ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी के आगे भागवत का समर्पण!

यह लाख टके का सवाल है कि आधे-अधूरे राम मंदिर के उद्घाटन के एक साल बाद ही आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को यह बयान देने की क्यों सूझी कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण से ही भारत को असली आजादी मिली?
दरअसल, भागवत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच पिछले कुछ समय से शीतयुद्ध चल रहा था। भागवत के कुछ बयानों को मोदी पर परोक्ष हमला माना जा रहा था। जवाब में मोदी की ओर से पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी परोक्ष जवाबी हमला करते हुए एक बयान दिया था कि भाजपा को पहले संघ की जरूरत हुआ करती थी लेकिन भाजपा अब आत्मनिर्भर हो चुकी है। हालांकि कुछ ही दिनों बाद नड्डा को नागपुर में हाजिर होकर अपने बयान के बारे में सफाई देना पड़ी थी। लेकिन पिछले दिनों जब भागवत ने हर मस्जिद के नीचे मंदिर खोजने के सिलसिले पर चिंता जताते हुए कहा कि राम मंदिर निर्माण के बाद कुछ लोग ऐसा मानने लगे कि वे ऐसे मुद्दे उठाकर हिंदुओं के नेता बन जाएंगे, तो उनके इस बयान पर संघ और भाजपा के हलकों में तीखी प्रतिक्रिया हुई। संघ से जुड़े और मोदी समर्थक माने जाने वाले साधु-संतों ने भागवत के बयान की आलोचना करते हुए कहा कि वे हमारे मार्गदर्शक नहीं हैं। यहां तक कि संघ के मुखपत्र 'ऑर्गेनाइजर' ने भी भागवत के बयान से असहमति जताई। कुल मिलाकर भागवत चौतरफा घिर कर अलग-थलग पड़ गए। माना जाने लगा कि अब भागवत को जल्द ही सरसंघचालक पद से हटा दिया जाएगा। लेकिन अब माना जा रहा है कि भागवत ने राममंदिर निर्माण को असली आजादी बताने वाला बयान देकर मोदी की नाराजगी दूर करने का प्रयास किया है, यानी उन्होंने एक तरह से मोदी के सामने समर्पण कर दिया है।
अमृतपाल की पार्टी से पंजाब की राजनीति बदलेगी
जेल में बंद पंजाब के कट्टरपंथी नेता और खडूर साहिब सीट से निर्दलीय सांसद अमृतपाल की पार्टी बन गई है। पंजाब की राजनीति में यह एक बड़ा बदलाव आने का संकेत है। पहले से तय कार्यक्रम के मुताबिक 14 जनवरी को मकर संक्रांति के मौके पर मुक्तसर में लगने वाले माघी मेले में अमृतपाल के पिता ने पार्टी की स्थापना की।
फरीदकोट के निर्दलीय सांसद सरबजीत सिंह भी इसमें उनके साथ हैं। सरबजीत सिंह इंदिरा गांधी की हत्या में शामिल बेअंत सिंह के बेटे हैं। इन दोनों की पार्टी का नाम 'अकाली दल वारिस पंजाब दे’ है।
गौरतलब है कि अमृतपाल जेल जाने से पहले 'वारिस पंजाब दे’ नाम से संगठन चलाता था, जिसके जरिए युवाओं को नशा मुक्त कराने का अभियान चलता था। हालांकि सुरक्षा एजेंसियों का कहना है कि अमृतपाल का संगठन युवाओं को कट्टरपंथी बना कर उन्हें खालिस्तान के लिए प्रेरित कर रहा था। बहरहाल, एक तरफ शिरोमणि अकाली दल कमजोर हो रहा है और बादल परिवार राजनीति में अलग थलग हुआ है और उसी समय एक कट्टरपंथी संगठन का राजनीतिक दल के तौर पर उभरना शुरू हुआ है। यह संयोग नहीं है। अमृतपाल सिंह और सरबजीत सिंह ने दूरगामी योजना के साथ इस पार्टी की शुरुआत की है और यह साफ दिख रहा है कि 'अकाली दल वारिस पंजाब दे’ का पहला लक्ष्य शिरोमणि अकाली दल को और कमजोर करना है। अगर अकाली दल का वोट अमृतपाल की पार्टी की ओर शिफ्ट होता है तो कट्टरपंथियों का समर्थन इस पार्टी को बड़ी ताकत दे सकता है।
दिल्ली में जाति गणना के मुद्दे से क्या मिलेगा?
