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मुख्यमंत्री की बेटी ने पितृसत्ता को चुनौती दी, तो ट्रोलर्स ‘लव जिहाद’ बताने लगे!

केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन की बेटी टी. वीणा और मोहम्मद रियाज़ 15 जून को शादी के बंधन में बंधे हैं। दोनों अलग-अलग धर्मों से संबंध रखते हैं इसलिए इनकी शादी को तथाकथित धर्म के ठेकेदारों द्वारा लव जिहाद करार दे दिया गया है।
मुख्यमंत्री की बेटी ने पितृसत्ता को चुनौती दी

“जब भी महिला पितृसत्ता की खिंची लकीर को पार करती है तो समाज और कट्टरपंथी विचारधारा उसपर धावा बोलती है।”

टेलीविज़न की फेमस अदाकारा ऋचा सोनी ने ‘लव जिहाद’ के जवाब में ये बातें कहीं थी। अब लव जिहाद एक बार फिर सुर्ख़ियों में है। वजह केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन की बेटी टी. वीणा की शादी है। बीते 15 जून को वीणा और मोहम्मद रियाज़ शादी के बंधन में बंधे हैं। दोनों अलग-अलग धर्मों से संबंध रखते हैं इसलिए इनकी शादी को तथाकथित धर्म के ठेकेदारों द्वारा लव जिहाद करार दे दिया गया है। सोशल मीडिया पर दोनों को ट्रोल करने के साथ ही केरल के सीएम के ख़िलाफ़ भी नफ़रत भरे कमेंट्स और अभद्र भाषा का प्रयोग किया जा रहा है।

ट्रोलर्स ने क्या-क्या कहा?

इंदू मक्कल कट्ची लिखती हैं, “पिनराई विजयन की बेटी टी. वीणा DYFI के राष्ट्रीय अध्यक्ष से शादी कर रही हैं। लव जिहाद बहुत ऊपर है।”

डॉ. विजय सिंह नाम के एक यूजर ने तो इसे गौ हत्या और गौमांस भक्षण तक से जोड़ दिया। कनिममोज़ी नाम के अकाउंट से भी कुछ ऐसा ही कहा गया।

लिंचड नाम के एक प्रोफाइल यूजर ने ट्विटर पर लिखा, “मैरिज ऑफ जिहादिस” यानी जिहादियों की शादी।

और भी कई तरह की अनर्गल बातें लिखीं गईं जिनका उल्लेख करना भी उचित नहीं है।

टी. वीणा और मोहम्मद रियाज़ कौन हैं?

टी. वीणा की पहचान सिर्फ़ केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन की बेटी होने तक ही सीमित नहीं है। वीणा पेशे से एक सॉफ़्टवेयर इंजीनियर रह चुकी हैं, टेक विशेषज्ञ हैं और फिलहाल ‘एक्सालॉजिक’ नाम का स्टार्टप चलाती हैं।

वीणा की पहली शादी तिरुअनंतपुरत में पेशे से वकील रहे सुनीश के साथ हुई थी। इस शादी से वीणा को एक 10 साल का बेटा इशान भी है।

वहीं अगर बात मोहम्मद रियाज़ की करें तो वे स्कूल-कॉलेज के ज़माने से ही छात्र राजनीति में सक्रिय थे। पहले सीपीएम की यूथ विंग डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन यानी DYFI के महासचिव बने इसके बाद फरवरी 2017 में उन्हें अध्यक्ष बनाया गया। साल 2009 में सीपीएम की टिकट पर रियाज़ कोझिकोड से लोकसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं।

इसके अलावा रियाज़ दक्षिण भारत में विरोध प्रदर्शनों का भी जाना-माना चेहरा हैं। संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ इसी साल 6 जनवरी को रियाज़ और उनके संगठन ने करीब 1 लाख लोगों को रैली के तौर पर इकट्ठा कर कालीकट समुद्री तट पर बड़ा विरोध प्रदर्शन किया था। एनडीए सरकार के खिलाफ दक्षिण भारत में 'बीफ कुकिंग' जैसे विरोध प्रदर्शनों के अगुवाई कर चुके हैं।

कुल मिलाकर देखें तो वीणा और रियाज़ दोनों ने कट्टरपंथियों को लगातार चुनौती दी है। जिसके जवाब में अब ‘लव जिहाद’ का एंगल लाया जा रहा है।

क्या है कथित ‘लव जिहाद’?

हम सभी अक्सर टीवी पर बार-बार लव जिहाद की बातें सुनते हैं। ख़बरों के जरिए हमारे मन-मस्तिष्क में एक ऐसी छवि बनाई जाती है, जिसमें लगता है कि दो अलग समुदाय के लोग प्यार में एक-दूसरे से शादी नहीं करते बल्कि किसी एक धर्म को बर्बाद करने के मकसद से साज़िश रचते हैं। ये शब्द ज्यादातर मुस्लिम लड़कों और हिंदू लड़कियों के संबंध में इस्तेमाल किया जाता है। इसमें जबरन धर्मांतरण की बातें भी कही जाती हैं।

लव जिहाद के नाम पर प्रताड़ना झेल चुकीं ऋचा सोनी कहती हैं...“मैं एक हिन्दू महिला हूँ जिसने एक मुसलमान पुरुष से शादी की लेकिन जो चीज़ सबसे ज़्यादा ज़रूरी थी वो थी धर्म से बढ़कर वो प्यार जिसने हमें एक किया, और हमने सोचा की बस यही काफ़ी है। मेरे अपनों ने मेरा साथ दिया और मेरा अच्छा चाहा, लेकिन मुझे नहीं पता था की मुझे इतनी नफ़रत और ट्रोल्स का सामना करना पड़ेगा सिर्फ़ इसीलिए क्योंकि मैंने एक मुसलमान से शादी की।”  

पितृसत्ता की देन है ‘लव जिहाद’

अंतरधार्मिक विवाह यानी दूसरे धर्म के लड़के से शादी को ‘लव जिहाद’ बताना पितृसत्तात्मक समाज की सोच है। एक ऐसी सोच जिसमें लड़कियों को नासमझ और अबला समझा जाता है, वे अपनी मर्ज़ी से अपनी पसंद का जीवनसाथी नहीं चुन सकती। जबकि कानून ये हर बालिग लड़की का अधिकार है।

महिला अधिकारों के लिए आवाज बुलंद करने वाली कमला भसीन बताती हैं, “हमारे समाज में लड़कियों को शुरू से ही दबा कर रखने की कोशिश की गई है। उसे क्या करना है, क्या पहनना है, किससे शादी करनी है, किससे सेक्स करना है ये सब वो खुद नहीं तय करती, उसके घर के पुरुष तय करते हैं। ऐसे में जब कोई लड़की लव मैरिज कर ले, वो भी दूसरे धर्म में तो ये बड़ी बात हो जाती है क्योंकि वो इस पितृसत्ता के बंधनों को चुनौती दे रही है। हमारा संविधान हमें वो सारे हक़ देता है, जो पुरुषों को मिले हुए हैं। ऐसे में कोई और हमारे लिए फ़ैसले कैसे ले सकता है।”

कमला आगे कहती हैं, “लव जिहाद की व्यवस्था सिर्फ़ नफ़रत और पितृसत्ता की सोच पर टिकी हुई है, जो लड़कियों को अपने हिसाब से कंट्रोल करना चाहते हैं। उनके अनुसार औरतें ‘बेवकूफ़’ हैं, और आसानी से मर्दों के ‘जाल’ में ‘फंस’ जाती हैं। लेकिन अब लड़कियां आगे बढ़ रही हैं और अपने लिए खुद फैसले ले रही हैं। मुझे उम्मीद है हम अब ख़ुद को और दूसरों के हाथों नियंत्रित नहीं होने देंगे, हमारी स्वतंत्रता एक बेहतर समाज के लिए ज़रूरी है।”

धार्मिक उन्माद फैलाने का हथिहार है ‘लव जिहाद’

‘लव जिहाद’ का इस्तेमाल ज्यादातर समाज में दो धर्मों के बीच नफ़रत फैलाने के मकसद से होता है। तथाकथित ‘जिहाद’ को रोकने के लिए कट्टरवादी संगठन आए दिन ‘समुदाय विशेष’ के ख़िलाफ़ ज़हर उगलते रहते हैं। शोषण से बचाने के नाम पर औरतों को किसी भी दूसरे समुदाय के मर्दों से शादी की इजाज़त नहीं दी जाती है। 

एक हिंदू लड़की से शादी करने वाले मोहम्मद अकरम कहते हैं, “मैंने और नेहा (उनकी पत्नी) ने जब शादी का फैसला लिया तो हमने सिर्फ अपनी दोस्ती और प्यार के बारे में सोचा। हमारे दिमाग में धर्म, जाति या जिहाद जैसी कोई बात ही नहीं थी। लेकिन जैसे ही ये बात हमारे शहर कासगंज के मोहल्ले में पता लगी, लोग नेहा को मेरे बारे में उल्टी सीधी बातें बोलने लगे। उन्हें हमारे प्यार से दिक्कत नहीं थी, मेरे धर्म से दिक्कत थी। मुझे धमकियां मिलने लगीं, मेरे परिवार को बदनाम किया जाने लगा, यहां तक की हमें उस मोहल्ले को छोड़ने तक के लिए बोल दिया गया, जहां हम करीब 25 सालों से रह रहे थे।”

अकरम आगे कहते हैं कि उन लोगों के दिमाग में बस यही बातें होती हैं कि एक मुस्लिम लड़का एक हिंदू लड़की से शादी कर रहा है तो ये उनके धर्म पर हमला करने की साजिश है। उनकी संस्कृति को बर्बाद करने की कोशिश है। लव जिहाद के नाम पर हिन्दू और मुसलमानों के बीच एक झूठी दीवार खड़ी करने की कोशिश की जाती रही है।

यौन उत्पीड़न को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश है ‘लव जिहाद’

