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विशाखापट्टनम इस्पात संयंत्र के निजीकरण के खिलाफ़ श्रमिकों का संघर्ष जारी, 15 महीने से कर रहे प्रदर्शन
यूनियनों से जुड़े लोग पिछले 15 महीनों से प्रदर्शन कर रहे हैं, और वे तब तक संघर्ष करने के लिए दृढ़ निश्चयी हैं, जब तक विनिवेश की योजना को 100 फ़ीसदी ख़त्म नहीं कर दिया जाता।
रबींद्र नाथ सिन्हा
07 May 2022
Protest

राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड (आरआईएनएल- जिसे लोकप्रिय तौर पर विशाखापट्टनम स्टील प्लांट या वीएसपी के नाम से जाना जाता है) में ट्रेड यूनियनों से जुड़े लोग पिछले 15 महीनों से प्रदर्शन कर रहे हैं, और वे तब तक संघर्ष करने के लिए दृढ़ निश्चयी हैं, जब तक विनिवेश की योजना को 100 फ़ीसदी ख़त्म नहीं कर दिया जाता।

27 जनवरी, 2021 को आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति ने सैद्धांतिक तौर पर इस सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी में सरकारी हिस्सेदारी के 100 फ़ीसदी रणनीतिक विनिवेश को अनुमति दे दी थी। इस कंपनी की बुनियादी तत्कालीन प्रधानमंत्री ने 17 अप्रैल, 1970 को आंध्रप्रदेश में हुए एक बड़े प्रदर्शन के बाद रखी थी, जिसमें 32 प्रदर्शनकारियों की पुलिस द्वारा गोली मारे जाने के चलते मौत हो गई थी।

केंद्र द्वारा संयंत्र के निजीकरण के लिए प्राथमिक कारण इसके कई सालों से घाटे में चलने को बताया गया है। विनिवेश और सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग के सचिव तुहिन कांता पांडे कहते हैं, "विनिवेश के 1.75 लाख करोड़ के लक्ष्य को पाने के लिए प्रबंधन नियंत्रण के साथ 100 फ़ीसदी निजीकरण जरूरी है।"

मजदूर संगठन के प्रतिनिधियों ने न्यूज़क्लिक को बताया कि आंध्रप्रदेश के लोग निजीकरण के लिए खिलाफ़ संघर्ष जारी रखने के लिए तैयार हैं। तुरंत में लक्ष्य यह है कि राजनीतिक दलों का व्यापक सहयोग लेकर ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को संघर्ष में साथ जोड़ा जाए।

राज्य में निजीकरण विरोधी भावनाओं पर गौर फरमाते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबंधित भारतीय मज़दूर संघ ने भी सीटू, एटक और इंटक के साथ हाथ मिलाया है। मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी और उनकी पार्टी वायएसआर कांग्रेस व उनके पूर्ववर्ती एन चंद्रबाबू नायडू और उनकी पार्टी टीडीपी ने इस मामले में प्रधानमंत्री मोदी के सामने बात रखी है।

वरिष्ठ नौकरशाह रहे ईएएस सरमा ने राज्य सरकार और केंद्रीय ऊर्जा व वित्त मंत्रालय में अहम पदों को संभाला है, उन्होंने भी रेड्डी से नई दिल्ली के इस कदम का सक्रिय ढंग से विरोध करने को कहा है। 

सीटू के सीएच नरसिंहराव, इंटक के मंत्री राजशेखर और एटक के जेवीएस मूर्ती ने न्यूज़क्लिक से कहा कि निश्चित तौर पर वीएसपी के निजीकरण के फ़ैसले पर पुनर्विचार करने से केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के इंकार से धक्का लगा है, लेकिन इससे ट्रेड यूनियनों का निश्चय और भी दृढ़ हुआ है।

तीनों नेताओं ने बताया, "अगर स्थितियां बनीं, तो हम अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाएंगे। निजीकरण की जिम्मेदारी जिन कार्यालयों को दी गई है, चाहे वे कीमत का आंकलन करने वाले हों या तकनीकी विशेषज्ञ, हम उन्हें विशाखापट्टनम इस्पात संयंत्र के परिसर में नहीं घुसने देंगे। यह हमारा निश्चय है। 1960 में हमारा नारा था "विशाखा उक्कू आंध्रुला हक्कू" (विशाखापट्टनम इस्पात संयंत्र आंध्र के लोगों का अधिकार है)। आंध्रप्रदेश के लोग किसी भी त्याग के लिए तैयार हैं।"

इन ट्रेड यूनियन नेताओं के मुताबिक़, केंद्र सरकार ने विनिवेश के लिए जो घाटे की बात कही है, "वह बढ़ा-चढ़ाकर बताई जा रही है"। उन्होंने माना कि वीएसपी को कुछ सालों से नुकसान हो रहा है और उसके ऊपर 22,000 करोड़ रुपये का कर्ज़ है। "लेकिन यह भी एक तथ्य है कि आरआईएनएल ने कई सालों तक मुनाफ़ा दर्ज कराया है।"

नेताओं ने कहा, "संयंत्र की क्षमता 6.3 मिलियन टन से बढ़ाकर 7.3 मिलियन टन इसलिए ही गई थी, क्योंकि पुरानी केंद्र सरकारें इसे लेकर सकारात्मक रवैया रखती थीं, और कंपनी ने 2021-22 में 800 करोड़ रुपये से ज़्यादा का मुनाफ़ा दर्ज करवाया है।"

नेताओं ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार को "सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों से एलर्जी है और सरकार इस तथ्य को नज़रंदाज कर रही है कि ज़्यादातर पीएसयू मुनाफ़ा कमा रही हैं और सरकारी कोष में नियमित योगदान दे रही हैं।"

नेताओं के मुताबिक़, सीतारमण इस मामले पर चुप हैं कि नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) में ज़्यादातर केस में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को बड़ी मात्रा में अपने कर्ज में कटौती माननी पड़ रही है। इन बैंकों को अपने कर्ज़ में 50 से 80 फ़ीसदी तक माफ़ करना पड़ रहा है, यह सारे निजी क्षेत्र की कंपनियों से जुड़े हैं। सूत्रों ने न्यूज़क्लिक को बताया कि हाल के महीनों में एनसीएलटी में दर्ज एक कपड़ा कंपनी को मुंबई के एक कॉरपोरेट दिग्गज ने खरीदा है, इसमें कर्ज़दाता को 85 फ़ीसदी वसूले जाने वाले कर्ज़ की कटौती करने के लिए मजबूर होना पड़ा।

देश के पहले तटीय इस्पात संयंत्र को बनाने के लिए 68 गांवों के 20,000 लोगों ने अपनी ज़मीन और घर की बलि दी थी। संयंत्र में 30,000 से ज़्यादा प्रत्यक्ष और संविदा पर काम करने वाले कर्मचारी हैं, जिसमें 4500 एससी और एसटी से हैं, जबकि एक लाख लोग अपने अस्तित्व के लिए इस पर निर्भर हैं। 

आरआईएनएल के लिए एक घाटा यह है कि इसके पास अपनी लोहे की खदान नहीं है, जबकि दूसरी कंपनियों को सरकार द्वारा सिर्फ उनके उपयोग के लिए आवंटित खदान से जरूरत का 60 से 70 फ़ीसदी लौह अयस्क मिलने की निश्चित्ता होती है, इस तरह कीमत के हिसाब से यह आरआईएनएल के लिए प्रतिस्पर्धी ज़मीन नहीं है।

रेड्डी ने 6 फरवरी और 9 मार्च, 2021 को केंद्र को जो ख़त लिखे थे, उनके मुताबिक़ अपनी खदान ना होने के चलते आरआईएनएल को बाज़ार से खरीद पर प्रति टन 5,260 रुपये ज़्यादा देने पड़ते हैं।

इन आंकड़ों को बताते हुए राव, राजशेखर और मूर्ति ने बताया कि आरआईएनएल को अपने कर्ज़ पर 14 फ़ीसदी का भारी ब्याज़ भी चुकाना होता है। वे कहते हैं, "मांग और खपत के हिसाब से इस्पात उद्योग का अपना उतार-चढ़ाव होता है, अगर स्टील कंपनियों की वार्षिक रिपोर्ट को एकसाथ रखकर देखेंगे, तो पता चलेगा कि जिन सालों में आरआईएनएल को घाटा लगा है, उन सालों में इसकी प्रतिस्पर्धी कंपनियों ने भी अच्छा नहीं किया है। राज्य द्वारा केंद्र से लगातार आरआईएनएल को ओडिशा में निजी खदान आवंटित करने की अपील की जाती रही, लेकिन इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।"

19 अप्रैल को द हिंदू में छपी रिपोर्ट के मुताबिक़, बिना वज़ह बताए हुए, केंद्र ने आरआईएनएल के अपने स्त्रोत्, झारखंड स्थित रबोध में कोयले की खदान की लीज़ खत्म कर दी।

राव, राजशेखर और मूर्ति विशाखा उक्कू परिरक्षणा पोराटा समिति के सदस्य हैं, वे कहते हैं, "अगर एनसीएलटी के तहत इतनी बड़ी मात्रा में कुप्रबंधित और बीमार निजी कंपनियों के महंगे वित्त को पुनर्गठित किया जा रहा है, तो नरेंद्र मोदी सरकार क्यों आरआईएनएल के कर्ज़ को इक्विटी में बदलकर, इन्हें कर्ज़दाताओं को सौंपकर इसके वित्त का पुनर्गठन नहीं करती?"

नेताओं के मुताबिक़, आरआईएनएल के मामले में सही चीजें, गलत से कहीं ज़्यादा हैं। इसके पुर्नजीवन की प्रक्रिया बहुत लंबी नहीं होगी। अगर यह फिर से ठीक हो जाती है, तो आरआईएनएल आईपीओ के लिए जा सकती है, जो इसके कर्ज़ दाताओं को अपनी इक्विटी बेचने का एक मौका प्रदान करेगा।" नेताओं ने यह तर्क भी दिया कि ज़मीन की उपलब्धता को देखते हुए आरआईएनएल तरल स्टील में आगे अपनी क्षमता को 20 मिलियन टन तक भी बढ़ा सकती है।"

अब यह देखा जाना बाकी है कि क्या तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव भी वीएसपी के निजीकरण के खिलाफ़ जारी मुहिम में शामिल होते हैं या नहीं। राव पहले ही तेलंगाना राष्ट्र समिति का विस्तार करने का इरादा जाहिर कर चुके हैं। इस बात के संकेत हैं कि अगले आंध्रप्रदेश चुनाव में वे टीआरएस के कुछ प्रत्याशियों को खड़ा कर सकते हैं।

1 मार्च, 2014 की तारीख़ का एक गजट नोटिफिकेशन, जो आंध्रप्रदेश पुनर्गठन अधिनियम 2014 के ऊपर था, वह अंतिम हिस्से में "अवसंरचना" शीर्षक के तहत कहता है, "सेल को नियुक्ति के दिन से 6 महीने के भीतर तेलंगाना राज्य के खम्मम जिले में एक समग्र इस्पात संयंत्र की योजना का परीक्षण करना चाहिए।" लेकिन अब तक यह सिर्फ़ कागजों पर ही है।

इस लेख को मूल अंग्रेजी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें:

Unions Determined to Continue Opposing Vizag Steel Plant Privatisation

Privatisation
Modi government
Central Government
   Visakhapatnam Steel plant
Workers protest 

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