राहुल गांधी हर जगह के लोगों के पांवों में एक ही साइज का जूता पहनाना चाहते हैं। पिछले कुछ समय से वे संविधान बचाओ, आरक्षण बढ़ाओ, जाति गणना कराओ जैसे मुद्दे लेकर देश भर में घूम रहे हैं। उन्होंने कर्नाटक का चुनाव इन मुद्दों पर लड़ा। फिर मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलंगाना के चुनाव में भी यही मुद्दे उठाए। फिर लोकसभा और चार राज्यों का चुनाव और उसके बाद फिर चार अन्य राज्यों के विधानसभा चुनाव भी इसी मुद्दे पर लड़े। लेकिन सिर्फ कर्नाटक, तेलंगाना व झारखंड और लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को इसका कुछ फायदा हुआ। बाकी जगह ये मुद्दे नहीं चल पाए। फिर भी राहुल इन मुद्दों को नहीं छोड़ रहे हैं। वे दिल्ली चुनाव में भी यही मुद्दे उठा रहे हैं।
उन्होंने दिल्ली के सीलमपुर में पहली रैली की, जिसमें उन्होंने संविधान की प्रति हाथ में ले रखी थी। वे संविधान बचाने की बात कर रहे थे। उन्होंने भाजपा और आम आदमी पार्टी को जाति गणना के मुद्दे पर घेरा और कहा कि इन दोनों पार्टियों के लोग जाति गणना पर कुछ नहीं बोलते हैं।
सवाल है कि दिल्ली में जाति गणना और आरक्षण का मुद्दा कितना चल पाएगा? सवाल यह भी है कि कांग्रेस 15 साल के शीला दीक्षित के कामकाज और उसके बाद राज्य व केंद्र सरकार की नाकामी और आपसी झगड़े को मुद्दा क्यों नहीं बना रही है? इसी मुद्दे पर नई दिल्ली से कांग्रेस उम्मीदवार संदीप दीक्षित को लोगों से से समर्थन और सहानुभूति दोनों मिल रही है।
अमेरिका के आगे यह समर्पण क्यों?
कनाडा में जब खालिस्तान समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद भारत पर आरोप लगे थे तो भारत सरकार ने आक्रामक तेवर दिखाते हुए सारे आरोपों से इनकार किया था और उलटे कनाडा को कठघरे में खड़ा किया था। लेकिन जब अमेरिका ने सिख फॉर जस्टिस के गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या के प्रयास की साजिश में भारत के शामिल होने का आरोप लगाया तो भारत सरकार ने जांच कमेटी बनाई और अब उस कमेटी ने भारतीय एजेंट की गलती भी मान ली है। ऐसा लग रहा है कि भारत की विदेशी खुफिया एजेंसी रॉ से जुड़े रहे विकास यादव को बलि का बकरा बनाया जाएगा।
अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन के साथ बेहतर संबंध बनाने के लिए गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या के प्रयास के मामले में विकास यादव पर कार्रवाई का फैसला होता दिख रहा है।
असल में केंद्र सरकार ने इस मामले की जांच के लिए एक उच्चस्तरीय कमेटी बनाई थी, जिसने अपनी रिपोर्ट में भारतीय एजेंट की गलती मानी है और उसके खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की है। कमेटी की रिपोर्ट में किसी का नाम नहीं है लेकिन माना जा रहा है कि इशारा विकास यादव की ओर है, जिन्हें कुछ समय पहले गिरफ्तार भी किया गया था। भारत सरकार की कमेटी की सिफारिशों को लेकर उसके दोहरे रवैए का मामला भी उठ रहा है। यह सवाल पूछा जा रहा है कि कनाडा और अमेरिका के मामले में भारत सरकार अलग-अलग रुख क्यों अख्तियार कर रही है। क्या यह सीधा-सीधा अमेरिका के आगे समर्पण नहीं है?
