Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

उत्तर प्रदेश: पुलिस की ज़्यादती का एक और मामला, सफ़ाईकर्मी की पुलिस हिरासत में मौत

घटना से वाल्मीकि समाज ग़ुस्से में है। दलित कार्यकर्ताओं समेत बड़ी संख्या में लोग पोस्टमार्टम स्थल पर इकट्ठा हो गए और संबंधित पुलिस कर्मियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग की।
custodial death
'प्रतीकात्मक फ़ोटो'

लखनऊ: गुरुवार को उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा ज्यादती किए जाने का एक मामला सामने आया है। बुधवार को पुलिस कस्टडी में एक व्यक्ति की मौत की खबर सामने आई है। व्यक्ति पर एक पुलिस स्टेशन वेयरहाउस से 25 लाख रुपए चुराने का आरोप था।

वाल्मीकि समाज से ताल्लुक रखने वाले 29 साल के अरुण कुमार सफाईकर्मी के तौर पर अपनी सेवाएं देते थे। उनके ऊपर जगदीशपुरा पुलिस स्टेशन के लॉकर रूम से 25 लाख रुपए चुराने का आरोप था। मंगलवार को पुलिस द्वारा हिरासत में लिए जाने के बाद उनकी मौत हो गई।

अरुण के परिवार का आरोप है कि पूछताछ के दौरान पुलिस ने अरुण की जमकर पिटाई की। इससे पुलिस के वक्तव्य पर भी सवाल खड़े हुए। इसके बाद अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया गया।

मामला दर्ज होने के बाद एक सब इंस्पेक्टर और एक इंस्पेक्टर, जो पैसे की बरामदगी के लिए गए थे, उन्हें मिलाकर कुल 5 पुलिसकर्मियों को लापरवाही के आरोप में बर्खास्त कर दिया गया है। आगरा एसएसपी मुनिराज ने बताया कि एक जांच समिति का गठन भी कर दिया गया है।

आगरा एसएसपी के मुताबिक आरोपी ने माना था कि उसके पास 15 लाख रुपए मौजूद हैं, जो घर पर रखे हुए हैं। पैसे की बरामदगी के लिए एक पुलिस टीम उसके साथ गई थी," तभी आरोपी की हालत अचानक बिगड़ने लगी।" पुलिस और उसका परिवार तुरंत आरोपी को लेकर अस्पताल गए, जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया। एसएसपी का दावा है कि पुलिस अरुण वाल्मीकि से  15 लाख रुपए हासिल करने में कामयाब रही।

आगरा SSP के बयान से उलट परिवार का कहना है की यह नृशंस हत्या है। उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिसकर्मी अरुण को झूठा फंसा रहे हैं। उन्होंने अरुण की मौत के लिए जिम्मेदार स्थितियों की जांच की मांग की है।

इस घटना से वाल्मीकि समाज में गुस्सा है। पोस्ट मार्टम स्थल के पास दलित सामाजिक कार्यकर्ताओं समेत बड़ी संख्या में लोग इकट्ठे हो गए थे। इन लोगों ने पुलिकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। उनका गुस्सा सड़कों पर भी दिखाई दिया और इससे उत्तर प्रदेश पुलिस की ज्यादती और कस्टडी में होने वाली मौतों पर भी नई बहस चालू हो गई है।

इस बीच वाल्मीकि समाज के सदस्यों ने  कहा है कि अगर पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं  होगी, तो वे प्रदर्शन करेंगे।

हालांकि एसएसपी मुनिराज का कहना है कि डॉक्टरों द्वारा किए गए पोस्ट मार्टम से पता चलता है कि अरुण की मौत हार्ट अटैक के चलते हुए है।

उन्होंने कहा, "एनएचआरसी के दिशा निर्देशों के मुताबिक डॉक्टरों के एक पैनल ने पोस्ट मार्टम किया। पोस्ट मार्टम रिपोर्ट के मुताबिक मौत की वजह हार्ट अटैक थी।

सरकार ने अरुण के परिवार के लिए 10 लाख रुपए का मुआवजा घोषित किया है। लेकिन परिवार एक करोड़ रुपए और परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी की मांग कर रहा है।

अरुण की मां कमला पोस्ट मार्टम स्थल पहुंची और कहा कि मलखाना (वेयरहाउस) में चोरी पुलिसकर्मियों के साथ मिलकर हुई थी। उनका बेटा पुलिसकर्मियों के नाम बता सकता था, इसलिए उसकी हत्या कर दी गई। अरुण की पत्नी और 3 बच्चों की मां सोनम ने न्यूज़क्लिक से कहा, "अगर मेरे पति ने पैसे चुराए होते, तो वो उन्हें जेल भेज सकते थे, लेकिन उन्हें मारा क्यों? करवाचौथ के पहले पुलिस ने मुझे विधवा बना दिया। सोनम ने दोषियों को सख्त सजा की मांग की है।

कमला का आरोप है कि पुलिस ने यह कहानी गढ़ी है कि हमारे घर से पैसे बरामद हुए, ताकि यह लोग अपने आप को बचा सकें। अगर मेरा बेटा जिंदा होता, तो वो उनके नाम बता देता।"

बेहद परेशान सोनम कहती हैं, "अब मेरे बच्चों को कौन देखेगा? वो हमारे घर में अकेला कमाऊ सदस्य था।" सोनम ने यह भी बताया कि अरुण के शरीर पर चोट के निशान साफ दिखाई दे रहे थे।

