दिल्ली में लगातार हो रही बुलडोज़र कार्रवाई पर बेघर लोगों का सवाल ''अब हम कहां जाएं''?
उदास चेहरे, किसी की डबडबाई आंखें, तो कोई चाह कर भी आंखों में उमड़ रहे समंदर को रोक नहीं पा रहा था। तेज धूप में मां बच्चों को गोद में सुलाए नारे लगा रही थीं, तो कोई लगातार बह रहे पसीने से परेशान बच्चे को बहलाने की कोशिश कर रही थी। कोई उम्मीद भरी निगाह से माइक पर बोली जाने वाली बातों को सुन रहा था, तो किसी को लग रहा था इन नारों की बदौलत एक बार फिर वे अपने हंसते-बसते घरों में लौट जाएंगे और जिंदगी फिर से मुस्कुराने लगेगी।
दिल्ली में अलग-अलग जगहों पर चले बुलडोजर की कार्रवाई के बाद बेघर हुए लोग आज जंतर-मंतर पहुंचे। 'मजदूर आवास संघर्ष समिति' के बैनर तले दिल्ली के अलग-अलग हिस्सों से आए लोग पूछ रहे थे कि ''अब वे कहां जाएंगे''? साथ ही इस संगठन ने मांग उठाई कि ''पहले पुनर्वास फिर विस्थापन'' हो।
अपने साथ बिजली का बिल, वोटर कार्ड, आधार कार्ड, समेत घर से जुड़ी छोटी से छोटी पर्ची लेकर पहुंचे लोग सवाल उठा रहे थे कि जब इसी वोटर कार्ड से वे वोट दे रहे थे तो उनके घर लीगल थे, जब वे बिजली का बिल दे रहे थे तो उनके घर लीगल थे? लेकिन एक दिन अचानक ही उन्हें नोटिस थमा दिया गया कि उन्होंने 'अवैध कब्जा करके घर बनाया है। हालांकि, नेताओं से आश्वासन मिला कि ''घर नहीं टूटेगा'', लेकिन इसके बावजूद तुगलकाबाद में बुलडोज़र चल गया और क़रीब एक हज़ार से 12 सौ घरों को तोड़ दिया गया। घर टूटने से सबसे बड़ा सवाल जो सामने उभर कर आ रहा है कि इतनी बड़ी संख्या में बेघर हुए लोग अब कहां जाएंगे ?
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धरने के दौरान हमने 'मजदूर आवास संघर्ष समिति' से जुड़े निर्मल अग्नि से बात की उन्होंने कहा कि '' जी-20 के नाम पर लोगों के घरों को तोड़ा जा रहा है, पर पुनर्वास कुछ नहीं है, हाल ही में तुगलकाबाद को तोड़ दिया। वहां लोग मलबे पर बैठे हुए हैं, उनका पुनर्वास नहीं हुआ, अभी आठ दिन पहले हम तुगलकाबाद की मांगों को लेकर जंतर-मंतर आए थे, लेकिन अब हमें पता चल रहा है कि परसों धौला कुआं के पास बुलडोजर चला दिया गया, धौला कुआं पर हुई कार्रवाई का कारण बता रहे हैं कि जी-20 होगा, बड़े लोग आएंगे, नेता लोग आएंगे और मीटिंग करेंगे, तो उस मीटिंग के लिए जिन घरों को तोड़ा गया उनके पुनर्वास की व्यवस्था की गई? जिन्हें उजाड़ दिया गया उनका खाना-पानी सरकार के एजेंडे में नहीं है। तो हम कहना चाहते हैं कि जी-20 के नाम पर बेदखली नहीं चलेगी, बेघर लोगों का उचित पुनर्वास करना होगा, बिना पुनर्वास के इस तरह से लोगों को बेघर करना मानवाधिकारों का उल्लंघन है। जी-20 के जो मेहमान आ रहे हैं उनके ऊपर मानवाधिकार का सवाल खड़ा होगा कि वे मानवाधिकार को रौंद कर इन लोगों के घरों को तोड़ कर विकास की बातें कर रहे हैं, जो इन लोगों के मुताबिक विनाश है जो हमें नहीं चाहिए''।
निर्मल अग्नि ने बताया कि इस धरना प्रदर्शन में धौला कुआं, मानसरोवर पार्क, सुभाष कैंप बदरपुर, महरौली, तुगलकाबाद, जनता कैंप प्रगति मैदान, ग्यासपुर (निजामुद्दीन) समेत उन तमाम जगहों से लोग आए जिनके घर टूट गए हैं या फिर जिन्हें नोटिस मिले हुए हैं। इसके साथ ही उन्होंने आरोप लगाया कि ''बेघर हुए लोगों का ठीक से पुनर्वास नहीं हो पा रहा है और सरकार गूंगी और बहरी हो चुकी है। उसे जी-20 के सामने अभी कुछ नहीं दिख रहा है, सरकार ने पूरी दिल्ली में एक जगह भी ऐसा कोई पोस्टर नहीं लगाया है कि जिससे पता चले कि कितने बेघर लोगों का पुनर्वास किया गया है।''
