NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu
image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
अमेरिका
एशिया के बाकी
अफ़ग़ानियों को धमकाना अमेरिका को महंगा पड़ सकता है
वाशिंगटन को अफ़ग़ान राजनीति की हर छोटी-बड़ी मुश्किलों में अटकलें लगाने से बाज़ आना चाहिए। सर्वसम्मति से समस्याओं का हल निकालने का ज़िम्मा उसे अफ़ग़ानी अभिजात्य वर्ग पर ही छोड़ देना चाहिए।
एम.के. भद्रकुमार
07 Apr 2020
अफ़गान
इस बीच अफ़ग़ान राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी ने April 4, 2020 को काबुल में अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदी मोहम्मद हनीफ़ अतमार को कार्यवाहक विदेश मंत्री नियुक्त किया है।

अमेरिकी विदेश विभाग में दक्षिण और मध्य एशियाई मामलों का ब्यूरो देख रहे प्रधान उप सहायक सचिव, एलिस वेल्स ने आज सुबह-सुबह अफ़ग़ान सरकार और देश के राजनैतिक अभिजात्य तबके पर मानो बम फोड़ दिया है। यहाँ तक कि इस तथ्य से अंतर्राष्ट्रीय दानदाता तक सकते की हालत में हैं, जिसमें इस देश में दी जाने वाली सभी सहायता राशि के प्रश्न को काबुल में एक समावेशी सरकार के गठन से लिंक कर दिया गया है।

वेल्स ने अपने टि्वटर पेज पर धमकी भरे लहजे में लिखा है: “यह अंतरराष्ट्रीय दानदाताओं के लिए #अफ़ग़ानिस्तान में जैसा अब तक चल रहा था, वैसा ही नहीं बना रहने वाला है। अंतर्राष्ट्रीय सहायता चाहिए तो उसके लिए एक समावेशी सरकार के साथ साझेदारी निर्मित करना आवश्यक होगा, और हम सभी को चाहिए कि इसके लिए अफ़ग़ान नेताओं को जवाबदेह बनाएं ताकि वे एक शासकीय व्यवस्था सुनिश्चित करें।"

प्राथमिक तौर पर इसे वाशिंगटन की ओर से अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के नाम एक आह्वान के रूप में, जिसे विदेश मंत्री माइकल पोम्पेओ की 23 मार्च की घोषणा की रौशनी में देखा जा सकता है। अपनी इस घोषणा में पोम्पेओ ने  अफ़ग़ानिस्तान के लिए सहायता राशि में 1 बिलियन डॉलर की कटौती करने की घोषणा की थी, और इसके अगले साल इसमें और एक बिलियन डॉलर की कटौती की बात कही थी। इसके साथ ही इस देश में अभी तक जारी सभी अमेरिकी सहायता कार्यक्रमों में अतिरिक्त कटौती की शिनाख्त के लिए समीक्षा की पहल करने और अमेरिका के अफ़ग़ानिस्तान के लिए भविष्य में दानदाताओं के सम्मेल करने को लेकर की गई प्रतिज्ञाओं पर सम्पूर्णता में पुनर्विचार करना शामिल है।

23 मार्च को जारी किये गए इस दंडात्मक कदम के पश्चात उसी दिन पोम्पेओ ने अफ़ग़ान राष्ट्रपति अशरफ ग़नी और पूर्व मुख्य कार्यकारी अब्दुल्ला अब्दुल्ला को एक समावेशी सरकार पर राजी कराने के लिए काबुल में एक असफल अभियान चलाया। पोम्पेओ की इस अपील का कोई असर नहीं हुआ। अब ऐसा लग रहा है कि वाशिंगटन द्वारा द्विपक्षीय सहायता में कटौती की धमकी को भी काफी हद तक अफ़ग़ानी अभिजात्य वर्ग ने अनसुना कर दिया है।

