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पुरोला मामला: ‘महापंचायत’ के ख़िलाफ़ याचिका ख़ारिज, इलाके में धारा 144 लागू

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से इनकार करते हुए याचिका कर्ताओं को हाईकोर्ट जाने के लिए कहा। इसके बाद उत्तराखंड हाईकोर्ट याचिका पर सुनवाई के लिए तैयार हो गया। ये सुनवाई कल यानी गुरुवार को होगी यानी उसी दिन जिस दिन महापंचायत का ऐलान किया गया है।
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उत्तराखंड का उत्तरकाशी इन दिनों वो तस्वीरें देख रहा है, जिसकी कभी कल्पना भी नहीं गई थी। हाथ में डंडे लेकर हज़ारों की भीड़ सड़कों पर सिर्फ इसलिए निकल रही है, ताकि पुरोला टाउन से मुसलमानों को भगाया जा सके। उन मुसलमानों को जो वहां बरसों से रह रहे हैं, अपनी दुकान चला रहे हैं। यानी मामला तथाकथित लव ज़ेहाद से शुरू हुआ और संप्रदायिक हिंसा तक आ पहुंचा।

अब इसी कड़ी में देवभूमि रक्षा अभियान तमाम समेत हिंदू संगठन कह रहे हैं, कि वो 15 जून के दिन एक महापंचायत करेंगे। यहां ये बता देना बहुत ज़रूरी है कि भले ही नाम महापंचायत हो लेकिन इसे वही पुरानी नफ़रती धर्म संसद ही कहा जाएगा। सीधे तौर पर धर्म संसद नाम का इस्तेमाल करने से सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा रखी है।

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ख़ैर.. इस महापंचायत को रोकने के लिए दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अपूर्वानंद और लेखक अशोक वाजपेयी ने चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ को एक पत्र याचिका भेजी थी, जिसमें इस बड़ी महापंचायत पर तत्काल रोक लगाने और अल्पसंख्यकों को हुए नुकसान की भरपाई के लिए मुआवजा तथा उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग की गई थी। मामले में आज यानी बुधवार को सुनवाई होनी थीलेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से इनकार कर दियाऔर याचिकाकर्ताओं को हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाने के लिए कहा। जिसके बाद उत्तराखंड हाईकोर्ट 'महापंचायतको रोकने की मांग वाली एक याचिका पर सुनवाई करने के लिए तैयार हो गयाये सुनवाई कल यानी गुरुवार के दिन होगी यानी उसी दिन जिस दिन पंचायत का ऐलान किया गया है।

बात याचिकाकर्ताओं की करें को इन्होंने कोर्ट से कहा था कि “इस तरह की घटनाएं समाज और कानून के लिए अभिशाप हैं और संसदीय लोकतंत्र में इसका समर्थन नहीं किया जा सकता है, ऐसी चीजें उस सेक्युलर ताने-बाने को खतरे में डालती हैंजिनसे देश एकता में बंधता है... अगर महापंचायत होने की अनुमति दी जाती हैतो इससे राज्य में सांप्रदायिक तनाव हो सकता है, ऐसे में जिनके खिलाफ महापंचायत आयोजित की जानी हैउनके जीवन और संपत्ति की रक्षा के लिए तत्काल कोर्ट के हस्तक्षेप की जरूरत है।

इधर हिंदू संगठनों की महापंचायत पर रोक के लिए याचिका दायर हुई, तो उधर जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने भी महापंचायत को रोकने की कोशिश शुरू कर दी। मौलाना ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को लेटर लिखकर कड़ी कार्रवाई का अनुरोध किया। मदनी ने अपने लैटर में लिखा कि-- ‘कानून-व्यवस्था और साम्प्रदायिक सौहार्द के मामले में उत्तराखंड एक अनुकरणीय राज्य रहा हैउत्तरकाशी में जो हो रहा है वह उसके स्वभाव से मेल नहीं खाता। कुछ लोग खुलेआम दोनों संप्रदायों के बीच डर और दुश्मनी फैला रहे हैं। मैं आपसे 15 जून 2023 को होने वाले कार्यक्रम (महापंचायत) को रोकने का अनुरोध करता हूंजिससे राज्य में सांप्रदायिक संघर्ष हो सकता है। इसके साथ ही हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच खाई और बढ़ सकती है।

ख़ैर.. इन लैटर और सुप्रीम कोर्ट में आज होने वाली सुनवाई से ठीक पहले उत्तराखंड के डीजीपी अशोक कुमार का बयान सामने आया, जिसमें उन्होंने कहा कि राज्य में कानून व्यवस्था को बिगाड़ने की इजाजत किसी को नहीं दी जाएगी। डीजीपी अपने बयान में कह रहे हैं कि पर्याप्त फोर्स लगा दी गई है, किसी को भी शांति व्यवस्था भंग करने की इजाज़त नहीं होगी। इलाके में धारा 144 लगा दी गई है।

यानी अगर डीजीपी की मानें तो महापंचायत को रोकने के लिए पूरी व्यवस्था कर ली गई है, हालांकि उन्होंने सीधे तौर पर इस कार्यक्रम का नाम लेने के बजाय कानून उल्लंघन की बात की। और सही मायने में ये तथाकथित धर्म संसद जिसे महापंचायत का नाम दिया जा रहा है, ये भी ग़ैर कानूनी ही है। क्योंकि इसपर सुप्रीम कोर्ट पहले ही फटकार लगा चुका है।

पिछले साल लगातार बढ़ती धर्म संसद और उनमें धर्म गुरुओं द्वारा की जा रही अनर्गल टिप्पणियों ने हर किसी को आहत किया था, पहले छत्तीसगढ़ में महात्मा गांधी पर अपशब्द बोले गए, फिर हरिद्वार की एक धर्म संसद में महिलाओं पर टिप्पणी की गई। जिसे लेकर लोगों में गुस्सा पनपा। इसी के बाद आगे होने वाली धर्म संसदों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने चेताया था, कि सुनिश्चित किया जाए कि अब ऐसे आयोजनों में शब्दों की मर्यादा रखी जाएगी।

ताज़ा मामला क्या है?

26 मई 2023, पुरोला इलाके में कुछ लोगों ने तीन लोगों को पकड़ लियाएक 9TH क्लास में पढ़ने वाली नाबालिग लड़की थीऔर दो लड़के। हिंदू संगठनों का आरोप है कि ये लड़केलडकी को बहलाकर अगवा करने की कोशिश कर रहे थे। इन आरोपियों में एक मुसलमान था और दूसरा हिंदू था। दोनों को पुलिस के हवाले कर दिया गया और पॉक्सो एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गयाइसके अलावा दोनों पर आईपीसी की धारा 363 यानी अगवा करने, 366-ए यानी नाबालिग लड़की की ख़रीद फरोख्त का मामला दर्ज किया गया है। इसके बाद लड़की को घर भेज दिया गया। अब क्योंकि दोनों लड़कों में एक मुसलमान भी थातो इसलिए इसे सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की गई। कुछ लोगों ने मामले को तुरंत लव-ज़िहाद का एंगल दे दिया।

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उधर उत्तरकाशी ज़िले के पुलिस अधीक्षक अर्पण यदुवंशी ने बताया कि  “26 मई को थाना पुरोला में एक नाबालिग़ लड़की के अपहरण को लेकर मामला दर्ज किया गयाइस मामले में दो अभियुक्त थेउनको गिरफ़्तार कर लिया गया। जिसके बाद कोर्ट ने उनको 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया था। इधर मामला कानूनी प्रक्रिया से चल पाता कि बाहर अराजक तत्वों का मेला लगना शुरु हो गया थामुसलमानों की दुकानों पर पोस्टरबाज़ी शुरू हो गईक्रॉस के काले निशान बनाए जाने लगे। हिंदू संगठन लाठी डंडे लेकर निकलना भी शुरू हो चुके थे। यानी अब तक हवाओं में तनाव फैल चुका थाइलाक़े के 7-8 मुस्लिम परिवारों को कथित तौर पर धमकियां मिलने लगींकि वो इलाक़ा ख़ाली करेंहालांकिएसडीएम ने इसके उलट दावा किया। उन्होंने बताया कि डर से लोगों के जाने की ख़बरें झूठी हैं।

उधर इस मामले में ही एसपी अर्पण यदुवंशी ने कहा कि उन्हें अब तक ऐसी कोई शिकायत या सूचना नहीं मिली है। इन्ही आरोपों धमकियों के बीच राज्य के अलग-अलग हिस्सों में छिटपुट प्रदर्शन हुएलेकिन 29 मई को पुरोला में एक विरोध मार्च के दौरान हिंसा तब भड़क गईजब प्रदर्शन कर रहे लोगों ने मुसलमानों की दुकानों पर हमला कर दिया। अब ये मामला यहां से बढ़ना शुरु हो गया था। किसी तरह से दो दिन बीते और जून को यमुना घाटी हिंदू जागृति संगठन के बैनर तले फिर से हिंसक विरोध प्रदर्शन किया गया। इस आंदोलन में करीब 900 लोगों ने हिस्सा लिया। प्रदर्शनकारियों ने कस्बे में व्यापार करने के लिए बाहर से आने वाले लोगों का रजिस्ट्रेशन कराने के लिए एसडीएम को ज्ञापन भी सौंपाजिसमें कहा गया था कि शहर में बिजनेस की आड़ में एक विशेष समुदाय के कुछ लोग अनैतिक गतिविधियों में शामिल हो रहे हैंजिससे माहौल ख़राब हो रहा है। अब जून आते-आते माहौल बहुत ज़्यादा ख़राब हो चुका थारात को कुछ अज्ञात लोगों ने पुरोला बाज़ार में मुस्लिम समुदाय की दुकानों पर धमकी भरे पोस्टर चिपका दिए। इसमें उन्हें 15 जून को होने वाली महापंचायत से पहले दुकानें खाली कर देने की धमकी दी गईं। बड़े अक्षरों में लिखा था- 'दुकानें ख़ाली करो या ख़ामियाज़ा भुगतो!यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि एसपी और एसडीएम ख़ुद इस बात से इनकार कर चुके थे कि लोग डर के कारण दुकानें छोड़कर जा रहे हैंलेकिन बाद में उन्होंने पोस्टर चिपकाने की बात कुबूल की। आपको बता दें कि इन पोस्टरों में लिखा था कि "दुकान-बंदी" की चेतावनी 'देवभूमि रक्षा अभियानके तहत दी जा रही है।

फिलहाल मामला अभी पूरी तरह से शांत होता नहीं दिखाई पड़ा रहा है, क्योंकि हिंदू संगठनों की ओर से बुलाई गई महापंचात के बाद मुस्लिम संगठनों ने भी 18 जून को महापंचायत बुलाने की बात कही है।

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