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देश में लगातार बढ़ रही बेरोज़गारी, महामारी से नहीं उभरी अर्थव्यवस्था

महामारी के बाद से आर्थिक रिकवरी काफ़ी कम हुई है, और नतीजतन काम नहीं करने वाले व्यक्तियों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है।
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पिछले कई वर्षों से, भारत में प्रमुख आर्थिक डेटा एक दुर्घटना का शिकार हो गए हैं। 2011-12 के बाद से सार्वजनिक डोमेन में उपभोग व्यय पर कोई आधिकारिक डेटा नहीं आया है क्योंकि सरकार ने अभी तक सर्वेक्षण (2017-18) के परिणाम जारी नहीं किए गए हैं, और यह दावा किया गया था कि वे त्रुटिपूर्ण थे। खपत व्यय में गिरावट दिखाते हुए मीडिया ने एक लीक हुई रिपोर्ट प्रकाशित की गई थी लेकिन इसे कभी भी आधिकारिक संस्करण के रूप में स्वीकार नहीं किया गया।

रोजगार डेटा संग्रह में इस्तेमाल किए जाने वाले पहले के तरीकों को आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) में बदल दिया गया था, लेकिन यह एक लंबे अंतराल के बाद प्रकाशित होता है और पहले की तरह सभी विवरण उपलब्ध नहीं कराता है। आंकड़ों पर छाए इस कोहरे ने कई सरकार-समर्थक अर्थशास्त्रियों का रास्ता आसान बना दिया है, जो आंशिक आंकड़ों या यहां तक कि कपटी व्याख्याओं के आधार पर रोजगार, गरीबी, असमानता आदि की एक गुलाबी तस्वीर पेश कर रहे हैं।

हाल ही में, स्तंभकार सुरजीत भल्ला ने टाइम्स ऑफ इंडिया में एक लेख लिखा था जिसमें तर्क दिया गया था कि 2019-22 की अवधि सबसे अधिक रोजगार वृद्धि दिखाने वाली अवधि थी। उन्होंने अपने इस तर्क के लिए पीएलएफएस डेटा का इस्तेमाल किया और बहुत ही अजीब निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए जनगणना जनसंख्या डेटा के साथ इसका सामंजस्य स्थापित किया। यह अजीब है, क्योंकि यह महामारी का दौर है और इसी अंतराल में रोजगार को भी बड़ा भारी नुकसान हुआ है। उनके अधिकांश लेख में अन्य डेटा स्रोतों की भी आलोचना की गई है जिनका इस्तेमाल यह दिखाने के लिए किया जाता है कि देश में नौकरियों का गंभीर संकट है।

नौकरियों में बहुत कम वृद्धि

आइए सीएमआईई (सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी) के डेटा पर नज़र डालें, जो एक निजी संस्था है जो अन्य चीजों के साथ-साथ रोजगार पर बड़ी तेजी के साथ डेटा मुहैया कराती है। आधिकारिक स्रोतों के अभाव में सीएमआईई सबसे पसंदीदा डेटा स्रोत बन गया है, खासकर रोजगार के मामले में इसे संदर्भित किया जाता है। यह सांख्यिकी मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) की तरह ही नमूने का इस्तेमाल करता है।

सीएमआईई के आंकड़ों के अनुसार, मार्च 2019 से मार्च 2023 के बीच, लगभग 50 लाख नौकरियां जुड़ी है। (नीचे चार्ट देखें)। बेशक, पहले लॉकडाउन के दौरान भारी गिरावट आई थी और फिर धीमी रिकवरी हुई। लेकिन, इस बारे में कोई जश्न मनाना कि भारत एक उल्लेखनीय रिकवरी से गुजरा है, इसके विपरीत तथ्य यह दर्शाते हैं कि स्पष्ट बात यह है कि रोजगार की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है। बल्कि लग ऐसा रहा है यह और अधिक खराब हुआ है। चार वर्षों में, सिर्फ 10.25 लाख नौकरियां प्रति वर्ष के हिसाब से मात्र 0.3 प्रतिशत नई नौकरियों का इजाफ़ा हुआ है - जो आश्चर्यजनक रूप से कम है। यह उस दर से भी बहुत कम है, जिस दर से जनसंख्या बढ़ रही है।

हालांकि, तस्वीर तब तक पूरी नहीं होती जब तक कि श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर) पर एक नज़र नहीं डाल ली जाती है, जो कुल कामकाजी उम्र की आबादी में काम करने वाले या काम की तलाश करने वाले व्यक्तियों के हिस्से को दर्शाती है। जैसा कि नीचे दिए गए चार्ट में दिखाया गया है, एलएफपीआर इन चार वर्षों में मार्च 2019 (महामारी से पहले) में 42.7 प्रतिशत से मार्च 2023 (महामारी के बाद) में 39.8 प्रतिशत तक लगातार गिरा है। वास्तव में, महामारी पिछले साल करीब-करीब समाप्त हो गई थी, लेकिन तब भी एलएफपीआर मार्च 2022 में 39.5 प्रतिशत से बढ़कर मार्च 2023 में केवल 39.8 प्रतिशत ही हो पाया था। 