वाशिंगटन काबुल पर खास दिशा में दबाव बढ़ाता जा रहा है साथ ही साथ यह इस बात से भी आगाह कर रहा है कि वह अन्तर्रष्ट्रीय समुदाय को अमेरिका के साथ हाथ मिलाने पर मजबूर कर सकता है ताकि वे अफ़ग़ानिस्तान को दी जाने वाली सभी सहायता को सशर्त बनाकर अफ़ग़ानी राजनैतिक प्रभु वर्ग को सहयोगात्मक रुख अख्तियार करने पर मजबूर कर दें।

क्या इस प्रकार की बढ़-चढ़कर की गई अमेरिकी धमकियों से बात बन सकती है? इस बात की प्रबल संभावना है कि इससे अफ़ग़ानी अभिजात वर्ग शायद ही झुके। अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सन्दर्भ में शायद वाशिंगटन किस्मत का धनी साबित हो। क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान के लिए अंतरराष्ट्रीय सहायता के पीछे अमेरिका शुरू से ही एक चालक शक्ति रहा है।

सन 2002 से 2015 के बीच अमेरिका और अन्य अंतर्राष्ट्रीय दानदाताओं ने इस देश में लगभग 130 बिलियन डॉलर का निवेश किया है, लेकिन इसमें से अधिकांश धन अमेरिका (लगभग $ 115 बिलियन) से ही हासिल हो सका। हालाँकि इसके आधे से अधिक की धनराशि सुरक्षा कारणों पर खर्च कर दी गई। अक्टूबर 2016 में हुई ब्रसेल्स बैठक में, अंतर्राष्ट्रीय दाताओं ने 2020 तक के लिए 15.2 बिलियन डॉलर के अतिरिक्त मदद की वचनबद्धता दुहराई थी।

ब्रसेल्स में ली गई इस अप्रत्याशित रूप से बढ़-चढ़कर ली गई इस कसम के पीछे यह भावना काम कर थी कि तालिबान ने यदि एक बार फिर से अपनी खोई हुई जमीन हासिल कर ली तो अफ़ग़ानिस्तान पहले से कहीं अधिक गरीबी और निराशा की गर्त में तो डूबेगा ही बल्कि इस क्षेत्र और शेष विश्व तक को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। इसी के साथ घनी के रूप में अफ़ग़ानिस्तान के भविष्य को लेकर बड़े दानदाताओं के बीच एक विश्वास पैदा हुआ था कि बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और राजनीतिक लड़ाई-झगड़ों और जारी खूनी संघर्ष, जो भारी संख्या में अफ़ग़ानियों को हताहत कर रहा था, में कमी आयेगी।

महत्वपूर्ण यह है कि अमेरिका ने घनी को समर्थन देने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रखी थी। लेकिन पिछले 4 वर्षों के दरम्यान अफ़ग़ानिस्तान के आसपास की स्थिति में अभूतपूर्व बदलाव देखने को मिला है। सारी जमापूँजी फूँकने के बावजूद सुरक्षा के हालात बद से बदतर ही हुये हैं और तालिबान एक बार फिर से अपने उभार पर है। इतना धन दौलत झोंकने के बावजूद अफ़ग़ानिस्तान  एक खाली टोकरी वाला मामला साबित हुआ है। धरती के सबसे गरीब देशों में से एक, जिसका 80% बजट बाहरी मदद से चलता है। आख़िरकार विश्व समुदाय ने मान लिया है कि तालिबान के साथ सुलह के लिए हाथ बढाने और वार्ता और सत्ता-साझा किये बगैर कोई उपाय नहीं है।

जाहिर है शुरू-शुरू में जो आशावाद दिख रहा था,  भले ही कुछ हद तक ओढ़ा हुआ हो, उसकी जगह आज दानदाता थके नजर आ रहे हैं और सवाल पूछे जा रहे हैं कि आखिरकार इन पैसों का हो क्या रहा है। किसी भी दानदाता को इस बात पर यकीन नहीं रहा कि आने वाले समय में अफ़ग़ानिस्तान कभी आपने पाँव पर भी खड़ा हो सकता है।

