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यूक्रेन युद्ध: क्या गेहूं का संकट मध्य पूर्व के देशों को अधिक खाद्य स्वतंत्र बनाएगा?

मध्य पूर्वी देश आने वाले गेहूं की कमी का मुकाबला करने के लिए अपनी खाद्य क्षमता को बढ़ा रहे हैं। लेकिन कुछ उत्साहजनक पहलों के बावजूद, मौजूदा चुनौतियां खाद्य संप्रभुता को लगभग असंभव बना रही हैं – ख़ास कर अभी के लिए तो हक़ीक़त यही है।
यूक्रेन युद्ध: क्या गेहूं का संकट मध्य पूर्व के देशों को अधिक खाद्य स्वतंत्र बनाएगा?

यूक्रेन में युद्ध और इस साल गेहूं के आयात में अपेक्षित कमी के मद्देनजर, अधिकांश मध्य पूर्वी सरकारों ने खाद्य स्वालंबन को अपने एजेंडे में सबसे ऊपर रखा है।

लंदन स्थित थिंक टैंक चैथम हाउस, मिडिल ईस्ट एंड नॉर्थ अफ्रीका प्रोग्राम के एसोसिएट फेलो नील क्विलियम ने डीडब्ल्यू को बताया कि, "वैश्विक महामारी और रूस-यूक्रेन संकट के बाद मध्य पूर्व देशों ने अपने खाद्य स्वालंबन के प्रयासों को दोगुना कर दिया गया है।"

लेबनान इसका एक बड़ा उदाहरण है, जिसका गेहूं उत्पादन 50,000 हेक्टेयर में फैला हुआ है, जबकि 6.5 मिलियन की आबादी को अनाज़ की पर्याप्त आपूर्ति करने के लिए करीब 180,000 हेक्टेयर भूमि की जरूरत पड़ेगी। 

देश के कृषि मंत्रालय के प्रवक्ता अब्दुल्ला नसरुद्दीन ने डीडब्ल्यू को बताया कि, "दशकों से लेबनान बड़े पैमाने पर गेहूं का आयात करता था, क्योंकि गेहूं बोने की तुलना में आयात में कम लागत आती थी, लेकिन संकट के कारण, हमें वैकल्पिक योजनाएँ खोजने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।" 

नसरुद्दीन ने डीडब्ल्यू को बताया कि, "कृषि मंत्रालय ने पहले ही अंतरराष्ट्रीय एनजीओ को यह जांच कर करने के लिए कमीशन कर दिया है कि क्या मिट्टी पर्याप्त उपजाऊ है या नहीं, लेकिन इसके लिए हमें धन की जरूरत होगी।"

लेकिन विश्व बैंक या अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से अधिक वित्तीय सहायता लेने की  संभावना को सुगम बनाने के लिए पहले आर्थिक और संरचनात्मक परिवर्तनों की जरूरत है।

इस तरह के बदलाव दूर की कौड़ी लगते हैं क्योंकि देश राजनीतिक और आर्थिक रूप से टूटने के कगार पर खड़ा है।

लेबनानी लीरा तीन वर्षों में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अपने मूल्य की लगभग 90 प्रतिशत कीमत खो चुका है, जिसने आबादी के लिए खाद्य आयात को काफी असहनीय बना दिया है।

हालाँकि, यह घरेलू स्तर पर भोजन पैदा करने की बेहतर स्थिति है।

बेरूत में जर्मन कोनराड एडेनॉयर फाउंडेशन के माइकल बाउर ने डीडब्ल्यू को बताया कि, "स्थानीय उत्पाद बहुत अधिक प्रतिस्पर्धी और आकर्षक हो गए हैं।"

उन्होंने कहा कि उन्होंने आत्मनिर्भर परियोजनाओं और स्टार्ट-अप में वृद्धि देखी है। और साथ ह ही "कृषि-तकनीक क्षेत्र भी आगे बढ़ रहा है।

इसका उदाहरण पर्यावरण इंजीनियर ज़ियाद अबी चाकर द्वारा शुरू की गई वर्टिकल कृषि परियोजना है। वह बेरूत में सपाट छतों को वर्टिकल वेजिटेबल गार्डन में बदल रहे हैं और वर्टिकल गार्डनिंग फ़ार्म लगा रहे हैं। 

उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "खाना बहुत महंगा हो गया है, इसलिए लोग तेजी से अपनी खुद की सब्जियां लगा रहे हैं। हमारी वर्टिकल कृषि परियोजनाएं पिछले साल ही शुरू हो गई थीं, लेकिन युद्ध शुरू होने के बाद से इसमें काफी इजाफ़ा हुआ है।"

उन्होंने 2021 में पांच फार्म लगाए, और इस साल सात और की योजना बनाई है।

लेबनान में वर्टिकल बागवानी बहुत अधिक लोकप्रिय हो रही है। 

एक अन्य उदाहरण बेरूत के पूर्व में बुज़ुरुना जुज़ुरुना (हमारे बीज, हमारी जड़ें) नामक विरासत बीज उत्पादकों की एक सहकारी संस्था है, जिसका 2016 से बड़े पैमाने पर विस्तार हुआ है। किसानों में से एक ने कहा कि "2021 में, हमारे बीजों की मांग बहुत अधिक थी।"

किसान दुर्लभ प्रजातियों को लुप्त होने से रोकने में मदद मिलने के साथ-साथ गेहूं, जौ या सब्जियों के लिए किफायती बीज खरीदने के अवसर से खुश हैं।

हालांकि, अब तक, ऐसी सफल परियोजनाएं अपवाद हैं। लेबनान में इतनी सारी संरचनात्मक समस्याएं हैं कि निकट भविष्य में खाद्य स्वाबलंबन की संभावना नहीं है।

इसके अलावा, देश जलवायु परिवर्तन से भी अछूता नहीं है। क्विलियम ने कहा कि, "सूखा, बढ़ते तापमान और पानी की कमी जैसी प्रमुख चुनौतियां पूरे क्षेत्र में बनी हुई हैं।"

बेहतर बीज, अधिक भूमि

मध्य पूर्व में 102 मिलियन निवासियों वाली सबसे अधिक आबादी वाला देश मिस्र भी यूक्रेन में युद्ध के मद्देनजर गेहूं की आपूर्ति की समस्याओं का सामना कर रहा है। इस वर्ष जनसंख्या के द्वारा लगभग 20 मिलियन टन की खपत होने की उम्मीद है।

देश वर्तमान में प्रति वर्ष 10 मिलियन टन का उत्पादन करता है। यह बाकी की जरूरत का आयात करता है और इसकी 80 प्रतिशत आपूर्ति यूक्रेन और रूस से होती है।

यूक्रेन में युद्ध के फैलने के बाद, मिस्र की सरकार ने स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए तीन-चरणीय योजना विकसित की है।

मिस्र में, लगभग 70 प्रतिशत आबादी सब्सिडी वाली रोटी पर निर्भर है।

"इस साल, सरकार ने गेहूं की खेती के लिए नई भूमि के रूप में 250,000 एकड़ आवंटित की है, और अगले साल इसे 500,000 एकड़ तक बढ़ाने का लक्ष्य रखती है," सरकार से संबद्ध अंतर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान केंद्र के सूखे क्षेत्रों में जैव प्रौद्योगिकीविद् अलादीन हैमविह ने उक्त बातें डीडब्ल्यू को बताई। "यह पिछले कुछ वर्षों में सरकार द्वारा विकसित 1.5 मिलियन एकड़ जमीन के अतिरिक्त है।"

उपजाऊ डेल्टा घाटी के अलावा, गेहूं अब ऊपरी मिस्र के रेगिस्तानी इलाके में भी लगाया जा रहा है, भले ही इसके लिए सूखी मिट्टी को अधिक उर्वरकों की जरूरत पड़ती हो।

सरकार किसानों को उच्च पैदावार देने वाले प्रमाणित बीज उपलब्ध कराकर स्थानीय उत्पादन को भी बढ़ावा दे रही है। उन्होने कहा है कि वे स्थानीय किसानों से तय कीमत पर 60 लाख टन से ज्यादा गेहूं खरीदेंगे। यह देश के अति आवश्यक खाद्य कार्यक्रम को सुरक्षित करने के लिए है।

मिस्र की सरकार 70 प्रतिशत आबादी के लिए एक खाद्य सब्सिडी कार्यक्रम चलाती है – इस कार्यक्रम के सबसे ऊपर रोटी है, जो मुख्य भोजन है और आमतौर पर हर भोजन के साथ खाई जाती है।

एक और विचार भविष्य में गेहूं को जौ के साथ मिलाना है। आईसीएआरडीए के अनुसंधान उप निदेशक माइकल बॉम ने डीडब्ल्यू को बताया कि, "जौ सूखे, सीमांत क्षेत्रों में बढ़ सकता है, जिसमें उच्च लवणता का स्तर होता है, जो कि गेहूं के मामले में नहीं है।"

खेती को बढ़ावा देने के लिए भी इनोवेशन का इस्तेमाल किया जाएगा। हैमविह ने डीडब्ल्यू को बताया कि, "अधिक से अधिक गेहूं को उठी हुई क्यारियों में लगाया जाएगा।" "यह विधि 25 प्रतिशत सिंचाई के पानी बचा को सकती है, फिर इसमें 15 प्रतिशत कम बीज की आवश्यकता होती है, और फसल उत्पादकता में 30 प्रतिशत तक की वृद्धि होती है।"

उन्होंने भविष्यवाणी की कि मिस्र कभी गेहूं के मामले में आत्मनिर्भर "नहीं हो सकता है" लेकिन कहा कि 70 प्रतिशत स्थानीय गेहूं उत्पादन में वृद्धि को एक बड़ी सफलता माना जाएगा। 20 प्रतिशत की वृद्धि 2.5 प्रतिशत जनसंख्या वृद्धि के कारण बढ़ती मांग को संतुलित करेगी।

वापस जड़ों की ओर लौटना 

जबकि इस क्षेत्र में वित्तीय सहायता के मुख्य प्रदाताओं में से एक, विश्व बैंक ने चेतावनी दी है कि खाद्य असुरक्षा वर्षों से एक बढ़ती हुई चुनौती है, इससे  कुछ संभावित समाधान भी निकलने की उम्मीद है।

विश्व बैंक में मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका क्षेत्र के उपाध्यक्ष फेरिद बेलहाज ने पिछले सितंबर में एक निबंध में लिखा था, जिसमें उन्होने कहा था कि "घरेलू कृषि और भोजन, आर्थिक विकास के इंजन हो सकते हैं, और श्रम बाजार में प्रवेश करने वालों के लिए रोजगार पैदा कर सकते हैं।"

मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका "अत्याधुनिक प्रथाओं और प्रौद्योगिकियों में निवेश करके कृषि नवाचार में अपने प्राचीन नेतृत्व को पुनः हासिल कर सकते हैं, जिसमें हाइड्रोपोनिक्स, संरक्षण कृषि, और साफ़ पानी का सुरक्षित इस्तेमाल शामिल है।"

अबू धाबी स्थित एग्रीटेक कंपनी 'प्योर हार्वेस्ट' को ऐसी धुरी के रूप में देखा जाता है। कंपनी हाइड्रोपोनिक्स का उपयोग करके उत्पादन बढ़ाती है जो फसलों को मिट्टी के बजाय खनिज पोषक तत्वों के घोल पर उगाने की अनुमति देती है। इस तकनीक को व्यापक रूप से मरुस्थलीकरण के नए उत्तर के रूप में देखा जाता है, जोकि मध्य पूर्व में एक और चुनौती है।

अब तक, कंपनी ने इसे पहले ही दूसरे क्षेत्र में नंबर 1 बना दिया है: 2020 में, कुवैत की वफ्रा इंटरनेशनल इन्वेस्टमेंट कंपनी ने स्टार्ट-अप में 100 मिलियन डॉलर का निवेश किया था, जिससे यह मध्य पूर्व में एक कृषि-तकनीक फर्म के लिए इतने बड़े निवेश की अब तक की सबसे बड़ी प्रतिबद्धता बन गई है।

योगदान : रज़ान सलमान

संपादन : ऐनी थॉमस और एंड्रियास इलमेर

Courtesy: DW

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