NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu
image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
लॉकडाउन के लंबे सिलसिले से आख़िर क्या हासिल हुआ?
कुल मिलाकर सरकार कोरोना नियंत्रण को अपनी प्राथमिकता सूची में नीचे धकेल चुकी है। केंद्र सरकार का शीर्ष नेतृत्व राम मंदिर के शिलान्यास और आने वाले दिनों में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट गया है।
अनिल जैन
24 Jul 2020
covid-19
image courtesy : The Economic Times

कोरोना महामारी से निबटने के लिए आज से ठीक चार महीने पहले जब देशव्यापी लॉकडाउन लागू किया गया था तब देश में कोरोना से संक्रमण के करीब 450 मामले थे और महज 18 लोगों की मौत हुई थी। लॉकडाउन लागू होने से चार दिन पहले जनता कर्फ्यू भी लगाया था और उसी दिन से सब कुछ बंद हो गया था। पहले घोषित किया गया था कि लॉकडाउन 21 दिन का होगा, फिर इसे 3 मई तक के लिए बढा दिया गया। 3 मई के बाद भी इसे कुछ मामलों में छूट देने के साथ जारी रखा गया और देश के कई राज्यों में अभी भी यह अलग-अलग स्तर पर जारी है। लेकिन इसके बावजूद देश के विभिन्न राज्यों में कोरोना संक्रमण तेजी से फैलता जा रहा है।

जनता कर्फ्यू, करीब दो महीने का लॉकडाउन और इसी दौरान ताली, थाली, घंटी, शंख आदि बजाने, अंधेरा करके दीया-मोमबत्ती जलाने, आतिशबाजी करने, अस्पतालों पर सेना के विमानों से फूल बरसाने और बैंड बजाने जैसे देशव्यापी कार्यक्रमों को अंजाम देने के बाद सत्ता के शीर्ष से जनता को कोरोना के साथ जीना सीखने और आत्मनिर्भर बनने का मंत्र दे दिया गया है। लोग ईश्वर आराधना कर सकें, इसके लिए धार्मिक स्थल भी खोल देने की इजाजत दे दी गई है। शॉपिंग मॉल, रेस्त्रां, क्लब आदि भी धीरे-धीरे खुलते जा रहे हैं। कोरोना संक्रमण जिस तेजी से फैलता जा रहा है, उससे निबटने में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की लाचारी स्पष्ट हो जाने के बाद निजी अस्पतालों को भी लूट की खुली छूट दे दी गई है। मॉस्क, सेनेटाइजर आदि की कालाबाजारी और मुनाफाखोरी बेरोकटोक जारी है।

कुल मिलाकर सरकार कोरोना नियंत्रण को अपनी प्राथमिकता सूची में नीचे धकेल चुकी है। केंद्र सरकार का शीर्ष नेतृत्व राम मंदिर के शिलान्यास और आने वाले दिनों में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट गया है। इसलिए जनता भी अब संक्रमण के बढ़ते मामलों और उससे होने वाली मौतों के आंकड़ों को शेयर बाजार के सूचकांक के उतार-चढाव की तरह देखने की अभ्यस्त हो रही है। विधायकों और सांसदों की खरीद-फरोख्त का खेल देखने की तो वह बहुत पहले से अभ्यस्त है, सो अभी भी देख रही है।

वैसे देखा जाए तो कोरोना संक्रमण का संकट हमारे यहां केंद्र सरकार की प्राथमिकता में कभी भी शीर्ष पर अपनी जगह बना ही नहीं पाया। भारत में कोरोना संक्रमण का आगमन जनवरी के महीने में ही हो चुका था। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी सहित कई विशेषज्ञ सरकार को इस बारे में सरकार को आगाह कर रहे थे, लेकिन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन संकट की गंभीरता को नकारते हुए इस बारे में आगाह करने वालों को नसीहत दे रहे थे कि वे लोगों में अनावश्यक भय न फैलाएं। यही बात सत्तारूढ दल के प्रवक्ता भी टीवी चैनलों पर दोहराते राहुल गांधी की खिल्ली उड़ा रहे थे। फरवरी के महीने में ही बडी संख्या में विदेशों में रह रहे या विदेश यात्रा पर गए भारतीय स्वदेश आए थे लेकिन हवाई अड्डो पर उनकी समुचित मेडिकल जांच किए बगैर ही उन्हें अपने घर जाने दिया गया। यह लापरवाही काफी गंभीर साबित हुई देश में कोरोना संक्रमण फैलने का बडी वजह बनी।

फरवरी के महीने में ही चीन के भयावह परिदृश्य से आतंकित दुनिया के ज्यादातर देशों में जब इस जानलेवा वायरस पर नियंत्रण पाने के लिए निवारक एवं नियंत्रक उपाय और शोध शुरू हो चुके थे तब हमारे देश की सरकार अमेरिकी राष्ट्रपति का ढोल-नगाड़े के साथ खैरमकदम करने में व्यस्त थी। गुजरात के अहमदाबाद शहर में विदेशी राष्ट्राध्यक्ष के सम्मान में आयोजित हुआ कार्यक्रम देश में कोरोना फैलने की दूसरी बडी वजह बना, क्योंकि इस आयोजन में शामिल होने के लिए करीब 15 हजार अनिवासी भारतीय उस अमेरिका से भारत आए थे, जहां कोरोना संक्रमण फैलना शुरू हो चुका था।

