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पश्चिम बंगाल: केएमसी के सफ़ाई कर्मचारी गंदे क्वार्टरों में रहने को मजबूर, वेतन कम और छुट्टियां नदारद

कोलकाता नगर निगम के सफाई कर्मचारी 202 रुपये प्रति दिन के मामूली वेतन पर 6-7 क्विंटल शहरी कचरे को रोज़ाना 2-3 किलोमीटर तक खींचकर फेंकने ले जाते हैं। काम के बाद वे अपने क्वार्टर लौटते हैं जहां नहाने के लिए पानी भी नहीं मिलता है।
West Bengal
'प्रतीकात्मक फ़ोटो'

कोलकाता: मूल रूप से झारखंड के गिरिडीह के रहने वाले नागेश्वर राम (53) कोलकाता नगर निगम (केएमसी) में सफाई कर्मचारी हैं। तीन बच्चों के पिता नागेश्वर अपने परिवार को गिरिडीह में रखते हैं क्योंकि सफाई कर्मचारियों के लिए बने केएमसी क्वार्टर में एक छोटा सा अंधेरा व गंदा कमरा होता है जहां चार से छह सफाई कर्मचारी अपनी रात गुजारते हैं। दलित कार्यकर्ता राम कहते हैं, ''हमारा निरंतर शोषण किया जाता है।"

निगम के अधिकांश सफाई कर्मचारी अनुसूचित जाति पृष्ठभूमि के हैं और मूल रूप से बिहार, झारखंड और यूपी के हैं और कुछ को 8 घंटे के कठिन काम के बाद प्रति दिन 202 रुपये तक की मजदूरी मिलती है। राम का मुख्य काम शहर से कचरा हटाकर शहर को साफ रखना है। वह 1987 में कोलकाता आए और केएमसी में नौकरी की जहां वे अभी भी कार्यरत हैं। उनमें से अधिकांश को 6-7 क्विंटल गंदगी के साथ 2-3 किलोमीटर की दूरी तय करके कूड़ा-करकट को निर्दिष्ट कुंड से केएमसी की कंप्रेसर मशीनों तक हाथ वाली गाड़ियों में ले जाना पड़ता है। इसके लिए कर्मचारियों को काफी मेहनत करनी पड़ती है।

केएमसी में सफाई कर्मचारी के लगभग 14,000 स्थायी पद हैं जिनमें से वर्तमान में केवल 6,000 पद ही भरे हुए हैं। शेष पदों को अस्थायी रूप से 100 दिनों के शहरी कार्य कार्यक्रम से भरा जाता है और उन्हें प्रति दिन 202 रुपये का मामूली वेतन दिया जाता है। वे वही काम करते हैं जो स्थाई सफाई मजदूर करते हैं।

राम ने न्यूज़क्लिक को बताया, “हमें कड़ी परिस्थितियों में काम करने के लिए कहा जाता है; अक्सर अधिकारी हमसे काम करवाने के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल करते हैं और एक सड़क के बजाय हमें दो से तीन सड़कों पर झाडू लगाने के लिए कहा जाता है जो एक सफाई मजदूर के लिए कठिन काम है।"

केएमसी के आजादगढ़ क्वार्टर में रहने वाले नागेश्वर राम ने कहा, “हमें सही ढ़ंग से स्नान करने के लिए कई बार पानी भी नहीं मिलता है और हमारे क्वार्टर में कोई बाथरूम नहीं है। क्वार्टर ही जर्जर हालत में हैं; कुछ तो बिना दरवाजे और खिड़कियों के हैं जो बहुत पहले टूट गए थे। इन तंग 8x8 कमरों में हम एक-एक करके खटिया लगाते हैं या रात को सोने के लिए फर्श पर गद्दे बिछाते हैं, और प्रत्येक 8x8 कमरे में 4 से 6 मजदूर होते हैं। क्वार्टरों की मरम्मत नहीं होती है। अधिकांश क्वार्टरों में आखिरी मरम्मत वाम मोर्चा सरकार के समय 2011 में हुई थी।"

