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कौन हैं बसपा के नए उत्तराधिकारी आकाश आनंद?

बसपा के नए सारथी के रूप में आकाश आनंद को चुना गया है। क्या वे पार्टी को उसी पुराने रंग में वापस ला पाएंगे और मायावती की विरासत को सुरक्षित रख पाएंगे?
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फ़ोटो : PTI

अब से करीब 22 साल पहले की बात है, तारीख थी 15 दिसंबर और साल था 2001...बसपा के प्रमुख कांशीराम लखनऊ में एक सभा को संबोधित कर रहे थे, तभी वे अचानक बोल पड़े कि “मैं काफी समय से यूपी कम आ पा रहा हूं, लेकिन खुशी की बात यह है कि मेरी ग़ैरहाज़िरी में कुमारी मायावती ने कोई कमी महसूस नहीं होने दी।” इतना बोलने के बाद कांशीराम ने मायावती को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। ये एक ऐसा वक़्त था जब पार्टी संघर्ष के दौर से गुज़र रही थी और 2002 में विधानसभा चुनाव होने थे।

मायावती के पार्टी संभालते ही 2002 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने ठीक-ठाक प्रदर्शन किया और 98 सीटों पर जीत हासिल कर ली। दूसरी ओर भाजपा भी 88 सीटें जीतने में कामयाब रही थी। इस तरह से दोनों की सीटें मिलाकर 186 हो रही थीं, जो सपा की 143 से ज़्यादा थीं। यानी भाजपा के बाहरी सपोर्ट से मायावती 3 मई, 2002 को तीसरी बार और उत्तराधिकारी बनने के बाद पहली बार मुख्यमंत्री बन गईं। लेकिन ये कार्यकाल कुछ ही दिनों का था, बाद में भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया और मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने। मग़र 2007 का विधानसभा चुनाव बसपा ने जीत लिया और मायावती फिर मुख्यमंत्री बनीं।

लेकिन मौजूदा वक़्त की बात करें तो पार्टी के अस्तित्व पर ही संकट है, यानी जिस उत्तर प्रदेश में मायावती ने सरकार बनवा दी थी, अब वहां पार्टी का महज़ एक विधायक है। पार्टी को इसी संकट से उबारने के लिए मायावती ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया है, जिनका नाम आकाश आनंद है और ये मायावती के भतीजे हैं।

आकाश आनंद कौन हैं और राजनीति में कितने परिपक्व हैं? पार्टी को उसी पुराने रंग में वापस ला पाएंगे या नहीं? मायावती की विरासत को कितना सुरक्षित रख पाएंगे? भविष्य में आकाश आनंद को किससे चुनौती मिलेगी? इन सवालों के जवाब भी ढूंढेगे लेकिन पहले आपको ले चलते हैं साल 2008 की 15 जनवरी की ओर।

15 जनवरी को मायावती का जन्मदिन होता है, और इस वक़्त (2008) वो मुख्यमंत्री भी थीं। यानी सब कुछ बसपा और मायावती के मुफीद था। वक़्त की नज़ाकत को देखते हुए और अपने जन्मदिन को खास बनाने के लिए मायावती ने अपनी आत्मकथा 'मेरे संघर्षमय जीवन का सफरनामा' का विमोचन कर दिया। अपनी आत्मकथा में उन्होंने लिखा था कि “बसपा का अगला नेतृत्वकर्ता उन्हीं की तरह दलित वर्ग से होगा, लेकिन वह हमारे परिवार से नहीं होगा।”

15 साल बीते...10 दिसंबर, 2023 का दिन आया और आत्मकथा में लिखी गई बातें महज़ किताबी ही रह गईं। उन्होंने अपने भतीजे आकाश आनंद को नया उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। इस तरह से मायावती की ‘दलित नेतृत्वकर्ता’ वाली बात तो सही साबित हुई। लेकिन ‘परिवार से नहीं होगा’ वाला फ़ैसला बदल गया।

ख़ैर...ये सियासत है यहां वादों की कीमत शून्य होती है। मग़र आकाश आनंद के लिए कुलजमा बात ये है कि वो भविष्य में बसपा के सर्वोसर्वा होंगे।

चलिए अब आकाश आनंद को जानते हैं...

