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यूपी चुनाव: कानपुर क्या बदलाव के लिए तैयार है?

कानपुर शहर को औद्योगिक नगरी के नाम से जाना जाता है लेकिन कोविड महामारी ने कानपुर के उद्योग की कमर तोड़ कर रख दी है। बेरोज़गारी बढ़ गई है। जो मज़दूर काम कर रहे हें उनका वेतन काफी कम हो गया है।
Kanpur

सऊद भाई का कहना है कि, “कानपुर में चमड़ा उद्योग चरमरा गया है, करीब 200 से अधिक टेनरिज बंद हो गई हैं और अन्य अपनी क्षमता से 50 प्रतिशत कम पर काम कर रही हैं, जिससे न केवल व्यापार को नुकसान हुआ है बल्कि बेरोगारी भी बेइंतहा बढ़ गई है।” सऊद पिछले 20 वर्षों से चमड़ा उद्योग में काम कर रहे हैं और बेल्ट बनाने का काम करते हैं।

उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर को औद्योगिक नगरी के नाम से जाना जाता है और इसका राज्य की जीडीपी में बड़ा योगदान रहता है लेकिन कोविड महामारी ने कानपुर के उद्योग की कमर तोड़ कर रख दी है। बेरोजगारी बढ़ गई है। जो मजदूर काम कर रहे हें उनका वेतन काफी कम हो गया है। क्योंकि कारखानों में उतना काम नहीं है जितना कोविड से पहले होता था। सऊद कहते हैं कि “जो मजदूर बेरोजगार हुए हैं उनमें से काफी मजदूरों ने बैटरी रिक्शा खरीद ली है और वे अपनी रोजी-रोटी कमाने का संघर्ष कर रहे हैं।“

कानपुर,जिसे कभी एशिया का मेंचेस्टर कहा जाता था और देश की आर्थिक तरक्की की मिसाल माना जाता था वह आज औद्योगिक मंदीबेरोगारीखस्ताहाल सड़केंगंदगीपानीसीवर भराव आदि की समस्याओं से जूझ रहा है। ऊपर से नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड 'प्रदूषण कम करने' के नाम पर कड़े प्रतिबंध लगा रहा हैं जिससे व्यापार को नुकसान हो रहा है और टेनेरिज ने तालबंदी के डर से अपने उत्पादन को 50 प्रतिशत से भी तक कम कर दिया है।

कानपुर के चमड़ा व्यापारी अख्तर हुसैन कहते हैं कि “बड़ी संख्या में टेनरी बंद हो गई हैं और अब केवल बड़े व्यापारियों ही टेनरी चला पा रहे हैं। कानपुर के जाजमाऊ में कभी 400 से अधिक टेनरी होती थी वे अब सिमट कर 55-56 तक रह गई है।“

अख्तर बताते हैं कि, “छोटे टेनरी वालों ने काम बंद कर दिया है और अपने परिसर को बड़े टेनरी वालों को किराए पर दे दिया है या फिर कोई अन्य काम खोल लिया है। उनके पास इतना पैसा नहीं है कि वे बड़ी मीट कंपनियों से कच्ची खालें ले सके और चमड़ा तैयार कर सके। इसलिए वे मैदान से हट गए हैं और अब चमड़ा उद्योग केवल बड़े खिलाड़ियों का मैदान बन कर रह गया है।”

अख्तर कहते हैं कि, “पिछले 7 साल में चमड़ा उद्योग की कमर पूरी तरह से टूट गई है और इसका सबसे बड़ा खामियाज़ा दलित और मुस्लिम समुदाय को उठाना पड़ा है। टेनरी में सर्वाधिक मजदूर दलित समुदाय से आते थे लेकिन काम बंद होने से वे अपने गावों को लौट गए हैं और उनकी दुर्दशा काफी खराब है।”

अख्तर कहते हैं कि “कानपुर में बेरोज़गारी ने भयंकर रूप ले लिया है। नौजवान बेरोज़गार हैं और काम की तलाश में भटक रहे हैं। लेबर चौक पर भारी भीड़ जमा होती है लेकिन बहुमत मजदूर बिना काम मिले वापस अपने घरों को लौट जाते हैं।

कानपुर के चुनावी माहौल पर चर्चा करते हुए अख्तर कहते हैं कि “टक्कर कांटे की है। सभी पार्टियों ने दमदार उम्मीदवार उतारे हैं और नतीजे कुछ भी हो सकते हैं।”

सिद्धार्थ काशीवार, जो एक कोयला व्यापारी हैं और वैश्य महासंगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, कहते हैं कि “जिले के राजनीतिक हालात काफ़ी बदल गए हैं और पूरा का पूरा चुनाव धर्म के आधार पर लड़ा जा रहा है। यदि कहा जाए तो एक पूरी की पूरी नस्ल को धर्मांधता की खाई में धकेल दिया गया है जो न तो विकास के बारे में और नहीं आर्थिक स्थिति पर कोई चर्चा करना चाहती है।”

