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उत्तराखंड: रुद्रप्रयाग जिले के गावों में रेल लाइन निर्माण के चलते घरों में आयी दरार  

चार धाम परियोजना उत्तराखंड में तबाही ला सकती है।उस तबाही की आहट रुद्रप्रयाग जिले के गांवों में रेलवे लाइन निर्माण के चलते घरों में आई दरारों में देखी जा सकती है।
Uttarakhand
पौड़ी जिले के श्रीनगर में रेल लाइन के लिये बनायीं जा रही सुरंग, फोटो- हिमांशु चौहान

उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग में विकास के लिए किया जा रहा रेल लाइन निर्माण का कार्य मरोड़ा गांव के लोगो के लिए खौफ का कारण बन गया है। अभी सुरंग को बनाने का कार्य शुरू भी नहीं हुआ है और घरो में दरार पड़नी शुरू हो गयी है। इसके कारण गांव के लोगो को किसी बड़ी अनहोनी का डर सताने लगा है।

गांव के लोगो ने प्रशासन और रेलवे बोर्ड से क्षेत्र का मुआयना करने की मांग की। जिला प्रशासन से अधिकारियों ने आकर क्षेत्र का जायजा लिया लेकिन काफी समय बीत जाने के बाद भी प्रशासन की ओर से कोई कार्यवाही नहीं होते देख गांव वालो  ने रेल विकास निगम (RVNL) के खिलाफ आंदोलन करना प्रारम्भ किया। गांव के लोगो द्वारा किये जा रहे आंदोलन को देखते हुए रेल विकास निगम की ओर से गांव वालो को गांव से विस्थापित कराने का भरोसा दिलाया गया है।

आप को बता दें कि उत्तराखंड राज्य में ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना का निर्माण काम तेजी से आगे बढ़ रहा है। जिसको 10 चरणों में पूरा किया किया जाना है।

इन दिनों सुमेरपुर से गौचर के लिए रेल परियोजना का निर्माण कार्य चल रहा है, लेकिन जिन गांवों के नीचे सुरंग बन रही है, वहां के लोगों का चैन छिन गया है। लोगों के घरों में दरारें पड़ने लगी है, डर के मारे लोग रात-रातभर सो नहीं पाते। मरोड़ा गांव में भी यही हाल है। यहां कई मकानों में दरारें पड़ गई है, जिससे भविष्य में कोई दुर्घटना घट सकती है। इसी प्रकार रुद्रप्रयाग जिले के ही नरकोटा गांव में भी सुरंग निर्माण के कारण कई आवासीय भवनों पर बड़ी दरारें पड़ गई है। पीड़ित परिवार खौफ में जिंदगी गुजार रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार और प्रशासन पीड़ित परिवारों की परेशानी को अनदेखा कर रहे हैं। इस वजह से वहां के ग्रामीणों के बीच में भारी आक्रोश है।

रुद्रप्रयाग जिले के मरोड़ा गांव में रेल निर्माण कार्य के चलते आयी दरार, फोटो - वीरेंदर सिंह(ग्रामीण)

क्या है चारधाम रेल परियोजना?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2014 में उत्तराखंड में स्थित चारों धाम बद्रीनाथ, केदारनाथ, यमनोत्री और गंगोत्री को रेल से जोड़ने का संकल्प लिया। जिसको पूरा करने के लिए रेल विकास निगम लिमिटेड(RVNL) और उत्तराखंड सरकार एक साथ काम कर रही है।

RVNL के आधिकारिक यूट्यूब चैनल पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार 327 किलोमीटर की इस रेल लाइन में लगभग 75 हजार करोड़ रूपए की लागत आने की उम्मीद है। इस परियोजना में ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक कुल 125 किमी की रेल लाइन में 16 पुल और लगभग 107 किमी लम्बाई की 17 सुरंग बनाई जानी है, जिसमें देवप्रयाग में बनायीं जाने वाली सुरंग भारत की सब से लम्बी सुरंग होगी जिसकी लम्बाई लगभग 15 किमी होगी।

इसके साथ ही परियोजना में रेलवे लाइन को बद्रीनाथ धाम के लिये कर्णप्रयाग से जोशीमठ तक बढ़ाया जाना है, जिसकी लम्बाई 68 किमी की होगी। जिसमें 12 पुल और 63 किमी लम्बाई की 11 सुरंगो का निर्माण होना है। साथ ही केदारनाथ धाम के लिये कर्णप्रयाग से सोनप्रयाग तक 91 किमी की रेल लाइन में 20 पुल और 80 किमी की 19 सुरंगो का निर्माण होना है।

चारधाम रेल परियोजना के अंतर्गत ही गंगोत्री और यमुनोत्री के लिए देहरादून के डोईवाला से उत्तरकाशी तक 102 किमी की रेल लाइन प्रस्तावित है, जिसमें 17 पुल और 70 किमी की 21 सुरंगो का निर्माण होना है। परियोजना की वर्तमान स्थिति को देखे तो ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल लाइन के लिए सुरंगो और स्टेशनों का निर्माण कार्य शुरू हो चुका है। शेष परियोजना का अंतिम सर्वे समाप्त हो चुका है।

रेल विकास निगम अपने यूट्यूब चैनल के माध्यम से दावा करती है कि चार धाम रेल परियोजना विकास का प्रतीक है, जिस के बनने से चार धाम की यात्रा वर्तमान समय में यात्रा में लगने वाले समय से आधे समय में पूरी हो जायेगी। साथ में 345 किमी राज्य की सीमा चीन से लगी है।।इसलिए इनका यह भी दावा है कि इस रेलवे लाइन के निर्माण के बाद देश की सेना का साजों सामान आसानी से सीमाओं तक पहुंच सकेगा। 

क्यों चिंतित है पर्यावरणविद ?

रेल विकास निगम के द्वारा दी जानकारी से यह साफ हो जाता है कि चारधाम रेल परियोजना का अधिकांश हिस्सा सुरंगों से होकर गुजरता है, इस कारण इन सुरंगो के निर्माण के लिये पहाड़ो को खोद कर उन्हे खोखला किया जायेगा, जिस कारण इन पहाड़ो से निकलने वाले प्राकृतिक जल स्त्रोत प्रभवित होंगे.

डाउन टू अर्थ में छपी अपनी एक रिपोर्ट में वरिष्ठ पत्रकार त्रिलोचन भट्ट लिखते हैं कि टिहरी जिले में पड़ने वाली दोगी पट्टी के दर्जनों गांव के प्राकृतिक जल स्रोत सुरंग निर्माण के कारण सुख चुके है। त्रिलोचन भट्ट का कहना है कि इन गावो के जल स्त्रोत का पानी कहाँ गया, इस बात का अंदाजा पहाड़ी के नीचे बनी सुरंग के एग्जिस्ट प्वाॅइंट से बाहर निकल रहे पानी को देख कर लगाया जा सकता है।

इसी सन्दर्भ में वानिकी कॉलेज रानीचौरी में एनवायर्नमेंटल साइंस के एसोसिएट प्रोफ़ेसर एवं पर्यावरण विशेषज्ञ डा.एसपी सती का कहना है कि यदि सुरंग बनाने में पर्यावरण के अनुकूल तकनीक का इस्तेमाल हो तब भी पहाड़ियों का ड्रेनेज सिस्टम प्रभावित होता है।

ह्यूमन राइट्स लॉयर और कंज़र्वेशन ऐक्टिविस्ट रीनू पॉल का कहना है कि जैसे-जैसे उत्तराखंड के पहाड़ो में निर्माण कार्य बढ़ रहा है, वैसे ही राज्य में आपदाएं भी बढ़ रही है। सरकारे विकास के नाम पर प्रकृति का दोहन लगातार बढ़ता जा रहा है, जिसका सीधा असर राज्य के पारिस्थितिक तंत्र पर हो रहा हैं। राज्य की जनता को भी समझना होगा कि जो विकास हो रहा है, उसकी क़ीमत हमे किस प्रकार चुकानी होगी?

एनवायरनमेंट कन्ज़र्वेशन जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार हिमालय में इस प्रकार का निर्माण सामान्य रूप से पारिस्थितिकी तंत्र और विशेष रूप से कृषि पारिस्थितिकी तंत्र दोनों को प्रभावित करने के साथ-साथ उन लोगों की आजीविका में असंतुलन पैदा करेगा जो कुल मिलाकर कृषि अर्थव्यवस्था पर निर्भर हैं।

आपको बता दे कि यह अध्ययन उत्तराखंड राज्य के टिहरी गढ़वाल जिले के देवप्रयाग प्रखंड के एक छोटे से गांव 'मलेथा' में किया गया था। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि मलेथा गाँव की जलवायु और भौगोलिक परिस्थितियाँ बड़ी संख्या में सब्जियों, फलों, अनाज, बाजरा, दालों और चारे के लिए उपयोग होने वाले पौधों की खेती के लिए उपयुक्त हैं, जो मूल निवासियों के जीवन यापन के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन चारधाम रेल लाइन इस गांव में रह रहे किसानो के खेतो से होकर गुजरती है, जिस कारण गांव के किसानो की बहुत सी जमीन रेल लाइन के निर्माण कार्यो के लिये अधिगृहित की गयी।

इस रेल परियोजना में अधिकांश उपजाऊ भूमि शामिल है इसी कारण क्षेत्र की पारंपरिक फसल विविधता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। यह अध्ययन केवल एक ही गांव के लिए किया गया है लेकिन इस प्रकार के और भी बहुत से गांव हो सकते है जो इस परियोजना से इसी प्रकार प्रभावित होंगे।

क्या चाहते है स्थानीय लोग ?

चारधाम रेल परियोजना से प्रभावित लोगों का कहना है कि जिनकी जमीन रेल परियोजना में गई है, उन्हें न तो अभी तक भूमि का मुआवजा पूरा मिला है और न ही इस परियोजना से भूमिधरों को कोई लाभ।

रेल परियोजना शुरू होने से पहले ही लोगों में असंतोष व रेलवे अधिकारियों से नाराजगी इस बात को लेकर है कि जिन प्रभावितों की भूमि रेलवे लाइन के निर्माण में गई है, उन बेरोजगार युवाओं को रोजगार नहीं दिया जा रहा है।

मरोड़ा गांव के प्रधान और रेल प्रभावित संघर्ष समिति के सदस्य वीरेंदर सिंह का कहना है कि पिछले काफी समय से रेल विकास बोर्ड और जिला प्रशासन को हम अपनी समस्या बता रहे है, प्रशासन की और से जाँच टीम आयी और चली गयी लेकिन हमारी किसी समस्या का समाधान अभी नहीं हुआ। सरकार के इस बरताव को देखते हुए हमारे द्वारा  रेलवे प्रभावित संघर्ष समिति का गठन कर रेल विकास बोर्ड के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया।

काफी समय आंदोलन करने के बाद 16 नवम्बर 2021 को रेल विकास निगम से वार्ता के दौरान हम लोगो को विस्थापित करने की बात कही गयी लेकिन अभी तक लिखित में कुछ नहीं दिया गया है। वीरेंदर सिंह आगे बताते हैं की हमारे घरो में दरारे पड़ी हुई है। मौत के साये में हम लोगो को अपने घरों में रहना पड़ रहा है। हमारी सरकार से मांग है कि जल्द से जल्द हमे मुआवजा मिले और हम अपने घरो को फिर से बना पाये। 

RVNL दवा करता है कि चारधाम रेल परियोजना से राज्य में युवाओ को रोजग़ार मिलेंगे लेकिन रेल प्रभावित संघर्ष समिति के सदस्य देवी प्रसाद थपियाल का कहना है कि इस परियोजना में हमारी जमीन गयी, घरो में दरार आयी लेकिन सरकार द्वारा उसका कोई मुआवजा नहीं दिया गया और ना ही गांव के युवाओ को रोजगार मिला।हालांकि रेल विकास निगम में उप महाप्रबंधक दिनेश चमोला ने हमे भरोसा दिलाया है कि जल्द ही प्रत्येक घर से एक व्यक्ति को RVNL में रोजगार दिया जायेगा। घरों में आयी दरारो के कारण किसी बड़े खतरे का डर हमेशा बना रहता है। अतः  सरकार से हमारी यह मांग है कि जल्द से जल्द प्रभावित परिवारों को उसका मुआवजा दे। युवाओं लिए इस परियोजना में रोजग़ार की व्यवस्था करें।

मरोड़ा गांव में मकानों में आयी दरारों को लेकर उप प्रभागीय न्यायाधीश (SDM) रुद्रप्रयाग अपर्णा ढोंढियाल का कहना है कि गांव वालों के घरों में जो दरार आयी है उन की जाँच हो चुकी है। जांच के अनुसार जिन घरो में दरार आयी है, वह घर रहने लायक नहीं है, प्रशासन द्वारा नियुक्त उप महाप्रबंधक दिनेश चमोला की वार्ता रेलवे प्रभावित संघर्ष समिति से हो चुकी है, इस वार्ता के अनुसार पीड़ितों को उचित मुआवजा देकर विस्थापित किया जायेगा।

लेखक देहरादून स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार है|

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