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8 साल में केंद्र सरकार की नौकरियों के लिए 22 करोड़ आवेदन, नौकरी मिली महज़ 0.33 फीसदी
केंद्रीय कार्मिक राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने बुधवार को लोकसभा में दिए एक लिखित जवाब में बताया कि 2014-15 से 2021-22 के दौरान केंद्र सरकार के सभी विभागों में 7 लाख 22 हजार 311 लोगों को नौकरी दी गयी। जितेंद्र सिंह ने यह भी बताया कि इन आठ सालों के दौरान केंद्र सरकार की नौकरियों के लिए कुल मिलाकर 22 करोड़ 5 लाख 99 हजार 238 आवेदन प्राप्त हुए।
अजय कुमार
28 Jul 2022
unemployment

आप अकसर सरकारी नौकरी के बारे में पूछते हैं कि आखिरकार भारत में सरकारी नौकरी कितनी हैं? उस हुजूम को भी देखते हैं जो दिल्ली, इलाहाबाद से लेकर पटना, भोपाल में सरकारी नौकरी की तैयारी कर रही है। शायद उस चाह से भी गुजरे होंगे जो सरकारी नौकरी के लिए समाज हमारे भीतर भरता है। इसी सरकारी नौकरी पर केंद्रीय कार्मिक राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने बुधवार को लोकसभा में दिए एक लिखित जवाब में बताया कि 2014-15 से 2021-22 के दौरान केंद्र सरकार के सभी विभागों में 7 लाख 22 हजार 311 लोगों को नौकरी दी गयी। जितेंद्र सिंह ने यह भी बताया कि इन आठ सालों के दौरान केंद्र सरकार की नौकरियों के लिए कुल मिलाकर 22 करोड़ 5 लाख 99 हजार 238 आवेदन प्राप्त हुए।

साल 2014 - 15 में जितने आवेदन मिले, उसमें से महज 0.56 प्रतिशत को नौकरी मिली। इस तरह से 2016 -17 की बात की जाए तो नौकरी 0.44 प्रतिशत को मिली, 2017-18 में नौकरी 0. 19 प्रतिशत को मिली, 2018 - 19 में नौकरी 0. 07 प्रतिशत को मिली।  इस तरह से 2015 - 16 से लेकर 2021 - 22 को दौरान केवल 2019- 20 को छोड़ दिया जाए तो किसी भी साल ऐसा नहीं हुआ है कि कुल आवेदनकर्ताओ के मुकाबले नौकरी मिलने वाली संख्या 0.50 प्रतिशत से अधिक हो।  अगर वार्षिक औसत निकाला के तो आंकड़ा यह बनता है कि हर साल केंद्र सरकार की नौकरियों के लिए तकरीबन 2 करोड़ 75 लाख आवेदन हासिल हुए , इसमें से नौकरी मिलने वालों का वार्षिक औसत महज 0.07 प्रतिशत से लेकर 0.8 प्रतिशत रहा। 

यह है भारत में केंद्र सरकार की नौकरियों का हाल।  सरकार का बेरोजगारी से लड़ने का रिपोर्ट कार्ड।  20 जुलाई 2022 के संसदीय कार्यवाही के दौरान कार्मिक मंत्री जीतेन्द्र सिंह ने संसद में बेरोजगारी के हाल पर एक और आंकड़ें पेश किया। कार्मिक मंत्री ने लिखित जवाब दिया की वित्त मंत्रालय के डिपार्टमेंट ऑफ़ एक्सपेंडिचर के वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र सरकार के सभी तरह के मंत्रालयों और विभागों में मार्च 1 साल 2021 तक तकरीबन 40 लाख 35 हजार पद ऐसे थे, जिनपर नियुक्ति की जानी थी। इनमें  से महज 30 लाख 55 हजार पदों पर सरकारी नौकरी मिली हैं यानी तकरीबन 9 लाख 79 हजार पद खाली हैं, जिन पर नियुक्ति नहीं हुई है।

अब आप खुद सोचिए कि 135 करोड़ वाले भारत में केंद्र सरकार की महज 40 लाख नौकरी का क्या मतलब है? इसमें से भी तकरीबन 9 लाख पदों पर नियुक्ति नहीं हुई है। तो सरकार क्या चाहती है ? सरकारी राग यह है कि सरकार का काम नौकरी देना नहीं है।  सरकार के समर्थक भी इस गलत राग को अलापते हैं। कभी सरकार से यह नहीं पूछते कि सरकार किस आधार पर कहती है कि सरकार का काम नौकरी देना नहीं है। अगर सरकार का काम नौकरी देना नहीं है तो क्या प्राइवेट क्षेत्र से नौकरी मिल पा रही है। प्राइवेट क्षेत्र से मिलने वाली नौकरी और सरकारी नौकरी में जमीन आसमान का अंतर क्यों होता है? एक प्राइवेट मास्टर और सरकारी मास्टर की सैलरी में अंतर में क्यों? 