मार्च के महीने भी हमारी सरकार के शीर्ष नेतृत्व की प्राथमिकता में कोरोना का संकट नहीं बल्कि एक प्रदेश में विपक्षी दल की सरकार गिराकर अपनी सरकार बनाना था। यह सब काम निबटाने के बाद ही सरकार को कोरोना संकट याद आया। पहले प्रायोगिक तौर पर एक दिन का जनता कर्फ्यू और फिर मार्च के आखिरी सप्ताह में बगैर किसी तैयारी के आनन-फानन में लॉकडाउन लागू कर देश को नौकरशाही और पुलिस के हवाले कर दिया गया। यह सिलसिला अभी देश के कई राज्यों में आंशिक या पूरी तरह जारी है।

देश में कोरोना वायरस का संकट लगातार बढ़ता जा रहा है और जून में अनलॉक के बाद अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में सुधार की जो उम्मीदे बंधी थीं, वह भी खत्म हो रही है। हैरानी की बात है कि बिल्कुल सामने दिख रही हकीकत को नजरअंदाज करते हुए सरकार की ओर से लगातार प्रचारित किया जा रहा है कि देश में सब कुछ ठीक चल रहा है। जबकि हकीकत यह है कि कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है- न तो कोरोना से निबटने के मोर्चे पर और न ही अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में।

अगर कोरोना संक्रमण से संबंधित आंकडों को ठीक से देखें तो दुनिया के अन्य देशों के आंकडों से तुलना करें तो पता चलता है कि भारत तेजी से दुनिया में सबसे ज्यादा प्रभावित देश बनने की ओर बढ़ रहा है। भारत में संक्रमण के बढते मामलों, संक्रमण से हो रही मौतों और गंभीर होते मामलों की रोकथाम के लिए गंभीर प्रयास करने के बजाय भारत सरकार इस बात पर जोर दे रही है कि देश में ज्यादा लोग ठीक हो रहे हैं।

यह सही है कि भारत में ज्यादा लोग इलाज से ठीक हो रहे है और यह भी सही है कि भारत अभी दुनिया मे तीसरे स्थान पर है। लेकिन यह भी हकीकत है कि अब संक्रमण के रोजाना आने वाले मामलों में भारत अब ब्राजील को पीछे छोड़ अमेरिका के बाद दूसरे नंबर पर आ गया है। पिछले एक सप्ताह के दौरान ब्राजील के मुकाबले ज्यादा मामले भारत में आए हैं। ब्राजील में मामले कम हो रहे है और भारत में बढ़ रहे हैं। रोजाना होने वाली मौतों के मामले में भी भारत दूसरे स्थान पर आ गया है। अमेरिका से ज्यादा लोगों की मौत भारत में हो रही है। कोरोना से संक्रमित गंभीर मरीजों की संख्या के मामले में भी भारत अमेरिका के बाद दूसरे स्थान पर है। हालांकि ब्राजील और भारत एक दूसरे के आगे-पीछे होते रहते हैं।

इस पूरे सूरत-ए-हाल के बावजूद केंद्र सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से हर दिन यह बताया जा रहा है कि देश में कोरोना वायरस के संकट की गंभीरता कम हो रही है और ज्यादा चिंता की बात नहीं है, जबकि राज्यों में संकट लगातार गहराता जा रहा है। राज्य सरकारें चिंतित हैं और उन्हें बचाव का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है तो वे लॉकडाउन लगा रही है। इस समय करीब एक दर्जन राज्यों में मिनी लॉकडाउन लग रहा है, जिसे सोशल मीडिया में मज़ाक के तौर पर लॉकडाउन का छोटा रिचार्ज कहा जा रहा है। पूरे देश में लगे कंपलीट लॉकडाउन की तर्ज पर राज्य सरकारें अपने यहां किसी खास दिन को या किसी खास शहर में लॉकडाउन लागू कर रही हैं।

वैसे राज्य सरकारों की स्थिति भी विचित्र है। एक तरफ जहां वे स्थिति को काबू करने के लिए लॉकडाउट का सहारा ले रही हैं, वहीं दूसरी और हालात की असलियत छुपाने के लिए ज्यादा से ज्यादा लोगों का टेस्ट करने से बच रही हैं। उन्हें लगता है कि ज्यादा टेस्ट कराने से ज्यादा मामले सामने आएंगे, जिससे स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली के चलते अफरातफरी और लोगों में घबराहट फैलेगी। मरीजों की कम संख्या दिखाने का यह आइडिया मूल रूप से अमेरिका है, जिसे भारत में सबसे पहले गुजरात ने अपनाया। इसके बाद उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना आदि राज्यों ने भी गुजरात का अनुसरण किया।

यह पूरी स्थिति यही जाहिर करती है कि केंद्र सरकार भले ही कुछ भी दावा करे मगर राज्यों में हालात ठीक नहीं हैं। ऐसे में अगर केंद्र सरकार आने वाले दिनों में एक बार फिर देशव्यापी कंपलीट लॉकडाउन लागू कर देने जैसा कदम उठाए तो कोई ताज्जुब नहीं। मगर सरकारों से यह सवाल तो पूछा ही जाना चाहिए कि लॉकडाउन के अब तक चले आ रहे लंबे सिलसिले से भारत ने आखिर क्या हासिल किया?