सफाईकर्मी की मौत पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए बीएसपी प्रमुख मायावती ने उत्तर प्रदेश पुलिस से पुलिस व्यवस्था में जरूरी बदलाव लाने को कहा है।

मायावती ने हिंदी में ट्वीट कर कहा, "गोरखपुर में व्यापारी की पुलिस द्वारा दुखद हत्या के बाद अब बीजेपी सरकार आगरा में पुलिस कस्टडी में दलित सफाईकर्मी की मौत से फिर सवालों के घेरे में है। इसलिए सरकार को पुलिस व्यवस्था में जरूरी बदलाव लाना चाहिए।"

इस बीच कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा को लखनऊ एक्सप्रेस वे पर उस वक़्त हिरासत में ले लिया गया, जब वे सफाईकर्मी के परिवार से मिलने आगरा जा रही थीं।

उन्होंने ट्वीट कर कहा, "सरकार किस चीज से डरी हुई है। अरुण वाल्मीकि की पुलिस हिरासत में मौत हुई है। उनका परिवार न्याय मांग रहा है। मुझे क्यों रोका जा रहा है।"

उत्तर प्रदेश में हिरासत में सबसे ज्यादा मौतें

पिछले तीन सालों में देश के अलग अलग हिस्सों में 348 लोग पुलिस हिरासत में मारे गए हैं। यह जानकारी कांग्रेस सांसद कीर्ति चिदंबरम के सवाल पर गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने लोकसभा में दी थी। चिदंबरम ने पूछा था कि क्या कस्टडी में होने वाली मौतों और उत्पीड़न पर देश में तेज उछाल आया है।

एनएचआरसी के आंकड़ों के हवाले से मंत्री ने कहा कि 2018 में136 लोगों, 2019 में 112 लोगों और 2020 में 100 लोगों की पुलिस कस्टडी में मौत हुई।

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि इस सूची में सबसे ऊपर उत्तर प्रदेश है। 2018-19 में उत्तरप्रदेश में कस्टडी में 112 और ज्यूडिशियल कस्टडी में 452 मौतें हुईं। 2019-20 में 3 मौतें पुलिस कस्टडी में और 400 ज्यूडिशियल कस्टडी में हुईं।

2020-21 में इस आंकड़े में और इजाफा हुआ. पुलिस कस्टडी में 8 लोग मरे और 443 मौतें ज्यूडिशियल कस्टडी में हुईं। मंत्री ने कहा कि पिछले तीन सालों में यह पूरे देश में सामने आईं सबसे ज्यादा पुलिस और ज्यूडिशियल कस्टडी की मौतें थीं।

केंद्रीय मंत्री द्वारा पेश किए गए आंकड़ों के मुताबिक 2018-21 में देश में ज्यूडिशियल और पुलिस कस्टडी में हुई 5,569 मौतों में से अकेले उत्तर प्रदेश में 1,318 मौतें हुई हैं।

उत्तर प्रदेश पुलिस के खिलाफ बढ़ते मामले

पिछले कुछ सालों में उत्तर प्रदेश पुलिस के खिलाफ मामलों में तेज उछाल आया है।

कोरोना की दूसरी लहर के दौरान मई में उन्नाव में एक सब्जी बेचने वाले फैजल की लॉकडाउन उल्लंघन के चलते पुलिस द्वारा की गई पिटाई से मौत हो गई थी।

3 पुलिस वालों पर हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया था। अपने परिवार का इकलौता कमाऊ सदस्य फैजल, पुलिस द्वारा एक स्थानीय सब्जी बाज़ार से आंशिक कोरोना प्रतिबंधों का उल्लघंन करते हुए पकड़ा गया था।

एक दूसरे मामले में एक विशेष पुलिस दल पर अम्बेडकरनगर में हत्या का मामला दर्ज किया गया। दल ने आजमगढ़ के रहने वाले एक शख़्स को सवाल जवाब करने के लिए उठाया था। उसके परिवार का आरोप है कि पुलिस ने कस्टडी में उसे बहुत मारा।

दल के प्रमुख देवेन्द्र पाल सिंह और कुछ अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ आईपीसी की धारा 302 और 364 (अपहरण) का मामला अकबरपुर पुलिस थाने में दर्ज किया गया।

हाल में योगी आदित्यनाथ के गृह क्षेत्र में पुलिस द्वारा पीटे जाने के बाद एक व्यक्ति की मौत होने से बड़ा विवाद खड़ा हो गया था। कानपुर के रहने वाले व्यापारी मनीष गुप्ता की हत्या में मामले में 6 पुलिस वाले गिरफ़्तार हुए हैं। इन लोगों पर एक होटल में मनीष की पिटाई के आरोप हैं।

दलित कार्यकर्ता सुशील गौतम का कहना है कि उनके समाज के खिलाफ अत्याचार बढ़े हैं, पुलिस की जिम्मेदारी तय नहीं की जा सकती। एक पुलिस अधिकारी के ख़िलाफ़ सिर्फ सरकार की अनुमति के बाद ही मामला दर्ज किया जा सकता है। उन्होंने न्यूज़क्लिक से कहा, "सरकार इस अमानवीय अत्याचार पर ध्यान नहीं दे रही है। इसलिए इसे मामले बढ़ रहे हैं। यह शर्म की बात है कि एक लोकतांत्रिक देश में पुलिस कस्टडी मेलोग मर रहे हैं।"

इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

UP: In Yet Another Case of Police ‘High-Handedness’, Sanitation Worker Dies in Police Custody

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest