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विजयवर्गीय पेंशन घोटाला : सरकार से अभियोजन की अनुमति न मिलने पर केस ख़त्म! विपक्ष ने उठाये सवाल

इंदौर नगर निगम के बहुचर्चित पेंशन घोटाले के केस को अचानक बंद किए जाने पर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि क्या यही भाजपा और शिवराज सिंह चौहान सरकार की भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस है?
Kailash Vijayvargiya

भारतीय जनता पार्टी(बीजेपी) क फायर ब्रांड नेता कैलाश विजवर्गीय पर लगे पेंशन घोटाले कि जांच बंद कर दी गई है। कथित पेंशन घोटाले में उनके खिलाफ दायर मामले को 2 सितंबर को विशेष अदालत ने बंद कर दिया है। क्योंकि मध्य प्रदेश की बीजेपी सरकार ने उन पर और अन्य आरोपियों पर 17 साल तक मुकदमा चलाने की मंजूरी ही नहीं दी। जिसके बाद से विपक्ष लगातार सरकार पर हमले कर रहा है। बीजेपी सरकार पर जानबूझकर अपने नेता को बचाने का आरोप लगाया जा रहा है।

क्या है मामला?

इंदौर नगर निगम में कथित 'पेंशन घोटाले' में वर्तमान मे बीजेपी राष्ट्रीय महासचिव और तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय के खिलाफ कांग्रेस के केके मिश्रा ने शिकायत की थी। खबरों के मुताबिक उन्होंने अपनी शिकायत मे आरोप लगाया था कि कैलाश विजयवर्गीय 2000 से 2005 तक इंदौर के महापौर रहते हुए एमआईसी ने निराश्रितों, विधवाओं और विकलांग व्यक्तियों को नियमों को परे रखकर पेंशन बांटी थी। ये पेंशन राष्ट्रीय बैंकों और डाकघरों के बजाय सहकारी संस्थानों के माध्यम से बांटी गई थी। जबकि केंद्र सरकार ने स्पष्ट आदेश दिए थे कि पेंशन के लिए पात्र लोगों को सिर्फ राष्ट्रीयकृत बैंकों और डाकघरों के माध्यम से ही भुगतान किया जाएगा। किसी दूसरे माध्यम से भुगतान नहीं होगा। इस योजना मे केंद्र कि भी 50 % कि भागीदारी थी। इसमें अपात्र या मृत लोगों या यहां तक कि गैर-मौजूदा व्यक्तियों को पेंशन दी गई । जिससे सरकार को 33 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। मिश्रा ने विजयवर्गीय सहित तत्कालीन एमआईसी सदस्य रमेश मेंदोला, उमाशशि शर्मा, शंकर लालवानी, तत्कालीन निगमायुक्त संजय शुक्ला सहित 14 लोगों के खिलाफ शिकायत की थी।

मिश्रा ने इस पूरे मामले को लेकर कोर्ट मे एक परिवाद दायर कर तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय समेत 14 लोगों के खिलाफ धोखाधड़ी, अमानत में खयानत, कूट रचना का आरोप लगाते हुए इन पर आपराधिक प्रकरण चलाने की मांग की थी।

मामला जनप्रतिनिधियों से जुड़ा था इसलिए सरकार कि अनुमिति आवश्यक थी परंतु सरकार ने 17 सालों से अनुमति दी ही नहीं, इसलिए विशेष न्यायाधीश मुकेश नाथ ने अभियोजन स्वीकृति के अभाव मेंकेस बंद कर दिया ।

कॉंग्रेस ने उठाए सवाल और पूछा, "शिवराज जी, ऐसे लड़ोगे भ्रष्टाचारियों से?"

कॉंग्रेस के प्रदेश मीडिया प्रभारी और शिकायकर्ता के के मिश्रा ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि आरोप सिद्ध होने के बाद भी राज्य सरकार ने जानबूझकर केस चलाने की इजाजत नहीं दी। उन्होंने आरोप लगाया, "कभी इस मामले की जांच कलेक्टर को सौंपी गई तो कभी कमिश्नर को मामले को लेकर एनके जैन आयोग भी गठित हुआ था। इस घोटाले का रिकार्ड जलने की बात सामने आने के बाद मैंने खुद भोपाल जाकर आयोग के समक्ष दस्तावेज प्रस्तुत किए थे। लेकिन सरकार ने अभियोजन की  स्वीकृति देने के बजाय विधानसभा की उपसमिति गठित कर दी, जिसने अब तक रिपोर्ट ही नहीं सौंपी।" मिश्रा ने आगे कहा, "माननीय न्यायालय ने मामले को खारिज नहीं किया है, उसे बंद किया है। मुझे फिर निर्देशित किया कि आप अभियोजन की स्वीकृति लाएं ताकि केस फिर नए सिरे से चालू किया जा सके। इस लड़ाई को मैं पूरी ताकत के साथ लड़ूंगा। भ्रष्टाचारियों को कौन बचा रहा है। इस केस से स्पष्ट हो चुका है. हमने हाईकोर्ट में भी आवेदन किया है। मुझे उम्मीद है कि माननीय न्यायालय मुझे न्याय देगा।"

मिश्रा ने ट्वीट कर भी सरकार पर एक के बाद एक हमला किया।

कॉंग्रेस ने भी अपने ट्वीट में बीजेपी पर हमला किया।

बीजेपी ने कांग्रेस से सवाल किया कि जब 15 महीने कांग्रेस की सरकार थी तब कुछ नहीं किया। ये दिखाता है कि पूरा मामला झूठा है। आज इसकी पुष्टि न्यायालय से भी हुई है।

क्या पेंशन घोटाले के केस बंद होना ही भाजपा और मुख्यमंत्री जी का जीरो टॉलरेंस है : माकपा

इंदौर नगर निगम के बहुचर्चित पेंशन घोटाले के केस को अचानक बंद किए जाने पर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि क्या यही भाजपा और शिवराज सिंह चौहान सरकार की भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस है?

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव जसविंदर सिंह ने प्रेस बयान जारी करते हुए कहा है कि इस घोटाले के समय महापौर भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय थे और मेयर इन काउंसिल के सदस्य भाजपा के विधायक रमेश मेंदोला थे। इस घोटाले की जांच में इन दोनो को ही दोषी पाया गया था।

माकपा ने कहा है कि विधवाओं, वृध्दो, निशक्तजनों और बेसहाराओं की पेंशन को डकारने वालों के खिलाफ कार्यवाही कर उन्हें जेल में डालने की बजाय भाजपा सरकार ने 17 सालों से इस रिपोर्ट के आधार पर सरकार को आगे की कानूनी कार्यवाही करनी थी। मगर राज्य सरकार की ओर से कोई पहल न करने के बाद विशेष न्यायालय ने इस केस को ही बंद करने करने का निर्णय लिया है।

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने कहा है कि दो नेताओं के भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने की भाजपा सरकार ने साबित कर दिया है कि वह भ्रष्टाचार को संरक्षण देने वाली सरकार है।

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