(अनिल जैन वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं)

Coronavirus
COVID-19
Lockdown
India Lockdown
Corona cases
Corona in India
Pandemic Coronavirus
Fight Against CoronaVirus
Narendra modi
modi sarkar
Thali or Taali
Ram Mandir

Trending

'Sedition' का इतिहास और दिशा रवि के जमानत आदेश का महत्त्व
विशेष: राष्ट्रीय विज्ञान दिवस और विज्ञान की कविता
न नौकरी की बात, न किसान की! सिर्फ मन की बात!
एमसीडी उपचुनाव: वेतन में हो रही देरी के मद्देनज़र नगरपालिका कर्मचारियों की सारी उम्मीद मतदाताओं पर टिकी
'वन नेशन वन इलेक्शन’ के जुमलों के बीच एक राज्य में 8 चरणों में चुनाव के मायने!
किसान आंदोलन का असर: सिर्फ़ राजनीतिक तौर पर नहीं सांस्कृतिक और सामाजिक तौर पर भी बदल रहा है पंजाब

Related Stories

cartoon
डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
तिरछी नज़र: बढ़ती महंगाई का मतलब है कि देश में बहुत ही अधिक विकास हो रहा है
28 February 2021
देश में बहुत ही अधिक विकास हो रहा है। विकास के अजेंडे पर बनी सरकार बहुत ह
वन नेशन वन इलेक्शन
अनिल जैन
'वन नेशन वन इलेक्शन’ के जुमलों के बीच एक राज्य में 8 चरणों में चुनाव के मायने!
28 February 2021
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कुछ चर्चित इरादों में से एक है- 'वन नेशन वन इलेक्शन।’ यानी देशभर में पंचायत से लेकर लोकसभा तक के सारे चुनाव एक साथ। पि
Bhasha Singh
न्यूज़क्लिक टीम
खोज ख़बरः प बंगाल पर इतनी मेहरबानी के मायने!, नौदीप को रिहाई पर सुकून
27 February 2021

Pagination

  • Next page ››

बाकी खबरें

  • Itihas ke panne
    न्यूज़क्लिक टीम
    'Sedition' का इतिहास और दिशा रवि के जमानत आदेश का महत्त्व
    28 Feb 2021
    क्या दिशा रवि एक शांतिपूर्ण तरीके से विरोध कर रही थी या उसकी आड़ में वह देशद्रोही गतिविधियों से जुड़ी हुई थीI इस मूल प्रश्न के बारे में जज धर्मेंद्र राणा ने दिशा रवि के ज़मानत आदेश में विस्तार से…
  • Abhisar Sharma
    न्यूज़क्लिक टीम
    न नौकरी की बात, न किसान की! सिर्फ मन की बात!
    28 Feb 2021
    ऐसे समय में जब पेट्रोल - डीज़ल के दाम आसमान छू रहे हैं, प्रधानमंत्री मोदी अपने कार्यक्रम मन की बात में सिर्फ अपने चुनाव अभियानों की बात कर रहे हैं. जनता के मुद्दों को छोड़कर प्रधानमंत्री ने इस…
  • राष्ट्रीय विज्ञान दिवस
    मुकुल सरल
    विशेष: राष्ट्रीय विज्ञान दिवस और विज्ञान की कविता
    28 Feb 2021
    आज राष्ट्रीय विज्ञान दिवस है और इतवार भी तो क्यों न आज ‘इतवार की कविता’ में विज्ञान से ही जुड़ी कविताओं के बारे में बात की जाए। ऐसा सोचते ही मुझे सबसे पहले चकबस्त याद आए।
  • विद्या देवी, ताड़ पत्र पर जैन चित्र शैली, 14 वीं से 15 वीं शताब्दी : साभार भारतीय चित्रकला, लेखक : वाचस्पति गैरोला
    डॉ. मंजु प्रसाद
    कला विशेष: जैन चित्र शैली या अपभ्रंश कला शैली
    28 Feb 2021
    अपभ्रंश चित्रकला शैली में भी मानवाकृतियां अजंता के चित्रण जैसी परिपक्व या वैभवशाली नहीं है। रेखाएं बौद्ध चित्रकला जैसी सरल और गतिशील नहीं थीं। आकृतियाँ सवा चश्म हैं…
  • cartoon
    डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: बढ़ती महंगाई का मतलब है कि देश में बहुत ही अधिक विकास हो रहा है
    28 Feb 2021
    अब आप स्वयं ही सोचिये कि क्या देश की जनता को इतना अधिक विकास होने के बाद भी इतना सस्ता पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस खरीदने में शर्म नहीं आती? आती ना! तो देश की आम जनता को शर्मिंदगी से बचाने के लिए ही…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें