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5,000 कस्बों और शहरों की समस्याओं का समाधान करने में केंद्रीय बजट फेल

केंद्र सरकार लोगों को राहत देने की बजाय शहरीकरण के पिछले मॉडल को ही जारी रखना चाहती है।
union budget

केंद्रीय बजट 2022-23 ने कोरोना महामारी से सर्वाधिक पीड़ित लोगों को राहत नहीं दी है। पहले यह उम्मीद की जा रही थी इस बार का बजट देश की रिकॉर्ड बेरोजगारी को हल करने की दिशा में कोई समाधान पेश करेगा, जो शहरों में महामारी के दौरान कुछेक शहरी रोजगार गारंटी योजना के चलते बढ़ गई है। पर ऐसा कुछ हुआ नहीं।

बजट का एकमात्र सकारात्मक पहलू केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का यह मानना था कि शहरी विकास का मौजूदा मॉडल टिकाऊ नहीं है। उन्होंने पांच उत्कृष्टता केंद्रों पर शहरी विकास की नई समझ के शिक्षण के लिए एक निश्चित राशि आवंटित करते हुए कहा कि एक नया दृष्टिकोण अपनाने के लिए विशेषज्ञों की एक टीम गठित की जाएगी। 

हालाँकि, सरकार के पिछले रिकॉर्ड और शहरीकरण की उसकी समझ के अनुसार, जैसा कि नीति आयोग, आवास मंत्रालय, एवं शहरी मामलों के मंत्रालय के कुछ दस्तावेजों में उसका उल्लेख किया गया है, उन्हें देखते हुए शहरी विकास के लिए एक नए दृष्टिकोण के केंद्र के ताजा आह्वान पर सावधान हो जाना ही समझदारी है।

कई कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में पहले से ही शहरी नियोजन पढ़ाया जा रहा है। लेकिन सरकार की नई योजना स्पष्ट रूप से 2018 के राष्ट्रीय शहरी नीति ढांचे (एनयूपीएफ) और नीति आयोग पर टिकी है।

एनयूपीएफ, जिसे शहरी नियोजन के भविष्य के लिए एक एकीकृत और सुसंगत दृष्टिकोण होना चाहिए था, वह एक आपदा साबित हुई है। यह नीति शहर के प्रशासन के दार्शनिक सिद्धांत के रूप में प्राचीन शहरों और 10 सूत्रों का उल्लेख करती है, जो इसको पूरी तरह से सांप्रदायिक दृष्टिकोण देते हैं। इसी तरह, नीति आयोग भूमि उपयोग योजना में बड़े पैमाने पर बदलाव की वकालत करता रहा है, जिसका एक नमूना अंडमान और निकोबार द्वीप समूह और लक्षद्वीप का पुनर्विकास है, जो फिलहाल जारी है। 

लोगों की परेशानी बदस्तूर

यह अपेक्षा की जा रही थी कि बजट में 5,000 से अधिक कस्बों और शहरों की समस्याओं का समुचित हल पेश किया जाएगा। पर ऐसा कुछ हुआ नहीं जबकि यहां बेरोजगारी बढ़ रही है, अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों को जीवित रहना मुश्किल हो रहा है, बिजली और अन्य आवश्यक सेवाओं की लागत बढ़ रही है, और स्वास्थ्य क्षेत्र लोगों की उपचारात्मक देखभाल पर अधिक फोकस कर रहा है।

इसके अलावा, देश में बेघरों की संख्या बढ़कर 10 मिलियन से भी अधिक हो गई है, झुग्गी-झोपड़ी में रहने वालों को वहां से निकाला जा रहा है, शहरों में प्रदूषण लोगों के स्वास्थ्य के लिहाज से एक बड़ा खतरा बन गया है और शहरी विकास की योजना मुख्य रूप से बड़े अंतरराष्ट्रीय निगमों द्वारा उनके हितों के मुताबिक बनाई गई है।

शहरी विकास 

शहरी विकास के लिए बजटीय आवंटन 73,850 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 76,549 करोड़ रुपये किया गया है पर असलियत में यह वास्तविक जीडीपी अनुपात में गिरावट है- इस वर्ष यह 0.5 फीसदी की गिरावट से बढ़कर अगले वर्ष 2023 में 0.47 फीसदी तक हो जाएगी। इसमें 5 फीसदी से अधिक की मुद्रास्फीति दर को जोड़ने पर, शहरी विकास के लिए वास्तविक आवंटन चालू वर्ष की तुलना में बहुत ही कम होगा और शहरी विकास पर वास्तविक राशि खर्च किए जाने की भी आवश्यकता है।

आवास

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ठीक ही कहा था कि 2047 तक 50 फीसदी भारत का शहरीकरण हो जाएगा- लेकिन विकास और डिजाइन की वर्तमान गति के साथ, अधिकतर भारतीय सभ्य घरों में रहने की बजाय शहरी झुग्गियों में रह रहे होंगे।

बजट में औपचारिक आवास के लिए एक अच्छी राशि का प्रावधान होना चाहिए था, जो कि पिछले दशक में लगभग 6 फीसदी से गिरकर 3 फीसदी हो गई है। प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) को 48,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, जो पिछले बजट की तुलना में मुद्रास्फीति की दर को देखते हुए कम है।

जिस धीमी गति से मकान बन रहे हैं, वे तो और भी चिंताजनक हैं। कुल स्वीकृत 1.14 करोड़ शहरी आवास इकाइयों में से केवल 53.42 लाख घर-लगभग 47.6 फीसदी-ही अब तक पूरे हुए हैं। 

PMAY-शहरी योजना के तहत अफोर्डेबल रेंटल हाउसिंग कॉम्प्लेक्स एक उप-योजना है, वह अनौपचारिक क्षेत्र के लिए महत्त्वपूर्ण है। हालांकि, जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन और शहरी गरीबों के लिए बुनियादी सेवाओं आदि जैसी विभिन्न योजनाओं के तहत निर्मित 86,065 घरों में से केवल 1,934 को आवंटित किया गया है, जिनमें से चंडीगढ़ को 88 फीसदी आवंटित किया गया है। ऐसे में सरकार का 80 लाख और घर बनाने का लक्ष्य बेकार लगता है।

वित्त मंत्री ने मलिन बस्तियों पर एक शब्द भी नहीं कहा है, जहां लगभग 40 फीसदी भारतीय रहते हैं। केवल भूमि पट्टा दिए जाने का अधिकार और उचित सुविधाएं प्रदान करने से ही झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले करोड़ों लोगों के जीवनस्तर में सुधार हो जाता।

गतिशीलता 

शहरी गतिशीलता का सीधा संबंध कामकाजी लोगों की यात्रा करने की क्षमता, उनकी बचत और उनकी सेहत और शहरों में जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से निपटने वाली कार्य-योजनाओं और बढ़ते प्रदूषण-स्तर से है। केंद्र सरकार से उम्मीद थी कि वह तेजी से बस परिवहन, फुटपाथ के निर्माण और साइकिल ट्रैक बनाने पर खर्च करेगी। हालांकि, शहरी आवाजाही के लिए व्यापक रूप से सघन पूंजी वाली तकनीक के प्रति प्रतिबद्धता जताते हुए बजट ने फिर से मेट्रो विकास पर ही जोर दिया है, जो कि आवाजाही के मुख्य वांछित साधनों में नहीं है- विशेष रूप से श्रमिक वर्ग के लिए।

ऐसे में, परिवहन बेड़े में अतिरिक्त 20,000 बसों को और जोड़े जाने का निर्णय किया गया है, जिसका अर्थ है 5,000 की आबादी वाली टाउनशिप के लिए चार बसें, जो कि हास्यास्पद ही कहा जाएगा। इसके अलावा, ये बसें भी सार्वजनिक परिवहन में निजी खिलाड़ियों के प्रवेश की सुविधा के लिए सरकार के इरादे से पीपीपी मॉडल पर चलेंगी।

स्वास्थ्य

2014 में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद से, सरकार ने बेहतर प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों के निर्माण की बजाय शहरी विकास के हिस्से के रूप में सुपर स्पेशियलिटी अस्पतालों के निर्माण पर ही ध्यान केंद्रित किया है। जबकि पीएचसी और सीएचसी में एक्स-रे मशीन और प्रयोगशाला आदि जैसे कुछ बुनियादी ढांचे की कमी बनी हुई है। केंद्र प्रायोजित योजनाओं के तहत, 11,024 शहरी स्वास्थ्य केंद्रों के लिए बजटीय आवंटन को 50,591.14 करोड़ रुपये से घटाकर 47,634.07 करोड़ रुपये कर दिया गया है।

स्वच्छ भारत मिशन

स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम) शहरी 2.0 के शुभारंभ से पहले मिशन की खामियों को दूर किए जाने और ठोस और तरल कचरे के निष्पादन पर अधिक जोर देने की उम्मीद की जा रही थी। एक विकेन्द्रीकृत अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली का निर्माण करने के बजाय, केंद्र सघन पूंजी निवेशित प्रौद्योगिकी-संचालित प्रणाली चाहता है और ऐसी इकाइयों को अच्छी मात्रा में सब्सिडी प्रदान की गई है, जो ज्यादातर निजी व्यक्तियों द्वारा चलाई जाती हैं।

एसबीएम के लिए आवंटन खासकर शहरी समूहों में अनिष्पादित कचरे के ढेर जमा होने के बावजूद, पिछले वर्ष के समान ही इस बजट में भी 2,300 करोड़ रुपये दिया गया है। यह स्थिति तब है जबकि मार्च 2021 में, सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि दिल्ली के गाजीपुर लैंडफिल साइट पर कचरे के पहाड़ कुतुब मीनार की ऊंचाई 73 मीटर तक पहुंच जाएंगे।

स्मार्ट सिटी कहाँ हैं?

सरकार स्पष्ट रूप से अपने एक प्रमुख कार्यक्रम-स्मार्ट सिटी के बारे में भूल गई है। वित्त मंत्री सीतारमण ने स्मार्ट शहरों पर एक शब्द भी नहीं कहा है। सरकार के लिए इस विचार को खारिज करना बेहतर है क्योंकि शहर विशेष योजना और शहरी विकास के केंद्र बन गए हैं। यहां तक कि पुनरुद्धार और शहरी बदलाव के लिए समर्पित योजना अटल मिशन को पहले 13,900 करोड़ रुपये के आवंटन की बजाय इस बजट में 14,100 करोड़ रुपये ही आवंटित किया गया है यानी केवल 200 करोड़ रुपये ही अधिक आवंटित किए गए है। उच्च मुद्रास्फीति दर को देखते हुए यह वास्तव में राजकोषीय दृष्टि से कम है। 

जल जीवन मिशन

हर घर में पानी उपलब्ध कराना सरकार का एक और बहुप्रचारित उद्देश्य है। जल जीवन मिशन का लक्ष्य पांच वर्षों में शहरी क्षेत्रों में 2.7 करोड़ घरों को पानी उपलब्ध कराना है। योजना (शहरी) को फरवरी 2021 में 2,87,000 करोड़ रुपये के कुल परिव्यय के साथ लागू किया गया था। तेलंगाना के पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप(पीपीपी) मॉडल की तर्ज पर गैर-राजस्व पानी (NRW) को 20 फीसदी तक कम करने का लक्ष्य है।

एनआरडब्ल्यू को कम करने में कोई दिक्कत नहीं है। पर वास्तव में, यह काम रिसाव को बंद करके और बुनियादी ढांचे में आमूल बदलाव करके किया जाना चाहिए। दूसरा तरीका निवासियों पर उपयोगकर्ता शुल्क लगाना है, जो पानी के उत्पादन की लागत के बराबर होगा। हालांकि, इस क्षेत्र में पीपीपी मॉडल केवल बड़े कॉरपोरेट्स के हित ही साधेगा। यहां तक कि मिशन (शहरी और ग्रामीण दोनों) के लिए 60,000 करोड़ रुपये का बजटीय आवंटन राजस्व व्यय के तहत ही किया गया था, पूंजीगत व्यय के तहत नहीं किया गया था।

जलवायु परिवर्तन और उसका प्रभाव

वित्त मंत्री के बजट भाषण में शहरी क्षेत्रों में बाढ़ एवं लू चलने की बढ़ती अतिवादी एवं बारम्बार की घटनाओं के बावजूद जलवायु परिवर्तन का बिल्कुल भी उल्लेख नहीं किया गया है। यहां तक कि शहरों में भेद्यता की मैपिंग का वांछित लक्ष्य भी सरकार की प्राथमिकता में शामिल नहीं है, जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को पूरी तरह रोकने की रणनीतियों के बारे में तो भूल ही जाएं। शहरी क्षेत्रों के सामने आने वाली चुनौतियों का आकलन करने के लिए अधिकांश कस्बों में जलवायु एटलस या यहां तक कि जलवायु भेद्यता अध्ययन भी नहीं है।

सरकार की प्राथमिकताओं को स्पष्ट रूप से बजट के चश्मे से देखा जा सकता है, जो लोगों को राहत प्रदान करने और शहरों को उनकी बुनियादी सेवाओं के विनियोग के माध्यम से बड़े पैमाने पर पूंजी के संचय का केंद्र बनने की अनुमति देने की बजाय शहरीकरण के पिछले मॉडल को जारी रखने का आह्वान करता है।

(लेखक शिमला, हिमाचल प्रदेश के पूर्व डिप्टी मेयर हैं। व्यक्त विचार उनके निजी हैं।)

अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे गए इस लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें:-

Union Budget Fails to Address Problems of 5,000 Towns, Cities

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