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यूपी वोटिंग पैटर्न: ग्रामीण इलाकों में ज़्यादा और शहरों में कम वोटिंग के क्या हैं मायने?

उत्तर प्रदेश में अब तक के वोटिंग प्रतिशत ने राजनीतिक विश्लेषकों को उलझा कर रख दिया है, शहरों में कम तो ग्रामीण इलाकों में अधिक वोटिंग ने पेच फंसा दिया है, जबकि पिछले दो चुनावों का वोटिंग ट्रेंड एक जैसा नज़र आ रहा है।
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Image courtesy : India Today

उत्तर प्रदेश में पश्चिम से लेकर अवध तक आधी से ज्यादा सीटों पर मतदान संपन्न हो चुके हैं। कहा जा रहा है कि पांच चरणों में 292 सीटों पर हुए मतदान ने सत्ता की तस्वीर लगभग साफ कर दी है, हालांकि दो चरणों के मतदान अभी भी बाकी हैं जो फैसला करेंगे कि माहौल किसके पक्ष में है।

कहने को तो लोकतंत्र के इस त्योहार में नए-नए मतदाताओं ने खूब भागीदारी की, लेकिन साल 2017 की तुलना में इस बार मतदाताओं की दिलचस्पी ज़रा फीकी दिखी। क्योंकि अभी तक बीते हर चरण में लगभग औसतन एक प्रतिशत मतदान की कमी देखी गई है। जबकि 2012 में पांच चरणों की इन्हीं सीटों पर इसी पैटर्न पर वोटिंग हुई थी।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, विधानसभा चुनाव 2022 के पांच चरण की वोटिंग की तुलना 2017 से करने पर सामने आया कि पहले चरण में 1.2%, दूसरे चरण में 1.2%, तीसरे चरण में 2%, चौथे और पांचवें चरण में 1-1 प्रतिशत वोटिंग में कमी आई है। राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि वोटिंग प्रतिशत घटने के मायने यही हैं कि विपक्ष यानी बसपा और सपा का कोर वोटर घर से निकला है। सपा का ‘MY’ फैक्टर (मुस्लिम-यादव) भी चल सकता है। लेकिन भाजपा का कोर वोटर घरों से कम निकला।

अब अगर 2017 के मतदान प्रतिशत की 2012 के मतदान प्रतिशत से तुलना करें तो सामने आता है कि पाचों चरण में 0.36% से लेकर 5% तक इज़ाफा हुआ था, फेज़ वाइज़ देखें तो वोटिंग प्रतिशत 2012 के मतदान की तरह ही चल रहा था।

बात अगर सिर्फ पांचवें चरण की करें तो आंकड़ों के हिसाब से मतदान कम हुआ है, हालांकि कुछ सीटे ऐसी भी हैं जहां उम्मीद से अधिक मतदान ने लोगों को चौंका दिया, जिसमें सबसे पहले नंबर पर फूलपुर विधानसभा सीट आती है, यहां 60.40 प्रतिशत मतदान हुआ, जबकि बारा सुरक्षित सीट पर 58.50 प्रतिशत वोट पड़े। इसके अलावा कोरांव सुरक्षित विधानसभा में 58.28 प्रतिशत जबकि सोरांव विधानसभा में 57.56 प्रतिशत और करछना विधानसभा में 57 प्रतिशत लोगों ने अपने मत का प्रयोग किया। साथ ही प्रतापपुर विधानसभा में 56.02 प्रतिशत जबकि फाफामऊ और मेजा विधानसभा में 56-56 प्रतिशत वोट पड़े।

ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अगर शहरी क्षेत्रों की बात करें तो यहां उम्मीदों के मुताबिक कम वोटिंग हुई है, जिसमें सबसे पहले आता है प्रयागराज पश्चिम जहां 51.20 प्रतिशत मतदान हुआ, इसके अलावा प्रयागराज दक्षिण में भी 47.05 प्रतिशत वोटिंग हुई। जबकि प्रयागराज शहर उत्तरी विधानसभा में सबसे कम 39.56 प्रतिशत लोगों ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया।

इन आंकड़ों से साफ है कि पांचवे चरण में शहरी विधानसभा के मतदाताओं से ग्रामीण मतदाताओं ने ज्यादा वोटिंग की है। कुछ और उदाहरण हमारे सामने हैं.... जैसे अमेठी की शहरी सीट पर 54.75 प्रतिशत वोटिंग हुई जबकि तिलोई में 59.31 प्रतिशत मतदान हुए, वहीं गौरीगंज में 57.12 फीसदी वोट पड़े। अगर बहराइच की बात करें तो यहां की शहरी सीट पर 55.61 प्रतिशत मतदान हुए, जबकि बलहा सीट पर 59 फीसदी लोगों ने मतदान किया। महसी सीट पर 61.73 फीसदी, मटेरा में 59.78 प्रतिशत और पयागपुर में 57.65 प्रतिशत मतदान हुए।

शहरी और ग्रामीण विधानसभा क्षेत्रों में मतदान की तुलना बेहद महत्वपूर्ण सीट अयोध्या से भी कर सकते हैं जहां अयोध्या विधानसभा में 54.50 प्रतिशत मतदान हुए, वहीं ग्रामीण क्षेत्र बीकापुर में 60 प्रतिशत, गोसाईगंज में 58.47 प्रतिशत और मिलकीपुर में 56.12 प्रतिशत मतदान हुआ। इससे साफ है कि ग्रामीण क्षेत्र के लोगों ने इस लोकतंत्र के त्योहार में ज्यादा हिस्सेदारी दिखाई।

  • अगर हम राजनीतिक पंडितों की ओर रुख करते हैं, तो उनके मुताबिक जब बदलाव की बयार बहती है, तो मतदाता उमड़कर वोट करता है, लेकिन जब पिछली बार की तुलना में कम हो जाएं तो सत्ता परिवर्तन के आसार कम होते हैं। अब अगर राजनीतिक पंडितों की इस बात को हम ग्रामीण और शहरी वोटरों के वोटिंग प्रतिशत से जोड़कर देखें, तो कई मुद्दे बाहर निकलकर आते हैं।
  • पिछले दिनों कोरोना महामारी ने खूब तबाही मचाई थी। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों से दूसरे राज्यों में जाकर काम करने वाले ज्यादातर मज़दूर वर्ग के लोगों को हज़ारों किलोमीटर पैदल चलकर अपने-अपने घर पहुंचने को मजबूर होना पड़ा था। शहरों में अस्पताल की व्यवस्था तो हो रही थी, लेकिन गांव में रहने वालों को कोरोना का इलाज़ मिलना भी दूभर था। ये गांवों में बदलाव की बयार का एक बड़ा कारण हो सकती है।
  • वहीं दूसरी ओर जो सबसे बड़ा मुद्दा सामने आया वह था रोज़गार का। गांव से पढ़ाई के लिए, नौकरी की तैयारी के लिए शहर में रहने वाले बच्चों की जिस तरह से पिटाई हुई वो भी किसी से छुपा नहीं है। प्रयागराज की सड़कें आज भी उस भयानक मंजर की गवाह हैं।
  • अब बात करते हैं अयोध्या की जो हमेशा से भारतीय जनता पार्टी की जीत का आधार रही है वहां कैसे भगवान राम के नाम का इस्तेमाल कर लोगों के घर उजाड़े गए। इस क्रम में गांव के गांव उज़ाड दिए गए। छोटी-छोटी सी बीमारी में भी लोगों को लखनऊ दौड़ कर आना पड़ रहा है। रोज़गार के नाम पर सिर्फ दुकानें हैं जो टूटकर की गई वोटिंग का एक कारण है।
  • पांचवें चरण में होने वाले मतदान क्षेत्रों की बात करें तो इस चरण में कुछ ज़िले ऐसे भी रहे जहां से होकर पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे निकल रहा है, यहां जिन किसानों की ज़मीन ली गई, उसके मुआवज़े की ख़ातिर किसान आज भी सिर्फ दफ्तरों की खाक छान रहे हैं।
  • पिछले दिनों हमने देखा कि कैसे किसानों ने अपनी कटी हुई फसलों में आग लगा दी, क्योंकि उसे मंडी नहीं मिल रही थी। फसल के सही दाम नहीं मिल रहे थे, जब फसल बोई जा रही थी तो उसके लिए खाद नहीं मिल रही थी। जो ग्रामीण इलाकों में बंपर वोटिंग का कारण है।
  • इन तमाम मुद्दों के अलावा किसान उस आंदोलन कभी नहीं भूल पाएंगे जिसमें 750 से ज्यादा किसानों की शहादत हो गई। उधर लखीमपुर खीरी हिंसा के आरोपी को जमानत मिल जाने के बाद आज वह खुला घूम रहा है। आरोपी अपने पिता गृह मंत्री के साथ भाषण देता है जिसे गांवों के किसान साफ देख रहे हैं।

अपनी-अपनी जीत का दावा

भले ही इस वोटिंग ट्रेंड को लेकर राजनीतिक पंडित कुछ भी बोलें, लेकिन राजनीतिक दल इसे अपने पक्ष में बता रहे हैं। समाजवादी पार्टी के एक प्रवक्ता के अनुसार इस बार कम हुए मतदान के बीच भी एक बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि पश्चिमी यूपी के उन इलाकों में जहां मुस्लिम और यादव मतदाता अधिक संख्या में रहते हैं, वहां मतदान ज्यादा हुआ है। इसका साफ अर्थ है कि ये मतदाता सरकार बदलने के लिए अपनी ताकत का भरपूर उपयोग कर रहे हैं। वहीं भाजपा का मतदाता बाहर नहीं निकल रहा है। वह किसी कारण से दूसरे दलों को वोट नहीं देना चाहता, लेकिन वह भाजपा की नीतियों के कारण निरुत्साहित है और इसलिए मतदान के लिए बाहर नहीं आ रहा है। बाकी भाजपा के लोग कम वोटिंग से उत्साहित हैं ही।

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