कानपुर, अपनी आबादी के हिसाब से काफ़ी बड़ा जिला है, 2011 की जनगणना के अनुसार कानपुर जिले की आबादी करीब 45 लाख है और इसमें मुस्लिम 15.73 प्रतिशत और दलित आबादी 15 प्रतिशत से कुछ अधिक है। कानपुर जिले के तहत 3 उप-डिवीजन, 3 तहसील, 10 उप-तहसील, 90 पंचायत समिति, 1 नगर निगम, 2 नगर पालिका, 557 ग्राम पंचायत, 909 राजस्व गाँव और 10 विधान सभा क्षेत्र आते हैं। यहाँ के चुनावी नतीजों का पूरे प्रदेश की राजनित पर असर पड़ता है।

सिद्धार्थ काशीवार बताते हैं कि “वे स्वतन्त्रता सेनानी परिवार से आते हैं और कभी नहीं सोचा था प्रदेश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था इतनी खराब हो जाएगी जहां जनता के मुद्दों पर चर्चा करना भी दूभर हो जाएगा। हमारे बुजुर्गों ने गुलामी के खिलाफ इसलिए लड़ाई लड़ी थी ताकि एक आज़ाद भारत का निर्माण किया जा सके और जिसकी नींव लोकतान्त्रिक मूल्यों पर आधारित हो। लेकिन आज भारत को एक धर्मशासि‍त राष्ट्र बनाने की कोशिश की जा रही है।

वे आगे कहते हैं कि “यदि आप पूरे चुनाव को देखें तो विकास, बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य के मुद्दे पर कोई चर्चा में नहीं है, क्योंकि भाजपा नेताओं ने पूरे प्रचार को धार्मिक ध्रुवीकरण की तरफ मोड दिया है। इसलिए कहना कठिन है कि नतीजे क्या होंगे।”

सिद्धार्थ जी याद दिलाते हैं कि “पिछली बार कानपुर की 10 विधान सभा सीटों में से 2 सपा और 1 सीट कांग्रेस इसलिए जीत पाई थी क्योंकि दोनों पार्टियों में चुनावी गठबंधन था। लेकिन इस बार अलाग-अलग लड़ने से परिणाम के बारे में कुछ भी कहना सही नहीं होगा। यह जरूर है कि एक तबका है जो बदलाव चाहता है लेकिन उसका कितना असर होगा यह अभी देखा जाना बाकी है।”

किदवाई नगर विधान सभा से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार अभिमन्यु गुप्ता से जब न्यूज़क्लिक ने बात की तो उन्होने बताया कि “इस बार कानपुर की जनता बदलाव चाहती है और समाजवादी पार्टी जिले में इतिहास रचने जा रही है। उनके मुताबिक सपा इस बार 10 में से कम से कम 8 विधान सभा में जीत दर्ज करेगी।

अभिमन्यु कहते हैं कि “कानपुर के लोग नफ़रत की राजनीति से तंग आ चुके हैं और वे अब विकास चाहते हैं, रोजगार चाहते हैं, अस्पताल चाहते हैं और व्यापार में तरक्की चाहते हैं।” जब उनसे पूछा गया कि सपा कौन से मुद्दों पर चुनाव लड़ रही है तो उन्होने जवाब दिया कि “कानपुर में उद्योग बंद हो रहे हैं या फिर उत्पादन कम हो गया है और सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिल रही है। इसका सीधा असर प्रदेश की आर्थिक स्थिति पर तो पड़ता है साथ ही बेरोजगारी भी काफी बढ़ रही है। युवा परेशान है उन्हें रोजगार चाहिए। समाजवादी पार्टी व्यापार को बढ़ावा देगी, रोजगार देगी, 300 यूनिट बिजली मुफ्त देगी, नए अस्पताल बनवाए जाएंगे, महिलाओं को 1800 रुपए पेंशन देगी, पाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण किया जाएगा।”

वे कहते हैं कि “समाजवादी पार्टी का एजेंडा बिलकुल स्पष्ट है कि प्रदेश वापस उसी तरक्की के रास्ते पर वापस आए जो तरक्की प्रदेश ने अखिलेश यादव सरकार के तहत हासिल की थी”। उन्होने ज़ोर देकर कहा कि समाजवादी कानपुर से लेकर पूरे प्रदेश में भारी बहुमत से जीतेगी और सरकार बनाएगी”।

सवाल यह उठता है कि क्या सपा गठबंधन और फिर क्या कांग्रेस कानपुर में भाजपा की पिछले चुनावों में हुई भारी जीत को पलट पाएगी? जैसा कि अख्तर और सिद्धार्थ बताते हैं कि कानपुर की दस की दस विधानसभा सीटों पर टक्कर कांटे की है और यहां के नतीजे चौंकाने वाले होंगे। कानपुर में तीसरे चरण में 20 फरवरी को मतदान होगा।

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