वैज्ञानिकों से बात की और उन्हें अपनी मिट्टी दिखाई। हमें भावना-285 प्रजाति की खेती करने के लिए बीज मुहैया कराए गए। हम पिछले ढाई महीने से मिर्च उगा रहे हैं और आधे से अधिक खर्च निकाल लिया है। भारत में विकसित मिर्च की प्रजाति भावना 285 की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह वायरसरोधी है। इसमें गुरचा रोग भी नहीं लगता। दूसरी प्रजातियों से हमारी मिर्च ज्यादा महंगी मिलती है क्योंकि इसमें तरपराहट ज्यादा होती है। मीडियम साइज की यह मिर्च आठ-दस दिनों में तोड़ने लायक हो जाती है। दूसरी प्रजाति की मिर्च 14-15 दिन के अंतराल पर तोड़ना पड़ता है।"

चंदौली के प्रगतिशील किसान पंचम निषाद पहले अपने परिवार के साथ गुजरात रहते थे और वहां सजावटी फूल बेचा करते थे। साल 2013 में वह अपने गांव लौट आए और पूंजी जुटाकर मिर्च की खेती शुरू कर दी। वह कहते हैं, "मिर्च की खेती की बदौलत हमने अपने पुत्र सत्येंद्र, अजित और सिरजन के अलावा पुत्री और मंजू की शादी की। अबकी संजू की शादी करनी है। सबसे छोटी बेटी कविता के विवाह का खर्च भी इसी मिर्च की खेती से निकलेगा। हम मिर्च की खेती का रकबा लगातार बढ़ाते जा रहे हैं। ज्यादतर जमीन हम लीज पर लेकर खेती करते हैं। पिछले साल 13 बीघे में शिमला मिर्च की खेती चौपट हो गई थी जिससे हमें 50 लाख का नुकसान हुआ था। अबकी भावना-250 से हमारी उम्मीदें बढ़ गई हैं। अब तक जितनी प्रजातियों की मिर्च बोई, उसमें इस प्रजाति ने सबसे ज्यादा मुनाफा दिया है। चंदौली जिले की मिट्टी में भावना मिर्च का उत्पादन बेहतर है। अक्टूबर और नवंबर में हमने 70 रुपये किलो तक मिर्च बेची थी। मिर्च का रेट अब गिरा है। उम्मीद है कि मिर्च के किसानों की टूटती आस जल्द ही उम्मीद की किरण बन जाएगी।"

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चंदौली जिले के चकिया प्रखंड के फिरोजपुरगांव के प्रगतिशील किसान अनिल मौर्य ने भी अपने 25 बीघे के फार्म हाउस में बड़े पैमाने पर मिर्च, टमाटर, खीरा, धनिया, बैगन, लौकी, भिंडी, नेनुआ के अलावा इस्ट्राबेरी की खेती की है। मिर्च के साथ टमाटर और बैगन से इन्होंने बंपर कमाई की है। अनिल कहते हैं, "हमने कई ऐसी सब्जियां बोई हैं जिससे मोटी कमाई की उम्मीद है। इसकी वजह यह है कि जब इलाके के किसान लौकी, खीरा, नेनुआ आदि सब्जियों की बुआई शुरू करेंगे तब हमारी उपज बाजार में पहुंचकर धूम मचाने लगेगी। हमने समूची खेती मल्चिंग पद्धति से मेड़ों पर की है। सिंचाई के लिए हम ड्रिप प्रणाली अपना रहे हैं। मिर्च से जिले के तमाम किसानों को भारी घाटा उठाना पड़ा लेकिन हमने काफी मुनाफा कमाया। हमारी मिर्च दो-तीन महीने से तोड़ी जा रही है और बैगन व टमाटर भी।"

मिर्च की 70 फीसदी खेती पूर्वांचल में

उत्तर प्रदेश में उगाई जाने वाली मिर्च की कुल खेती में पूर्वांचल का योगदान 70 फीसदी है। अकेले सोनभद्र में सात हजार एकड़ में मिर्च की खेती होती है। सोनभद्र की मंडी में घोरावल, मद्धुपुर, अहरौरा, राबर्टसगंज से टमाटर और मिर्च आ रहा है। इससे कहीं बड़े रकबे में मिर्जापुर से सीखड़ प्रखंड के क्रियात इलाके में मिर्च की खेती होती है। गंगा बेसिन में हजारों किसान मिर्च और टमाटर की खेती करते हैं। पिछले साल की तरह इस बार भी रेट इतना नीचे आ गया है कि किसान को लागत निकाल पाना मुश्किल हो गया है।

बनारस जिले के आराजीलाइन, सेवापुरी, बड़ागांव, चिरईगांव और राजातालाब इलाके में हर साल करीब 300 हेक्टेयर में मिर्च की खेती होती है। पहले यहां करीब एक हजार टन मिर्च का उत्पादन होता था। अबकी उत्पादन 600 से 700 टन रहने की उम्मीद है। पीएम नरेंद्र मोदी की पहल पर कुछ बरस पहले 25 टन हरी मिर्च का निर्यात भी किया गया। साल 2021-22 में किसानों ने खेती का दायरा बढ़ाकर 350-400 हेक्टेयर और उत्पादन 1100 टन कर दिया। दो साल पहले किसानों को मिर्च ने काफी मुनाफा कराया लेकिन बेमौसम की बारिश और वायरस के प्रकोप के चलते पिछले दो साल से बर्बाद हो रही है।

जिला उद्यान अधिकारी सुभाष कुमार कहते हैं, "काशी की मिर्च को जीआई टैग मिल चुका है। बनारस में पैदा की जा रही मिर्च में कैप्सीसिन की मात्रा अधिक होने से यह ज्यादा तीखी होती है। आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और कर्नाटक की मिर्च में ओलियोरिसन तत्व अधिक पाया जाता है। इससे मिर्च का रंग तो चटख लाल होता है लेकिन कम तीखी होती है। काशी में उगाई जाने वाली मिर्च का छिलका मोटा और लंबाई कम (छह से सात सेमी) होती है। इस कारण पैकिंग के दौरान यह टूटती नहीं। साथ ही खाड़ी देश के लोगों को तीखा ज्यादा पसंद है तो उन्हें यहां की मिर्च खूब भा रही है। अब चिली फ्लैक्स, चिली सास और चिली पाउडर बनने से शहर को अलग पहचान मिलेगी।"

सुभाष कहते हैं, "साल 2014 से लगातार मिर्च पर वायरस का अटैक होता आ रहा है। मिर्च की फसलों पर बरसात में कीटों का भी प्रकोप बढ़ जाता है और पौधे की पत्तियां सिकुड़ने लगती हैं। वायरस फैलाने वाले वेक्टर को नियंत्रित करना, पौधे की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए सूक्ष्म पोषक तत्वों को लागू करना और उपर्युक्त निवारक रणनीतियों को लागू करना मिर्च के वायरल रोगों के प्रबंधन में प्रभावी हो सकता है।"

ऑल इंडिया चिली एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष संबासिवा राव वेलागापुडी ने कहते हैं कि बेमौसम की बारिश ने मिर्च उत्पादकों को मुश्किल में डाल दिया है। मिचौंग चक्रवात के चलते देश में 15 से 20 फीसदी मिर्च की फसल प्रभावित हुई है। पूरे देश में मिर्च किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना मिलकर 20 लाख टन मिर्च का उत्पादन करते हैं। दोनों राज्यों में मिर्च का उत्पादन पिछले तीन-चार वर्षों में प्रभावित हुआ है क्योंकि काले थ्रिप्स ने फसल को काफी प्रभावित किया है।

वेलागापुडी कहते हैं, "मिर्च उत्पादकों को हो रहे लगातार घाटे से उबरने के लिए ऑल इंडिया चिली एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन मिर्च की उन प्रजातियों का प्रचार कर रही है जिन पर ब्लैक थ्रिप रोग का हमला बेअसर हो जाता है। यह एक ऐसा संक्रमण है जो बहुत ही तेजी के साथ फैलता है। इससे फसलों को बहुत अधिक नुकसान पहुंचता है जिससे किसानों को आर्थिक हानि होती है। बेहतर फसल प्रबंधन से मिर्च की खेती से अधिक पैदावार हासिल की जा सकती है और बंपर मुनाफा भी।" 

(लेखक बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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