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ख़बरों के आगे-पीछे: अगर कांग्रेस इतनी ही बुरी है तो कार्रवाई कीजिए मोदी जी!

लोकसभा चुनाव के प्रचार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी पर जिस तरह के आरोप लगा रहे हैं, उनको देखते हुए यह हैरान करने वाला सवाल पैदा होता है कि आखिर उनकी सरकार ने अभी तक कांग्रेस पार्टी पर पाबंदी क्यों नहीं लगाई? 
Rahul

कांग्रेस पर अभी तक पाबंदी क्यों नहीं?

लोकसभा चुनाव के प्रचार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी पर जिस तरह के आरोप लगा रहे हैं, उनको देखते हुए यह हैरान करने वाला सवाल पैदा होता है कि आखिर उनकी सरकार ने अभी तक कांग्रेस पार्टी पर पाबंदी क्यों नहीं लगाई? 

जम्मू-कश्मीर से लेकर कर्नाटक और केरल तक अनेक संगठनों पर सरकार ने जिन कारणों से पाबंदी लगाई है वे सारे कारण तो प्रधानमंत्री को कांग्रेस की गतिविधियों में भी दिख रहे हैं। फिर कांग्रेस को अभी तक उन्होंने क्यों छोड़ा हुआ है! 

प्रधानमंत्री जिस तरह के आरोप कांग्रेस पर लगा रहे हैं, अगर उनमें रत्ती भर भी सचाई है तो कांग्रेस पर कार्रवाई नहीं करके प्रधानमंत्री मोदी देश की सुरक्षा, एकता और अखंडता को खतरे में डाल रहे हैं। 

प्रधानमंत्री ने कहा है कि कांग्रेस और पाकिस्तान मिले हुए हैं और दोनों का गठबंधन एक्सपोज हो गया है। सवाल है कि अगर कांग्रेस पार्टी देश के दुश्मन यानी पाकिस्तान से मिली हुई है और पाकिस्तान के नेता चाहते हैं कि राहुल गांधी प्रधानमंत्री बने तो क्या इसे रोकना सिर्फ आम मतदाता का ही काम है? सरकार कुछ नहीं करेगी? कुछ समय पहले कई कथित सबूतों के आधार पर भाजपा ने दावा किया था कि कांग्रेस को चीन से फंडिग होती है। चीन से मिलीभगत के आधार पर गांधी परिवार को कठघरे में खड़ा किया गया था। सवाल है कि जब चीन और पाकिस्तान देश के दुश्मन हैं और उनके साथ कांग्रेस की मिलीभगत है तो सरकार क्या कर रही है? क्या यह सिर्फ चुनावी भाषण का विषय है? अगर इतने गंभीर आरोपों के बावजूद कार्रवाई नहीं हो रही है तो जाहिर कि देश सुरक्षित हाथों में नहीं है या फिर प्रधानमंत्री मोदी सिर्फ किसी के खिलाफ कुछ भी बोल देने की बीमारी के शिकार हैं। 

कर्नाटक में सेक्स स्कैंडल से नई समस्या

कर्नाटक में सेक्स स्कैंडल का खुलासा होने के बाद एक नई समस्या खड़ी हो गई है। प्रज्ज्वल और उनके पिता एचडी रेवन्ना को एक्सपोज करने के चक्कर में वीडियो लीक करने वालों ने पीड़ित महिलाओं की पहचान उजागर कर दी, जिससे उनका जीना दुश्वार हो गया है। कई महिलाओं और उनके परिजनों को भी घर और गांव छोड़ना पड़ा है। परिवारों के भीतर कलह बढ़ जाने की खबरें हैं, क्योंकि महिलाओं ने यौन उत्पीड़न की बातों को परिजनों से छिपा रखा था। सो, परिवारों के अंदर विवाद है और जिन परिवारों के सदस्यों को इस बारे में पता था वे परिवार शर्मिंदगी की वजह से गांव छोड़ रहे हैं। 

गौरतलब है कि एचडी रेवन्ना और प्रज्ज्वल के खिलाफ एक महिला के अपहरण और उसके साथ बलात्कार का जो मुकदमा दर्ज हुआ उसमें शिकायतकर्ता ने खुद ही बताया कि उसकी मां को रेवन्ना का करीबी सहयोगी सतीश बबन्ना अपने साथ ले गया था। शिकायतकर्ता ने बताया कि उसके एक दोस्त ने फोन करके उसे बताया कि उसने उसकी मां का वीडियो देखा है। इसके बाद ही उसने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। इस तरह की घटनाएं हासन लोकसभा सीट के तहत आने वाले कई इलाकों में होने की खबर है। सरकार ने कहा है कि वह पीड़ित महिलाओं को आर्थिक मदद देगी। लेकिन उससे पहले प्रसारित हो रहे वीडियो को रोकने और महिलाओं की पहचान छिपाने के उपाय होने चाहिए। समाज को भी इस मामले में पीड़ित महिलाओं को अपमानित या शर्मिंदा करने की बजाय उनका सम्मान बहाल करना चाहिए।

केजरीवाल के खिलाफ कैसी-कैसी दलीलें

सुप्रीम कोर्ट में सात मई को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की सुनवाई चल रही थी और ऐसा लग रहा था कि उन्हें जमानत मिल जाएगी। सुप्रीम कोर्ट जमानत की शर्तें तय कर रहा था। लेकिन उसी समय केंद्र सरकार के नंबर दो कानूनी अधिकारी यानी सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने ईडी की ओर से सर्वोच्च अदालत की इस बात का विरोध किया कि लोकसभा चुनाव पांच साल में एक बार होते हैं और यह अभूतपूर्व है कि दिल्ली के चुने हुए मुख्यमंत्री जेल में हैं। अदालत ने कहा था कि अगर चुनाव नहीं होते तो अंतरिम जमानत पर विचार ही नहीं होता। इस पर तुषार मेहता ने मूर्खता की सीमा रेखा को छूने वाले तर्क दिए। उन्होंने कहा कि क्या जेल में बंद किसान को फसल की बुवाई नाम पर जमानत मिल सकती है या कोई कारोबारी कहे कि उसे बोर्ड की मीटिंग में शामिल होना है तो उसे जमानत मिल जाएगी? सवाल है कि सॉलिसीटर जनरल बने बैठे तुषार मेहता को क्या यह पता नहीं है कि विशेष स्थितियों में अदालतें सभी के लिए अपवाद बनाती हैं? अगर ताजा मामले देखें तो झारखंड हाई कोर्ट ने हेमंत सोरेन को उनके चाचा के श्राद्ध कर्म में शामिल होने के लिए और सुप्रीम कोर्ट ने नरेश गोयल को इलाज के लिए जमानत दी है। दिल्ली की अदालत ने मनीष सिसोदिया को अपनी बीमार पत्नी से मिलने की इजाजत दी है। बहरहाल, तुषार मेहता के तर्क निहायत बकवास थे लेकिन उनके बकवास तर्कों के कारण ही केजरीवाल की जमानत मिलने में तीन दिन की देरी हुई। 

विदेश में फंसे भारतीय कब लौटेंगे?

भाजपा ने अपने प्रचार तंत्र और खरीदे हुए मीडिया के जरिए इस लोकसभा चुनाव में एक नैरेटिव यह भी बनाया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस और यूक्रेन का युद्ध कुछ समय के लिए रुकवा दिया था ताकि भारतीय छात्रों को वहां से सकुशल निकाला जा सके। इस चुटकुले के बरअक्स हकीकत यह है कि कई भारतीयों को दूसरे देशों की सरकारों ने रोक रखा है या बंधक बना कर रखा है और कोई नहीं जानता है कि वे कब तक वापस लौट पाएंगे। इस समय अमेरिकी मेरीटाइम कानून की वजह से 21 भारतीय वहां फंसे हैं और ईरान ने एक इजराइली जहाज पर कब्जा किया है, जिस पर काम करने वाले 16 भारतीय ईरान में फंसे हैं। 

गौरतलब है कि करीब डेढ़ महीने पहले अमेरिका के बाल्टीमोर मे एक मालवाहक जहाज एक पुल से टकरा गया था। उस जहाज के चालक दल में 21 भारतीय हैं। उनकी वापसी नहीं हो पा रही है। यहां तक कि उनको अमेरिका की धरती पर भी नहीं उतरने दिया जा रहा है क्योंकि उनके पास वीजा नहीं है। इस तरह 21 भारतीय डेढ़ महीने से ज्यादा समय से समुद्ग मे लंगर डाल कर खड़े जहाज पर मौजूद हैं। ऐसे ही ईरान ने कुछ समय पहले भारत आ रहे एक मालवाहक जहाज पर कब्जा कर लिया था। वह जहाज इजराइल के एक कारोबारी का है। जहाज के चालक दल में 17 भारतीय सदस्य थे, जिनमें से एक महिला को वापस भेज दिया गया। लेकिन बाकी 16 सदस्य अभी वहीं फंसे हैं।

हरियाणा में सरकार नहीं गिराएगी कांग्रेस

हरियाणा में भाजपा की दो महीने पुरानी नायब सिंह सैनी सरकार अल्पमत में आ गई है। पहले दुष्यंत चौटाला की 10 विधायकों वाली जननायक जनता पार्टी सरकार से अलग हुई और अब तीन निर्दलीय विधायकों ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया है। इस तरह 88 सदस्यों की विधानसभा में भाजपा के पास 43 विधायकों का समर्थन है, जिसमें से 40 उसके अपने विधायक हैं और तीन अन्य हैं। बहुमत का आंकड़ा 45 का है। दूसरी ओर विपक्ष के पास 45 विधायक हैं। लेकिन इसमें कांग्रेस के अपने 30 ही विधायक हैं। 10 विधायक दुष्यंत चौटाला के हैं, जिनके साथ जाने की जोखिम कांग्रेस किसी हाल में नहीं ले सकती। अगर कांग्रेस ने उनका साथ लिया तो हरियाणा के जाट वोटों पर एकाधिकार वाली कांग्रेस की राजनीति खत्म हो जाएगी। सो, कांग्रेस की मजबूरी है कि वह दुष्यंत चौटाला या ओमप्रकाश चौटाला से दूरी रखे। इसके अलावा भी एक समस्या यह है कि जननायक जनता पार्टी के दो विधायक सीधे तौर पर भाजपा के संपर्क में हैं। इसलिए अगर विश्वास मत हासिल करने की नौबत आई तो ये दोनों भाजपा का साथ दे सकते हैं। 

कांग्रेस की तीसरी समस्या यह है कि अत्यंत पिछड़ी जाति से आने वाले नायब सिंह सैनी की सरकार गिराने की कोशिश उसे भारी पड़ सकती है। पिछड़ी जातियों की ज्यादा बड़ी गोलबंदी भाजपा के पक्ष में हो सकती है। इसलिए कांग्रेस इस्तीफ़े की और राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग करती रहेगी लेकिन विश्वास मत की मांग नहीं करेगी।

बसपा को मदद तो भाजपा की ही करना है!

इस बात की बड़ी चर्चा कि बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने अपने उत्तराधिकारी आकाश आनंद को पार्टी के राष्ट्रीय समन्वयक के पद से हटा दिया है। सवाल है कि हटा दिया तो क्या हो गया? हटा कर किसको बनाया? उन्हीं आकाश आनंद के पिता आनंद कुमार को उस पद पर स्थापित कर दिया। जाहिर है इस फेरबदल से कुछ नहीं बदलने वाला है। कहा जा रहा है कि मायावती ने आकाश को इसलिए हटा दिया क्योंकि वे भाजपा के खिलाफ बहुत तीखे भाषण दे रहे थे। उन्होंने भाजपा को आतंकवादी पार्टी कह दिया था। हो सकता है कि आतंकवादी शब्द का इस्तेमाल थोड़ा ज्यादा लग रहा हो लेकिन भाजपा पर तीखा हमला करना तो बसपा की रणनीति का हिस्सा है। बसपा अगर भाजपा पर तीखा हमला नहीं करेगी तो मुस्लिम वोट उसे कैसे मिलेगा? भाजपा के लिए मायावती की पार्टी की उपयोगिता तो तभी है, जब वे मुस्लिम वोट काटे। मायावती ने इसका भरपूर प्रयास भी किया है। उत्तर प्रदेश में करीब 20 सीटों पर उन्होंने मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं। बिहार और अन्य राज्यों में भी वे परोक्ष रूप से भाजपा को मदद पहुंचाने की ही राजनीति कर रही हैं। इसीलिए आकाश आनंद को हटाने के पीछे भाजपा पर दिया गया तीखा बयान कोई खास कारण नहीं है। असल कारण कुछ और है लेकिन उससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता। मायावती खुद रहें या आनंद रहें या उनके बेटे आकाश, सब परिवार का ही मामला है।

