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उत्तराखंड : केंद्र की दख़ल के बाद कश्मीरी छात्रों को लेट फ़ीस से राहत, लेकिन अभी डर बरक़रार

जम्मू-कश्मीर स्टुडेंड एसोसिएशन के प्रवक्ता नासिर ने न्यूज़ क्लिक को बताया कि अलग-अलग तरह से उन्हें परेशान किया जा रहा है।
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प्रतीकात्मक तस्वीर : Navbharat Times

डबल इंजन की धौंस में उत्तराखंड सरकार उदार चेहरा दिखाना तक भूल रही है। कश्मीरी छात्र-छात्राओं से लेट फ़ीस नहीं लिए जाने के मुद्दे पर छात्र-छात्राओं द्वारा किए जा रहे तमाम प्रयासों पर सरकार नहीं मानी। राज्य सरकार के कैबिनेट मंत्री और प्रवक्ता मदन कौशिक कार्रवाई की बात कहकर भी इस मुद्दे को भूले रहे। लेकिन जब छात्रों ने केंद्र सरकार का दरवाजा खटखटाया और वहां से आदेश जारी हुए तब जाकर राज्य सरकार ने कश्मीरी छात्र-छात्राओं से लेट फ़ीस न वसूले देने जाने की बात कही।

इस बीच, जम्मू-कश्मीर स्टुडेंड एसोसिएशन के प्रवक्ता नासिर ख़ुहामी अपनी सुरक्षा को लेकर भी चिंतित रहे। मीडिया में सामने आने और पहचान खुलने के बाद उन्होंने निजी कॉलेजों की ओर से परेशान किये जाने की बात कही। इस संबंध में उन्होंने देहरादून के एसएसपी अरुण मोहन जोशी को अपनी सुरक्षा से संबंधित पत्र भी लिखा।
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नासिर ने न्यूज़ क्लिक को बताया कि अलग-अलग तरह से उन्हें परेशान किया जा रहा है। फोन कॉल्स भी आ रही हैं। रास्ते में उन्हें रोका जा रहा है और डराने की कोशिश की जा रही है। अपने फेसबुक पेज पर भी उन्होंने इस तरह की एक पोस्ट साझा की।

राज्य सरकार की ओर से कोई मदद न मिलती देख प्रवक्ता नासिर ने ट्विटर पर केंद्रीय गृह राज्यमंत्री जी किशन रेड्डी को टैग किया। कॉलेजों की ओर से मिल रही धमकी और लेट फ़ीस की बात कही। जिस पर केंद्रीय गृह राज्यमंत्री ने उत्तराखंड सरकार से बात करने का आश्वासन दिया, साथ ही केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय को भी इस मुद्दे पर कार्रवाई करने कहा।

छह दिसंबर को केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय और गृह मंत्रालय के निर्देश राज्य के आला अधिकारियों तक पहुंचे। केंद्र ने राज्य के मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह, देहरादून के जिलाधिकारी रविशंकर को कश्मीरी स्टुडेंट्स की सुरक्षा और फ़ीस को लेकर आ रही दिक्कतों पर बात की। केंद्र की दखल के बाद राज्य की सरकार हरकत में आई।

नासिर बताते हैं कि इसके बाद मुख्य सचिव और जिलाधिकारी के फोन उनके पास आए और उनसे मुलाकात हुई। साथ ही अधिकारियों ने कॉलेजों में भी बात की। राजधानी के सभी कॉलेजों ने कश्मीरी बच्चों से लेट फ़ीस न लेने और कम अटेंडेंस के चलते परीक्षा से बाहर न करने का आश्वासन दिया।

कुछ कश्मीरी स्टुडेंट्स ने इस मामले में न्यूज क्लिक से भी संपर्क किया। बीएफआईटी के प्रधानाचार्य डॉ असलम सिद्दिकी ने बताया कि किसी कश्मीरी स्टुडेंट को परीक्षा में बैठने से नहीं रोका जा रहा। लेकिन अगले सेमिस्टर में उन्हें कक्षा में न्यूनतम 60 प्रतिशत मौजूदगी दर्ज करानी होगी।

दरअसल अगस्त महीने में कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया गया और वहां कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए गए। उस समय दूसरे राज्यों में रहकर पढ़ाई कर रहे ज्यादातर युवा घर गए हुए थे। हालात कुछ सामान्य होने के बाद जब वे अपने कॉलेजों में लौटे तो उन पर कक्षा में कम मौजूदगी के चलते परीक्षा से बाहर होने और हजारों रुपये का विलंब शुल्क थोप दिया गया। कॉलेज प्रशासन कहता रहा कि ऑन लाइन सिस्टम होने की वजह से वे इसमें कुछ नहीं कर सकते। एक-दो कॉलेज को छोड़कर ज्यादातर कॉलेज में कश्मीरी स्टुडेंट्स को इस तरह की दिक्कतें आईं। परीक्षा से बाहर होने, पूरा साल खराब होने और पहले ही आर्थिक संकट में घिरे कश्मीरी परिवारों के लिए लेट फ़ीस देना भारी पड़ रहा था।

अगर उत्तराखंड सरकार पहले ही इन छात्रों के प्रति उदार रवैया दिखाती तो ये स्टुडेंट्स मानसिक तौर पर इतने परेशान न होते। लेकिन राज्य की सरकार को उलटी तरफ से ही कान पकड़ना भाया।

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