स्मृति ईरानी के पुनर्वास की शुरुआत
पिछले साल लोकसभा चुनाव हारने के बाद से पूरी तरह शांत और राजनीति से लगभग दूर रहीं स्मृति ईरानी अब सक्रिय हो गई हैं। उन्होंने दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर कई बयान दिए हैं। इस बीच उनके पुनर्वास की शुरुआत भी हो गई है। उन्हें प्रधानमंत्री मेमोरियल लाइब्रेरी यानी पीएमएमएल की कार्यकारी परिषद का सदस्य बनाया गया है। सरकार ने इस परिषद का पांच साल के लिए पुनर्गठन किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रधान सचिव रहे नृपेंद्र मिश्रा फिर से परिषद के प्रमुख बनाए गए हैं।
स्मृति ईरानी को इस परिषद में शामिल करके यह मैसेज दिया गया है कि वे 2024 में अमेठी में कांग्रेस के किशोरीलाल शर्मा के मुकाबले मिली हार से उबर कर सक्रिय राजनीति में उतरने के लिए तैयार हैं। दिल्ली विधानसभा के चुनाव में मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बना कर ग्रेटर कैलाश सीट पर दिल्ली सरकार के मंत्री सौरभ भारद्वाज के खिलाफ उन्हें चुनाव लड़ाने की भी चर्चा थी, लेकिन फिर पार्टी को लगा कि यह दांव जोखिम भरा हो सकता है। अब कहा जा रहा है कि पार्टी के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष की टीम में उन्हें अहम जिम्मेदारी मिल सकती है और राज्यसभा में भी भेजा जा सकता है। उनकी शुरुआत भी राज्यसभा सदस्य के तौर पर ही हुई थी और बाद में वे लोकसभा सदस्य बनी थीं। उन्हें गुजरात से राज्यसभा में भेजा गया था।
भाजपा के टिकट बंटवारे में खूब गड़बड़ी हुई
भाजपा दिल्ली विधानसभा चुनाव में टिकट बंटवारे में सबसे पीछे रही। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने चुनाव की घोषणा से पहले ही अपने उम्मीदवारों की घोषणा शुरू कर दी थी लेकिन भाजपा ने चुनाव की घोषणा का इंतजार किया और उसके बाद अपने उम्मीदवारों की घोषणा शुरू की। इससे लगा कि भाजपा बहुत सोच विचार करके उम्मीदवारों का चयन कर रही है। लेकिन उसके उम्मीदवारों की पहली सूची में इस बात को लेकर विवाद हुआ कि उसने कांग्रेस और आम आदमी पार्टी से आए लोगों को बड़ी संख्या में टिकट दिया तो दूसरी सूची में इस बात का विवाद हुआ कि कपिल मिश्रा को करावल नगर कैसे भेजा गया।
गौरतलब है कि कपिल मिश्रा पहले आम आदमी पार्टी में थे और 2015 में करावल नगर से ही विधानसभा का चुनाव जीते थे। बाद में वे अरविंद केजरीवाल की सरकार में मंत्री भी बने। लेकिन 2019 में पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में उन्हें निकाल दिया गया तो वे भाजपा में चले गए। भाजपा ने 2020 में उन्हें मॉडल टाउन सीट से चुनाव लड़ाया लेकिन वे हार गए। इस बार भाजपा ने उन्हें करावल नगर से टिकट दे दिया, जहां से पांच बार मोहन सिंह बिष्ट विधायक रहे हैं। उनका टिकट कटने से विवाद हुआ तो भाजपा को उन्हें मुस्तफाबाद सीट से टिकट देना पड़ा। लेकिन इससे भाजपा के लिए दोनों सीटों का समीकरण बिगड़ गया है। उसके पुराने नेता जगदीश प्रधान मुस्तफाबाद सीट से तीन बार से चुनाव लड़ रहे थे और एक बार जीते भी थे।
मिल्कीपुर में भाजपा ने बड़ा जोखिम लिया