निर्मल दिल्ली में बेघर हुए लोगों के अनुमानित आंकड़े पर बात करते हुए कहते हैं कि, ''अभी जो मोटा-मोटी तौर पर लग रहा है पिछले एक महीने को अगर हम देखें तो एक महीने के अंदर-अंदर इन्होंने क़रीब दो लाख लोगों को बेघर कर दिया है, और अभी जिस तरह से ये कार्रवाई कर रहे हैं उससे लगता है कि दिल्ली में जी-20 की बैठक तक ये आंकड़ा 10 लाख तक जा सकता है, ये आंकड़े हमें लोगों से ही पता चल रहे हैं। सरकार तो कोई आंकड़े दे नहीं रही है।''
निर्मल अग्नि जिन आंकड़ों की बात कर रहे हैं अगर वाकई ऐसा होता है तो ये बड़ी समस्या है। जंतर-मंतर पर आए लोगों से बातचीत के दौरान पता चला कि कुछ जगह पर हुई कार्रवाई के बाद रैन बसेरों का रुख करने को कहा गया लेकिन जब वे रैन बसेरे पहुंचे तो उन्हें बिना सामान के रैन बसेरों में जगह देने को कहा गया, ऐसे में ये बेघर लोग सवाल उठा रहे हैं कि वे अपना सामान कहां रखें? और अगर वे अपना सामान रखने के लिए किराए का घर लेने की हैसियत रखते तो रैन बसेरों में आते ही क्यों, इसके साथ ही सवाल ये भी उठता है कि अगर ये लोग रैन बसेरों में रहेंगे तो जो लोग पहले से ही रैन बसेरों में रह रहे थे वे अब कहां जाएंगे?
30 अप्रैल को भारी बारिश के दौरान तुगलकाबाद गांव में DDA और Archeological Survey of India (ASI) की तरफ़ से हुई कार्रवाई में क़रीब एक हज़ार घरों पर बुलडोजर चला था। लोगों का आरोप है जिस वक़्त ये कार्रवाई की गई थी उस वक़्त ज़्यादातर लोग काम पर गए थे, जब तक वे अपने घरों तक पहुंचते बुलडोज़र चल चुका था। जैसे-तैसे जो सामान निकाल पाए। वो बारिश में भीग गया और अब बचा-खुचा सामान तेज़ धूप में बर्बाद हो रहा है।
इसी साल 10 में गई मुस्कान की कॉपी-किताब और ड्रेस मलबे में दब गए
बच्चों की पढ़ाई बर्बाद हो रही है। जंतर-मंतर पर अपनी मम्मी के साथ पहुंची मुस्कान अपने साथ उस वाहिद नोटबुक को लेकर पहुंची थी जिसे उसने मलबे से तो निकाल ली थी लेकिन बाद में हुई बारिश में वो भी भीग गई। मुस्कान इसी साल 10वीं में गई है लेकिन किसी तरह खरीदी किताबें और स्कूल ड्रेस अब मलबे में समा चुकी है। ऐसे में वो आगे क्या करेगी उसे ख़ुद नहीं पता, रोते हुए मुस्कान की मां कहती हैं कि, ''मैं घरों में काम करती हूं, किसी तरह अपने बच्चों को पाल रही थी, मेरी बेटी बड़ी है। आज धरने पर आई तो इसे साथ लेकर आना पड़ा। कहां छोड़ कर आती। इसलिए साथ लेकर आना पड़ा। पर सरकार तो सिर्फ़ 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' का नारा देती है लेकिन अब बेटी कैसे पढ़ेगी और कहां रहेगी इसकी परवाह सरकार को नहीं है''। ये कहते-कहते वे फूट-फूट कर रोने लगी। बताने लगी कि वे लोग रात-रात भर जाग कर बच्चों का ध्यान रख रहे हैं।
मुस्कान अकेली नहीं थी जो जंतर-मंतर पर अपनी मां के साथ धरने पर पहुंची थी, सातवीं में पढ़ने वाला साहिल कुमार भी अपने परिवार के साथ धरने पर पहुंचे था। उसने बताया कि, ''बहुत दिक्कत हो रही है, घर टूट गया है। ठीक से रहने की ही जगह नहीं है तो कहां बैठ कर पढ़ाई करूं। समझ नहीं आ रहा है।'' साहिल कुमार आगे कहते हैं कि, ''हम किसी से कुछ नहीं चाहते बस जैसे हम पहले अपने घरों में रहते थे वैसे ही फिर से रहने लगे और स्कूल जाने लगे''।
