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बच्चों के खिलाफ जघन्य अपराधों के 67 हजार लंबित मामलों के साथ UP टॉप पर

देश के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में बच्चों के खिलाफ जघन्य अपराधों के 67 हजार मामले लंबित हैं। यही नहीं, देश के स्तर पर देखें तो हर जिले में कम से कम एक विशेष फास्ट ट्रैक कोर्ट होने के बावजूद साल 2016 में जहां लंबित मामले 90,205 थे वहीं जनवरी 2023 तक ये मामले बढ़कर 2,43,237 हो गए।
crime against childen
प्रतीकात्मक तस्वीर।

देश के सभी राज्यों में बच्चों के खिलाफ जघन्य अपराधों के लंबित होने के मामले में उत्तर प्रदेश 67 हजार मामलों के साथ पहले स्थान पर है। डीडब्लू वेबसाइट के अनुसार, यूपी में लंबित पॉक्सो यानी प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस एक्ट के तहत दर्ज सभी मामलों का लगभग 28 फीसदी है।

लंबित मामलों में भारी वृद्धि

यौन दुर्व्यवहार के पीड़ित बच्चे को आगे की अदालती कार्यवाही के उत्पीड़न से बचाने के लिए पॉक्सो अधिनियम में संशोधन में यह प्रावधान दिया गया है कि फास्ट ट्रैक कोर्ट समयबद्ध तरीके से सभी मुकदमों का निपटारा करे। पॉक्सो के मामलों की सुनवाई के लिए देशभर में विशेष फास्ट ट्रैक स्थापित किए गए हैं। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक हर जिले में इस तरह की अदालतें हैं। लेकिन साल 2016 से अब तक लंबित मामलों में 170 फीसदी की वृद्धि हुई है। देश भर में हर जिले में कम से कम एक विशेष फास्ट ट्रैक कोर्ट के बावजूद साल 2016 में जहां लंबित मामले 90,205 थे वहीं जनवरी 2023 तक ये बढ़कर 2,43,237 हो गए।

हजारों लंबित मामले

यूपी के बाद महाराष्ट्र में 33,000 लंबित मामलों की दूसरी सबसे बड़ी संख्या है, इसके बाद 22,100 के साथ पश्चिम बंगाल है, बिहार में 16,000 मामले, ओडिशा में 12,000  मामले लंबित हैं। वहीं तेलंगाना और मध्य प्रदेश में 10,000 मामले लंबित हैं।

हाल ही में संसद में केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने एक सवाल के जवाब में कहा, "महिलाओं और बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों से संबंधित मामलों का त्वरित निपटान सुनिश्चित करने के लिए आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2018 की धारा 173(1ए) और धारा 309 के माध्यम से जांच और परीक्षण के लिए प्रत्येक के लिए दो महीने की समय सीमा निर्धारित की गई है।"

एनसीआरबी 2021 के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि बच्चों, विशेष रूप से लड़कियों के खिलाफ यौन अपराध लगातार बढ़ रहे हैं, क्योंकि बच्चों के खिलाफ हर तीन अपराधों में से एक पॉक्सो अधिनियम के तहत दर्ज किया जाता है। पॉक्सो और बलात्कार के मामलों से निपटने के लिए केंद्रीय की वित्तीय मदद से 764 विशेष फास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित किए गए हैं, जिसमें पॉक्सो अधिनियम के मामलों के लिए विशेष रूप से समर्पित 411 विशेष कोर्ट शामिल हैं। ये अदालतें साल में 1.4 लाख मामलों का निपटारा कर रही हैं।

POCSO में सिर्फ 14% को होती है सजा, हर चौथे मामले में एक-दूसरे को जानते हैं आरोपी और पीड़ित

विश्व बैंक में डेटा एविडेंस फॉर जस्टिस रिफॉर्म (DE JURE) कार्यक्रम से पॉक्सो एक्ट को लेकर कुछ चौंकाने वाली बातें सामने आई थीं। पॉक्सो (POCSO) एक्ट के 10 साल बाद एक स्वतंत्र थिंक टैंक ने देशभर की ई-कोर्ट्स के विश्लेषण में पाया कि पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज मुकदमों में 43.44% मामले दोषी बरी कर दिए जाते हैं और केवल 14.03 फीसदी मामलों में ही दोष सिद्ध हो पाता है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, ये बातें विश्वबैंक की डेटा एविडेंस फॉर जस्टिस रिफॉर्म (DE JURE) संस्था के सहयोग से विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी कार्यक्रम में जस्टिस, एक्सेस एंड लोअरिंग डिलेज इन इंडिया (JALDI) इनिशिएटिव की ओर से 'ए डिकेट ऑफ पॉक्सो' शीर्षक से नवंबर 2022 में सार्वजनिक किए गए विश्लेषण से सामने आईं है।

विश्लेषण में 2012 से लेकर 2021 तक 28 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 486 जिलों में स्थित ई-कोर्ट के 2,30,730 मामलों का अध्ययन किया गया। इस कानून को और विस्तार से समझने के लिए इसके तहत दर्ज 138 मामलों का विस्तार से अध्ययन किया गया, तो पाया गया कि 22.9 प्रतिशत मामलों में आरोपी और पीड़ित एक-दूसरे को जानते थे।

3.7% मामलों में पीड़ित और आरोपी परिवार के सदस्य मिले। वहीं 18 फीसदी मामलों में पीड़ित और आरोपी के बीच फिजिकल रिलेशनशिप बनाने से पहले प्रेम-संबंध होने की बात सामने आई, जबकि 44% मामलों में आरोपी और पीड़ित दोनों एक-दूसरे से पूरी तरह से अपरिचित थे।

96% मामलों में पीड़ित का परिचित था आरोपी

2021 में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की ओर से जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज 96 फीसदी मामलों में आरोपी पीड़ित का परिचित व्यक्ति था। विधि पहल ने जिन 138 मामलों का गहराई से अध्ययन किया था उनसे पता चला कि 5.47 फीसदी पीड़ित 10 साल से कम उम्र की बच्चियां थीं। 17.8 फीसदी मामलों में पीड़ित बच्चियों की उम्र 10-15 साल के बीच थी और 28 फीसदी मामलों में 15-18 के बीच थी, जबकि 48 फीसदी मामलों में पीड़ित लड़कियों की उम्र का पता नहीं चल सका।

6.8% मामलों में आरोपी 45 साल से बड़ा

वहीं रिसर्च में 11.6 फीसदी मामलों में आरोपियों की उम्र 19-25 साल के बीच थी। 10.9 प्रतिशत मामलों में आरोपी 25-35 साल के बीच था, जबकि 6.1 फीसदी मामलों में आरोपी की उम्र 35-45 के बीच थी और 6.8 फीसदी मामलों में आरोपी की उम्र 45 साल से ज्यादा थी। 44 फीसदी मामलों में आरोपियों की उम्र की पहचान नहीं हो सकी। इस विश्लेषण से कुल मिलाकर ये पता चला कि पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज 56 फीसदी मामले पेनीट्रेटिव अपराधों से संबंधित हैं। 31.18 प्रतिशत मामले यौन हमला के रूप में पाए गए, जबकि 25.59 फीसदी मामले गंभीर पेनीट्रेटिव अपराधों से संबंधित हैं।

साभार : सबरंग 

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