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विश्व रंग 2022 :14 नवंबर से भोपाल में लगेगा साहित्य, संस्कृति का मेला, देश-विदेश से हज़ारों कलाकार होंगे शामिल

विश्व रंग उत्सव की वैश्विक थीम 'युद्ध-विस्थापन, प्रकृति-संस्कृति' लोगों तक सृजन, संवाद और संस्कृति के माध्यम से आज के दौर और उसकी आवश्यकताओं को रूबरू करवाने की कोशिश है।
Vishwa Rang 2022

'भारतीय संस्कृति, वैश्विक मंच' की परिकल्पना लिए साहित्य और संस्कृति के इंद्रधनुषी रंगों को समेटता अंतरराष्ट्रीय उत्सव ‘विश्व रंग 2022’ आगामी सोमवार, 14 नवंबर से साहित्य का गढ़ माने जाने वाले भोपाल में शुरू होने जा रहा है। रवीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय की पहल पर आयोजित इस साहित्य और कला महोत्सव का ये चौथा संस्करण है। इस उत्सव में देश-दुनिया की सैकड़ों नामचीन हस्तियां शिरकत करेंगी। वहीं भारत के अलावा 35 अन्य देशों के साहित्यकारों और कलाकारों से भी लोगों को रूबरू होने का मौका मिलेगा।

बता दें कि विश्व रंग का पहला आयोजन साल 2019 में भोपाल में ही किया गया था। इसके बाद कोरोना काल में महामारी की गंभीरता को देखते हुए इस महोत्सव का ऑनलाइन यूट्यूब के जरिए संचालन किया गया। अब ये कार्यक्रम एक बार फिर तैयार है साहित्य, संस्कृति, दर्शन, शिक्षा, सिनेमा, मीडिया, विज्ञान, टेक्नालॉजी आदि क्षेत्रों से जुड़ी हस्तियां के साथ देशज और आदिवासी परंपरा को जानने-समझने के लिए।

क्या खास है इस कार्यक्रम में?

रवीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति और इस कार्यक्रम निदेशक संतोष चौबे ने नई दिल्ली में आयोजित एक प्रेस सम्मेलन में बताया कि ये पूरा आयोजन हिंदी और भारतीय भाषाओं को केंद्र में रखकर किया गया है। इसमें बच्चों से लेकर युवाओं और साहित्य प्रेमी उम्रदराज लोगों के लिए अलग-अलग विशेष सत्र आयोजित किए जा रहे हैं, जिसमें वैचारिक गोष्ठी से लेकर रोज़गार के सृजन और रंगारंग कार्यक्रमों से मनोरंजन भी शामिल है। यहां प्रवासी भारतीयों और विदेश में हिंदी पर विशेष सत्र आयोजित किया जाएगा।

श्री चौबे ने इस बार के विश्व रंग उत्सव की वैश्विक थीम 'युद्ध-विस्थापन, प्रकृति-संस्कृति की चर्चा करते हुए कहा कि ये कार्यक्रम विश्व में घट रहीं तमाम घटनाओं के साथ ही अपने देश में आदिवासियों के जल-जंगल-जमीन के संघर्ष, हाशिए पर खड़े लोगों के मर्म को साहित्य और कला के माध्यम से भी लोगों तक पहुंचाने का प्रयास है।

दूर्दशन के पूर्व महानिदेशक और विश्वरंग के सह-निदेशक, साहित्यकार लीलाधर मंडलोई ने कार्यक्रम की विस्तृत अवधारणा की जानकारी देते हुए कहा कि जब विश्व रंग की परिकल्पना हुई तो गांधी और टैगोर के साथ ही इकबाल और फ़ैज को केंद्र में रखा गया। इसका मकसद था कि अलग-अलग विचारों को एक मंच की माला में पिरो कर लोगों के सामने रखा जाए। देश और विदेश में फैली तमाम विकृतियों जैसे रंगभेद, नस्लभेद, सांप्रदायिकता, अलगाववाद, भूख, गरीबी आदि की त्रासदी में साहित्यकारों की दृष्टि से जीने की जिजीविषा, मनुष्यता, प्रेम, करुणा पैदा की जा सके।

टैगोर, गांधी और फ़ैज सबकी एक ही सोच और कामना थी स्वराज

न्यूज़क्लिक के एक सवाल में कि आज के दौर में जब फ़ैज अहमद फ़ैज की नज़्मों और रचनाओं पर सवाल उठाए जा रहे हैं, तो क्या ये मंच उन्हें समझने और सही तरीके से उनके दृष्टिकोण की व्याख्या करने की पहल करेगा?

इसके जवाब में संतोष चौबे और लीलधर मंडलोई ने कहा कि फ़ैज के सकारात्मक दृष्टीकोण को लोगों के सामने रखने का हमारा प्रयास है क्योंकि टैगोर, गांधी और फ़ैज सब एक ही सोच के थे। सभी स्वराज कायम करने और रखने की कामना करते थे। ऐसे में ये सब एक-दूसरे से जुड़े हैं, इनका साहित्य जुड़ा, जिसे लोगों के सामने रखना विश्वरंग की कोशिश होगी।

कुलाधिपति संतोष चौबे के मुताबिक साहित्य राजनीति की मशाल होती है और इसे हमेशा पथ प्रदर्शक का ही काम करना चाहिए। जो विश्व रंग का भी उद्देश्य है। विश्व रंग भारत और भारतीय भाषाओं को देश से लेकर विदेशी पटल तक साहित्य, कला के जरिए लोगों के दिलों में बसाने की कोशिश है।

गौरतलब है कि एक सप्ताह चलने वाले इसे कार्यक्रम में मैथली ठाकुर लोक कला के सुर बिखेरती नज़र आएंगी, तो वहीं स्टार्टप की दुनिया के पहचान बन चुके अश्नीर ग्रोवर रेज़गार के नए आयामों पर रोशनी डालेंगे। यहां सिनेमा और थिएटर से ताल्लुक रखने वाले मनोज पाहवा अदाकारी का हुनर साझां करेंगे तो वहीं अभिनेत्री रसिका दुग्गल लोकल आर्टिस्ट और ओटीटी प्लेटफॉर्म पर नए अवसरों की बातें करेंगी। कुल मिलाकर देखें, तो 20 नवंबर तक चलने वाले इस साहित्य उत्सव में भारत समेत कई देशों के एक हजार से अधिक साहित्यकार और कलाकार अपनी कला, सृजन, संवाद और सांस्कृतिक प्रस्तुतियों से आपका दिल जीतने को तैयार हैं।

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