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उत्तराखंड: कमेटी ने कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व में अवैध निर्माण के लिए अधिकारियों को ज़िम्मेदार ठहराया

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) द्वारा नियुक्त एक कमेटी ने कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व में जंगलात के अधिकारियों द्वारा शुरू किये गए निर्माण कार्यों में भारी अनियमितताएं हैं और उसकी ओर से जिम्मेदार व्यक्तियों के खिलाफ दण्डात्मक कार्यवाई की सिफारिश की है।
Uttrakhand

कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व (सीटीआर) के भीतर अवैध निर्माण कार्य और पेड़ों की कटाई के संबंध में हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष पेश की गई राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनसीटीए) द्वारा नियुक्त कमेटी की रिपोर्ट में चौंकाने वाले विवरणों का खुलासा हुआ है। रिपोर्ट ने सीटीआर के वन अधिकारियों के द्वारा किये जा रहे अवैध कार्यों का खुलासा किया है।

कमेटी ने अपनी सिफारिश में कहा है कि राज्य सरकार को इस बारे में बिना किसी आवश्यक मंजूरी के निर्माण गतिविधियों में संलिप्त अधिकारियों के खिलाफ सतर्कता जांच गठित करनी चाहिए। 

कमेटी ने नकली सरकारी दस्तावेज तैयार करने के लिए, जो कि एक गंभीर अपराध है, संभागीय वन अधिकारी (डीएफओ) कालागढ़, किशन चंद द्वारा पेश किये गए दस्तावेजों की प्रमाणिकता की पुष्टि करने की भी सिफारिश की है।

कमेटी के विचार में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के क्षेत्रीय कार्यालय को वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 (एफसीए) में दिए गए प्रावधानों के मुताबिक जिम्मेदार अधिकारियों एवं अन्य सक्षम अधिकारियों के खिलाफ वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 (डब्ल्यूपीए) और भारतीय वन अधिनियम, 1927 (आईएफए) के उल्लंघन के लिए कार्यवाई शुरू करनी चाहिए।

उच्च न्यायलय के निर्देश पर एनटीसीए द्वारा इस मामले की जाँच के लिए 8 सितंबर को एक कमेटी गठित की गई थी। अदालत ने अधिवक्ता एवं पर्यावरण कार्यकर्त्ता गौरव बंसल के द्वारा दायर की गई एक रिट याचिका पर आदेश दिया था, जिन्होंने इसमें अनियमितताओं का आरोप लगाया था। ये अनियमितताएं कंडी रोड पर निर्माण, मोरगाहट्टी एफआरएच परिसर और पखराऊ वन विश्राम गृह (एफआरएच) परिसर में भवन निर्माण कार्य, पखराऊ एफआरएच के पास एक जलनिकाय के निर्माण और पखराऊ सीटीआर में प्रस्तावित टाइगर सफारी में पेड़ों की कटाई से संबंधित थीं।

कमेटी ने 26 सितंबर से चार दिनों तक इन स्थलों का दौरा किया और 22 अक्टूबर को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी।

रिपोर्ट के मुताबिक, कमेटी ने फील्ड डायरेक्टर, राहुल (जो सिर्फ अपने पहले नाम का ही इस्तेमाल करते हैं), और डीऍफ़ओ कालागढ़ के पास उपलब्ध सभी वैधानिक दस्तावेजों की समीक्षा की। रिपोर्ट में पाया गया कि कंडी रोड, मोरघट्टी एफआरएच, पखराऊ एफआरएच और पखराऊ के पास जलनिकाय का निर्माण कार्य करने हेतु कोई वैधानिक अग्रिम मंजूरी प्राप्त नहीं की गई थीं। इस काम को डब्ल्यूपीए, एफसीए, आइएफ़ए के नियमों का उल्लंघन कर निष्पादित किया जा रहा था, जो दंडात्मक प्रावधानों के अंतर्गत आते हैं।

इनके हानिकारक दुष्प्रभावों को कम से कम करने के लिए, कमेटी ने मोरघट्टी और पखराऊ में किये जा रहे सभी अवैध निर्माणों को ध्वस्त करने पर्यावरण-बहाली के काम को तत्काल शुरू किये जाने की सिफारिश की है। इसकी ओर से यह भी निर्देश दिया गया है कि इस कार्य में जो भी लागत आई है उसे संबंधित अधिकारियों से वसूला जाये।

रिपोर्ट कहती है कि “बिना किसी सक्षम अनुमोदन एवं विभिन्न क़ानूनी प्रावधानों/अदालती आदेशों का उल्लंघन कर सबसे अधिक बाघों के घनत्व वाले आवासों में से एक में चलाई जा रही सभी निर्माण गतिविधियाँ प्रशासनिक एवं प्रबंधकीय विफलता दोनों का ही एक शानदार नमूना है। इस प्रकार के गंभीर उल्लंघन के लिए जिम्मेदार सभी वन अधिकारियों के खिलाफ उचित कार्यवाई किये जाने की आवश्यकता है।”

सीटीआर में सिर्फ पखराऊ टाइगर सफारी के लिए ही जरुरी मंजूरी मिली थी। लेकिन वहां पर भी पेड़ों की कटाई के मामले में कई अनियमितताएं देखने को मिली हैं।

कमेटी ने काटे गए पेड़ों के सटीक आकलन के लिए भारतीय वन सर्वेक्षण और नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर जैसे संस्थानों की मदद से रिमोट सेंसिंग डेटा के जरिये पता लगाने की सिफारिश की है। कमेटी ने यह भी सुझाव दिया है कि इस परियोजना से बचा जा सकता है यदि यह विवादों के बीच में सार्वजनिक धन की फिजूल खर्ची बन जाता है।

न्यूज़क्लिक ने जब इस बाबत संपर्क किया तो फील्ड डायरेक्टर ने एनटीसीए की रिपोर्ट पेश किये जाने पर अपनी अनभिज्ञता जाहिर करते हुए हमें आश्वस्त किया कि वे इस बारे में कुछ दिनों में अपना पक्ष रखेंगे। लेकिन बाद में उन्होंने हमारे फोन काल्स या मैसेज का कोई जवाब नहीं दिया। मुख्य वन्यजीव प्रबंधक (सीडब्ल्यूएलडब्ल्यू) जे.एस सुहाग और डीएफओ कालागढ़ ने भी इस पर अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

याचिकाकर्ता बंसल ने कहा कि उन्होंने एनटीसीए के सचिव सदस्य को सीटीआर की सीमा के भीतर पुलों और दीवारों के अवैध निर्माण कार्य और पेड़ों की कटाई को लेकर उनका ध्यान खींचने के मकसद से एक क़ानूनी नोटिस भेजा था।

उनका कहना था कि सीमेंट को छोड़कर इस अवैध निर्माण के लिए सभी आवश्यक सामग्रियों को सीटीआर के भीतर से हासिल किया जा रहा है, जिसके चलते प्राकृतिक संसाधनों का अवैध खनन हो रहा है और कॉर्बेट परिदृश्य की समृद्ध जैव विविधता को अपूरणीय एवं अपरिवर्तनीय क्षति और नुकसान पहुँच रहा है।

उन्होंने नवीन एम राहेजा बनाम भारत सरकार एवं अन्य (1998) मामले में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का हवाला दिया, जिसमें शीर्ष न्यायालय ने सीटीआर की सीमा के भीतर किसी भी सड़क के निर्माण पर रोक लगा दी थी और राज्य या किसी भी अन्य के द्वारा पेड़ न काटे जाने के लिए निर्देशित किया था। उन्होंने इस बात पर अफ़सोस जताया कि सीटीआर में इस आदेश का खुलेआम उल्लंघन किया गया है।

कॉर्बेट, जो कि 231 बाघों का घर है, जिसे दुनिया में बाघों के सबसे अधिक घनत्व वाला अभयारण्य माना जाता है, जिसमें प्रति 100 वर्ग किमी पर 14 बाघ पाए जाते हैं।

सीटीआर के भीतर चल रहे नए अवैध निर्माण कार्यों में सनेह से पखरो तक एक पांच किमी लंबी सात फुट की दीवार, मोरघट्टी से कालागढ़ तक एक पांच किमी का मार्ग, और कालागढ़ से पाखरो के बीच में एक 17 किमी लंबा और 12 पुलों का अवैध निर्माण कार्य शामिल है। 

कंडी सड़क का निर्माण कार्य 

कंडी रोड, जो रामनगर को कोटद्वार से जोड़ती है, सीटीआर के दक्षिणी हिस्से से गुजरती है, एक जंगलात की सड़क है। अतीत में इस पर आरसीसी बीम और क्रॉस बीम ढांचे का निर्माण कर इसे मजबूती प्रदान की गई थी। इस सड़क की चौड़ाई समान रूप से लगभग 3 मीटर है।

इस स्थल पर अपने दौरे के दौरान, एनटीसीए कमेटी ने पाया कि पखराऊ की तरफ जाते समय कालागढ़ एफआरएच के ठीक बाद, करीब 1.2 किमी की दूरी तक कंडी रोड की उंचाई को 5 फीट तक ऊँचा करने के लिए धरती से निकलने वाली सामग्रियों (मिटटी और पत्थर) का इस्तेमाल किया गया है। मिट्टी काटने वाले भारी अर्थमूवर्स का इस्तेमाल कर अंधाधुंध तरीके से आसपास के वन क्षेत्र (50 से 100 मीटर के भीतर) से मिट्टी लाइ गई थी, जिसकी वजह से वन्यजीवों के मौलिक आवास को व्यापक मात्रा में और अनिर्वचनीय क्षति पहुंची है। 

इतने विशाल पैमाने पर जंगल और टाइगर रिज़र्व के भीतर से धरती की खुदाई करना डब्ल्यूपीए, आईएफए और एफसीए का स्पष्ट उल्लंघन है। गूगल अर्थ के एक स्क्रीनशॉट इमेज में कंडी रोड में स्थान पर, बाघों के आवास को नुकसान पहुंचाकर भारी मात्रा में धरती की सामग्री के ढेर को जमाकर इसकी ऊंचाई को बढ़ाया गया है।

जिला वन अधिकारी कालागढ़, जो कमेटी के साथ चल रहे थे, ने कमेटी को सूचित किया कि गश्त के उद्देश्य से साल भर सड़क को मोटर वाहन चलाने योग्य बनाने के लिए इस काम को किया जा रहा था। हालाँकि कमेटी ने पाया कि वन्यजीवों के आवास को नुकसान पहुंचाकर इस प्रकार के व्यापक मरम्मत का काम अवांछित था और ऐसा प्रतीत होता है कि सड़क निर्माण के कार्य को धातु/तारकोल युक्त सड़क में अपग्रेड करने के मकसद से किया जा रहा था। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि यह सर्वोच्च न्यायालय के 9 अप्रैल, 2001 के नवीन राहेजा बनाम भारत सरकार के आदेश का उल्लंघन है। 

कमेटी ने महसूस किया कि अग्रिम पंक्ति वाले कर्मचारियों ने भारी दबाव के चलते इस काम को अपनी मंजूरी दी थी। उसकी ओर से स्पष्ट तौर कहा गया है कि रेंज ऑफिसर और डीएफओ कालागढ़ प्रत्यक्ष रूप से समूचे काम की निगरानी कर रहे थे। 

कमेटी ने डीएफओ कालागढ़ से चल रहे काम के लिए वित्तीय एवं तकनीकी मंजूरी के बाबत पूछताछ की थी, जिसके लिए उन्होंने बताया कि अभी तक कोई स्वीकृति जारी नहीं हुई है। फिर भी, उन्होंने इसके लिए 31 अगस्त, 2021 को एक पत्र के माध्यम से क्षेत्र निदेशक, सीटीआर से 43.03 लाख रूपये की वित्तीय मंजूरी मांगी थी। लेकिन क्षेत्र निदेशक ने डीएफओ कालागढ़ से ऐसे किसी भी पत्र के प्राप्त होने से इंकार किया है और कहा कि कंडी रोड पर चल रहा निर्माण कार्य बिना उनके कार्यालय की मंजूरी के किया जा रहा है। इन कार्यो को रोकने के लिए मौखिक एवं लिखित संवाद के बावजूद, डीएफओ कालागढ़ कार्य का निष्पादन करना जारी रखा।

मोरघट्टी एफआरएच परिसर और पखराऊ एफआरएच परिसर में भवन निर्माण  

कमेटी के सदस्यों ने पाया कि मोरघट्टी एफआरएच के भीतर स्वतंत्र भवनों की चार ईकाइयों का निर्माण कार्य चल रहा था। इसके साथ ही एक पुराने भवन का विस्तार कार्य भी जारी था। इसी तरह का निर्माण कार्य पखराऊ एफआरएच परिसर के भीतर भी देखने को मिला।

हैरानी की बात तो यह है कि डीएफओ कालागढ़ ने इन एक जैसे निर्माण कार्यों के लिए कमेटी को अलग-अलग ड्राइंग सौंपे थे, जो देखने में जाली दस्तावेज लग रहे थे। “कॉटेज” शब्द को झोपड़ी/मुख्यालय से बदल गया था। नियमों के मुताबिक, टाइगर रिज़र्व के भीतर पर्यटन से संबंधित किसी भी गतिविधि को संचालित करने के लिए डब्ल्यूपीए और एफसीए के प्रावधानों के अनुसार ही आवश्यक वैधानिक मंजूरी को प्राप्त करने के बाद ही किया जा सकता है। सीटीआर प्रबंधन को इस प्रकार की कोई अनुमति नहीं प्राप्त थी। इसलिए इस प्रकार के निर्माण कार्यों के लिए जिम्मेदार अधिकारीयों के खिलाफ आपराधिक दायित्व को तय किया जाना चाहिए।

सदस्यों ने अपनी रिपोर्ट में इंगित किया है कि कमेटी के निरीक्षण के दौरान भी वहां पर अवैध काम जारी था। 

पखराऊ एफआरएच के पास जलाशय का निर्माण कार्य  

कमेटी ने पाया कि पखराऊ एफआरएच के सामने एक जलाशय को तैयार करने के लिए बड़े पैमाने पर उत्खनन कार्य किया गया था। हालाँकि डीएफओ कालागढ़ ने इस बाबत बताया कि इस काम के लिए एक भी पेड़ नहीं काटा गया है, लेकिन मौजूदा परिवेश इस बात की गवाही दे रहे थे कि वहां पर पेड़ों को काटा गया था।

इसके अलावा, जलाशय की लोकेशन इस बात की ओर इंगित कर रही थी कि इसे पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए वन्यजीवों को आकर्षित करने के लिए विकसित किया जा रहा है, न कि आवास या वन्यजीव प्रबंधन में किसी हस्तक्षेप के तौर पर किया जा रहा था।

प्रस्तावित टाइगर सफारी में पेड़ों की अवैध कटाई 

कमेटी ने प्रस्तावित टाइगर सफारी स्थल का भी दौरा किया, जहाँ कथित तौर पर 10,000 पेड़ों को काट दिया गया था। उत्तराखंड वन विभाग ने सफारी के लिए इस शर्त पर मंजूरी हासिल की थी कि 163 से अधिक पेड़ों को नहीं काटा जायेगा।

इस यात्रा के दौरान कमेटी ने पाया कि प्रस्तावित सफारी की उत्तरी परिधि पर एक सड़क का निर्माण कार्य किया गया है जो तीन स्थानों पर पखराऊ-कोटद्वार वाली मुख्य सड़क से जुड़ी हुई है। डीएफओ कालागढ़ ने इस बाबत स्पष्टीकरण दिया कि उत्तरी भाग बनी सड़क मूलतः एक अग्नि रेखा थी, और उक्त फायर लाइन से पखराऊ-कोटद्वार मुख्य सड़क को जोड़ने वाली तीन सड़कें लकड़ी ढोने वाली लकीरें हैं।

दुर्भाग्यवश, राजनेता और नौकरशाह अपने निहित स्वार्थों की खातिर इस प्रतिष्ठित परिदृश्य के साथ हस्तक्षेप करने, परेशान करने और नुकसान पहुंचाने पर तुले हुए हैं। 

राजनेता और नौकरशाह वन्यजीवों के आवास का शोषण कर रहे हैं 

इस वर्ष फरवरी में, सर्वोच्च न्यायलय को पखरो-मोरघट्टी-कालागढ़-रामनगर रूट पर चलने वाली बस सेवा पर रोक लगानी पड़ी थी, जिसे कंडी रोड के नाम से जाना जाता है, क्योंकि यह सीटीआर और इसके बफर जोन के मुख्य प्रजनन क्षेत्र से होकर गुजरती है।

उत्तराखंड के वन मंत्री हरक सिंह रावत ने अपने कोटद्वार निर्वाचन क्षेत्र के मतदाताओं को रिझाने के लिए इस बस सेवा को शुरू किया था, जिससे कि पहाड़ी राज्य के कुमाऊँ और गढ़वाल मंडल के बीच की दूरी और यात्रा के समय को कम किया जा सके। उन्होंने पूर्व में भी इसी रूट पर सड़क निर्माण की कोशिश की थी, और उस पर भी शीर्ष अदालत ने रोक लगा दी थी।

कुछ महीने पहले एनटीसीए ने बस सेवा मामले पर तथ्यपरक रिपोर्ट मांगी थी। तब भी, याचिकाकर्ता बंसल ने वन्यजीव कानूनों के उल्लंघन का हवाला देते हुए सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया था, जो कहता है कि बाघों के संरक्षण को सुनिश्चित करने के लिए कोर एरिया में किसी भी प्रकार का व्यवधान नहीं किया जाना चाहिए।

जैसा कि राजाजी टाइगर रिज़र्व के तत्कालीन उप निदेशक के रूप में चंद भी 2016 में उस टाइगर रिज़र्व में अवैध निर्माण कार्य के लिए सुर्ख़ियों में रहे थे।

डीवीएस खाती, जो उस दौरान सीडब्ल्यूएलडब्ल्यू थे, ने इन अवैध कार्यों के लिए अनुमति देने से इंकार कर दिया था।

उस दौरान हरिद्वार और बेरिवारा रेंज के भीतर कई जगहों पर सीमेंट की सड़कें बनाई गई थीं। राजाजी टाइगर रिज़र्व के गेस्ट हाउस के चारों ओर कंक्रीट से बनी कई दीवारों का निर्माण किया गया था, जो कि एफसीए और डब्ल्यूपीए मानदंडों के खिलाफ जाकर एनटीसीए द्वारा जारी किये गए फंड को अवशोषित कर अंजाम दिया गया था। राजाजी अभयारण्य के भीतर सुरेश्वरी देवी नामक एक मंदिर को भी मानदंडों का उल्लंघन करते हुए भव्य रूप से विस्तारित आकार दिया गया था।

लेखिका चंडीगढ़ स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं जो @seema_env हैंडल से ट्वीट करती हैं।  

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

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