कथित ‘लव जिहाद’ का एक और एंगल भी है, जिसे प्रताड़ना से जोड़कर देखा जाता है। दूसरे धर्म में शादी की मुख़ालिफ़त करने वाले लोगों का अक्सर ये मानना होता है कि ज्यादातर ऐसी शादियां मुकम्मल नहीं होती, महिलाओं का शोषण किया जाता, उनका इस्तेमाल कर उन्हें छोड़ दिया जाता है। और ये एक सोची समझी साज़िश के तहत किया जाता है।

महिलावादी संगठन से जुड़ी शबनम हाशमी इस संबंध में कहती हैं, ‘लव जिहाद’ को जस्टीफाई करने के तौर पर अक्सर यौन हिंसा की घटनाओं का ज़िक्र किया जाता है जिनमें पीड़िता ग़ैर-मुस्लिम और दोषी मुस्लिम हों। इसमें कई दावे सच होते हैं कई झूठ लेकिन हमें ये समझने की जरूरत है कि महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा किसी एक समुदाय तक सीमित नहीं हैं। ये सिर्फ़ औरतों के ख़िलाफ़ हो रही हिंसा को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश है। प्यार और स्वेच्छा से बने रिश्तों की तुलना ऐसी घटनाओं से करना कतई उचित नहीं है।”

आख़िर कहां से आया ‘लव जिहाद’ का कॉन्सेप्ट?

जानकारी के मुताबिक लव जिहाद पहली बार साल 2009 में सुर्ख़ियों में आया। दावा किया गया कि केरल और कर्नाटक के कई क्षेत्रों में गैर-मुस्लिम औरतों को प्यार और शादी का झांसा देकर धर्मांतरित किया जा रहा है।

इसके बाद कई छोटी-बड़ी घटनाओं में इसका इस्तेमाल हुआ लेकिन साल 2017 में हादिया अशोकन केस के दौरान इसका प्रयोग देशभर में फैल गया। केरल हाईकोर्ट ने पहले हादिया की शादी को धर्म-परिवर्तन और दबाव के दावों के बीच मान्यता नहीं दी। यहां तक कहा गया कि इस शादी के पीछे आतंकी संगठन आईएसआईएस का हाथ था। लेकिन एक साल बाद ही सन् 2018 में ‘राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण’ (एनआईए) ने बताया कि ‘लव जिहाद’ जैसी चीज़ के होने का कोई ठोस सबूत नहीं है ज्यादातर हिंदू-मुस्लिम विवाह औरत की मर्ज़ी और रजामंदी से होते हैं। इसके बाद केरल हाईकोर्ट ने भी स्वीकार किया कि हादिया ने स्वेच्छा से शादी की है और उनके विवाह को वैध भी घोषित कर दिया।

गौरतलब है कि आज भी कई न्यूज़ चैनल खुलेआम इस शब्द का बिना किसी ठोस आधार के इस्तेमाल करने से नहीं कतराते। वीणा और रियाज़ से पहले भी दूसरे धर्म में शादी करने वाले कई फ़िल्म कलाकारों, क्रिकेटरों, यहां तक कि आईएएस अफ़सरों को इसका निशाना बनाया गया है।

धार्मिक कट्टरता से हार नहीं मानेंगे

अंत में फिर लौटते हैं ऋचा पर। ऋचा ने अपना जीवनसाथी अपनी मर्जी से चुना लेकिन तथाकथित धर्म के ठेकेदारों ने सोशल मीडिया पर इसे लव जिहाद करार दे दिया। ऋचा ने हाल ही में इन सभी नफ़रत भरे अभद्र कमेंट्स लिखने वाले एकाउंट्स के ख़िलाफ़ मुंबई पुलिस में रिपोर्ट भी दर्ज करायी है।

ऋचा का कहना है कि उनकी शिक्षा ने कभी भी उन्हें धार्मिक कट्टरता और नफ़रत करना नहीं सिखाया। ऋचा अपने पत्र में लिखती हैं, ‘मैंने तो जातीय पितृसत्ता को एक अलग स्तर पर चुनौती दे दी। एक मुसलमान से शादी करके। मैं जानती हूँ की इस नफ़रत की जड़ महिला के जीवन को और उसकी इच्छाओं को काबू करने की है और जब भी महिला पितृसत्ता की खिंची लकीर को पार करती है तो समाज और कट्टरपंथी विचारधारा उनपर धावा बोलती है। वो कट्टरपंथ उन महिलाओं पर हमला करते हैं जो अपने विचार खुलकर व्यक्त करती हैं, लेकिन मैं चुप नहीं रहूंगी मैं इस पितृसत्तात्मक और नारी द्वेष वाली सोच के ख़िलाफ़ बोलूंगी जो एक आज़ाद खुद के फ़ैसले लेने वाली और अपना जीवन अपनी इच्छा से जीने वाली महिला को बर्दाश्त नहीं कर सकते। एक ऐसी महिला जो समाज के पितृसत्तात्मक नियमों को नहीं मानती।”

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