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पुतिन को ‘दुष्ट' ठहराने के पश्चिमी दुराग्रह से किसी का भला नहीं होगा

रूस की ओर उंगलियों उठाने से कुछ नहीं बदलेगा–दुनिया में स्थायी शांति के लिए यह रवैया बदलने की ज़रूरत है। 
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अफगानिस्तान में पुराना लंबा युद्ध बमुश्किल खत्म हुआ है और इस बार यूरोप में एक नया युद्ध चल रहा है। दुनिया की अधिकांश सरकारें, मीडिया और संयुक्त राष्ट्र महासभा सब की सब आनन-फानन में एक आम सहमति पर पहुंच गईं कि: यूक्रेन में व्लादिमीर पुतिन की कार्रवाई अवमाननापूर्ण है, वे आक्रामणकारी हैं। इस तरह, विश्व जनमत यूक्रेन का पुरजोर समर्थन करता है। लगभग हर रोज ही अमन कायम किए जाने की मांग को लेकर जहां-तहां बड़े-बड़े प्रदर्शन किए जाते हैं। 

दुनिया की अधिकतर आबादी वाला दक्षिणी विश्व का हिस्सा हालांकि रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों में सहभागी होने के लिए उत्सुक नहीं है। इस हिस्से में आने वाले देश चीन, भारत, ब्राजील, बांग्लादेश, पाकिस्तान, इंडोनेशिया और अधिकतर लैटिन अमेरिकी देश प्रतिबंध के समर्थक समूह में शामिल नहीं होंगे। कई देशों का यूक्रेन और रूस से आयातित अनाजों पर ही चूल्हा जलता है, और इसलिए वे उसकी आपूर्ति श्रृंखला में अड़चन से अपने यहां बड़ी मात्रा में आपूर्ति के ठप होने की चिंता में ही घुले जा रहे हैं। 

हालांकि शांति के लिए किए जाने वाले प्रयास सराहनीय हैं-लेकिन क्या वे जल्दी ही विफल नहीं हो जा सकते हैं? क्या यह नेकनीयत किंतु शायद कमदूरदर्शिता है, जिसकी हम कम से कम उम्मीद कर सकते हैं या, क्या हम यूक्रेन, रूसियों और पृथ्वी के बाकी हिस्से के लिए कुछ बेहतर करने का लक्ष्य रख सकते हैं यदि हम पश्चिमी नवउदारवादी पूंजीवादी युद्ध मशीन के ढांचे से बाहर निकलते हैं? 

आक्रमण के शुरुआती दिनों के दौरान, पश्चिमी मीडिया ने रूसी सेना के खिलाफ यूक्रेन सेना के बांकुरों के प्रदर्शन के पीछे उसके बेहतर प्रशिक्षण को जाहिर किया है, जो लकड़ी की रिप्लिका राइफलों के साथ लोहा ले रहे थे। हालांकि यूक्रेन के जवान बहादुर हो सकते हैं, पर इस तथ्य को अनदेखा करना असंभव है कि उन्होंने इस लड़ाई को एक अच्छी तरह सज्जित सेना के खिलाफ अपर्याप्त उपकरणों के साथ शुरू किया, जो उन्हें अच्छी तरह से पछाड़ दिया। इसके अलावा, सशस्त्र संघर्ष के अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार, जंग में भाग लेने वाले नागरिक कुछ कानूनी सुरक्षा-कवच को खो देते हैं और आसानी से आक्रमण के निशाना बन सकते हैं। ये सब तो पहले से ही टीवी पर हमारी नजरों के सामने हो रहा है।

यहां तक कि अगर नागरिक प्रतिरोध आंशिक रूप से सफल हो जाता है, तो भी यह बहुत अधिक नागरिकों को हताहत करेगा। क्या यही चीज स्वतंत्रता समर्थक यूक्रेनी लोगों के लिए चाहते हैं, जो कि पहले से ही अपने पिछले 100 वर्षों के इतिहास के दौरान बहुत अधिक संताप झेल चुके हैं? वो क्या है न कि जब आप घरों में हिफाजत में बैठे होते हैं और आपका दांव पर कुछ भी नहीं लगा होता है तो छद्म युद्ध करना बहुत आसान होता है। जरा उन्हें हथियार दीजिए देखिए क्या वे असल में लड़ सकते हैं! यदि वे वीर हैं और वार करने वाले हैं तो वे इसे एक बहुत बुरी, लंबे समय तक चलने वाली, घर दर घर और गली दर गली को बर्बाद करने वाली लड़ाई में बदल सकते हैं। यह आबादी को क्रूर बना देगा, देश को तबाह कर देगा, और पर्यावरण को हमेशा के लिए नष्ट कर देगा। यह अफगानिस्तान पर अमेरिकी आक्रमण की पहले से ही विध्वंसक त्रासदी की तुलना में अधिक विनाश के दलदल में जा सकता है। लड़ाई में बढोतरी सामरिक परमाणु हथियारों के उपयोग के जोखिम को तेज करती है। 

और अगर यूक्रेनी, पश्चिम में अपने चियरलीडर्स के बावजूद, एक शक्तिशाली सैन्य मशीनरी के खिलाफ लंबे समय तक नहीं टिकते हैं, तो ठंडे तरीके से युद्ध के लाभ-हानि का किया गया हिसाब सिर्फ जीवन की एक भयावह बर्बादी और बहुत बड़ी निरर्थकता हो सकती है, जिसने शरणार्थियों के रूप में एक साथ शोक संतप्त महिलाओं और बच्चों (नस्ल और राष्ट्रीयता की मौजूदा असमानताएं वहां भी जाहिर हैं) की एक बड़ी लहर पैदा की है। ब्राउन यूनिवर्सिटी के वाटसन इंस्टीट्यूट में युद्ध परियोजना की लागत के अनुसार, “9/11 के बाद अफगानिस्तान, पाकिस्तान, इराक, सीरिया, लीबिया, यमन, सोमालिया और फिलीपींस में 38 मिलियन लोग विस्थापित हुए हैं।” सवाल है कि नाटो विस्तार के वास्तुकार अपनी कारगुजारियों की जवाबदेही कबूल करते हैं और यूक्रेनी शरणार्थियों की बड़ी संख्या को अपने यहां शरण देने के लिए तैयार हैं?

मैं ऐसी संभावनाओं को नहीं देख पाता हूं। यह देखना भयानक और परेशान करने वाला है कि लोग नए खलनायक या क्षणिक बुराई के साम्राज्य को दोषी ठहराने में कैसे लगभग कट्टरपंथी हो जाते हैं। यह पुतिन के साथ शुरू होता है, रूसी वोदका की ओर बढ़ता है, और अब यह कहां जाकर खत्म होगा? यह कुछ तरह की स्वतंत्रता के लिए प्रेम का एक उन्माद, एक उबाल भी पैदा करता है। लेकिन क्या यह तबाही की लागत के हिसाब का समय आने तक चलेगा? 

पूर्व वारसा समझौते के नए-नए स्वतंत्र हुए देशों को नाटो का सदस्य बनने के लिए आमंत्रित करना किसी भी मायने से एक नासमझी भरा और उग्र कदम हो सकता है। फिर इसकी जल्दी क्यों है? तात्कालीन सोवियत संघ के नियंत्रण में पूर्वी यूरोप में रहने वाले लोगों के तीखे अनुभवों, भावनाएं, असंतोषों और पुनर्जागरणवादी आवेगों के नकारात्मक भंडार को कम करने के लिए अभी तीन दशकों से भी अधिक समय लगेगा। 

एक स्वस्थ अर्थव्यवस्था के निर्माण के लिए प्रोत्साहन प्रदान करना और यूरोपीय संघ की सदस्यता देने के लिए रास्ता दिखाना अच्छे विकल्प थे, लेकिन पूर्व सोवियतसंघ के नियंत्रित देशों का उपयोग रूसी भालू के खिलाफ एक खतरा बनने के लिए तो कतई नहीं किया जाना चाहिए था। फिनलैंड, जो 2021 में फिर से वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट में नंबर एक पर है, वह एक छोटा सफल देश है जिसने रूस की बगल में रहते हुए अपने अस्तित्व के लिए एक अलग दृष्टिकोण चुना है। भालू तब और खतरनाक हो जाता है, जब उसे खारिज कर दिया जाता है, उसे उकसाया जाता है, और जब वह क्रोधित होता है। ऐसे में एक अपेक्षित रणनीतिक सहानुभूति कहां बिला गई? 

रूस जानता है कि वह इन देशों का प्यारा नहीं है। रूस समझता है कि वह इन सबसे अपनी सीमाओं में लगभग घिरा हुआ है और यूक्रेन को नाटो में खींचने की कोशिश उसकी घेराबंदी के तहत ही है। और इसलिए शायद यह समझ में आता है कि यह खुद को खतरे का सामना करने वाले हेजहोग की तरह रोल कर लिया है और अपनी रक्षा में कांटेदार बाहरी स्वरूप का प्रदर्शन कर रहा है। आखिरकार, उस पर बार-बार हमला किया गया है लेकिन घुसपैठियों का पीछा करने के अलावा उसने पश्चिम की ओर खुद से हमलावर नहीं हुआ है। फिर भी सोवियत युग के बाद लोकतांत्रिक विकास का अधिकाधिक समर्थन करते हुए धीरे-धीरे चीजों को सरल करने का मौका था, जो गंवा दिया गया। रूसी लोगों को ज्यादा मौके नहीं मिले।