आकाश मायावती के छोटे भाई आनंद कुमार के बेटे हैं, 1995 में जन्में थे, यानी अब ये 28 साल के हैं। क्योंकि इनके पिता का नाम आनंद था इसलिए ये अपने नाम के साथ आनंद लगाते हैं। आपको बता दें कि जब मायावती 3 जून 1995 को पहली बार मुख्यमंत्री बनीं तब आकाश की उम्र महज़ 2 महीने थी।

आकाश ने अपनी शुरुआती पढ़ाई नोएडा में की, फिर उनका एडमिशन गुरुग्राम के पाथवेज वर्ल्ड स्कूल में करवाया गया। यहां पढ़ाई करने के बाद वह विदेश चले गए। लंदन की प्लायमाउथ यूनिवर्सिटी से मास्टर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन यानी एमबीए किया। 2015 में वह वापस इंडिया आ गए। इंडिया वापस आने के बाद उन्हें नौकरी नहीं खोजनी थी, क्योंकि उनके पिता आनंद की कई कंपनियां नोएडा में थीं। आकाश उन्हीं में काम देखने लगे। साथ ही साथ वह अपनी बुआ मायावती की सियासत को समझते रहे। वे डॉ. भीमराव अंबेडकर के विचारों को पढ़ते थे, उस वक़्त आकाश के राजनीति में आने की कोई अटकलें नहीं थीं।

अब आता है साल 2017...इसे आप आकाश आनंद की राजनीति में एंट्री वाला साल भी कह सकते हैं। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने थे, भाजपा मोदी लहर के सहारे पूरा ज़ोर लगाए हुई थी, दूसरी ओर कांग्रेस-सपा यानी राहुल और अखिलेश एक रथ पर सवार हो लिए थे। उधर मायावती अपने अकेले दम पर सत्ता में वापसी के लिए संघर्ष कर ही थीं, क्योंकि उनकी पार्टी इस समय तक मुख्य विपक्षी दल थी। मायावती ने बसपा प्रत्याशियों के समर्थन में सहारनपुर में रैली की। मंच पर पार्टी के पदाधिकारियों के साथ एक 22 साल का लड़का चश्मा लगाकर खड़ा दिखा। राजनीतिक लिहाज़ से यह पहला मौका था। मीडिया इस बात को जानने के लिए उत्सुक दिखी कि आखिर वो लड़का कौन था? क्योंकि मायावती ने उस सभा में आकाश के बारे में जनता को कुछ नहीं बताया। अगले दिन के अखबारों में मायावती के साथ आकाश की भी फोटो थी और यह बात तय हो गई कि वह अब पार्टी के लिए काम करेंगे।

हालांकि 2017 के चुनाव में बसपा बुरी तरह हार गई, और महज़ 19 सीटों पर ही सिमट कर रह गई। 2017 विधानसभा चुनाव की रैलियों में मायावती के साथ दिखने के बाद आकाश बसपा की बैठकों में शामिल होने लगे। अब आया साल 2019...जब लोकसभा चुनाव होने थे। इस बार बसपा ने सपा के साथ गठबंधन किया तो आकाश को बसपा को मिली सीटों पर होने वाले चुनावी कैंपेन मैनेज करने की ज़िम्मेदारी मिल गई, जिसका नतीजा भी देखने को मिला, यानी बसपा 10 सीटें जीतने में कामयाब रही, जो सपा से ज़्यादा थी। जबकि इससे पहले 2014 वाले लोकसभा चुनाव में बसपा का एक भी सांसद नहीं बना था।  

इस छोटी मग़र राज्य में दूसरी सबसे बड़ी जीत ने आकाश के रूप में बसपा को एक अच्छा नेता दिया था। कुछ दिन बीते, बसपा ने सपा से गठबंधन तोड़ा फिर आकाश को पार्टी का कोऑर्डिनेटर बना दिया गया। जबकि आकाश के पिता आनंद कुमार को पार्टी का उपाध्यक्ष।

