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उत्तराखंड की पॉलिटिकल कॉमेडी/ट्रेजडी!: खूब हंसे हरक और धामी और ‘समंदर में तैरने’ निकले हरीश रावत

“हरीश रावत और हरक सिंह रावत की जो राजनीति इस समय चल रही है, वही पिछले 21 सालों में प्रदेश की राजनीति का सार है”।
“हरीश रावत और हरक सिंह रावत की जो राजनीति इस समय चल रही है, वही पिछले 21 सालों में प्रदेश की राजनीति का सार है”।
उत्तराखंड की राजनीति में एक बार फिर कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत चर्चा का केंद्र बन गए हैं।

 एक बड़ी सी मेज़ के गार्जियन वाली चेयर पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी बैठे थे। बगल वाली कुर्सी पर, भाजपा हो या कांग्रेस की सरकार, मंत्री बने रहने वाले डॉ. हरक सिंह रावत। “टेक” ध्वनि सुनाई नहीं दी लेकिन एहसास हुआ। कैमरा रोल शुरू हो चुका था। हंसी के गुब्बारे इस कदर फूट रहे थे कि यक़ीन करना मुश्किल हो रहा था। हमारे किरदार ओवर-एक्टिंग कर गए शायद और पकड़े भी गए।

 

हरक कहानी

26 दिसंबर को ये वीडियो जारी किया गया। इससे ठीक एक दिन पहले हुई कैबिनेट बैठक में हरक सिंह रावत इस्तीफे की धमकी देते हुए आग बबूला होकर निकले थे। चुनाव से ऐन पहले उनके रूठने, भाजपा छोड़ने, उनकी पारंपरिक कोटद्वार सीट से चुनाव न लड़ने जैसी बातें सत्ता के गलियारों में चर्चा का सबब बनीं।

डॉ. हरक सिंह रावत के साथ कई अन्य भाजपा विधायकों के कांग्रेस में जाने की अटकलें लगायी जाने लगीं। 25 से 26 दिसंबर के बीच मान-मनव्वल के दौर चले। पॉलिटिक्स की टी-20 के धुरंधर बल्लेबाज़ और गेंदबाज़ कहे गए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मोर्चा संभाला। अंतत: इस वीडियो के साथ मीडिया को बताया गया कि हरक मान गए हैं। उन्होंने भी ये स्वीकार किया।

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक से इस वीडियो को लेकर सवाल पूछा गया तो वे हंसे कि हमारे हंसने और साथ बैठने के भी अलग मतलब निकाले जाते हैं।

27 दिसंबर को कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत और कांग्रेस का चुनाव अभियान संभाल रहे हरीश रावत के देहरादून के होटल के एक कमरे में मुलाकात की खबरें आईं।

हरक सिंह रावत के कांग्रेस में घर वापसी की अटकलें फिर तेज़ हो गईं।

हरक सिंह रावत कभी हरीश रावत के करीबी हुआ करते थे। 2012 में कांग्रेस ने जब विजय बहुगुणा को उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनाया उस समय हरक सिंह रावत, हरीश रावत के मुख्यमंत्री पद की दावेदारी करने वालों में थे। लेकिन जब हरीश मुख्यमंत्री बने तो दोनों में नहीं बनी और हरक सिंह कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गए।

2016 में हरीश रावत के मुख्यमंत्री रहते हुए हरक सिंह रावत का इस्तीफा और उत्तराखंड की राजनीति में मचा घमासान ज्यादा पुरानी बात नहीं है।

2017 के विधानसभा चुनाव से भी ऐन पहले हरक सिंह रावत ने चुनाव न लड़ने की बात कही थी। 2021 के विधानसभा चुनाव से पहले भी वे ये कह चुके हैं। ये उनका पॉलिटिकल स्टाइल है।

  H RWAT

(दिल्ली में हाईकमान से मुलाकात कर विजयी भाव में लौटे वरिष्ठ कांग्रेस नेता हरीश रावत।)

हरीश कहानी

प्रदेश कांग्रेस के नए चुनावी पोस्टर में हरीश रावत चुनावी झंडा पकड़े सबसे आगे नज़र आते हैं। प्रीतम सिंह और गणेश गोदियाल जैसे प्रदेश कांग्रेस नेता उनकी साए में।

 

22 दिसंबर को हरीश रावत ने ट्वीट में अपने मन की बात कही थी। “है न अजीब सी बात, चुनाव रूपी समुद्र को तैरना है, सहयोग के लिए संगठन का ढांचा अधिकांश स्थानों पर सहयोग का हाथ आगे बढ़ाने के बजाय या तो मुंह फेर करके खड़ा हो जा रहा है या नकारात्मक भूमिका निभा रहा है”।

एक के बाद एक हरीश रावत ने 3 ट्वीट किए। राजनीति से रियारमेंट लेने तक का मन जताया। उनके ट्वीट निशाने पर लगे। दो दिनों में प्रदेश कांग्रेस के सभी बड़े नेता दिल्ली हाईकमान के पास तलब किए गए।

वापसी में हरीश रावत विधानसभा चुनाव में पार्टी को लीड करने की अहम ज़िम्मेदारी की घोषणा करते हुए दबंग तरीके से राज्य में दाखिल हुए।

महत्वकांक्षी हरीश रावत चुनाव में कांग्रेस का मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करने की मांग कर रहे थे। जबकि पार्टी लगातार सामूहिक नेतृत्व में चुनाव की बात कर रही थी। हालांकि दिल्ली से लौटने के बाद हरीश रावत की ये मांग पूरी नहीं हुई।

राजनीतिक धुरी

वरिष्ठ पत्रकार दिनेश जुयाल कहते हैं “हरीश रावत और हरक सिंह रावत की जो राजनीति इस समय चल रही है, वही पिछले 21 सालों में प्रदेश की राजनीति का सार है”।

“उत्तर प्रदेश के समय से ही हरक सिंह रावत लगातार चुने जाते रहे हैं। उनका एक ही फंडा है कि नाम हो या बदनाम हो लेकिन गुमनाम न हों। उन पर बहुत से घोटालों के आरोप लगे। उनके विभागों की खूब कहानियां हैं। लेकिन भाजपा और कांग्रेस दोनों ही हरक सिंह रावत को राज्य की राजनीति की धुरी बना लेते हैं। जिस व्यक्ति का राजनीतिक चरित्र स्पष्ट नहीं है। जो बहुत स्वीकार्य भी नहीं है। लेकिन हमारे यहां केंद्र बिंदू में है। ये खेल हरक सिंह रावत को आता है”।

HK RWAT

उत्तराखंड दौरे पर आए प्रधानमंत्री मोदी की कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत का हालचाल लेती तस्वीर भी चर्चा का विषय बनी थी

“सबसे मजेदार ये है कि भाजपा के साथ कांग्रेस की पॉलिटिक्स भी हरक सिंह रावत के चारों तरफ घूम रही है। उन्हें कांग्रेस में जाना है या नहीं, चुनाव तक वे सस्पेंस बनाकर रखेंगे। उत्तराखंड को इस राजनीतिक उठापटक का नुकसान उठाना पड़ा है”।

इस राजनीति की कीमत

नीति आयोग ने हेल्थ इंडेक्स जारी किया है। 2018-19 की तुलना में 2019-20 में उत्तराखंड का प्रदर्शन और भी कम हुआ है। इस रिपोर्ट के मुताबिक उत्तराखंड देश में 14वें से 15वें स्थान पर खिसक गया।

ये एक उदाहरण भर है। अलग राज्य बनने के बाद उत्तराखंड सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य समेत राज्य के लोगों की अकांक्षाएं पूरी कर सका है क्या?

सीपीआई-एमएल के गढ़वाल सचिव इंद्रेश मैखुरी कहते हैं कि राज्य में नेताओं की महत्वकांक्षा राज्य के विकास से ज्यादा हावी रही। “ये जो भी बड़े नेता हैं इनका ध्येय अपने राजनीतिक वजूद, अपनी महत्वकांक्षा की पूर्ति करना रहा है। हर विधायक, मंत्री बनना चाहता है। हर मंत्री, मुख्यमंत्री बनना चाहता है। इसके लिए जो भी करना पड़े”।

“कांग्रेस-भाजपा दोनों पार्टियां नीतिगत स्तर पर एक ही जैसी हैं। इसीलिए एक पार्टी से दूसरी पार्टी में जाना कमरा बदलने जैसा है। इसमें इनकी महत्वकांक्षा की पूर्ति हो जाती है लेकिन राज्य को लेकर लोगों की अकांक्षा पिछले 20-21 वर्षों में पूरी तरह ध्वस्त हो गईं। शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य, पलायन, वन्यजीवों से जुड़ी समस्याएं नेताओं की चिंता में शामिल नहीं है। वे अपनी पार्टी के लिए भी नहीं सोचते। सिर्फ स्वयं के लिए सोच रहे हैं”।

(देहरादून स्थित वर्षा सिंह स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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