अटलांटिक्सिट्स नहीं स्वीकार नहीं करेगा कि रूस यूरोप का हिस्सा है। किंतु वे चाहें या न चाहें रूस यूरोप का हिस्सा था, है और यह रहेगा-कम से कम यूराल पर्वत श्रृंखला तक। इससे इनकार करना केवल संभावित संघर्ष की एक भयंकर खाई को बनाए रखेगा, और यह इस विशाल देश को चीन के शी जिनपिंग के "बेयर पैच" की तरफ ले जा सकता है, जैसा कि डेविड पी ने हाल ही में एशिया टाइम्स में लिखा है। पश्चिमी गठबंधन के राजनीतिक और आर्थिक नेताओं, जो चीजों को अपने तरीके से ही काम करते देखने के आदी हैं, उन्हें इस वास्तविकता को जानने-समझने की आवश्यकता है कि बाकी दुनिया अब उनके टकराव और लालची व्यवहार की उनकी तर्कहीन लत को सहन करने के लिए तैयार नहीं है, जिसे विदेश नीति का गलत नाम दिया गया है।

शीत युद्ध का अंत 'इतिहास का अंत' नहीं था।और जैसा कि एंड्रयू बेसेविच ने बोस्टन ग्लोब में लिखा है, "हाल की कई अमेरिकी सरकारों की तरफ से यह तर्क दिया गया है कि नाटो का विस्तार रूसी सुरक्षा के लिए खतरा पैदा नहीं करता है, यह तर्क सूंघने की क्षमता के परीक्षण को पास नहीं करता है। यह मान कर चलता है कि रूस के प्रति अमेरिकी व्यवहार सौम्य है। जबकि वे दशकों तक सौम्य नहीं रहे हैं और अभी भी नहीं हैं।”

सूंघने की क्षमता की जांच पास कर जाना- यही इस मसले के हल की कुंजी है। इसके लिए नजरिए में बदलाव जरूरी है। यह कोई कमजोरी नहीं है। यह अच्छी मंशा है और जीवन तथा जीविका के लिए एक सकारात्मक इच्छा है। आखिरी बात यह है कि अमेरिका, यूरोप और इस बुरे ग्रह को अधिक अश्लील विनाश करने, मानसिक प्रदूषण के नए भंडार बनाना है और, जैसा कि संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कहा गया है, और अतिरिक्त 10 मिलियन लोग घर छोड़ कर भाग रहे हैं या आंतरिक रूप से विस्थापित हो चुके हैं। यह जले पर नमक छिड़कना है। इसमें केवल उन प्रतिभागियों को उनके बैंक के रास्ते ठहाका लगाते सुना जा सकेगा, वे लोग तेल और गैस के उत्पादक/प्रमोटर हैं, जो इन प्रतिबंधों से मुक्त हैं। इसके अलावा, जैसा कि यह बार-बार हुआ है, कि युद्ध के सबसे बड़े नगाड़े में अधिकतर विविध प्रकार के सार्वजनिक संवादों का स्वर घुट कर रह जाता है। इस तरह की एकल आयामी मुख्यधारा की कथा तनाव दूर करने में कुछ भी योगदान नहीं करती है बल्कि यह विपरीत मार करती है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के हाल के स्टेट ऑफ द यूनियन भाषण ने जलवायु संकट के अस्तित्व के खतरे को मुश्किल से छुआ है। 

हां, यह देखना शानदार है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय का बहुमत यूक्रेन के साथ कैसे खड़ा है। लेकिन शांति बनाने के लिए वुडस्टॉक जैसी आजादी के उन्माद की मियाद बहुत कम होगी। इसके लिए ठंडा दिमाग, गर्म दिल, कम से कम आधा औंस विनम्रता चाहिए होगी। साथ ही, टाले जा सकने वाले इस युद्ध के पागलपन को रोकने के लिए दृढ़ संकल्प की भी आवश्यकता होती है।

इरिका शेल्बी लुकिंग फॉर हम्बोल्ट और सर्चिंग फॉर जर्मन फुटप्रिंट्स इन न्यू मैक्सिको एंड बियोंड (लावा गेट प्रेस,2017) और लिबरेटिंग दि फ्यूचर फ्रॉम दि पास्ट जैसी पुस्तकों की लेखिका हैं, जिसे बर्लिन आधारित सांस्कृतिक पत्रिका लेट्रे इंटरनेशनल द्वारा आयोजित इंटरनेशनल एसे प्राइज कॉन्टेस्ट के लिए चयन किया गया है। शेल्बी न्यू मैक्सिको में रहती हैं। 

यह लेख ग्लोबलट्राटर द्वारा प्रस्तुत किया गया है।

अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे गए लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें 

West’s Fanaticism Over Blaming ‘Evil’ Putin Misses the Point

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