उत्तर प्रदेश में प्रतिष्ठा की लड़ाई बनी मिल्कीपुर विधानसभा सीट के उपचुनाव में भाजपा ने बिल्कुल नए चेहरे को उतार कर बड़ा जोखिम लिया है। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस सीट पर भाजपा ने चंद्रभानु पासवान को उतारा है। उनका सीधा मुकाबला समाजवादी पार्टी के अजित प्रसाद से होगा। यह सीट अवधेश प्रसाद के लोकसभा चुनाव जीतने की वजह से खाली हुई है। अवधेश प्रसाद फैजाबाद सीट पर भाजपा के लल्लू सिंह को हरा कर सांसद बने हैं। फैजाबाद सीट के तहत ही अयोध्या का क्षेत्र भी आता है। विपक्षी पार्टियों ने फैजाबाद सीट पर भाजपा की हार को लेकर प्रचार किया कि वह राममंदिर का उद्घाटन करने के बावजूद अयोध्या हार गई। इसीलिए यह सीट भाजपा के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई बन गई है, खास कर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए। लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद उन्होंने नौ सीटों के उपचुनाव में सात पर भाजपा को जीत दिला कर अपनी ताकत दिखाई है। हालांकि इस जीत के लिए उन्होंने सरकारी मशीनरी का भी भरपूर दुरुपयोग किया। बहरहाल उन सभी सात सीटों से ज्यादा महत्व अकेले मिल्कीपुर सीट का है। अगर भाजपा इस सीट पर नहीं जीतती है तो अयोध्या की हार की टीस अगले चुनाव तक बनी रहेगी। इसलिए सवाल है कि ऐसी प्रतिष्ठा की सीट पर भाजपा ने नए चेहरे पर दांव क्यों लगाया? कहा जा रहा है कि पिछले कई बार से चुनाव लड़ रहे पूर्व विधायक बाबा गोरखनाथ के बारे में पार्टी की स्थानीय इकाई ने निगेटिव फीडबैक दी थी, इसलिए उनकी टिकट कटी।
कांग्रेस चुनिंदा सीटों पर दम लगाएगी
कांग्रेस वैसे तो दिल्ली की सभी 70 सीटों पर लड़ रही है लेकिन पार्टी के संसाधन सीमित हैं इसलिए वह सभी सीटों पर बहुत दमदार तरीके से नहीं लड़ सकती है। इसलिए पार्टी ने तय किया है कि वह चुनिंदा सीटों पर पूरा दम लगा कर लड़ेगी। इस बार कांग्रेस का प्रयास है कि उसका खाता खुले और उसका वोट प्रतिशत दहाई में पहुंचे। कांग्रेस को इस बार पहले से बेहतर करने की उम्मीद भी है क्योंकि कोरोना की महामारी के समय उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए सांप्रदायिक दंगों के बाद मुसलमानों का आम आदमी पार्टी से मोहभंग हुआ है। वे पहले भी उसकी राजनीति पर संदेह करते थे लेकिन भाजपा को रोकने की मजबूरी में वे उसे वोट देते थे। दंगों के बाद पार्टी और सरकार के कामकाज की वजह से उनकी नाराजगी बढ़ी और उन्होंने 2022 में हुए दिल्ली नगर निगम चुनाव में कांग्रेस की ओर लौटना शुरू हुआ। कांग्रेस को 2020 के विधानसभा चुनाव में साढ़े चार फीसदी के करीब वोट मिले थे लेकिन 2022 के नगर निगम चुनाव में कांग्रेस का वोट 11.38 फीसदी पहुंच गया। इसका नुकसान आम आदमी पार्टी को हुआ और वह बहुत मामूली बढ़त हासिल कर पाई। अगर कांग्रेस इतना वोट भी हासिल करती है तो वह आम आदमी पार्टी का बहुत नुकसान कर सकती है। इसलिए कांग्रेस की नजर उन सीटों पर है, जहां वह मजबूती से लड़ सकती है। वह मुस्लिम बहुल सीटों पर खास ध्यान दे रही है। कस्तूरबा नगर में अभिषेक दत्त, नई दिल्ली में संदीप दीक्षित, जंगपुरा में फरहाद सूरी, चांदनी चौक में मुदित अग्रवाल, सुल्तानपुर माजरा में जयकिशन, मॉडल टाउन करण कंवर सिंह, घोंडा भीष्म शर्मा, पटेल नगर से कृष्णा तीरथ आदि ऐसे उम्मीदवार हैं, जो अपने दम पर भी मजबूती से लड़ रहे हैं और कांग्रेस भी इन सीटों पर पूरा दम लगाएगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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