असल हकीकत यह है कि भारत एक गरीब मुल्क है। इस गरीबी को तभी दूर किया जा सकता है, जब हर हाथ में काम हो और काम के बदले उचित दाम हो।  ऐसा बिलकुल नहीं है।  प्राइवेट क्षेत्र की अधिकतर नौकरियां शोषण की नौकरियां है।  कम सैलरी मिलती है, नौकरी से कभी भी निकाला जा सकता है। सामाजिक सुरक्षा से जुड़े योजनाओं का फायदा नहीं मिलता और बेहिसाब काम लिया जाता है।  10 - 15 की सैलरी में खुद को जीवन भर बर्बाद करने से अच्छा सरकार नौकरी की  तलाश होती है। इसलिए सरकारी नौकरी की मारामारी होती है कि सरकारी नौकरी मिलेगी तो जीवन बेहतर हो जायेगा।  ऐसे माहौल में चाहिए कि सरकार या तो सरकारी नौकरी की संख्या बढ़ाए या प्राइवेट क्षेत्र की हालात ठीक करने के जरूरी नियम कानून बनाये।  लेकिन सरकार ऐसा कुछ भी नहीं करती। वह महज यह राग गाती है कि नौकरी देना सरकार का काम नहीं है। 

अभी कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ से यह ट्वीट किया गया है कि प्रधानमंत्री ने सभी मंत्रालयों और विभागों के मानव संसाधन का मुआयना किया। यह निर्देश दिया कि मिशन मोड के तहत अगले डेढ़ साल में 10 लाख लोगों की भर्ती की जाए। इस पर बेरोजगार युवाओं ने कहा कि मोदी जी जुमला नहीं जॉब दीजिए। आप पूछेंगे कि क्यों ? साल 2014 में चुनाव से पहले भारत के प्रधानमंत्री के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने लोगों से वादा किया था कि अगर उनकी सरकार सत्ता में आती है तो हर साल दो करोड़ नौकरियां देंगे। यानी सरकार को अब तक 16 करोड़ नौकरियां दे देनी चाहिए थी। इतनी नौकरियों पर सरकार ने क्या किया? सरकार की तरफ से इस पर कोई रिपोर्ट कार्ड नहीं पेश किया गया।

साल 2014 के बाद कितनी भर्तियां हुईं, कितने को सरकारी नौकरी मिली? कितने बेरोजगरी की दुनिया से बाहर निकले? इस तरह के पुख्ता आंकड़े सरकार के जरिये नहीं पेश किये जाते हैं। सरकार ने अब तक कोई मुकम्मल रोजगार नीति नहीं बनाई है। अगर मुकम्मल रोजगार नीति होती तो पता चलता कि सरकार के किसी मंत्रालय और विभाग में कितना मानव संसाधन होना चाहिए? उस मानव संसाधन को भरने के लिए कितने पोस्ट सैंक्शन किये जा रहे हैं? कितने भरे जा रहे हैं? कितने पोस्ट नहीं भरे गए हैं? यह सारी बातें सरकार की तरफ से बताने की कोई नीति नहीं है? गैर सरकारी क्षेत्र में कितनी नौकरियों की संभावना है? कितनी नौकरियां मिल रही हैं? कितना न्यूनतम वेतन होना चाहिए? आबादी का कितना हिसाब लेबर फोर्स में जुड़ रहा है? इसमें से कितने लोगों को नौकरी मिल जा रही है? इन सारी बातों को सरकार किसी नियत अवधि के बाद नागरिकों के साथ  साझा नहीं करती है।

भारत में मौजूदा वक्त की रोजगार दर तकरीबन 40 प्रतिशत है। यानी काम करने लायक हर 100 लोगों में केवल 40 लोगों के पास काम है। 60 लोगों के पास काम नहीं है। मोदी सरकार के पिछले पांच साल के कार्यकाल का हिसाब किताब यह है रोजगार दर 46 प्रतिशत से घटकर 40 प्रतिशत पर पहुंच गयी है। जबकि वैश्विक मानक 60 प्रतिशत का है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इकॉनमी के अध्यक्ष महेश व्यास बताते हैं कि हर साल भारत में तकरीबन 5 करोड़ लोगों को रोजगार मिलेगा तब बेरोजगारी की परेशानी दूर रहेगी।

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