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उत्तराखंड: कैंसर के इलाज के चलते बढ़ी आर्थिक तंगी से परेशान डॉक्टर दंपत्ति ने की आत्महत्या

काशीपुर में एक डॉक्टर 12 साल से अपनी पत्नी का कैंसर का इलाज करा रहे थे, आर्थिक तंगी से तनाव में चल रहे दंपत्ति ने आत्महत्या कर ली।
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फ़ोटो साभार: Hindustan

कैंसर जैसी घातक बीमारी और आर्थिक तंगी की जुगलबंदी इसकदर हावी हुई कि एक डॉक्टर दंपत्ति ने मौत को गले लगाना ही बेहतर समझा। जिस घटना का ज़िक्र हम कर रहे हैं वो उत्तराखंड के काशीपुर की है।

पिछले 12 सालों से एक डॉक्टर अपनी पत्नी का कैंसर का इलाज करा रहे थे, जमा पूंजी पूरी तरह से खत्म हो चुकी थी, हालात ये हो गए थे, कि इकलौते बेटे की फीस तक न भरी जा रही थी, जिसके कारण पिछले तीन सालों से वो स्कूल नहीं गया। इन सब चीज़ों का बोझ इतना ज़्यादा हो गया कि वो इसे झेल नहीं पाया। आख़िरकार उसने अपनी पत्नी के साथ एनेसथीसिया का इंजेक्शन लगाकर आत्महत्या कर ली।

इस पूरी घटना का खुलासा हुआ बुधवार यानी 1 जून की सुबह। जब घर में बच्चा तो जग गया लेकिन उसके माता-पिता काफी देर तक नहीं उठे। लंबे इंतज़ार के बाद उसने पड़ोसियों की मदद ली, इसके बाद पुलिस को फोन किया गया, तब तक पता चला कि दोनों की मौत हो चुकी है।

बताया जो रहा है कि ये परिवार मूलरूप से देहरादून का रहने वाला है, लेकिन पिछले 10 सालों से काशीपुर की सैनिक कॉलोनी में किराए पर रह रहा है, इनके परिवार में डॉक्टर इंद्रेश शर्मा, कैंसर पीड़िता पत्नी वर्षा शर्मा और इन दोनों का 12 साल का बेटा इशान रहता था। पुलिस के मुताबिक आत्महत्या करने वाले दंपत्ति के पास एक सुसाइड नोट बरामद किया गया है जिसमें किसी पर कोई दोष मढ़ा नहीं गया। इसके अलावा शवों के आस-पास इंजेक्शन, सिरिंज और काफी सारी दवाईयां भी पाई गई हैं।

पुलिस की कहना है कि बहुत हद तक मामला आत्महत्या का ही है, लेकिन मामले की हर एंगल से जांच की जाएगी।

ख़ैर.. ये तो एक घटना है, इसके अलावा कैंसर से मरने वालों की संख्या हर दिन बढ़ती जा रही है, इसके अलावा ऐसी लाईलाज बीमारी का खर्च नहीं उठा पाने के कारण लोग आत्महत्या तक का रास्ता अपना लेते हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अमेरिका के ओहियो स्थित क्लीवलैंड क्लिनिक के हेमेटोलॉजी एंड मेडिकल ऑन्कोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. जामे अब्राहम के मुताबिक भारत में जिस तरह से गंभीर बीमारियां बढ़ रही हैं, इसे रोकने के लिए यह बेहद जरूरी है कि वो इसकी रोकथाम और उपचार पर तेजी से काम शुरू करे। भारत को कैंसर के टीके, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डाटा डिजिटल तकनीक को एडवांस्ड करना जरूरी है। डब्ल्यूएचओ ने रिपोर्ट किए जा रहे नए सालाना कैंसर के केसों की 2020 की रैंकिंग में चीन और अमेरिका के बाद भारत को तीसरे स्थान पर रखा था।

पिछले कुछ सालों के आंकड़ों के अनुसार, भारत में पुरुषों में सबसे ज्यादा मुंह और फेफड़ों के कैंसर के मामले सामने आए। वहीं महिलाओं में सबसे ज्यादा मामले ब्रेस्ट और गर्भाशय के कैंसर के रहे। भारत में साल 2018 में ब्रेस्ट कैंसर से 87 हजार महिलाओं की मौत हुई थी।

बीते महीने में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया था कि देश में 2020 से 2022 के बीच अनुमानित कैंसर के मामले और इससे होने वाली मृत्यु दर में वृद्धि हुई है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के अनुसार, 2020 में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में कैंसर के अनुमानित मामले 2020 में 13.92 लाख (लगभग 14 लाख) थे जो 2021 में बढ़कर 14.26 लाख हुए और 2022 में बढ़कर 14.61 लाख पर पहुंच गए थे।

2020 में भारत में कैंसर के कारण अनुमानित मृत्यु दर 7.70 लाख (लगभग सात लाख 70 हजार) थी जो 2021 में बढ़कर 7.89 लाख और 2022 में बढ़कर 8.8 लाख हो गई थी।

ये आंकड़े तो डराने वाले हैं ही, लेकिन इसमें ध्यान रखने वाली बात ये है कि कैंसर जैसी बीमारी महंगी बहुत है, ऊपर से हमारे देश में जहां अस्पतालों और डॉक्टरों की इतनी कमी है। ऐसे में हमे बीमारी के हावी हो जाने से पहले ख़ुद का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

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