इस गिरते एलएफपीआर से रोजगार संकट की असली तस्वीर सामने आती है। रोजगार वृद्धि धीमी है और काम की तलाश करने वालों (बेरोजगारों) की संख्या अधिक है, जो रोज़गार न मिलने पर अंततः कामकाजी उम्र की आबादी के बड़े हिस्से को हतोत्साहित करती है और श्रम शक्ति को पूरी तरह से छोड़ देती है। महिलाओं के ऐसा करने की संभावना अधिक है क्योंकि वे वैसे भी सबसे कम वेतन और असुरक्षित नौकरियां कर रही होती हैं। 

इस बीच, आबादी में कुदरती बढ़ोतरी के कारण कामकाजी उम्र की आबादी लगातार बढ़ रही है। यह अनुमान लगाया गया है कि हर साल लगभग 1.2 करोड़ लोग कामकाजी उम्र (आधिकारिक परिभाषा के अनुसार 15 वर्ष) तक पहुंच जाते हैं। मोटे तौर पर, 50 लाख लोग इनमें से काम करने के इच्छुक होंगे, जो संख्या वर्तमान में लगभग 40 प्रतिशत एलएफपीआर के अनुसार है। लेकिन देश, 50 लाख प्रति वर्ष की जगह चार साल में केवल 50 लाख नौकरियां ही दे सका! लेकिन केवल यही समस्या नहीं है।

मुख्य रूप से खेतों में अस्थिर अनौपचारिक काम ही उपलब्ध है 

सीएमआईई के प्रमुख महेश व्यास ने हाल ही जो डेटा दिखाया है उससे पता चलता है कि भारत में रोजगार उच्च स्तर की अस्थिरता से गुजर रहा है और यह भी कि कृषि कमाई का मुख्य आधार बनी हुई है। यह मार्च 2023 में रोज़गार में किए गए "मंथन" का सबसे अच्छा उदाहरण है। पिछले महीने की तुलना में, मार्च 2023 में लगभग 23 लाख नौकरियों (यानि सटीक संख्या 22.7 लाख) की गिरावट देखी गई है। मार्च में आमतौर पर कुछ नौकरियों में गिरावट देखी जाती है क्योंकि लोग रबी फसलों की कटाई के लिए खेतों में जाते हैं। हालांकि, इस साल की गिरावट काफी बड़ी है।

निर्माण क्षेत्र में रोज़गार मार्च में 95.8 लाख तक गिर गया था जो 7.23 करोड़ से घटकर 6.28 करोड़ हो गया था। खुदरा व्यापार में, रोज़गार फरवरी में 7.58 करोड़ से गिरकर मार्च में 6.78 करोड़ हो गया था जो लगभग 60 लाख की गिरावट है।

दूसरी ओर मार्च में कृषि क्षेत्र में रोज़गार में 1.7 करोड़ की जबरदस्त वृद्धि हुई थी। व्यास के अनुसार, 2016 में सीएमआईई द्वारा रोज़गार की निगरानी शुरू करने के बाद से यह कृषि में सबसे अधिक वृद्धि है। दिलचस्प बात यह है कि कृषि (मुर्गी पालन, वृक्षारोपण, आदि) से जुड़ी गतिविधियों से लेकर फसल की खेती एमीज श्रमिकों के काम करने को दर्शाती है। इस शिफ्ट में करीब 60 लाख रोज़गार का अनुमान लगाया गया था।

अन्य उद्योगों से पहले उल्लेखित 1.7 करोड़ शिफ्ट को जोड़कर, खेती ने मार्च में अविश्वसनीय रूप से 2.3 करोड़ अतिरिक्त श्रमिकों की आमद देखी थी। स्पष्ट रूप से, अपेक्षित बंपर फसल और निर्माण या खुदरा व्यापार की तुलना में कटाई या कटाई के बाद के श्रम में बेहतर मजदूरी की सहवर्ती गुंजाइश के कारण श्रमिकों का यह मूवमेंट जारी है।

लेकिन यह रोज़गार की नाजुक और कमजोर प्रकृति को भी दर्शाता है जो आजकल लोगों को मिल रहा है। कम आय और अन्य नौकरियों की असुरक्षा और भूमि, लोगों को सुरक्षा की कुछ पेशकश के साथ वापस बुलाती है, भले ही वह क्षणिक हो।

इसलिए, संक्षेप में, यहां एक पूरी तस्वीर मौजूद है: रोज़गार के अवसर लगातार कम हैं, उपलब्ध नौकरियां कम भुगतान कर रही हैं और नौकरी की कोई सुरक्षा नहीं है, कामकाजी आबादी जीविका की तलाश में लगातार एक नौकरी से दूसरी नौकरी में जाती रहती है। यह नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा वादा किए गए अमृत काल या 'अच्छे दिनों' से बहुत दूर की कोड़ी है!

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित रिपोर्ट को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें :

No Jobs – Unless You Want Seasonal Work in Farms

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