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चीन के ख़िलाफ़ अमेरिका के व्यापारिक युद्ध ने 'कोरोनावायरल' मोड़ लिया

कोरोना महामारी का इस्तेमाल कर अमेरिका चीन-विरोधी फेक न्यूज़ कैंपेन चला रहा है। यह कैंपेन अमेरिका द्वारा चीन के ख़िलाफ़ छेड़े गए बड़े फलक के युद्ध का हिस्सा है। इससे अमेरिका समेत दुनियाभर में नस्लभेद और विदेशियों से घृणा करने वाली प्रवृत्तियां (ज़ीनोफोबिया) झलकती हैं।
US Trade War against China

कोरोना महामारी के बीच ट्रंप प्रशासन ने चीन के खिलाफ व्यापार युद्ध तेज कर दिया है। अब जब अमेरिका में दस लाख से भी ज़्यादा लोग कोरोना की चपेट में हैं, जिनमें 60 हजार की मौत हो चुकी है, तो ट्रंप का फरवरी में वायरस को छोटा-मोटा फ्लू बताने का दावा गायब़ हो गया है।

ट्रंप ने तब कहा था कि यह हल्का-फुल्का फ्लू है, जो कुछ दिन में खत्म हो जाएगा। इसकी जगह अब ट्रंप, चीन को वायरस के लिए दोषी ठहरा रहे हैं, यहां तक कि चीन को कीमत चुकाने की धमकी दे रहे हैं। अमेरिका वायरस से निपटने में पूरी तरह अक्षम रहा है। इसलिए ट्रंप इस अक्षमता की ज़िम्मेदारी किसी दूसरे पर डालने की कोशिश कर रहे हैं।

लेकिन इतना ही काफ़ी नहीं है। चीन के खिलाफ़ कैंपेन अमेरिका की उस बड़ी लड़ाई में भी उपयोगी है, जो उसने चीन के विरोध में बड़े फलक पर छेड़ रखी है। महाशक्ति के तौर पर अमेरिका के एकाधिकार को चीन अपनी मजबूत उत्पादकता से आर्थिक स्तर पर चुनौती दे रहा है। रणनीतिक स्तर पर यह चुनौती रूस की ओर से है, जो एक बार फिर वैश्विक खिलाड़ी बनकर उभरा है। अमेरिका की घरेलू राजनीति और इसके राष्ट्रपति चुनावों के मैदान में अब रूस की जगह चीन को नया दुश्मन बनाया जा रहा है।

जैसा हमेशा होता आया है, अमेरिका में मुख्यधारा का मीडिया भी प्रोपगेंडा फैलाकर अपनी वफ़ादारी साबित कर रहा है। मीडिया ने यह वफ़ादारी ईराक युद्ध में 'वीपन्स ऑफ मॉस डिस्ट्रक्शन', सीरिया में 'रासायनिक हथियारों' और 2016 के राष्ट्रपति चुनावों में रूस की हैकिंग की आड़ में भी निभाई थी।

अमेरिकी मीडिया में जो बातें चल रही हैं, उनका आधार सुविधा के आधार पर अमेरिकी इंटेलीजेंस एजेंसियों द्वारा किया जा रहा 'लीक' है। इन लीक में महामारी को चीन द्वारा अंजाम देने और इसे छुपाने जैसी बातें कही जा रही हैं। ट्रंप की वायरस से संबंधित यह धारणा विदेशी लोगों से घृणा (ज़ीनोफोबिया) और नस्लभेदी है।

अब हम अब तक मौजूद तथ्यों पर नज़र डालते हैं। यह प्राइमटाइम टीवी पर ट्रंप की भाषणबाजी, 'प्लांटेड स्टोरी (जानबूझकर बनवाई खबरें)' या सोशल मीडिया से इतर दुनियाभर में हो रहे वैज्ञानिक अध्ययनों पर आधारित हैं। वुहान में किस तरह से महामारी फैली और हम अब तक इसके बारे में क्या जानते हैं, इससे संबंधित बातें नीचे पेश की गई हैं।

'नेक्सट स्ट्रेन कंम्यूप्यूटेशनल बॉयोलॉजी' की टीम ने दिसंबर 2019 से अप्रैल 2020 के बीच 4,115 जीनोम सैंपल इकट्ठा किए। इनसे पता चलता है कि वायरस के पूर्वज वायरसों में 2019, दिसंबर के बीच में म्यूटेशन हुआ था।

'हुबेई प्रोविंसियल हॉस्पिटल ऑफ इंटीग्रेटेड चाइनीज़ एंड वेस्टर्न मेडिसिन' में 'क्रिटिकल केयर मेडिसिन डिपार्टमेंट' के डॉयरेक्टर झांग जिक्सियान ने 27 दिसंबर को पहली बार एक ही परिवार के तीन सदस्यों में SARS-CoV-2 के लक्षण खोजे थे। जैसे ही जांच में फ्लू वायरस के बजाए वायरल इंफेक्शन की बात सामने आई, लोग सतर्क हो गए।

मतलब साफ था कि एक नया वायरस सामने आया है, इसकी सूचना तुरंत वुहान और हुबेई राज्य के प्रशासन को दे दी गई।

30 दिसंबर को वुहान म्यूनिसिपल हेल्थ कमीशन ने अपने क्षेत्राधिकार में मौजूद स्वास्थ्य संस्थानों को आपात नोटिफिकेशन भेजकर शहर में एक 'गुमनाम स्त्रोत वाले न्यूमोनिया' के फैलने की बात बताई।

नेशनल हेल्थ कमीशन (NHC) ने 31 दिसंबर की अल-सुबह विशेषज्ञों की एक टीम को वुहान में महामारी पर प्रतिक्रिया देने और जांच करने के लिए भेजा।

उसी दिन वुहान म्यूनिसिपल हेल्थ कमीशन ने इस कथित न्यूमोनिया पर अपनी पहली ब्रीफिंग जारी की। वेबसाइट पर डाली गई इस ब्रीफिंग में 27 लोगों के पॉजिटिव होने की पुष्टि की गई। ब्रीफिंग में लोगों से सार्वजनिक जगहों पर न जाने, ज़्यादा संख्या में इकट्ठा न होने और बाहर जाने के वक़्त मास्क पहनने को कहा गया।

31 दिसंबर को चीन के प्रशासन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को एक नए कोरोना वायरस के संक्रमण की जानकारी दे दी थी।

एक जनवरी को चीन में वुहान सीफूड मार्केट को बंद कर दिया गया। वहां बड़ी संख्या में संक्रमण के मामले सामने आए थे। बाद में पता चला कि कई मामले बाज़ार से बाहर के थे, जैसा लांसेट में छपा, इसका मतलब यह हुआ कि वुहान सीफूड मार्केट वायरस का उद्गम स्थल नहीं था, बल्कि यहां से इस वायरस को बढ़ावा मिला।

नए साल के दिन, अमेरिका में इस तरह की महामारियों से निपटने वाली सर्वोच्च संस्था 'सेंटर ऑफ डिसीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन' के डॉयरेक्टर डॉक्टर रॉबर्ट रेडफील्ड को इस वायरस की भयावहता के बारे में उनके चीनी समकक्ष द्वारा जानकारी दी गई थी। चीन के सेंटर फॉर डिसीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के डॉयरेक्टर डॉक्टर जॉर्ज एफ गाओ, डॉ रेडफील्ड से बात करते हुए फूट-फूटकर रोने लगे थे।

सात जनवरी तक चीन नोवेल कोरोनावायरस (SARS-CoV-2) की पहचान कर चुका था। 10 जनवरी को चीनी प्रशासन ने वायरस के जेनेटिक सीक्वेंस की जानकारी सार्वजनिक कर 11-12 जनवरी को उसे वॉयरोलॉजी एंड जीनबैंक पब्लिक डेटाबेस पर डाल दी थी।

COVID-19 से पहली मौत 11 दिसंबर को हुई थी। 10 जनवरी को वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वॉयरोलॉजी ने वायरस की जांच के लिए पहली टेस्ट किट निकाली।

कुछ दिन बाद 17 जनवरी को 'चैरिट यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिसिन बर्लिन के सेंटर फॉर इंफेक्शन रिसर्च (DZIF)' ने जेनेटिक डेटा की मदद से वायरस की जांच के लिए टेस्ट किट बनाई, जिसे WHO ने मान्यता देकर सभी देशों को उपलब्ध करवाया।

23 जनवरी को जब जांच में सिर्फ 400 केस ही आए थे, तब 11 लाख की आबादी वाले वुहान को पूरी तरह लॉकडॉउन कर दिया गया। साफ है कि चीन दुनिया को वायरस के उच्च स्तर के संक्रमण और खतरे की चेतावनी दे रहा था।

अगले दिन हुबेई राज्य के 15 दूसरे शहरों को भी बंद कर दिया गया। 30 जनवरी को WHO ने वैश्विक स्वास्थ्य आपात की घोषणा कर दी। यह WHO द्वारा किसी मुद्दे पर घोषित किया जाने वाला सर्वोच्च स्तर का अलर्ट है।

अमेरिका के जाने-माने प्रकाशन रोलिंग स्टोन्स से बात करते हुए डॉक्टर एंडरसन ने कहा, 'वैज्ञानिक शब्दों में कहें तो यह बिजली की तेजी है।' डॉक्टर एंडरसन कैलिफोर्निया स्थित स्क्रिप्स रिसर्च ट्रांजेक्शनल इंस्टीट्यूट में 'इंफेक्शियस डिसीज़ जेनोमिक्स' के डॉयरेक्ट हैं। वे SARS-CoV-2 की उत्पत्ति की प्रवृत्ति पर पर लिखे एक बेहद प्रभावी पेपर के लेखक भी हैं।

उन्होंने आगे कहा, 'यह कठिन काम है। हमें यह याद रखना चाहिए कि जो भी कुछ हो रहा है, वो फ्लू के मौसम में हो रहा है, इसलिए कई लोगों में ऐसे लक्षण होंगे, जो COVID-19 की तरह दिखेंगे। लेकिन इसी फ्लू के चलते इतनी तेजी से अभूतपूर्व तरीके से एक नए कोरोना वायरस की पहचान हो पाई। ब्राजील में जीका वायरस डेढ़ साल तक जारी रहा था, तब जाकर इसके महामारी होने की बात महसूस हुई थी। वहीं इबोला को खोजने में तीन महीने लगे थे। जबकि कोरोना वायरस के उलट, इन दोनों के पैथोजन की जानकारी हमारे पास पहले से उपलब्ध थी।'

पश्चिमी मीडिया ने डॉक्टर ली वेनलियांग पर काफ़ी शोर-शराबा किया है। वेनलियांग एक युवा ओफथाल्मोलॉजिस्ट थे। उन्हें तीन जनवरी को वुहान पुलिस प्रशासन ने हिरासत में लिया था, बाद में उनकी कोरोना से लड़ते हुए मौत हो गई थी। वो सीधे तौर पर बीमारी से जुड़े नहीं थे।

पश्चिमी मीडिया कह रहा है कि उनकी रिपोर्ट को दबाया गया, जबकि ऐसा कुछ नहीं हुआ।
डॉक्टर ली ने अपने अस्पताल में संक्रमण की कुछ जानकारी सोशल मीडिया पर साझा की थी, इसके बाद वुहान पुलिस प्रशासन ने उन्हें सोशल मीडिया पर अफवाहें फैलाने के आरोप में फटकार लगाई थी। यह महामारी के शुरुआती दौर में नौकरशाही की सोशल मीडिया पर अफवाहों के ऊपर लगाम लगाने के लिए की गई तुरत-फुरत की कार्रवाई थी।

बाद में चीनी अधिकारियों ने माना था कि यह गलती थी और डॉक्टर ली की उनके काम और महामारी से लड़ने में दिखाए गए साहस के लिए तारीफ भी की। लेकिन नौकरशाही द्वारा डॉक्टर ली को फटकार लगाने की घटना तीन जनवरी को हुई थी, तब तक चीन WHO और USCDC को महामारी की जानकारी दे चुका था। इसका चीन या दुनिया में कहीं और बीमारी से कोई लेना-देना नहीं था।

क्या दूसरे देशों की नौकरशाहियों ने महामारी के दौर में बेहतर प्रदर्शन किया है? देखिए अमेरिका में CDC और ट्रंप प्रशासन ने किस तरह टेस्टिंग में कोताही बरती, भारत में तो हमें यह भी नहीं पता कि हम किस आधार पर अपनी नीतियां बना रहे हैं। ब्रिटेन में वक़्त-वक़्त पर कई मॉडल की चर्चा चलती रही। भारत में भी ऐसा ही हुआ। लेकिन सरकारें कोरोना महामारी से लड़ने के लिए जिस मॉडल का इस्तेमाल कर रही हैं, वह रहस्यमयी है। भारत में सरकार ने घोषणा की है कि केवल स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय या इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) द्वारा दी गई जानकारी ही मीडिया में प्रकाशित की जा सकती है!

लेकिन क्या इससे दुनियाभर में साझा की गई जानकारी पर प्रभाव पड़ा? चीन ने तो महामारी पर अपनी सभी जानकारी और वायरस का जीनोम सीक्वेंस दुनिया के साथ साझा किया। यह भी बताया कि संक्रमण के बारे में इंसान से इंसान के फैलाव से परे भी चीन सोच रहा है, कैसे इसके रोकने के लिए एक करोड़ दस लाख की आबादी और दूसरे 15 शहरों का टोटल लॉकडॉउन किया गया। वह भी तब जब वुहान में सिर्फ़ 400 केस थे! काम की आवाज शब्दों से तेज होती है, अगर वैश्विक नेता उस पर ध्यान नहीं दे रहे थे, तो चीन को ज़िम्मेदार ठहराने के बजाए, उन्हें ही अपने लोगों के सामने इसकी सफाई देनी होगी।

महामारी से दुनिया की दरारें और कमजोरियां सामने आ रही हैं। अमेरिका ने खुलेआम ईरान और वेनेजुएला की संपत्ति पर डाका डाला, इसका एक बड़ा हिस्सा अमेरिका के बैंकिंग सिस्टम या अमेरिका के कब्ज़े में है। क्या वो चीन के साथ ऐसा कर सकते हैं? चीन की अमेरिका पर 1.09 ट्रिलियन डॉलर की उधारी है, क्या अमेरिका इसे देने से इंकार कर सकता है? या फिर ऐसा कोई भी धोखा डॉलर को कमजोर कर देगा, क्योंकि इससे दूसरे देशों के सामने डॉलर को अघोषित अंतरराष्ट्रीय रिजर्व करंसी बनाने के खतरे महसूस हो जाएंगे?

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

US Trade War against China Takes a Coronaviral Turn

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