2019 लोकसभा चुनावों के बाद आकाश ने अपनी असली काबिलियत दिखाई कोरोना के वक़्त, जब उन्होंने पार्टी के पदाधिकारियों को सोशल मीडिया के ज़रिए ट्रेनिंग करवाया। हालांकि ये ट्रेनिंग बसपा के काम नहीं आई और साल 2022 विधानसभा चुनाव में बसपा ने अपना ऐतिहासिक बुरा प्रदर्शन किया। पूरे प्रदेश में पार्टी सिर्फ एक सीट ही जीत सकी। बलिया के रसड़ा से उमाशंकर विधायक बने।

पार्टी का प्रदर्शन ख़राब था, मग़र इससे आकाश आनंद के कद पर कोई फर्क नहीं पड़ा। साल 2022 के ही सितंबर में जब हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए, तब स्टार प्रचारकों की लिस्ट में मायावती के बाद दूसरा नाम आकाश आनंद का ही था। जबकि अक्सर दूसरे नंबर पर सतीश मिश्र का नाम हुआ करता था। चूंकि यहां पार्टी सभी सीटों पर चुनाव लड़ रही थी, तो सतीश का नाम नीचे और आकाश का नाम ऊपर हो जाना सियासी जानकारों को संकेत दे गया था कि मायावती के बाद आकाश ही बसपा के कर्ताधर्ता होने वाले हैं। हिमाचल चुनाव में जीत के लिए आकाश ने ताबड़तोड़ रैलियां कि लेकिन पार्टी एक भी सीट नहीं जीत सकी।

इसके अगले साल यानी साल 2023 के मार्च महीने की 26 तारीख को आकाश आनंद ने बसपा की ओर से राज्यसभा सांसद डॉ. सिद्धार्थ आनंद की बेटी से शादी कर ली। इस शादी में शिरोमणि अकाली दल के नेता सुखबीर सिंह बादल समेत कई दिगग्ज नेता शामिल हुए थे।

कई निराशाजनक प्रदर्शन और ग्रहस्थ जीवन में व्यस्त हो जाने के बाद भी पार्टी ने आकाश को आराम नहीं दिया। राजस्थान के चुनाव आने वाले थे, तो अगस्त महीने में आनंद ने ‘सर्वजन हिताए-सर्वजन सुखाए संकल्प यात्रा’ शुरु कर दी।

इस दौरान आनंद भाषणों के वक़्त बसपा का समर्थन करने और चंद्रशेखर आज़ाद से सावधान रहने की सलाह देते थे। जयपुर की एक सभा में उन्होंने ये साफ भी किया था कि बहुत से लोग नीला झंडा लिए घूम रहे हैं लेकिन हाथी के साथ नीला झंडा ही आपका है। आकाश ने सवालों के जवाब में यहां तक कह दिया था कि वो किसी भीम आर्मी और चंद्रशेखर जैसे छोटे-मोटे लोगों को नहीं जानते।

फिर आती है साल 2023 के तीन दिसंबर की तारीख़...इस दिन राजस्थान, तेलंगाना के साथ-साथ मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के नतीजे भी आते हैं। मग़र कहीं से भी पार्टी के लिए अच्छी ख़बर नहीं आती। यहां तक बसपा का प्रदर्शन पिछली बार से भी ज़्यादा ख़राब हो गया। इस बार पार्टी को राजस्थान में सिर्फ 2 सीटें मिली, जबकि वोट प्रतिशत 4.03 से घटकर 1.82 हो गया। मध्य प्रदेश में एक भी सीट नहीं आई, जबकि वोट प्रतिशत 5 से घटकर ढाई प्रतिशत हो गया। जबकि इन सभी राज्यों में आकाश ने खूब रैलियां की थीं। यानी आनंद का ये कैंपेंन भी उनकी राजनीतिक परिपक्वता और उनकी समझ पर सवाल कर गया।

विधानसभा चुनाव के नतीतों के बाद तारीख़ आती है 10 दिसंबर...जिस दिन आकाश आनंद को मायावती अपना उत्तराधिकारी घोषित कर देती हैं। जिससे सिर्फ इतना समझ में आता है कि तमाम विफलताओं और राजनीतिक अपरिपक्वता के बाद भी आकाश को पारिवारिक लाभ दिया गया है। हालांकि आकाश के पास फिलहाल उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड को छोड़कर बाक़ी सभी राज्यों की ज़िम्मेदारी होगी। यानी पार्टी जो भी फ़ैसला लेगी आखिरी मुहर उन्हीं की होगी।

बसपा को फिर से कैसे खड़ा कर पाएंगे आकाश?

