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यूपी: क्या जितिन प्रसाद के जाने से वाकई कांग्रेस को नुकसान होगा?

यूपी में फिलहाल जितिन का राजनीतिक ज़मीन पर कोई खास असर नहीं दिखता। उनका प्रभाव पिछले कुछ सालों में सिमटता चला गया है। यहां तक कि बीते चुनावों में वह अपने इलाके और अपनी सीट भी नहीं संभाल सके। वे लगातार दो बार लोकसभा और एक बार विधानसभा चुनाव हार चुके हैं।
यूपी: क्या जितिन प्रसाद के जाने से वाकई कांग्रेस को नुकसान होगा?

मीडिया में कांग्रेस के कद्दावर नेता के नाम से जितिन प्रसाद एक बार फिर सुर्खियों में हैं। इससे पहले बीते साल जब 2022 में होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की तैयारियों के लिए ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटी की सात समितियों का गठन हुआ था, तब उनका नाम ज़ोर-शोर से उछला था। वजह थी जितिन का नाम किसी भी समिति में मौजूद न होना। तब मीडिया में ये खबरें आईं कि कांग्रेस आला कमान जितिन से खुश नहीं है क्योंकि जितिन भी उन 23 वरिष्ठ नेताओं में शामिल थे, जिन्होंने सोनिया गांधी को पत्र लिखकर पार्टी के भीतर शीर्ष से लेकर नीचे तक बड़े बदलाव की बात की थी। हालांकि पार्टी ने पश्चिम बंगाल में हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में जितिन को कांग्रेस के प्रभारी का पद जरूर दिया था, लेकिन वो पार्टी का उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे और यहां कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद खराब रहा।

कभी राहुल गांधी की टीम के प्रमुख सदस्य माने जितिन अब जब कांग्रेस का हाथ छोड़कर बीजेपी के साथ आ गए हैं तो कहा जा रहा है कि इसका असर 2022 के यूपी विधानसभा चुनावों में देखने को मिल सकता है। वो अलग बात है कि फिलहाल यूपी में जितिन का राजनीतिक ज़मीन पर कोई खास असर नहीं दिखता। 2001 में पिता कुंवर जितेंद्र प्रसाद के निधन के बाद उनकी राजनीतिक विरासत संभालने वाले जितिन प्रसाद ने 2004 में शाहजहांपुर सीट से जीतकर पहली बार लोकसभा में कदम रखा था। मनमोहन सिंह सरकार के पहले कार्यकाल में उन्हें केंद्रीय मंत्री बना दिया गया। 2009 में जितिन प्रसाद, धौरहरा लोकसभा सीट से जीते। यूपीए- दो में उन्हें पेट्रोलियम और सड़क-परिवहन जैसे अहम मंत्रालय की बतौर राज्य मंत्री जिम्मेदारी दी गई। लेकिन पिछले कुछ सालों में जितिन का प्रभाव सिमटता चला गया। यहां तक कि वह अपने इलाके और अपनी सीट भी नहीं संभाल सके। वे लगातार दो बार लोकसभा और एक बार विधानसभा चुनाव हार गए।

जितिन का सिमटता राजनीतिक प्रभाव

जितिन का ये ट्रैक रिकॉर्ड इस बात को बताता है कि शाहजहांपुर, लखीमपुर खीरी, बरेली समेत रूहेलखंड के इलाके में जो जनाधार उनके पिता जितेंद्र प्रसाद और कांग्रेस ने बनाया था, वो लगभग खत्म सा हो गया है। हाल ही में हुए पंचायत चुनाव में शाहजहांपुर के खुटार में वार्ड-एक से जितिन की भाभी राधिका प्रसाद खड़ी थीं, लेकिन उन्हें बीजेपी प्रत्याशी पूजा मिश्रा ने हरा दिया। जाहिर है जितिन और उनके परिवार का राजनीतिक प्रभाव अब कुछ खास कमाल नहीं दिखा पा रहा।

वैसे मीडिया के एक धड़े में जितिन प्रसाद को यूपी का कद्दावर नेता बताकर 2022 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के नुक़सान की बातें कहीं जा रही हैं। हालांकि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी के ग्राफ को देखें तो कांग्रेस पहले ही हाशिए पर पहुंच गई है। जितिन प्रसाद पार्टी के लिए बड़े नाम हैं लेकिन हाल-फिलहाल पार्टी ने उन्हें केंद्र में रखकर रणनीति बनाई हो, ऐसा भी नहीं दिखता है। बीजेपी के बड़े नेता जितिन प्रसाद के आने से पार्टी के 'मजबूत होने' का दावा कर रहे हैं, सोशल मीडिया में उन्हें ब्राह्मण चेहरे के तौर पर पेश कर आगे बढ़ाने की कोशिश होती दिख रही है। उत्तर प्रदेश में बीजेपी के पास पहले ही रीता बहुगुणा जोशी, डिप्टी सीएम डॉ. दिनेश शर्मा जैसे ब्राह्मण चेहरे हैं, लेकिन इनका प्रभाव पूर्वी और सेंट्रल यूपी में ज्यादा है। पीएम नरेंद्र मोदी के करीबी मएलसी एके शर्मा भी भूमिहार ब्राह्मण हैं, जिनका ताल्लुक पूर्वांचल है। ऐसे में अब जितिन के आने से पश्चिम में भी BJP के पास एक बड़ा ब्राह्मण चेहरा हो गया है। लेकिन ये कोशिश कितनी कामयाब होगी, इस पर सवालिया निशान रहेंगे।

कांग्रेस नेतृत्व जितिन को लेकर ज्यादा परेशान नहीं लगता

उत्तर प्रदेश में बीजेपी की मज़बूती की बात करें तो बीते करीब आठ साल से सबसे बड़ा चेहरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सरकार के अगुवा जरूर हैं लेकिन कुछ हफ़्तों से उनके और प्रधानमंत्री के समीकरणों को लेकर सवाल उठ रहे हैं। प्रदेश में बीजेपी के पास कई और बड़े नेता भी हैं। ऐसे में जितिन प्रसाद को कितनी प्रभावी भूमिका पार्टी में मिलती है, ये आगे ही पता चलेगा। फिलहाल बीजेपी को इतना फायदा ज़रूर हुआ है कि अगले कुछ दिन उससे ज़्यादा सवाल कांग्रेस और उसके नेतृत्व से पूछे जाएंगे। वैसे कांग्रेस नेतृत्व भी इस बात को लेकर ज्यादा परेशान नहीं लगता। क्योंकि जितिन को पार्टी की ओर से मनाने की कोई खास कोशिश होती दिखाई नहीं पड़ी।

कांग्रेस के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने जितिन प्रसाद के बीजेपी में जाने को 'विश्वासघात' बताते हुए कहा, "किसी के आने जाने से फर्क नहीं पड़ता है। जितिन प्रसाद जी को मान सम्मान कांग्रेस पार्टी ने दी उनकी पहचान बनाएं उनको सांसद बनाया। दो बार केंद्रीय मंत्री बनाया। साल 2017 का विधानसभा का प्रत्याशी बनाया। साल 2019 में भी उनको चुनाव लड़ाया गया और अभी हाल ही में बंगाल जैसे महत्वपूर्ण राज्य का उनको प्रभारी बनाया गया था।"

जातीय समीकरण जितिन प्रसाद के एग्जिट को कुछ अहम जरूर कर देता है!

वैसे कांग्रेस भले ही दिखा रही हो कि उसे किसी के जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन आने वाले विधानसभा चुनाव को देखें तो प्रदेश का जातीय समीकरण जितिन प्रसाद के एग्जिट को कुछ अहम जरूर कर देता है। ज्यादातर राजनीतिक पार्टियां यहां जाति के आधार पर ही टिकटों का बंटवारा करती हैं। खबरों की मानें तो इस बार कांग्रेस प्रियंका गांधी वाड्रा के चेहरे के साथ अपने पुराने वोटबैंक (ब्राह्मण, मुस्लिम और दलित वर्ग) में फिर से पैठ बनाने की कोशिश में है। वैसे राज्य में  25 फीसदी वोट बैंक दलितों का माना जाता है और बीएसपी यानी बहुजन समाज पार्टी को इसका पैरोकार माना जाता है। ब्राह्मणों और ठाकुरों को अगड़ी जाति में रखा जाता है, जिसका प्रतिनिधित्व बीजेपी अपने कंधों पर लेकर चलती है। पिछड़ी जाति का वोट बैंक 35 फीसदी है, जिसकी अगुआई समाजवादी पार्टी करती है। इसमें 13 फीसदी यादव, 12 फीसदी कुर्मी और 10 फीसदी अन्य जाति के लोग आते हैं। प्रदेश में 18 फीसदी मुस्लिम और 5 फीसदी जाट वोट बैंक भी अहम भूमिका निभाता है।

गौरतलब है कि जितिन प्रसाद का फायदा बीजेपी को 2022 यूपी विधानसभा चुनावों में मिले न मिले लेकिन इतना तो तय है कि कांग्रेस से लगातार युवा नेताओं का पार्टी छोड़ना, पार्टी के शीर्ष नेतृत्व पर सवाल तो उठा ही रहा है। जिसका मैसेज लगातार बीजेपी देने की कोशिश कर रही है। अब जितिन बीजेपी के कितने काम आते हैं, इससे बड़ा मुद्दा है कि इस दल बदल से जितिन अपनी खिसकती राजनीतिक जमीन बचा पाते हैं या नहीं।

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