नौकरी से सेवानिवृत्त हो रहे स्थायी सफाई कर्मचारियों को 'बदली' के कर्मचारियों (जिनमें से अधिकांश मजदूर के परिवार के सदस्य हैं) द्वारा प्रतिस्थापित करने की व्यवस्था, जो कि प्रचलित प्रथा थी लेकिन अब करीब करीब बंद हो गई है और बाहरी की भर्ती की जा रही है। राम ने आगे बताया, "बड़ी संख्या में बदली कर्मचारी भी हैं जिन्हें प्रतिदिन 404 रुपये मिलते हैं लेकिन उनकी संख्या तेजी से घट रही है।"

गिरिडीह के रहने वाले और दलित कर्मचारी नारायण यादव (58) के लिए कोलकाता की जिंदगी में काफी व्यस्तता है। उनकी बड़ी नाराजगी यह है कि 2020 के बाद से सफाई मजदूरों को कोई छुट्टी नहीं मिली है, न तो कैलेंडर की छुट्टियां मिली या न ही पेड लीव्स। यादव कहते हैं, “वह व्यवस्था भी बंद हो गई है और अब कोलकाता शहर में सफाईकर्मियों के लिए कोई अवकाश नहीं है। बिना छुट्टी के काम करना शारीरिक रूप से संभव नहीं है। हमें बुखार या बीमारी होने पर भी खेत में बैल की तरह काम करने के लिए कहा जाता है।”

एक और समस्या जो सफाई मजदूरों को झेलनी पड़ रही है, वह यह है कि उनमें से कई को गंदे तरह के क्वार्टर भी नहीं मिलते हैं जिन पर अब बाहरी लोगों का कब्जा है। यादव ने कहा, "यदि आप हमारे क्वार्टरों पर सर्वेक्षण करेंगे तो आप देखेंगे कि 60% से अधिक कमरे बाहरी लोगों के कब्जे में हैं और हमें अपने कार्य स्थल के पास झोंपड़ियों में रहना पड़ता है।"

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए, केएमसी वर्कर्स यूनियन के सचिव अनुतोष सरकार ने राम और यादव द्वारा उठाई गई सभी शिकायतों का सही ठहराया और कहा कि उनका संगठन सफाई मजदूरों की मदद के लिए आंदोलनों की तैयारी कर रहा था। सरकार ने आगे कहा, “उन्हें छुट्टियां नहीं मिलतीं और केवल इतना ही नहीं बल्कि कोविड के दौरान उन्हें पीपीई किट भी नहीं दी गई और उन्हें सैनिटेशन कचरे को हटाने के लिए काम करने को कहा गया था। यदि उनमें से कोई भी कोविड से संक्रमित होता तो निगम उनके इलाज के लिए कोई राशि भी नहीं देता।"

सरकार ने न्यूज़क्लिक को बताया, "पहले वाम मोर्चा के नियंत्रण वाली बोर्डों के दौरान (2010 में वाम मोर्चा केएमसी बोर्ड का नेतृत्व करता था) कर्मचारियों को काम करने के लिए दो शर्ट, रेनकोट और गमबूट मिलते थे क्योंकि उनकी कार्य प्रकृति खतरनाक है लेकिन अब यह सब बंद हो गया है। हम मांग कर रहे हैं कि निगम दोबारा ये किट देना शुरू करे। पहले सफाई कर्मियों के क्वार्टरों के बुनियादी ढांचे में सुधार के प्रयास किए गए थे; अब वह सब रुक गया है। 100 दिनों के शहरी रोजगार सृजन कार्यक्रम की योजना का गलत इस्तेमाल करते हुए, वर्तमान बोर्ड सफाई मजदूरों को केवल 202 रुपये प्रति दिन का भुगतान कर रहा है और कोलकाता निगम के 144 वार्डों में लगभग 10,000 ऐसे मजदूर हैं जो मामूली वेतन पर स्थायी प्रकृति की नौकरी कर रहे हैं। यह सुप्रीम कोर्ट के समान काम समान वेतन के फैसले का उल्लंघन है। मजदूरों के आकस्मिक छुट्टी, अर्जित छुट्टी और मेडिकल छुट्टियां हैं लेकिन वे केवल कागजों पर हैं।”

यूनियन केएमसी के ठेका मजदूरों को स्थायी दर्जा देने की भी मांग कर रहा है लेकिन मौजूदा बोर्ड टाल-मटोल कर रहा है।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

WB: Safai Workers Under KMC Struggle With Dingy Quarters, Meagre Pay and no Holidays

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