ऐसे निराशाजनक माहौल में वेल्स का ट्वीट थके-हारे दानियों के दिलोदिमाग में प्रवेश पा रहा है और पश्चिमी दानदाताओं को वाशिंगटन की इस सोच को स्वीकारने में कोई परहेज नहीं होने जा रहा कि अपनी जेब हल्की करने से पहले उन्हें “अफ़ग़ान नेतृत्व को शासकीय व्यवस्था पर सहमत होने के लिए जवाबदेह ठहराना चाहिए।“

हालाँकि ऐसा न हो कि कहीं इसे भुला दिया जाये कि पश्चिमी दानदाताओं के क्लब से परे भी एक अलग कहानी शुरू हो सकती है, क्योंकि यहाँ बात चीन, रूस, ईरान या भारत जैसे क्षेत्रीय शक्तियों की है। यहाँ जाकर मामले में एक नया मोड देखने को मिल सकता है।

हकीकत तो ये है कि ऐसा कोई क्षेत्रीय राज्य नहीं जो अमेरिका और अन्य पश्चिमी दानदाताओं की बराबरी करने को आतुर हो। लेकिन असल बात यह है कि क्षेत्रीय राज्यों में अफ़ग़ान स्थिति को लेकर तात्कालिकता का भाव उत्पन्न हो सकता है और इसके प्रति वे अपना मुहँ मोड कर नहीं बैठ सकते। चाहे-अनचाहे वे घनी सरकार के मसले से सम्बद्ध रहने वाले हैं। (असल में घनी  भी इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हैं।)

लेकिन खतरा यहाँ पर ये है कि जैसे-जैसे क्षेत्रीय ताकतें अपने संसाधनों को यहाँ पर झोंकते जायेंगे वैसे-वैसे वे यहाँ के मसलों से अधिकाधिक जुड़ते चले जायेंगे। इनके बीच की प्रतिस्पर्धा और दुश्मनी सारे अफ़ग़ानिस्तान में फैल सकती है और देश गंभीर प्रतियोगिता का अखाड़ा बन सकता है जहां इस अशांति के माहौल में, जहाँ जंगलीपन और क्रूरता का बोलबाला है, कहीं एक नया ही संघर्ष न छिड जाये।

क्या अमेरिकी नेतृत्व में अफ़ग़ानिस्तान में 19 साल से जारी युद्ध की यही अंतिम परिणिति होनी बदी है? वाशिंगटन के नैराश्य और हताशापूर्ण व्यवहार की बात समझ में आती है। ज़ल्माय खलीलज़ाद के वश में जितना हो सकता था वे कर चुके। ना ही ट्रम्प और न ही पोम्पेओ के पास अफ़ग़ान कुलीन वर्ग से कोई व्यक्तिगत रिश्ता (जो जॉन केरी ने 2014 में इसी तरह की परिस्थितियों में साध रखा था) ही बन पाया है। इसके अलावा अफ़ग़ान अभिजात्य वर्ग भी पहले से ही "अमेरिकी सदी के बाद" की ओर देखने में लगा है।

ऐसी परिस्थिति में वाशिंगटन को अफ़ग़ान राजनीति की छोटी-मोटी पेचीदिगियों में दख़लअंदाज़ीसे बचना चाहिए। यदि अमेरिका थोड़ा दूर हट सुस्ता ले तो यह कारगर हो सकता है। सर्वसम्मति से काम करने वाली बात वह अफ़ग़ान कुलीनों पर छोड़ दे। वे सर्वसम्मति निर्मित करने की अपनी समय-सीमा की मर्यादित परंपराओं को अपनाने में सक्षम हैं।

अब समस्या इस बिंदु पर टिकी है कि अमेरिका इस शांति प्रक्रिया को एक पूर्व निर्धारित गंतव्य तक हाँकने को लेकर अड़ा हुआ है जबकि इस वार्ता में अन्तर-अफ़ग़ान वार्ता तो एक आवरण मात्र है। जबकि अफ़ग़ानी इस दृष्टिकोण को भाव नहीं देने जा रहे, क्योंकि इसमें उनके लिए रखा क्या है?

ब्रुकिंग्स संस्थान जो अमेरिकी सुरक्षा प्रतिष्ठान और खुफिया विभाग से सम्बद्ध है, ने पिछले सप्ताह एक "सर्वसम्मति वाला फॉर्मूला" तैयार किया था, जिसके रचयिता कोई और नहीं बल्कि इस थिंक टैंक के अध्यक्ष जॉन एलन हैं। इनका तो यहाँ तक कहना है कि अन्तर-अफ़ग़ान वार्ता के लिए सरकार की ओर से काबुल की टीम में अब्दुल्लाह को नेतृत्व के लिए स्वीकार किया जा सकता है, भले ही वह "मुख्य वार्ताकार के रूप में ग़नी का प्रतिनिधि न हों ... (लेकिन) – एक मुख्य वार्ताकार के रूप में होने के साथ-साथ तालिबान के साथ किसी भी सौदेबाजी में वे मुख्य निर्णयकर्ता की भी भूमिका निभा सकते हैं।"

घनी ऐसे अमेरिकी हितों को साधने वाले आईडिया से कभी सहमत नहीं होने जा रहे। पिछले सप्ताह उनके मंत्रिमंडल में हुई नियुक्तियां (जो कि ऐलिस वेल्स के धमकी भरे ट्वीट की तात्कालिक उकसावे की वजह हो सकती हैं) इस बात को रेख्नाकित करती हैं कि पहली बार जाकर उनके मंत्रिमंडल में विभिन्न राजनीतिक दायरे से नियुक्तियाँ की गई हैं जो कि इसे "समावेशी" चरित्र प्रदान करता है। हालांकि उस तरीके से नहीं जैसा कि वाशिंगटन ने चाहा होगा।

मिसाल के तौर पर हनीफ अटमार की विदेश मंत्री के रूप में नियुक्ति इस बात को साबित करती है कि ग़नी के पास वाकई में तालिबान के साथ वास्तव में एक प्रतिनिधि टीम के तौर पर वार्ता की मेज पर बैठने का गेम प्लान मौजूद है। अमेरिका को इस सारे खेल को बिगाड़ने वाली अपनी भूमिका के बजाय गंभीरतापूर्वक समकालीन अफ़ग़ान राजनीति में चल रहे बदलाव को एक मौका देना चाहिए। खलीलजाद को फ़िलहाल "आराम करने देना चाहिए"। अब तक तो वे बुरी तरह पस्त हो चुके होंगे।

Afghan Peace Talks
US-Afghan Talks
US
Mohammad Haneef Atmar
Ashraf Ghani
US State Department

Trending

1946 कैबिनेट मिशन क्यों हुआ नाकाम और और हुआ बँटवारा
बात बोलेगी: बंगाल के सामाजिक-राजनीतिक ताने-बाने को गहरे तक प्रभावित करेगा ये चुनाव
सुप्रीम कोर्ट का रोहिंग्या मुसलमानों को वापस भेजने का फ़ैसला कितना मानवीय?
मप्र के कई शहरों में लॉकडाउन बढ़ाया गया, हरियाणा की बसों पर उत्तराखंड में रोक
उन्नाव बलात्कार के दोषी कुलदीप सेंगर की पत्नी को टिकट मिलने का विरोध जायज़ क्यों है?
कूच बिहार में सीआईएसएफ के दस्ते पर कथित हमले और बच्चे के चोटिल होने से शुरू हुई हिंसाः सूत्र

Related Stories

तुर्की से लगे सीरिया के उत्तरी इदलिब प्रांत के एक शिविर में अल-कायदा समूह के एक ग्रेजुएशन समारोह में हयात तहरीर अल-शम के लड़ाकू (फाइल फोटो)
एम. के. भद्रकुमार
अमेरिका, तुर्की, आईएसआईएस, अल-क़ायदा और तालिबान मिलकर बनाते हैं एक 'खुशहाल परिवार'!
11 April 2021
अमेरिका ने आज से ठीक एक दशक पहले तुर्की से आह्वान किया था कि वह सीरिया में सत्ता परिवर्तन के लिए सहायता मांगी थी। अब उसने वृहद मध्य पूर्व के एक अन्
फ़िलिस्तीनियों ने यूएनआरडब्ल्यूए को मिलने वाली सहायता बहाल करने के अमेरिकी फैसले का स्वागत किया
पीपल्स डिस्पैच
फ़िलिस्तीनियों ने यूएनआरडब्ल्यूए को मिलने वाली सहायता बहाल करने के अमेरिकी फैसले का स्वागत किया
08 April 2021
पैलेस्टिनियन अथॉरिटी ने बुधवार 7 अप्रैल को यूनाइटेड नेशन रिलीफ एंड वर्क एजेंसी (यूएनआरडब्ल्यूए) को मानवीय सहायता बहाल करने की अमेरिकी सरकार की घोषण
एम.के. भद्रकुमार
जॉर्डन में तख़्तापलट की कोशिशों ने छोड़े सबूत
07 April 2021
सत्तापलट की कोशिश जब तक कामयाब नहीं होती, तब तक अनाथ होती हैं। तो हम कह सकते हैं कि जॉर्डन में सत्ता पलट की प्र

Pagination

  • Next page ››

बाकी खबरें

  • 1946 कैबिनेट मिशन क्यों हुआ नाकाम और और हुआ बँटवारा
    न्यूज़क्लिक टीम
    1946 कैबिनेट मिशन क्यों हुआ नाकाम और और हुआ बँटवारा
    11 Apr 2021
    75 साल पहले 1946 में, भारत की आज़ादी से कुछ समय पहले, ब्रिटिश सरकार ने 2 महत्वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा करने के लिए एक delegation भेजा था. ये बिंदु थे :अंतरिम सरकार का गठन और सविंधान की प्रक्रियाओं को…
  • बात बोलेगी: बंगाल के सामाजिक-राजनीतिक ताने-बाने को गहरे तक प्रभावित करेगा ये चुनाव
    भाषा सिंह
    बात बोलेगी: बंगाल के सामाजिक-राजनीतिक ताने-बाने को गहरे तक प्रभावित करेगा ये चुनाव
    11 Apr 2021
    वैसा एकतरफ़ा माहौल नहीं है, जैसा ‘बेचारा मुख्यधारा’ के मीडिया या टीएमसी के चुनाव मैनेजर प्रशांत किशोर के साथ दिग्गज पत्रकारों के लीक वीडियो चैट से पता चलता है!  
  • शबीह चित्र, चित्रकार: उमानाथ झा, साभार: रक्षित झा
    डॉ. मंजु प्रसाद
    कला गुरु उमानाथ झा : परंपरागत चित्र शैली के प्रणेता और आचार्य विज्ञ
    11 Apr 2021
    कला मूल्यों की भी बात होगी तो जीवन मूल्यों की भी बात होगी। जीवन परिवर्तनशील है तो कला को भी कोई बांध नहीं सकता, वो प्रवाहमान है। बात ये की यह धारा उच्छृंखल न हो तो किसी भी धार्मिक कट्टरपन का भी शिकार…
  • Mohammad Alvi
    न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : मुहम्मद अल्वी के जन्मदिन पर विशेष
    11 Apr 2021
    आसान लबो-लहजे के उम्दा शायर मुहम्मद अल्वी का आज जन्मदिन है। मुहम्मद अल्वी आज ज़िंदा होते तो उनकी उम्र 93 साल होती। उनका इंतेक़ाल 2018 में 29 जनवरी को हुआ। पढ़िये उनकी दो नज़्में...
  • देशभक्ति का नायाब दस्तूर: किकबैक या कमीशन!
    डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    देशभक्ति का नायाब दस्तूर: किकबैक या कमीशन!
    11 Apr 2021
    तिरछी नज़र: इतने कम किकबैक का सुन कर मन बहुत ही खट्टा था। कुछ सकून तब मिला जब पता चला कि यह खुलासा तो अभी एक ही है। इसके बाद अभी किकबैक के और भी खुलासे आने बाकी हैं।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें