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नज़रिया: दिल्ली को काबुल से रिश्ता बनाना चाहिए

अमेरिकी साम्राज्यवाद को कहीं भी चोट पहुंचे, कहीं भी उसके घुटने तोड़े जायें, इसका स्वागत किया जाना चाहिए। अफ़ग़ानिस्तान में यही हुआ है।
नज़रिया: दिल्ली को काबुल से रिश्ता बनाना चाहिए

अफ़ग़ानिस्तान के घटनाक्रम पर चंद बातें:

(1) 15 अगस्त सिर्फ़ भारत की आज़ादी का दिन नहीं है। यह अफ़ग़ानिस्तान की आज़ादी का भी दिन बन गया है। 15 अगस्त 2021 को तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्ज़ा कर लियाऔर इस तरह लगभग पूरा देश तालिबान के नियंत्रण में आ गया। तालिबान ने अमेरिकी साम्राज्यवाद को मजबूर कर दिया कि वह अफ़ग़ानिस्तान से अपना बोरिया-बिस्तर समेट कर चला जाये। अमेरिकी साम्राज्यवाद को कहीं भी चोट पहुंचेकहीं भी उसके घुटने तोड़े जायेंइसका स्वागत किया जाना चाहिए। अफ़ग़ानिस्तान में यही हुआ है।

(2) यह अफ़ग़ान जनता की ऐतिहासिक जीत है। उसे अमेरिकी साम्राज्यवाद की बीस साल की ग़ुलामी (2001-2021) और भयानक रूप से विध्वंसक व अपमानजनक विदेशी शासन से मुक्ति मिली है। इसका स्वागत होना चाहिए। (हालांकि यह मुक्ति अभी मुकम्मल नहीं हैऔर भविष्य कई आशंकाओं से भरा हुआ है।)

(3) अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी साम्राज्यवाद ने 2001-2021 के दौरान जो भयानक तबाही मचायीजो विध्वंस कियायौन हिंसा-समेत हर तरह की हिंसाख़ून-ख़राबा और नशीली दवाओं (ड्रग्स) की संस्कृति को जिस तरह उसने संस्थाबद्ध कियाउसे दुरुस्त करने में कुछ साल लग सकते हैं। जिसे अफ़ग़ान संकट या अफ़ग़ानिस्तान की समस्या कहा जाता हैउसके लिए पूरी तरह अमेरिकी साम्राज्यवाद ज़िम्मेदार है। अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी साम्राज्यवाद के युद्ध अपराधों की सूची लंबी है।

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(4) काबुल पर तालिबान का नियंत्रण क़ायम हो जाने के बाद भारत सरकार ने जिस तरह काबुल में अपना दूतावास आनन-फानन में बंद कर दियाउसे बुद्धिमानी से भरा क़दम नहीं कहा जा सकता। यह राजनीतिक अपरिपक्वता की निशानी है। भारत को काबुल में अपना दूतावास खुला व चालू रखना चाहिए था और वहां तेजी से चल रही राजनीतिक हलचल के साथ तालमेल क़ायम करने की कोशिश करनी चाहिए थी। रूसचीन व पाकिस्तान ने काबुल में अपने दूतावासों को बंद नहीं किया हैवे खुले हुए हैं और काम कर रहे हैं। तालिबान ने न किसी दूतावास पर हमला कियान उसे बंद करने की चेतावनी दी। फिर भारत को ऐसी हड़बड़ी करने की क्या ज़रूरत थी?

(5) दिल्ली को काबुल से रिश्ता क़ायम करना चाहिए और उसे तालिबान से जीवंत संपर्क बनाना चाहिए। अफ़ग़ानिस्तान में अभी क़ायदे से अंतरिम सरकार का गठन नहीं हो पाया हैअफ़रा-तफ़री का माहौल हैऔर कुछ अन्य समस्याएं व जटिलताएं हैं। लेकिन इतना तो तय है कि अब तालिबान ही अफ़ग़ानिस्तान के शासक हैं। इस राजनीतिक हक़ीक़त को स्वीकार करना चाहिए। (बशर्ते अमेरिका-समर्थित तख्तापलट न हो जाये!) भारत को तालिबानन से राजनीतिक व राजनयिक संबंध बनाना चाहिए और काबुल में अपना दूतावास चालू कर देना चाहिए। यह भारत के हित में है।

(6) भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों तथाकथित आतंक की सत्ता को लेकर जो बयान दिया थाउसे अ-विवेकपूर्ण कहा जायेगा। ऐसे बयान जारी करने से भारत सरकार को बचना चाहिए। इस बयान पर तालिबान ने गहरी आपत्ति जतायी है। नरेंद्र मोदी ने सोमनाथ (गुजरात) में कहा था कि आतंक के बलबूते साम्राज्य खड़ा करने वाली सोच किसी कालखंड में कुछ समय के लिए भले ही हावी हो जायेलेकिन उसका अस्तित्व कभी स्थायी नहीं होता। हालांकि इस बयान में तालिबान का नाम नहीं लिया गयालेकिन इशारा उसी ओर था। इस पर टिप्पणी करते हुए तालिबान के वरिष्ठ नेता शहाबुद्दीन दिलावर ने कहा कि भारत को जल्दी ही पता चल जायेगा कि तालिबान अपनी सरकार ढंग से चला सकते हैं। उन्होंने भारत को चेतावनी दी कि वह अफ़ग़ानिस्तान के आंतरिक मामलों में दख़ल न दे। देखा जा सकता है कि नरेंद्र मोदी का इस तरह का बयान दिल्ली-काबुल रिश्ते को दोस्ताना नहीं बना सकता।

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(7) तालिबान के नेतृत्व में अफ़ग़ानिस्तान सरकार की घरेलू व विदेश नीतियां क्या होंगीइनका ख़ाका आनेवाले दिनों में स्पष्ट होगा। तालिबान ने कहा है कि वह सभी देशों के साथख़ासकर अपने पड़ोसी देशों के साथदोस्ताना व शांतिपूर्ण रिश्ता चाहता है। उसने यह भी कहा है कि वह अपने देश की ज़मीन का इस्तेमाल अन्य देशों के ख़िलाफ़ नहीं होने देगा। औरतों के बारे मेंजेंडर सवालों परमानवाधिकार के मसले परशिक्षा व अन्य मसलों पर तालिबान की क्या नीतियां होंगीइसका पता आने वाले दिनों में चलेगा। विश्व जनमत को तालिबान पर नैतिक दबाव बनाना चाहिए कि वह अफ़ग़ानिस्तान में समावेशी सरकार का गठन करे।

(लेखक वरिष्ठ कवि व राजनीतिक विश्लेषक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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