सरफराज और सानिया भी अपने दो साल के बच्चे के साथ आए थे। संगीता भी अपने चार साल के बच्चे के साथ सिर्फ़ और सिर्फ़ एक ही मांग के साथ जंतर-मंतर पहुंची थी कि उन्हें सर पर एक छत मिल जाए। घर के बदले घर दे दिया जाए। वे कोई आलीशान घर की फरमाइश नहीं करते। सिर्फ सर छुपाने के लिए एक महफूज़ जगह चाहते हैं। और इसी मांग को वे ज़ोर-शोर से नारों के साथ जंतर-मंतर पर उठा रहे थे।
जंतर-मंतर पर तो फिर भी वे ज़ोरदार नारों के साथ अपनी आवाज़ बुलंद कर पा रहे हैं लेकिन तुगलकाबाद में अपने घरों के मलबे तक पर उन्हें बैठने की इजाजत नहीं मिल रही है।
रीना शर्मा पिछले आठ दिन से भूख हड़ताल पर हैं
पिछले आठ दिन से धरने पर बैठी रीना शर्मा ने बेतहाशा रोते हुए कहा कि, ''आज आठ दिन हो गए मुझे भूख हड़ताल पर बैठे हुए पर किसी का कोई सहारा नहीं मिल रहा है। न नेता का और न ही किसी और का। मेरा घर गली नंबर 11 में था। टूट गया, मैं हर जगह गुहार लगा कर थक चुकी थी। चक्कर काटते-काटते मेरी चप्पल घिस चुकी है। नंगे पैर इधर से उधर भाग रही थी पर कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही थी। इसलिए मैं भूख हड़ताल पर बैठ गई हूं। करके देखती हूं। हो सकता है कि मैं मर जाऊं तो सरकार जाग जाए और इन लोगों को घर मिल जाए।''
रीना शर्मा रोते-रोते अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाई थीं कि उनके साथ बैठी कई औरतें रोने लगी और कहने लगीं कि ''हमें यूं ही बेसहारा छोड़ दिया गया है।''
लगातार रोते और बार-बार आंसू पोंछते हुए दो महिलाओं ने बात शुरू की। उन्होंने कहा, ''हमारे पास कहने को कुछ नहीं रहा, मेहनत की कमाई से आठ लाख रुपये में डीलर ने ज़मीन दिलाई थी, जिस वक़्त ज़मीन बेच रहे थे तो हमें कहा था कि हमारी पुश्तैनी ज़मीन है। राजा-महाराजा की ज़मीन थी जो हमारे दादा-दादी को मिली थी, हम उनके नाम भी नहीं ले सकते नहीं तो वे हमें मार डालेंगे।''
अब लोगों के सामने किराए के घर या फिर खुले में रहने के कोई चारा नहीं लेकिन ज़्यादातर घरों में काम करने वाले ये लोग बताते हैं कि 10-15 हज़ार कमाने वाले कैसे चार से पांच हज़ार का घर किराए पर ले सकता है, दूसरा इतने सारे लोग घर तलाश रहे हैं इसलिए किराया भी बहुत बढ़ा दिया गया है।
ऐसे में लोगों का गुस्सा बढ़ रहा है। धरने में आई एक महिला ने साफ कह दिया कि, ''इन लोगों को वोट देकर हमने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री बनाया था लेकिन अब हम किसी को भी वोट नहीं देंगे, अब तक इन्होंने हमें बहुत बेवकूफ बनाया और हम बनें लेकिन अब और नहीं''।
जंतर-मंतर पर आज इतने लोगों के पास आपबीती थी कि एक की बात सुनने बैठो तो दस और अपनी कहानी बताना शुरू कर देते थे, किसी की जवान बेवा बेटी अपने बच्चों के साथ मां के घर पड़ी थी लेकिन वे भी अब बेघर है, एक बुजुर्ग महिला ने बताया कि जिस घर में वे शादी करके आई थीं जहां उनके नाती-पोते हुए उसी घर को आज अवैध बताकर तोड़ दिया गया।
लोगों का आरोप है कि वे बहुत ही ख़ुशहाल जिंदगी जी रहे थे, जिंदगी में अच्छे दिनों का इंतज़ार था लेकिन अच्छे दिन तो दूर जो रोज़मर्रा की हंसी-खुशी से भरी जिंदगी थी वे भी खो गई। और इसका जिम्मेदार किसे ठहराया जाए ये भी नहीं पता चल रहा है।
जंतर-मंतर की तस्वीरें
खुदाई ख़िदमतगार के फैसल ख़ान
धरने में अपनी मां के साथ आई छोटी बच्ची
धरने में आई बुज़ुर्ग महिला
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