ख़बरों के आगे पीछे: यूक्रेन में फँसे छात्रों से लेकर, तमिलनाडु में हुए विपक्ष के जमावड़े तक..
यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों के प्रति भारत की मोदी सरकार, सत्तारूढ़ पार्टी और बाजारू मीडिया ने जैसी संवेदनहीनता दिखाई है, उसकी मिसाल मिलना मुश्किल है। सरकार की नाकामी छुपाने की कोशिश में कुछ मंत्री तो अमानवीयता की हदें भी लांघ गए। यूक्रेन में भारत के 20 से 22 हजार छात्र और अन्य नागरिक फंसे थे। अभी तक छह से आठ हजार लोग निकाले जा सके हैं और इस बीच दो छात्रों की वहां मौत भी हो गई है। सरकार इस मामले में पूरी तरह से विफल रही है। यूक्रेन में फंसे छात्रों ने वीडिया जारी करके सरकार की विफलता की पोल खोली है। भारत सरकार चाहती थी कि टुकड़ों-टुकड़ों में जो थोड़े से छात्र निकाले गए हैं उसके लिए सरकार की जयकार हो और जो फंसे हुए हैं उनकी बात नहीं की जाए। लेकिन तकनीक के मौजूदा समय में यह संभव नहीं था। सो, सरकार की पोल खुल गई। इससे सरकार और सत्तापक्ष के लोग इतने नाराज हुए कि उन्होंने छात्रों पर ही दोष मढ़ना शुरू कर दिया। केंद्र सरकार में कई विभाग संभाल रहे एक बड़े मंत्री प्रहलाद जोशी ने मेडिकल पढ़ने के लिए यूक्रेन गए छात्रों के लिए हिकारत के भाव से कहा कि इनमें से 90 फीसदी छात्र भारत में मेडिकल दाखिले के लिए होने वाली परीक्षा में फेल हो जाते हैं। सोचें, कितना असंवेदनशील बयान है। मंत्री को इतनी समझ नहीं है कि एडमिशन के लिए क्वालिफाई नहीं करने का मतलब फेल होना नहीं होता है। भारत में मेडिकल की सीटें चंद हजार हैं और दाखिला चाहने वालों की संख्या लाखों में है। इसलिए कई बार 80-90 फीसदी अंक लाकर भी बच्चे दाखिला नहीं ले पाते हैं। इसका यह मतलब नहीं है कि वे बच्चे फेल हो गए। यह सरकार की विफलता है कि वह इतने काबिल बच्चों को पढ़ाने के लिए जरूरी मेडिकल कॉलेज नहीं बना पाई है। सरकार यूक्रेन में फंसे छात्रों को समय रहते निकाल लाने में विफल रही तो उनके खिलाफ सोशल मीडिया में प्रचार शुरू करा दिया है। उनसे तरह तरह के सवाल पूछे जा रहे हैं। पढ़ने के लिए यूक्रेन क्यों गए? लाखों रुपए की फीस दी है तो कुछ हजार रुपए किराया देकर खुद नहीं आ सकते? सरकार से पूछ कर पढ़ने गए थे? जो छात्र मारा गया उसके लिए भी कहा जा रहा है कि उसने सरकार के गाइडलाइन का पालन नहीं किया। सोचें, क्या वह सरकार की गाइडलाइन नहीं मानने का कारण मारा गया? क्या रूसी सेना भारत सरकार की गाइडलाइन के हिसाब से हमला कर रही है? इससे पहले कभी मुश्किल में फंसे अपने नागरिकों के प्रति ऐसी असंवेदनशीलता या हिकारत का भाव देखने को नहीं मिला था।
भाजपा की यह कैसी लहर?
भाजपा के तमाम नेता दावा कर रहे हैं कि पार्टी की लहर चल रही है और अमित शाह ने तो यहां तक कहा कि पांचवें चरण में ही भाजपा ने सरकार बनाने लायक बहुमत हासिल कर लिया। सवाल है कि जब इतनी बड़ी लहर है तो भाजपा के विधायक अपनी जीती हुई सीटें बचाने के लिए इतनी मशक्कत क्यों कर रहे हैं? कोई कहीं हाथ जोड़ कर माफी मांग रहा है और अपनी तपस्या में कमी बता रहा है तो कोई मंच पर कान पकड़ कर उठक-बैठक कर रहा है तो कहीं जनता भाषण नहीं करने दे रही है? प्रधानमंत्री के लोकसभा क्षेत्र में और काशी कॉरिडोर वाले विधानसभा क्षेत्र के विधायक का माफीनामा देख कर तो नहीं लगता है कि कोई बड़ी लहर है। बनारस की इस सीट पर भाजपा के विधायक हैं नीलकंठ तिवारी। चुनाव के पहले से ही उनकी हालत खराब होने की खबर थी और उनकी सीट बदलने की भी चर्चा थी। लेकिन माना गया कि जिस काशी कॉरिडोर को दुनिया में शोकेस किया गया है, अगर वहां का विधायक सीट बदलेगा तो गलत मैसेज जाएगा। सो, वे उसी सीट से लड़े और वहां समाजवादी पार्टी ने भी ब्राह्मण उम्मीदवार दे दिया। अब कॉरिडोर बनाने के लिए तोड़े गए मंदिरों और उजाड़ी गई बस्तियों के लोग नीलकंठ तिवारी के खिलाफ एकजुट हो रहे हैं। तो उन्होंने हाथ जोड़ कर माफी मांगी है। इसी तरह की माफी रॉबर्ट्सगंज के भाजपा विधायक ने मांगी। उन्होंने तो चुनावी सभा के मंच पर कान पकड़ कर उठक-बैठक लगाई।
पीएम, सीएम को अपने क्षेत्र की चिंता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने चुनाव क्षेत्र वाराणसी में तीन दिन तक डेरा डाला और आखिरी चरण के लिए चुनाव प्रचार किया। पिछली बार यानी 2017 के चुनाव से पहले भी प्रधानमंत्री ने चार दिन तक वाराणसी में डेरा डाला था। कई मठ, आश्रम, मंदिरों में गए थे और चुनावी रैलियों को संबोधित किया था। प्रधानमंत्री इस बार भी पूरा जोर लगा रहे हैं। पिछली बार कोई खास दबाव नहीं था लेकिन इस बार बड़ा दबाव है। वाराणसी लोकसभा की 9 में से 8 विधानसभा सीटें भाजपा ने और एक उसकी सहयोगी ने जीती थी। इस बार इस प्रदर्शन को दोहराने का दबाव है। इसी तरह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर भी अपने क्षेत्र गोरखपुर में पार्टी के प्रदर्शन को दोहराने का दबाव है। गोरखपुर में भी 8 सीटें भाजपा ने जीती थीं। लेकिन पिछली बार ब्राह्मण पूरी तरह से भाजपा के साथ थे और योगी खुद उस सीट से सांसद थे। इस बार वे मुख्यमंत्री हैं। दूसरे, ब्राह्मण नाराज हैं और उनके खिलाफ गोरखपुर सदर सीट पर भी समाजवादी पार्टी ने ब्राह्मण उम्मीदवार उतारा है। हालांकि बहुजन समाज पार्टी ने मुस्लिम उम्मीदवार देकर मुख्यमंत्री की मदद की है। मुख्यमंत्री को कैसी चिंता है, इसका प्रचार बंद होने के दिन की उनकी रैली और भाषण से लगा। वे आखिरी दिन अपने क्षेत्र में थे और लोगों से रिकॉर्ड बनाने की अपील कर रहे थे।
महंगाई के महाविस्फोट का समय आ गया!
उत्तर प्रदेश में एक चरण का मतदान बाकी है। 7 मार्च को वोटिंग खत्म हो जाएगी।। नतीजे 10 मार्च को आएंगे। अगर पिछले उदाहरण से समझें तो नतीजे आने के दो दिन बाद से कीमतें बढ़नी शुरू होंगी। पिछले साल दो मई को पश्चिम बंगाल और अन्य चार राज्यों के चुनाव नतीजे आए थे और उसके दो दिन बाद से पेट्रोल, डीजल की कीमतें बढ़ना शुरू हुईं थीं। करीब दो महीने की स्थिरता के बाद कीमतें इस अंदाज में बढ़नी शुरू हुईं कि देश के ज्यादातर हिस्सों में सौ का आंकड़ा पार कर गईं, जबकि उस समय कच्चे तेल की कीमत 73 डॉलर प्रति बैरल तक गई थी। अब कच्चा तेल एक सौ डॉलर प्रति बैरल पर है। सो, 10 मार्च के नतीजों के बाद बेहिसाब महंगाई बढ़ेगी। इसके छोटे छोटे झटके अभी लगने लगे हैं। जिस तरह से बड़ा भूकंप आने से पहले छोटे-छोटे झटका लगते हैं वैसे ही महंगाई में तेजी से पहले छोटे झटके लग रहे हैं। जैसे दूध की कीमत बढ़ गई। अमूल और वेरका ने दूध की कीमत बढ़ा दी है और जल्दी ही मदर डेयरी और दूसरे ब्रांड की कीमत बढ़ेगी। कॉमर्शियल रसोई गैस यानी 19 किलो और पांच किलो वाले सिलेंडर के दाम बढ़ गए हैं। घरेलू रसोई गैस यानी 14 किलो वाले सिलेंडर के दाम दिल्ली में 900 पर हैं, जिसके इसी महीने ऐतिहासिक ऊंचाई पर जाने की आशंका है। पेट्रोल, डीजल के दाम में कितनी बढ़ोतरी होगी, इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता।
चेन्नई में विपक्षी जमावड़े का संदेश
बीते सोमवार को चेन्नई में विपक्षी पार्टियों का जमावड़ा हुआ। मौका था डीएमके सुप्रीमो और मुख्यमंत्री एमके स्टालिन की आत्मकथा के पहले खंड ‘उंगालिल ओरूवान’ यानी ‘आपमें से एक’ के विमोचन का। स्टालिन ने 17 फरवरी को चेन्नई में पुस्तक मेले का उद्घाटन करते समय इसका ऐलान कर दिया था कि महीने के आखिर में उनकी आत्मकथा का विमोचन होगा। स्टालिन और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने साझा तौर पर किताब का विमोचन किया। मौका किताब के विमोचन का था लेकिन सबको पता है कि, जहां इतने नेता जुटेंगे वहां राजनीति भी होगी और उस जमावड़े का राजनीतिक संदेश भी पूरे देश में जाएगा। सो, चेन्नई में डीएमके नेता स्टालिन की किताब के विमोचन का मौका विपक्षी एकजुटता के प्रदर्शन का मौका बन गया। कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों को लेकर गंभीर आपत्ति रखने वालीं ममता बनर्जी की पार्टी के नेता भी इसमें शामिल हुए तो बिहार में कांग्रेस से दूरी बनाने वाले राष्ट्रीय जनता दल के नेता भी विमोचन के कार्यक्रम में शामिल हुए। वामपंथी नेता भी पहुंचे तो दूसरी प्रादेशिक पार्टियों के नेता भी शामिल हुए। इस कार्यक्रम में जलवा मुख्य रूप से राहुल गांधी का रहा, जिनको स्टालिन ने सबसे ज्यादा तरजीह दी। ध्यान रहे राहुल गांधी को पहले भी स्टालिन महत्व देते रहे हैं और उनको आगे बढ़ कर कांग्रेस व विपक्ष की कमान संभालने की अपील भी करते रहे हैं। अपने पिता एम करुणानिधि के निधन के बाद उनकी मूर्ति के अनावरण के समय भी स्टालिन ने सोनिया गांधी को आमंत्रित किया था। इस तरह सोनिया व राहुल के प्रति अपना समर्थन दिखा कर स्टालिन ने विपक्ष के नेताओं को बहुत साफ संदेश दिया है।
महाराष्ट्र सरकार कब पलटवार करेगी?
महाराष्ट्र में शिव सेना के नेतृत्व वाली सरकार के नेता रोज जुबानी तीर चला रहे हैं, रोज हवा में लाठी भांजी जा रही है। शिव सेना ने कहा जा है कि भाजपा के ‘डर्टी डजन’ के नाम और कारनामे बताए जाएंगे। यानी भाजपा के एक दर्जन नेताओं की पोल खोली जाएगी। पार्टी के सांसद संजय राउत ने कहा कि जेल में चार बड़े भाजपा नेताओं के लिए सेल तैयार की जा रही है। इस बीच भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने शिव सेना, एनसीपी और कांग्रेस नेताओं पर कार्रवाई शुरू कर दी है। राज्य सरकार ने भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री नारायण राणे के जुहू स्थित बंगले में कथित अवैध निर्माण की जांच के लिए बीएमसी की टीम भेजी और उसके दो दिन के अंदर राज्य सरकार के वरिष्ठ मंत्री नवाब मलिक जेल चले गए। इससे पहले बीएमसी की टीम ने फिल्म अभिनेत्री कंगना रनौत के घर पर अवैध निर्माण तोड़ा था और उसके थोड़े दिन बाद से ही राज्य के गृह मंत्री रहे अनिल देशमुख जेल में बंद हैं। संजय राउत के रिश्तेदारों पर छापे पड़े हैं और प्रवीण राउत सहित कई लोग जेल में बंद हैं। पिछले हफ्ते आयकर विभाग ने शिव सेना के पार्षद यशवंत जाधव के यहां छापेमारी की। उससे पहले आयकर और ईडी की टीम ने शरद पवार के परिवार के सदस्यों पर छापे मारे थे। अब देखना है कि शिव सेना के नेतृत्व वाली सरकार कब पलटवार करती है। ममता बनर्जी ने जिस तरह से अपने राज्य में भाजपा नेताओं को काबू किया है, वही मंत्र उन्होंने शरद पवार को दिया है।
राजनीतिक घरानों में घमासान
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने परिवारवाद को बड़ा मुद्दा बनाया। लेकिन उत्तर प्रदेश ही नहीं, देश के ज्यादातर राज्यों में कोई न कोई राजनीतिक परिवार सक्रिय हैं और उस राज्य की राजनीति उस परिवार के इर्द-गिर्द घूमती है। इनमें से कई परिवारों में राजनीति झगड़े भी हो चुके हैं। जैसे महाराष्ट्र में ठाकरे परिवार में, बिहार में पासवान परिवार में, पंजाब में बादल परिवार में और उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह के परिवार में विवाद हुआ है। हालांकि मुलायम सिंह के भाई शिवपाल यादव वापस परिवार के खेमे में लौट आए हैं। तमिलनाडु में एम. करुणानिधि के बड़े बेटे एमके अलागिरी पार्टी से अलग हो चुके हैं। अब पार्टी की कमान एमके स्टालिन संभाल रहे हैं। आने वाले दिनों में उनके परिवार में उनकी बहन कनिमोझी की वजह से फिर विवाद हो सकता है। स्टालिन अपने बाद पार्टी की कमान अपने बेटे उदयनिधि स्टालिन को सौंपने की तैयारी में हैं। इससे कनिमोझी नाराज हैं। इसी तरह पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने अपने भतीजे अभिषेक बनर्जी को उनकी हैसियत दिखाई थी और उनका राष्ट्रीय महासचिव का पद समाप्त कर दिया था। हालांकि बाद में उन्हें फिर से पद पर बहाल किया गया लेकिन इससे परिवार और पार्टी में विवाद की शुरुआत हो गई है। एनसीपी प्रमुख शरद पवार के परिवार में भी दो साल पहले विवाद हुआ था, जिसे संभाल लिया गया था लेकिन आने वाले दिनों में विवाद फिर उभर सकता है। बिहार में लालू प्रसाद के परिवार में भी छिटपुट विवाद की खबरें आती रहती हैं।
एलआईसी की कमाई से आस लगाए बैठी सरकार
भारत सरकार ने वित्त वर्ष 2021-22 में विनिवेश के जरिए कमाई का एक भारी भरकम लक्ष्य तय किया था। वित्त मंत्री ने 2021 में बजट पेश करते हुए कहा था सरकारी कंपनियों को बेच कर एक लाख 75 हजार करोड़ रुपए जुटाए जाएंगे। उसके एक साल बाद जब उन्होंने 2022 का बजट पेश किया तब तक सरकार अपनी कंपनियों को बेच कर सिर्फ 12-13 हजार करोड़ रुपए की जुटा पाई थी। सो, बजट के संशोधित अनुमान में कहा गया है कि सरकार अपनी कंपनियों को बेच कर 78 हजार करोड़ रुपए की कमाई करेगी। सरकार का यह अनुमान इस बात पर आधारित है कि भारतीय जीवन बीमा निगम यानी एलआईसी का आईपीओ लाकर पांच फीसदी हिस्सेदारी बेची जाएगी, जिससे 70-80 हजार करोड़ रुपए या उससे ज्यादा की भी कमाई हो सकती है। अगर ऐसा हो जाता है तो सरकार संशोधित अनुमान से ज्यादा कमाई कर लेगी और अपनी पीठ थपथपाएगी। लेकिन पता नहीं सरकार ने किस मुहूर्त में एलआईसी का आईपीओ लाने की घोषणा की है कि पहले दिन से इसमें कोई न कोई बाधा आ रही है। हालांकि सरकार ने भी कमर कसी हुई है कि हर हाल में इसे बेचना है और ज्यादा से ज्यादा कमाई करनी है। इसीलिए यूक्रेन के हमले के बीच भी भारत के शेयर बाजार में तेजी दिख रही है। दुनिया भर के बाजार गिरे तो भारत में भी ऐतिहासिक गिरावट हुई। एक दिन में सूचकांक 27 सौ अंक गिरा और निवेशकों के साढ़े 13 लाख करोड़ रुपए स्वाहा हो गए। लेकिन अगले ही दिन बाजार 1300 अंक ऊपर चला गया। शेयर बाजार इतना संवेदनशील होता है फिर भी युद्ध के बीच ऊपर जा रहा है तो इसका मतलब है कि कोई बाहरी ताकत ऐसा चाहती है, इसलिए ऐसा हो रहा है। भारत सरकार नहीं चाहती है कि शेयर बाजार में नकारात्मक भावना रहे और निवेशकों इससे दूर रहें। इसलिए तय मानें कि युद्ध कितना भी चले लेकिन भारतीय शेयर बाजार में तेजी रहेगी। एलआईसी से अपनी कमाई की चिंता में सरकार ने एक और बड़ा फैसला किया तथा एलआईसी में 20 फीसदी तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की मंजूरी दे दी है। इसके लिए सरकार ने एलआईसी के विशेष कानून में बदलाव किया। असल में सरकार को चिंता है कि कहीं घरेलू निवेशकों ज्यादा निवेश न करें तो कमाई का लक्ष्य अधूरा रह जाएगा। इसलिए विदेशी निवेशकों को छूट दी गई है। बीमा सेक्टर में 74 फीसदी एफडीआई की मंजूरी है लेकिन एलआईसी का कानून बीमा कानून से अलग है और इसमें अभी तक एफडीआई की मंजूरी नहीं थी। सरकार ने वह बाधा भी दूर कर दी है।
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