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यूपी: विधानमंडल में क्यों छिन गया कांग्रेस-बसपा का दफ़्तर?

विधानसभा सत्र शुरु होने से पहले ही यूपी में कांग्रेस और बसपा को बड़ा झटका लगा है। नियमावली का हवाल देते हुए दोनों पार्टियों से विधानमंडल में मौजूद इनके कार्यालयों को अब छोटे कमरों में शिफ्ट कर दिया गया है।
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भारत जोड़ो यात्रा, कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में बंपर जीत फिर दक्षिण भारत के अन्य राज्यों में बढ़ता जनाधार...इन सब कारणों को सिरहाने रख कांग्रेस भले ही ख़ुद को 2024 लोकसभा चुनाव के लिए सबसे मज़बूत दावेदार मानने में लगी हो, लेकिन उत्तर प्रदेश में अब भी इनकी हालत कमज़ोर ही मालूम होती है, और इस कमज़ोर हालत का खामियाजा भी कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में भुगतना पड़ गया है।

इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है, जब देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल से देश के सबसे बड़े राजनीतिक राज्य में विधानमंडल के भीतर उसके कार्यालय को छीन लिया गया हो। हालांकि कार्यालय छिन जाने वाली लिस्ट में कांग्रेस का साथ मायावती की बसपा भी दे रही है, क्योंकि उनकी पार्टी से भी उनका बड़ा सा दफ़्तर छीन लिया गया है।

क्यों छिन गया दफ़्तर?

मौजूदा वक्त की सियासत को आधार बनाकर हम इस फैसले को राजनीतिक भी कह सकते हैं, लेकिन दरअसल इससे इतर इस झटके की वजह 2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान बसपा और कांग्रेस दोनों दलों का प्रदर्शन है, जो बेहद निराशाजनक रहा था। दोनों दलों की कभी उत्तर प्रदेश में अपने दम पर सरकार हुआ करती थी, मगर 2022 के चुनाव में बसपा को सिर्फ एक सीट हासिल हुई थी, जबकि कांग्रेस सिर्फ दो सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब हुई थी। दोनों दलों के इतने खराब प्रदर्शन की उम्मीद किसी को नहीं थी। इस खराब प्रदर्शन के बावजूद दोनों दलों के पास अभी तक विधानसभा में बड़े दफ़्तर थे।

नियम क्या कहता है?

उत्तर प्रदेश विधानसभा की अपनी एक नियमावली है, जिसमें नियमावली 987 की धारा 157(2) के मुताबिक ऐसे दल जिनके सदस्यों की संख्या 25 या उससे ज़्यादा हो, उन्हें सचिवालय की ओर से कक्ष, चपरासी, टेलीफोन आदि कुछ शर्तों के साथ दिए जा सकते हैं जो विधानसभा के अध्यक्ष निर्धारित करें। नियमावली के मुताबिक 25 से कम सदस्यों वाले दल को कक्ष का अधिकार नहीं है।

यानी अगर इन नियमों का पालन किया जाए तो इस समय कांग्रेस के पास सिर्फ दो विधायक हैं, वहीं बसपा के पास तो सिर्फ एक ही रह गया है, इसी वजह से दोनों ही पार्टियों से उनके कार्यालय छीनकर छोटे रूम अलॉट किए गए हैं।

आपको बता दें कि इस मामले में विधानसभा अध्यक्ष के पास यह अधिकार सुरक्षित है कि वे जैसा चाहें, वैसा निर्धारित कर सकते हैं।

विधानसभा अध्यक्ष का ये फैसला कांग्रेस के लिए झटका क्यों?

सबसे पहली बात, यह कांग्रेस के आत्मसम्मान पर ठेस है, क्योंकि मौजूदा वक्त में ओमप्रकाश राजभर की सुभासपा और जयंत चौधरी की आरएलडी इनसे बड़ी हो चुकी है। सुभासपा के जहां 6 विधायक हैं, तो आरएलडी के भी 8 विधायक हैं। अब कांग्रेस को नीचा दिखाना कहें या इन पार्टियों से दिखने वाला फायदा, क्योंकि सुभासपा और आरएलडी दोनों को ही एक-एक कैबिन अलॉट किया गया है।

दूसरी ओर ‘इंडिया’ में शामिल कांग्रेस और सपा आपस में ही लड़-झगड़ रही हैं, और एक दूसरे को खुद से बड़ा बताने में जुटी हैं, ऐसे समय में सपा को और ज़्यादा बड़ा ऑफिस अलॉट कर दिया गया है, क्योंकि विधानसभा चुनाव में सपा के 111 विधायक जीतकर आए थे। कहने का मतलब ये है कि अब उत्तर प्रदेश विधानमंडल में देश की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस एक कमरे में अपनी मीटिंग करेगी और रणनीति बनाएगी जबकि दूसरी ओर क्षेत्रीय सपा एक बड़े कार्यालय में बैठेगी। यानी अब सपा के पास खुद को कांग्रेस से बड़ा बताने की एक ठोस वजह और हो गई है।

कांग्रेस के अलावा अगर बसपा की ओर नज़र डालें, यूं तो वो राष्ट्रीय दल हैं, मग़र जिस प्रदेश में ये पार्टी जन्मीं वहीं अपना अस्तित्व खोती जा रही है। फिर मायावती को कार्यालय छिन जाना इसलिए भी ज़्यादा अखर रहा होगा क्योंकि उनके पास विधायक एक है, तो विधानपरिषद का एक सदस्य भी है। ऐसे में ये लोग अपनी बैठकें कहां करेंगे।

हालांकि इनके पास 10 सांसद ज़रूर हैं, और कहना ग़लत नहीं होगा कि इन्ही सांसदों पर भाजपा की नज़र हो सकती है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि ये बसपा और मायावती पर एक तरह से भाजपा का दबाव हो सकता है कि आप इधर रहें या उधर, मग़र बैटिंग हमारी ओर से ही करेंगी, ऐसा इसलिए क्योंकि पिछले कुछ दिनों में अगर आप मायावती के बयानों को खंगालेंगे तो निशाना ‘इंडिया’ के कांग्रेस और सपा पर ज़्यादा रहता है।

उधर ये सब होने के बाद बसपा विधानमंडल दल के नेता उमाशंकर सिंह ने इस संबंध में विधानसभा अध्यक्ष से गुहार लगाई है, जिसमें कार्यालय वापस किए जाने की मांग की गई है। अब बसपा की ये गुहार विधानसभा अध्यक्ष के कानों से होती हुई किस तरह भाजपा के कानों तक पहुंचती है, ये देखने वाला विषय होगा।

हां इतना ज़रूर कहा सकता है कि आने वाले दिनों में ‘इंडिया’ के साथियों सपा और कांग्रेस में प्रदेश के अंदर वर्चस्व की लड़ाई देखने को ज़रूर मिलेगी।

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