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कृषि कानूनों की वापसी के बाद क्या सोच रहे हैं पंजाब के लोग?

कानूनों की वापसी के ऐलान के बाद पंजाब में जश्न का माहौल है। पंजाब के लोग इसे किसान आंदोलन की बड़ी जीत के रूप में देख रहे हैं। लेकिन भाजपा के प्रति विरोध और गुस्से का भाव कम होने का नाम नहीं ले रहा।
PUNJAB
लुधियाना : कृषि क़ानूनों की वापसी की ख़ुशी। फोटो साभार: अश्विनी कुमार/दैनिक ट्रिब्यून

एक साल से चल रहे किसान आंदोलन के दबाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत 19 नवंबर को तीनों कृषि कानूनों को वापिस लेने की घोषणा की और 24 नवंबर को केंद्रीय कैबिनेट ने कृषि कानून वापसी बिल को अनुमति दे दी। आज, सोमवार, 29 नवंबर को शुरू हुए संसद के शीतकालीन सत्र में इन कानूनों की वापसी के बिल पहले ही दिन दोनों सदनों में पास कर दिए गए।

कानूनों की वापसी के ऐलान के बाद पंजाब में जश्न का माहौल है। पंजाब के लोग इसे किसान आंदोलन की बड़ी जीत के रूप में देख रहे हैं। लेकिन भाजपा के प्रति विरोध और गुस्से का भाव कम होने का नाम नहीं ले रहा। लोग भाजपा नेताओं व उनके समर्थकों द्वारा किसानों के लिए बोले गए खालिस्तानी, माओवादी, मवाली जैसे शब्दों को भूले नहीं हैं । आंदोलन के दौरान हुई 700 किसानों की मृत्यु और लखीमपुर खीरी घटना के लिए पंजाब के किसान भाजपा की मोदी सरकार को बड़ा गुनाहगार मानते हैं । लोगों के मन में यह धारणा भी कहीं न कहीं बैठी हुई है कि मोदी सरकार किसी न किसी रास्ते कानूनों को दोबारा न ले आए, उनको मोदी सरकार पर रत्ती भर भी भरोसा नहीं है। कानून वापसी के बाद आम किसान एमएसपी की मांग को जोर-शोर से उठा रहा है ।

ज़िला लुधियाना का नौजवान युवराज सिंह गिल अपनी भावनाओं को प्रगट करते हुए कहता है, “19 नवंबर को गुरुपर्व था, उसी दिन प्रधानमंत्री मोदी ने काले कानूनों को रद्द करने का ऐलान कर दिया। मैं और मेरे दोस्तों ने ख़ुशी में सुबह से ही पटाखे चलाने शुरू कर दिए। यह हमारे किसान भाइयों के लम्बे संघर्ष, उनके हौसलें, जज़्बे और किसान नेताओं की सही अगुआई की जीत है जिन्होंने मोदी जैसे अहंकारी नेता को भी झुकने को मजबूर किया है।”

ज़िला संगरूर के किसान जगजीत सिंह का कहना है, ”कानून वापसी की हमें खुशी है पर यह देरी से आया फैसला है। यदि यह ऐलान पहले हो जाता तो हमारे 700 किसान भाई-बहनों को शहादत का जाम न पीना पड़ता न ही लखीमपुर खीरी जैसी घटना होती। मुझे हंसी आती है जब गोदी मीडिया कानून वापसी का सेहरा भी मोदी को देता हुआ कहता है कि मोदी ने किसानों के लिए यह कदम उठा कर बड़ा दिल दिखाया। यही गोदी मीडिया इन कानूनों के फ़ायदे गिनाता रहा है। मोदी ने यह कानून वापस लेकर हमारे पर कोई उपकार नहीं किया है बल्कि ऐसा उसने किसान आंदोलन के आगे घुटने टेक कर किया है क्योंकि पूरे देश के किसान-मजदूरों की एकता से उसे डर लगने लगा था और अपनी हार नज़र आने लगी थी। हमारे आंदोलन ने कानून वापस करा कर ऐतिहासक जीत दर्ज की है। अब एमएसपी की बड़ी मांग के साथ हमारी कुछ और मांगें हैं। मुझे आस है कि हमारा मोर्चा इस पर भी जीत हासिल करेगा और दिल्ली की सरहदों पर बैठे हमारे भाई-बहन जीत कर ही अपने घर आएंगे।”

याद रहे संयुक्त किसान मोर्चा की तीनों कानूनों की वापसी के अलावा कुछ और मांगें भी हैं जिसमें एमएसपी की कानूनी गारंटी, केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी की बर्खास्तगी व गिरफ़्तारी, बिजली संशोधन बिल की वापसी, आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों के परिवारों को मुआवज़ा व पुनर्वास तथा उनकी स्मृति में सिंघु मोर्चा पर स्मारक निर्माण के लिए भूमि आवंटन और किसानों पर हुए मुकदमें वापस लेना मुख्य मांगे हैं। संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं का कहना है जब तक हमारी ये मांगें नहीं मानी जाती तब तक आंदोलन समाप्त नहीं होगा।

ज़िला बरनाला के सुखपुरा गांव की 80 साल की बज़ुर्ग नछत्तर कौर 26 नवंबर के टिकरी बार्डर पर हुए प्रोग्राम में पंजाब से जाते समय मुझे कहती है, “पुत्तर, मैं गरीब किसानी परिवार से आती हूँ, हमारे पास 2 किले ज़मीन है। परिवार के सिर 35 लाख का कर्ज़ था जिस कारण दुखी हो कर मेरे बेटे ने खुदकुशी कर ली। मैं किसान मोर्चा से शुरू से जुड़ी हुई हूँ। कल (26 नवंबर) को हमारे मोर्चा की जीत का जश्न दिल्ली में मनाया जा रहा है मैं उसमें शामिल होने जा रही हूँ। मुझे आंदोलन लड़ रहे इन सभी जवानों में अपना पुत्तर दिखाई देता है। मेरे पुत्तरों ने ज़ालिम हुकूमत को झुका कर रख दिया है।”

पंजाब में आपको हर आयु वर्ग के लोग मिल जायेंगे जो पिछली 26 नवंबर (जब से आंदोलन दिल्ली बार्डरों पर पहुंचा था) से दिल्ली के बार्डरों पर आंदोलन में सेवा कर रहे हैं, मानो घर उनको भूल ही गया। इनमें से ही एक है जिला बरनाला के गांव छीनीवाल का बजुर्ग किसान मेजर सिंह। एक साल पहले जब किसान आंदोलन पंजाब से चल कर दिल्ली बार्डरों पर पहुंचा तो मेजर सिंह भी अपने घर वालों को यह कहकर आंदोलन में चला गया, “खाली झोली ले कर वापिस नहीं आऊंगा।” अब जब क़ानून वापसी की बात हुई तो परिवार वाले उसे फोन कर बोले अब तो घर वापस आ जाओ लेकिन मेजर सिंह का जवाब था, “ऐसे कैसे आ जाऊँ? झूठे मोदी के कहने पर? पहले लिखती तौर पर कोई सबूत तो हाथ आ जावे।” इसी तरह जिला बठिंडा का नौजवान यादविंदर सिंह साल पहले जब ट्राली में दिल्ली बार्डर की तरफ निकला तो बोल कर गया, “इसी ट्राली में वापिस आऊंगा, जीत कर नहीं आया तो मेरी लाश आएगी इस ट्राली में।” लुधियाना का 20 साल का युवक जादू साल-भर से दिल्ली बैठा है। गर्मी- सर्दी और हुकुमती ज़ुल्म भी उसने झेले पर वह डटा हुआ है मोर्चे पर।

पंजाब में कृषि कानूनों की वापसी के ऐलान के साथ ही खेती वाली जमीनों का मूल्य फिर से उठने लगा है। साल पहले जब कृषि कानून बने थे तो खेती जमीनों के दाम गिर गये थे और जमीनों की खरीदो -फरोख्त भी रुक गई थी, यहाँ तक कि जमीनों का ठेका भी गिर गया था। ठेके वाली जमीनों के ग्राहक भी घट गए थे। अब कानूनों की वापसी से खेती जमीनों की हालत फिर से साज़गार होने लगी है । पिछले सात दिनों से खबरें आनी शुरू हुई हैं कि ठेके पर जमीन लेने वाले ग्राहक भी बढ़ने लगे हैं। पंजाब में करीब 41 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में खेती होती है जिस पर करीब 10.50 लाख किसान खेती करते है। इन में से 36 प्रतिशत छोटे किसान हैं। पिछले डेढ़ दशक में करीब दो लाख किसान खेती से बाहर हो गए हैं। कृषि कानूनों के डर से किसानों को खेत अपने हाथों से छिनते हुए नज़र आने लगे। इसी एक साल में खेती जमीनों के सौदे कम होने लगे थे और शहरी कारोबार बढने लगा था। बरनाला में खेती जमीनों की खरीदो-फरोख्त का काम करने वाले चमकौर सिंह का कहना है कि कानूनों की वापसी के फैसले से जमीनों का कारोबार दोबारा चमकने की आस बंधी है।

कृषि कानूनों की वापसी के ऐलान से पंजाब का व्यापारी वर्ग भी खुश नज़र आ रहा है। काबिल-ए-गौर है कि आंदोलन में पंजाब के व्यापारी का भी किसानों को भरपूर समर्थन रहा है। व्यापारियों को आस बंधी है कि उनका कारोबार फिर से पटरी पर आएगा। लुधियाना के व्यापारी मुकेश अग्रवाल ने बताया, “इन काले कानूनों के कारण किसान के साथ व्यापारी को भी परेशान होना पड़ा। आंदोलन के कारण पिछले साल से दूसरे राज्यों से व्यापारी कम आ रहे हैं और अन्य राज्यों से सामान भी कम आ रहा है। मोदी सरकार यदि पहले ही इन कानूनों को न लाती तो न तो हमारे किसान भाई परेशान होते न ही व्यापारी भाईचारा।”

किसान आंदोलन को गहराई से देखने वाले प्रोफेसर बावा सिंह का विचार है, “सरकार द्वारा कृषि कानूनों की वापसी किसान आंदोलन की ऐसी बेमिसाल प्राप्ति है जो भविष्य में पंजाब ही नहीं बल्कि देश के लोगों को जन संघर्षों के लिए लड़ने के लिए प्रेरणा देगी। प्रधानमंत्री मोदी ने बेशक चुनावी हार के डर से कानून वापस लेकर अपने आप को किसानों का हमदर्द साबित करने की कोशिश की है पर उनके और उनकी पार्टी के नेताओं द्वारा किसानों के लिए जिस अभद्र भाषा का प्रयोग किया गया, जिस तरह लोगों को आपस में लड़ाने व आंदोलन को तोड़ने की कोशिशें हुईं, पंजाब के लोग इस को कभी नहीं भूल पाएंगे। किसान आंदोलन ने यह भी साबित किया है कि जनतंत्र विरोधी सरकारें लोगों को आपस में लड़वाने का काम करती हैं और जन-आंदोलन जनता को आपस में जोड़ते हैं जैसे इस आंदोलन ने पंजाब और हरियाणा के लोगों को आपस में जोड़ दिया है।”

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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