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सामाजिक न्याय के प्रति हम दृढ़ता से प्रतिबद्ध हैं : स्टालिन

स्टालिन ने धर्म, जाति और पुराणों के नाम पर होने वाले भेदभाव और समाज के कई वर्गों के साथ होने वाले अन्याय का ज़िक्र करते हुए कहा कि कुछ भी अपने आप नहीं बदला।
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द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) के अध्यक्ष और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने यहां कहा कि द्रविड़ियन आंदोलन का एकमात्र ‘‘पहला और आखिरी’’ लक्ष्य सामाजिक न्याय है और उसके लिए संघर्ष जारी रहेगा।

गरिमा एवं न्याय के लिए शरीर के ऊपरी हिस्से पर कपड़ा पहनने के अधिकार को लेकर हुई क्रांति के 200 साल पूरे होने के अवसर पर स्टालिन ने सोमवार को यह कहा।

उन्होंने ब्रितानी काल में ‘जस्टिस पार्टी’ के शासन में सभी के लिए शिक्षा और बाल विवाह पर प्रतिबंध जैसे सामाजिक सुधारों को सूचीबद्ध किया।

स्टालिन ने धर्म, जाति और पुराणों के नाम पर होने वाले भेदभाव और समाज के कई वर्गों के साथ होने वाले अन्याय का जिक्र करते हुए कहा कि कुछ भी अपने आप नहीं बदला।

उन्होंने कहा कि अय्या वैकुंदर समेत कई सुधारवादी नेताओं के प्रयासों से यह संभव हुआ और पूर्ण समाजिक न्याय के लिए संघर्ष जारी रहेगा।

स्टालिन ने कहा कि शरीर के ऊपरी हिस्से के लिए कपड़ा पहनने के हक की खातिर हुई क्रांति सामाजिक न्याय हासिल करने की दिशा में तमिलनाडु में हुए संघर्षों के इतिहास में एक वीरतापूर्ण संघर्ष है।

उन्होंने कहा कि त्रावणकोर (अब कन्याकुमारी जिला) की तत्कालीन रियासत में निचली समझी जाने वाली जाति की महिलाओं को अपनी छाती को ढकने के लिए शरीर के ऊपरी हिस्से पर कपड़ा पहनने की अनुमति नहीं थी।

स्टालिन ने कहा कि जिन महिलाओं ने अपने शरीर का ऊपरी हिस्सा ढकने की कोशिश की, उन्हें प्रताड़ित किया गया और उन पर कर भी लगाया गया।

उन्होंने कहा, ‘‘क्या इससे बड़ा कोई और अन्याय हो सकता है?’’

मुख्यमंत्री ने कहा कि कर नहीं देने वाली एक महिला ने अपने स्तन काट लिए थे और यह घटना जिस जगह पर हुई थी, आज वह स्थल पूजनीय है।

त्रावणकोर राज्य में महिलाओं को शरीर का ऊपरी हिस्सा ढकने के लिए कपड़े पहनने का अधिकार दिए जाने को लेकर 19वीं शताब्दी की शुरुआत में एक क्रांति हुई थी। उस समय निचली समझी जाने वाली जातियों की महिलाओं को अपनी छाती ढकने की अनुमति नहीं थी। 
        
(न्यूज़ एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)

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