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यूपी: बांदा में कर्ज़ में डूबे एक किसान ने आवारा मवेशियों से बर्बाद हो चुकी फसल से परेशान होकर ख़ुदकुशी की

ललक सिंह ने कथित तौर पर एक बैंक से 1 लाख रूपये का कर्ज़ लिया था। वे अपने पीछे अपनी पत्नी और दो नाबालिग बच्चों को छोड़ गए हैं।
यूपी: बांदा में कर्ज़ में डूबे एक किसान ने आवारा मवेशियों से बर्बाद हो चुकी फसल से परेशान होकर ख़ुदकुशी की
फ़ोटो साभार: विशेष व्यवस्था

लखनऊ: पुलिस ने अपने बयान में कहा है कि उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में आवारा पशुओं द्वारा फसलों की व्यापक बर्बादी से निराश एक किसान ने शुक्रवार को कथित तौर पर आत्महत्या कर ली थी। पुलिस के मुताबिक अतर्रा तहसील के अंतर्गत पड़ने वाले नंदा गांव में अपने घर में ललक सिंह (52) की मौत हो गई थी। 

सिंह, जिनके दो नाबालिग बच्चे हैं उनके ऊपर कथित तौर पर करीब 1 लाख रूपये का बैंक का बकाया ऋण था और इस कर्ज को चुकाने के लिए वे पूरी तरह से अपनी फसल पर निर्भर थे। उनके बारे में कहा जा रहा है कि आवारा गायों और बछड़ों द्वारा उनकी लगभग छह बीघा खेत में उगाई गई अच्छी किस्म की “मूंग” दाल की फसल को नुकसान पहुंचाने की घटना ने उन्हें व्यथित कर दिया था। उन्होंने इस फसल पर तकरीबन 70,000 रूपये का निवेश कर रखा था और आवारा पशुओं द्वारा उनकी फसल चट कर जाने से उन्हें भारी नुकसान हुआ था।

उनके परिवार के सदस्यों के अनुसार, सिंह अपना अधिकांश समय खेतों में आवारा मवेशियों से फसल की रक्षा करने में बिताया करते थे।

शुक्रवार की सुबह, पूरी रात भर जागकर आवारा पशुओं पर निगरानी बनाये रखने के बाद सिंह ने घर आकर आत्महत्या ली। उनके भतीजे लवलेश का कहना था कि सिंह द्वारा यह कदम उठाने के पीछे की वजह एक दर्जन से अधिक आवारा मवेशियों द्वारा उनकी समूची फसल को रौंदने और बर्बाद कर देना था, जिसने संभवतः उन्हें बुरी तरह से हताश कर दिया था क्योंकि वे कर्ज में डूबे हुए थे। 

लवनेश ने न्यूज़क्लिक  को बताया “जैसे ही मेरे चाचा खेत से लौटे उन्होंने चाची को रसोई के कामों में व्यस्त कर दिया और वे सीधे अपने कमरे में चले गये। बाद में जब मेरी चाची उनके कमरे में पहुंची तो उन्होंने उन्हें एक फंदे से लटका पाया। परिवार के सदस्यों ने फंदे को ढीला करने की कोशिश की और हम उन्हें अस्पताल लेकर पहुंचे जहां पर डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।”

उसने बताया कि लॉकडाउन के दौरान ललक सिंह गंभीर आर्थिक परेशानियों का सामना कर रहे थे। उनके ऊपर तकरीबन 1,00,000 रूपये का कर्ज था, जिसे उन्होंने एक बैंक से लिया था। चूंकि वे अपने घर में एकमात्र कमाने वाले थे, इसलिये वे आवारा मवेशियों द्वारा फसल नष्ट कर दिए जाने की खबर को बर्दाश्त नहीं कर पाए। 

अतर्रा के सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट (एसडीएम), सौरभ शुक्ला का इस बारे में कहना था: “हमें एक किसान की मौत के बारे में सूचना प्राप्त हुई है, जिसने आवारा जानवरों के द्वारा अपनी फसल को नुकसान पहुंचाए जाने की वजह से आत्महत्या कर ली थी। नायब तहसीलदार को उक्त परिवार से मिलने के लिए  भेजा गया था और उनकी रिपोर्ट के आधार पर समुचित कार्यवाई की जायेगी।” उन्होंने पुष्टि की कि मृतक किसान ने एक बैंक से 1 लाख रूपये का कर्ज ले रखा था, लेकिन इसके भुगतान के लिए उस पर कोई “दबाव नहीं” था। 

इस बीच, ग्रामीणों ने जिला प्रशासन से अपील की है कि परिवार को तत्काल आर्थिक मदद पहुंचाई जाये।

जनवरी में भी इसी प्रकार से एक 32 वर्षीय किसान ने खेरागढ़ उप-प्रखंड के तहत आने वाले नगला विष्णु गांव में किराये पर लिए गये एक खेत में आवारा पशुओं द्वारा सरसों की फसल को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाने के बाद आत्महत्या कर ली थी। उसने भी 1 लाख रूपये का बैंक ऋण ले रखा था और उसे इस फसल से ऋण चुकता करना था।

आवारा पशुओं की समस्या ने किसानों की नींद हराम कर रखी है 

उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में आवारा पशुओं के द्वारा फसलों की बर्बादी की समस्या गहराती जा रही है, जहां पर किसान अपने खेतों की निगरानी करने के लिए लोगों को काम पर रखने के लिये मजबूर हैं। उन्हें सरकार से अपने समुदाय के लिये बेहतर सहायता किये जाने की उम्मीद है। गाजीपुर बॉर्डर पर किसानों के आन्दोलन में भी तीन कृषि कानूनों को निरस्त किये जाने की मांग के अलावा, आवारा पशुओं के आतंक के मुद्दे को भी लगातार उछाला जाता रहा है।

यूपी में किसान इस बात से काफी नाराज हैं कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार द्वारा आवारा मवेशियों द्वारा फसलों की बर्बादी के मुद्दे को संबोधित नहीं किया जा रहा है और उनका दावा है कि अभी तक जो भी उपाय लिए गए हैं वे “बुरी तरह से विफल” साबित हुए हैं। उनका मानना है कि आवारा पशुओं का आतंक और खेती-बाड़ी में बेहद कम लाभ जैसे वर्तमान में कहीं बड़े मुद्दे हैं और वे चाहते हैं कि सरकार जानवरों से उनकी फसलों की सुरक्षा को सुनिश्चित करे।

बांदा स्थित एक कृषि विशेषज्ञ, प्रेम सिंह ने न्यूज़क्लिक को बताया “जबसे सरकार ने राज्य में गाय काटने को प्रतिबंधित किया है, तब से किसानों को इस (आवारा पशुओं के आतंक) की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। 

उनका कहना था कि राज्य सरकार को या तो बूचड़खाने खोल देने चाहिये, नहीं तो हर गांव में कम से कम 10% जमीन को आवारा पशुओं के लिए आवंटित कर देना चाहिये, ताकि वे वहां पर स्वतंत्र रूप से चर सकें। इससे न सिर्फ आवारा पशुओं को लाभ पहुंचेगा, बल्कि किसानों को भी इनके आतंक से छुटकारा मिलेगा।

सिंह के अनुसार मुख्य रूप से छुट्टा गायों और बछड़ों के द्वारा फसलों को नष्ट किया जा रहा है। यूपी सरकार की गौशाला योजना पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने बताया कि गायों की तो वैसे भी मौत हो रही है: “गौशाला में, जानवर भूख-प्यास से धीरे-धीरे मर रहे हैं, जबकि बूचड़खाने में वे एक झटके में मार दिए जाते हैं। बस इतना ही फर्क है।”

सिंह ने बताया कि राज्य सरकार द्वारा आवारा पशुओं के लिए स्थापित गौशाला, बूचडखानों के ही समान हैं, बस वहां पर मशीनें नहीं हैं। उनका आगे कहना था कि सरकार और प्रशासन दोनों ही इस मुद्दे को हल कर पाने में “बुरी तरह से विफल” साबित हुए हैं क्योंकि इसके लिए श्रमशक्ति, चारे, पानी इत्यादि की आपूर्ति की आवश्यकता होती है, जिसे वे इन आश्रय स्थलों में नहीं मुहैय्या करा पाए।

आवारा पशुओं के आतंक से अत्यधिक प्रभावित पश्चिमी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र के आगरा के किसान नेता, श्याम सिंह चाहर ने न्यूज़क्लिक से अपनी बातचीत में कहा: “सरकार इस समस्या का हल तलाश करने की इच्छुक नहीं है क्योंकि गाय के नाम पर उन्हें वोट मिलता है, और चूंकि विधानसभा चुनाव की घड़ी निकट है, वे आवारा मवेशियों के संकट को नियंत्रण में रखने को अपनी सफलता की कहानी के तौर पर प्रोजेक्ट करेंगे। लेकिन जमीनी हकीकत तो यह है कि आवारा पशुओं की वजह से किसान आत्महत्या करने के लिये मजबूर हैं।”

चाहर ने आगे कहा: “किसान पहले से ही आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं क्योंकि उनको अपनी फसलों का उचित दाम नहीं मिल रपा हा है। अब उन्हें आवारा पशुओं द्वारा फसल को होने वाले नुकसान का सामना करने के लिए छोड़ दिया गया है। इस प्रकार के मुद्दों से निपटने के लिए जमीनी स्तर पर कोई प्रयास नहीं चल रहे हैं।” 

राज्य में सरकार द्वारा संचालित गौशालाओं में प्रमुख चुनौतियों की ओर इशारा करते हुए कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि इन आश्रयस्थलों को सरकार की तरफ से चारा नहीं मिल रहा है और जानवरों को उचित भूमि पर चरने की अनुमति नहीं है। इसके अलावा, पर्याप्त कर्मचारियों की कमी भी एक ऐसी समस्या है, जिससे निपटने की जरूरत है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें।

UP: Upset Over Crop Damage by Stray Cattle, Debt-ridden Farmer Kills Himself in Banda

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