केजरीवाल को घेरने के लिए नया दांव

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ किसी खालिस्तानी आतंकवादी गुट से पैसा लेने का ठोस आरोप है, तो बेशक उसकी जांच होनी चाहिए। मगर सवाल यही है कि क्या आरोप ठोस है? दिल्ली के उप राज्यपाल ने केजरीवाल के खिलाफ जिस आरोप पर एनआईए (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) जांच की सिफारिश की है, उस आरोप का आधार अमेरिका स्थित कथित सिख फॉर जस्टिस गुट का एक वीडियो है। इस वीडियो के आधार पर वर्ल्ड हिंदू फेडरेशन इंडिया (डब्लूएचएफआई) नामक संगठन के कार्यकर्ता आशू मोंगिया ने उप राज्यपाल के पास जांच कराने की अर्जी दी। उप राज्यपाल ने इस पर सीधे एनआईए जांच की सिफारिश गृह मंत्रालय को भेज दी है। डब्लूएचएफआई भाजपा के इको-सिस्टम से संबंधित संगठन है। इसलिए उसकी अर्जी पर सवाल उठना लाजिमी है। 

सवाल है कि क्या पैसे के लेन-देन का कोई प्रथम दृष्टया साक्ष्य उप राज्यपाल को सौंपा गया है? अगर केजरीवाल या उनकी पार्टी पर विदेशी स्रोत से- उस पर भी आतंकवादी गुट से पैसा लेने के आरोप का प्रथम दृष्टया सबूत हो, तो बेशक उनके खिलाफ गहन जांच होनी चाहिए। मगर उप-राज्यपाल के निर्णय का समय महत्त्वपूर्ण है। जब आम चुनाव की बिसातें बिछी हुई हैं, तब मुख्यमंत्री जैसे पद पर आसीन एक नेता पर आतंकवाद से संबंधित होने की जांच शुरू कराना इस निर्णय को संदिग्ध बनाता है। क्या उप राज्यपाल चुनाव खत्म होने तक ठहर नहीं सकते थे? दरअसल, हालिया वर्षों में विपक्षी नेताओं के खिलाफ केंद्र सरकार और सरकारी एजेंसियों का रिकॉर्ड ऐसा है कि ऐसी हर कार्रवाई एक नकारात्मक धारणा उत्पन्न करती है। 

लालू का भी नीतीश पर जवाबी हमला शुरू 

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पिछले कुछ दिनों से लालू प्रसाद और उनके परिवार के लोगों पर लगातार निजी हमले कर रहे थे। इससे पहले वे लालू प्रसाद और राबड़ी देवी के शासनकाल को जंगल राज बता कर राजनीति करते रहे हैं लेकिन लालू से तीन दशक के अलगाव में उन्होंने कभी भी इस बात के लिए उन पर हमला नहीं किया कि उनके नौ-नौ बच्चे हैं या वे अपने परिवार को आगे बढ़ाते हैं। गौरतलब है कि लालू प्रसाद के बेटे तेजस्वी यादव को पहली बार नीतीश कुमार ने ही अपनी सरकार में पहले मंत्री और फिर उप मुख्यमंत्री बनाया था और उसी से उनकी राजनीति शुरू हुई थी। लेकिन इस बार के चुनाव में नीतीश लगातार इस बात के लिए लालू पर हमला कर रहे हैं कि उनके बहुत बच्चे हैं। 

बताया जा रहा है कि नीतीश के करीबी नेताओं में भाजपा के समर्थकों का एक छोटा सा समूह है, जो यह सुनिश्चित करना चाहता है कि नीतीश फिर से लालू के साथ नहीं लौटे। इसीलिए उनसे लालू पर निजी हमले कराए जा रहे हैं। कई दिन सुनने के बाद अब लालू प्रसाद ने भी भड़क कर जवाबी हमला शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा है कि नीतीश किसी गंभीर दिमागी बीमारी के शिकार हो गए हैं। गौरतलब है कि पिछले कुछ दिनों से चर्चा है कि नीतीश बातें भूल रहे हैं। लालू का इशारा इसी ओर है। उन्होंने यह भी कहा है कि इस बार वे नीतीश को नहीं छोड़ेंगे और सबक सिखा देंगे।

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