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उत्तराखंड : UKSSSC सेवा चयन आयोग पेपर लीक, नियुक्ति में देरी के ख़िलाफ़ अभ्यर्थी कर रहे प्रदर्शन

बीते बुधवार, 7 सितंबर को उत्तराखंड बेरोज़गार संघ के आह्वान पर देहरादून में हज़ारों युवाओं ने भर्ती घोटालों की सीबीआई जांच करने की मांग को लेकर प्रदर्शन किया। ऐसे ही प्रदर्शन पहाड़ के कई शहरों में किए गए।
UKSSSC

टिहरी ज़िले के शुभम चमोली पिछले तीन महीने से घर नहीं जा पा रहे हैं। उनका वजन इन दौरान 9-10 किलो गिर गया है और यह बेवजह नहीं है। दरअसल शुभम को यह समझ नहीं आ पा रहा कि वह परिजनों और गांववालों को क्या बताएं कि उनकी नौकरी कब लगेगी। शुभम उन 916 अभ्यर्थियों में शामिल हैं जिन्होंने एक लाख 60 हज़ार अभ्यर्थियों के बीच से उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (UKSSSC) की स्नातक स्तरीय परीक्षा पास की थी। 

इस परीक्षा के पेपर लीक और नकल कराने की शिकायत के बाद इस मामले की जांच चल रही है और शुभम जैसे सभी अभ्यर्थियो का भविष्य अनिश्चय के भंवर में गोते लगा रहा है। 

न यहां के रहे, न वहां के

UKSSSC की स्नातक स्तरीय परीक्षा में धांधली की बात 27 मई के बाद सामने आई, तब तक परीक्षा पास कर चुके अभ्यर्थियों के दस्तावेज़ों के सत्यापन की प्रक्रिया (DV) पूरी हो चुकी थी। 

29 साल के शुभम 2015-16 से नौकरी के लिए प्रतियोगी परीक्षाएं दे रहे हैं। वह कहते हैं कि DV के बाद तो यह तय मान लिया गया था कि नौकरी लग गई। नियुक्ति पत्र का इंतज़ार है। घरवाले रिश्तेदारों और गांववालों को मिठाई खिला चुके थे लेकिन फिर पेपर लीक की बात सामने आ गई और सारी प्रक्रिया संदेह के घेरे में आ गई। 

बता दें कि इस मामले में उत्तराखंड बेरोज़गार संघ के प्रदर्शन और मुख्यमंत्री को ज्ञापन देने के बाद मुख्यमंत्री के निर्देश पर जांच एसटीएफ़ को सौंप दी गई। एसटीएफ़ ने इस मामले में अब तक 38 लोगों को गिरफ़्तार कर लिया है।

हालांकि उत्तराखंड बेरोज़गार संघ और विपक्ष सीबीआई जांच की मांग कर रहा है। 

शुभम कहते हैं कि सीबीआई जांच हो या एसटीएफ़, उन्हें किसी से ऐतराज़ नहीं है लेकिन जिन युवाओं ने ईमानदारी से परीक्षाएं पास की हैं, उनका हक न मारा जाए। 

वह कहते हैं कि बहुत से ऐसे परीक्षार्थी थे जिन्होंने परीक्षा पास होने के बाद दूसरी नौकरियों के अवसर छोड़ दिए। स्नातक स्तरीय परीक्षा पास करने वाले कई अभ्यर्थियों ने 31 दिसंबर, 2021 को कनिष्ठ सहायक की परीक्षा पास करने के बाद टाइपिंग टेस्ट छोड़ दिया ताकि दूसरों का भला हो सके। 

ऐसे ही कई युवाओं ने पुलिस कांस्टेबल की भर्ती परीक्षा पास करने के बाद फ़िज़िकल टेस्ट छोड़ दिया क्योंकि वे स्नातक स्तरीय परीक्षा पास कर चुके थे। 

खुद शुभम भी पीसीएस-प्री समेत तीन प्रतियोगी परीक्षाएं पास कर चुके हैं। वह कहते हैं उनके जैसे कई युवाओं ने एक से ज़्यादा परीक्षाएं पास की हैं। अगर हर एक के लिए 15 लाख रुपये देते (स्नातक स्तरीय परीक्षा में यह राशि देने के बात सामने आई है) तो 50-60 लाख तो इसी में चले जाते। 

वह कहते हैं कि वह ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं और प्रार्थना कर रहे हैं कि जल्द इन सब मामलों का निपटारा हो ताकि उनकी ज़िंदगी पटरी पर आ सके। 

भर्तियों में घोटाला दर घोटाला 

UKSSSC की स्नातक स्तरीय परीक्षा में धांधली की एसटीएफ़ ने जांच शुरू की तो उसे पहले आयोजित कई परीक्षाओं में भी धांधली के सुराग मिले और फिर तो एक-एक करके कई परीक्षाओं में धांधली की जांच शुरू कर दी गईं। इनमें से कई परीक्षाएं ऐसी भी थीं जिनकी जांच पहले से चल रही थी लेकिन कोई परिणाम सामने नहीं आए थे। 

बीडीओ भर्ती में गड़बड़ी के आरोपों पर विजिलेंस जांच कर रही थी, जिसे अब एसटीएफ़ को सौंप दिया गया है। 

2015 में दरोगा भर्ती में धांधली के आरोपों की जांच विजिलेंस को सौंपी गई है। 

वन आरक्षी भर्ती में घोटाले की पुराने बंद हो चुके मामलों की जांच भी एसटीएफ़ कर रही है। 

सचिवालय रक्षक भर्ती में घोटाले की जांच एसटीएफ कर रही है। 

कनिष्ठ सहायक (न्यायिक) भर्ती की जांच भी एसटीएफ के पास है। 

वन दरोगा भर्ती में धांधली की जांच एसटीएफ़ ने शुरू की। 

इसके अलावा यूपीसीएल एई भर्ती और यूजेवीएनएल एई भर्ती में भी धांधली के कुछ सुबूत मिले हैं और  एसटीएफ ने इन मामलों में दोनों निगमों से जानकारी मांगी है। 

इन भर्ती परीक्षाओं के अलावा विधानसभा में बैकडोर से हुई भर्तियों की जांच भी विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी ने शुरू करवा दी है। 

उत्तराखंड की चौथी विधानसभा के अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल और तीसरी विधानसभा के अध्यक्ष गोविंद कुंजवाल स्वीकार कर चुके हैं कि उन्होंने बिना परीक्षाएं आयोजित करवाए विधानसभा में विभिन्न पदों पर भर्तियां कीं। दोनों इसे विशेषाधिकार का मामला बता रहे हैं। 

इस मामले में सोशल मीडिया पर जमकर विरोध होने के बाद और कांग्रेस की ओर से राज्य इकाई के अलावा प्रियंका गांधी के बयान के बाद इन दोनों कार्यकाल में भर्ती की जांच बैठा दी गई है। विधानसभा अध्यक्ष का कहना है कि दूसरे चरण में वर्ष 2000 से 2012 तक की भर्तियों की जांच भी की जा सकती है। 

पांच परीक्षाएं रद्द, अब लोक सेवा आयोग करेगा आयोजन  

बीते बुधवार, 7 सितंबर को उत्तराखंड बेरोज़गार संघ के आह्वान पर देहरादून में हज़ारों युवाओं ने भर्ती घोटालों की सीबीआई जांच करने की मांग को लेकर प्रदर्शन किया। ऐसे ही प्रदर्शन पहाड़ के कई शहरों में किए गए। 

इसके बाद शुक्रवार को धामी कैबिनेट ने UKSSC की पांच परीक्षाएं रद्द करने का ऐलान कर दिया। इन परीक्षाओं के परिणाम आने अभी बाकी थे। 770 पदों के लिए आयोजित इन परीक्षाओं में शामिल करीब 52,000 अभ्यर्थियों को अब दोबारा परीक्षा में बैठना होगा।  

सरकार ने वाहन चालक, कर्मशाला अनुदेशक, मत्स्य निरीक्षक, मुख्य आरक्षी पुलिस दूरसंचार और पुलिस रैंकर्स पदों के लिए हुई इन परीक्षाओं को UKSSC के बजाय उत्तराखंड लोक सेवा आयोग से करवाने का फ़ैसला किया है। 

इसके अलावा धामी कैबिनेट में UKSSC से 7000 पदों पर भर्ती को छीनकर राज्य लोक सेवा आयोग को ट्रांस्फर करने का प्रस्ताव भी पारित किया। 

मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि मौजूदा विज्ञापित पदों के साथ-साथ सभी विभाग एक तय समय सीमा में अपने यहां सीधी भर्तियों के रिक्त पदों की सूची बनाकर आयोग को भेज दें ताकि भविष्य की परीक्षाओं का एडवांस कैलेंडर जारी किया जा सके। 

बेरोज़गार संतुष्ट नहीं 

राज्य सरकार की बेरोज़गारों के ज़ख़्मों पर मरहम लगाने की कोशिश से बेरोज़गार संतुष्ट नहीं हैं। 

उत्तराखंड बेरोज़गार संघ के अध्यक्ष बॉबी पंवार कहते हैं कि सरकार ने जो पांच परीक्षाएं निरस्त की हैं उनमें अभी तक घोटाले के आरोप ही नहीं हैं। वह आरोप लगाते हैं कि सरकार को अंदरूनी जांच में पता चला कि अधिकारी और नेता घोटाले में फंस सकते हैं तो उसने परीक्षाएं निरस्त कर दीं ताकि इन्हें बचाया जा सके। 

इसके विपरीत जिन परीक्षाओं की जांच में इतना कुछ निकल कर आया है (जैसे कि स्नातक स्तरीय परीक्षा) उन्हें अभी तक निरस्त नहीं किया गया है। 

पंवार लोक सेवा आयोग से परीक्षाएं करवाने के निर्णय पर भी सवाल खड़े करते हैं। वह कहते हैं कि जो आयोग 5 साल में पीसीएस परीक्षाएं आयोजित नहीं करवा पा रहा वह इतनी सारी परीक्षाएं कैसे आयोजित करेगा। 

वह कहते हैं कि फिर सवाल आयोग का नहीं है सवाल ईमानदार अधिकारियों और प्रक्रिया का है। बिल्डिंग बदलने से सिस्टम नहीं बदल जाएगा। परीक्षाएं चाहे लोक सेवा आयोग करवाए या अधीनस्थ सेवा चयन आयोग, परीक्षाएं ईमानदारी से करवाएं और पारदर्शिता रखें। 

दबाव और असर 

अलग उत्तराखंड राज्य के लिए लाखों लोगों ने सालों संघर्ष इस उम्मीद में किया था कि युवाओं को रोज़गार के लिए पलायन न करना पड़े। लेकिन राज्य बनने के बाद से ही राज्य युवाओं से सत्तासीन नेता और दलालों की फौज छल करती आ रही है। 

इसीलिए राज्य बनने के करीब 22 साल बाद भी उत्तराखंड के लाखों युवा रोज़गार की तलाश में हर साल अपने घरों को छोड़ मैदानों में पलायन कर रहे हैं। लाखों की संख्या में युवा राज्य सरकार की नौकरियों के लिए सालों तैयारी करते हैं लेकिन भर्तियों में हो रहे ये घोटाले उनका हक मार रहे हैं। 

राज्य आंदोलन के बाद पहली बार इतनी बड़ी संख्या में युवा, महिलाएं और एक्टिविस्ट सड़क पर हैं। इसका असर भी दिख रहा है और पहली बार ही इतनी बड़ी संख्या में घोटालों की जांच के आदेश हुए हैं, जांच हो रही हैं। 

लेकिन जांच के नाम पर गुस्से पर पानी डालने का तरीका भी पुराना है। हालांकि इस बार लगता नहीं कि आसानी से इस आक्रोश को थामा जा सकेगा।

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