बसपा के संस्थापक कांशीराम, साथी दीना भाना और बामसेफ व बीएसफोर के दलित नेताओं के साथ जिस तरह साइकिल पर गांव-गांव घूमकर पार्टी और कैडर को मज़बूत बनाते रहे, आकाश भी उसी तरह अपनी पार्टी के प्रति समर्पित हो पाएंगे ये कह पाना मुश्किल है।

लेकिन अगर पार्टी को फिर से अस्तित्व में लाना है तो उन्हें अपनी शिक्षा और समझदारी का पूरी तरह से इस्तेमाल करना होगा, जो मौजूदा वक़्त में भाजपा जैसी पार्टी के सामने आसान होने वाला नहीं है, क्योंकि मुफ्त राशन और अन्य योजनाओं के दम पर भाजपा ने दलितों और अन्य वंचित वर्ग के लोगों के बीच लाभार्थी वोटबैंक बना लिया है, इसकी बदौलत भाजपा ने उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव में भी जीत हासिल की थी। ऐसे में बसपा को अगर फिर से अपना वोट बैंक वापस अपने पाले में लाना है तो आकाश आनंद को लीक से हटकर कुछ करना होगा।

आने वाले लोकसभा चुनाव में बसपा ने अभी तक किसी के साथ गठबंधन के लिए हामी नहीं भरी है, वो ‘इंडिया’ के साथ जाएंगी या नहीं अभी ये भी तय नहीं है। ऐसे में आकाश के सामने बहुत से ऐसे युवा नेताओं की चुनौती हो सकती है जो पहले से राजनीति में हैं और अपना कद बहुत बड़ा कर चुके है। जैसे केंद्र में तो कांग्रेस के राहुल गांधी हैं ही। बाक़ी राज्यों में सचिन पायलट, आदित्य ठाकरे, अखिलेश यादव और चंद्रशेखर आज़ाद जैसे नेताओं से पार पाना इतना आसान नहीं होगा।

ख़ैर...आकाश के सामने चुनौतियां तो बहुत हैं, मग़र कांशीराम से मायावती और फिर मायावती से आनंद तक विरासत का हस्तांतरण लगभग एक जैसा ही है। क्योंकि कांशीराम ने भी मायावती को आईएएस बनने की बजाय राजनीति में आने के लिए प्रेरित किया जिसका कारण था मायावती का दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में एक भाषण। मायावती को जब बड़े नेताओं के बीच बोलने का मौका मिला तब उन्होंने तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री राज नारायण पर हमला बोला। राजनारायण दलितों को हरिजन कहकर संबोधित कर रहे थे। मायावती ने कहा कि आप हमें हरिजन कहकर अपमानित कर रहे हैं। कांशीराम ने जब यह बात सुनी तो वह मायावती के घर पहुंच गए। मायावती को कांशीराम की बात समझ में आई, वह संघर्ष के दौर में कांशीराम के साथ जुड़ गईं। 1984 में बसपा बनने पर उसमें शामिल हुईं और उसी साल पहला लोकसभा चुनाव कैराना से लड़ा। पहली बार 1989 में वह सांसद बनीं। इसके बाद वह चार बार यूपी की मुख्यमंत्री भी रहीं।

फिलहाल अब बारी आकाश आनंद की है, देखना ये होगा कि वे अपने सबसे मुख्य राज्य उत्तर प्रदेश में पार्टी का अस्तित्व बचाने के लिए मायावती का कैसे साथ देते हैं और बाक़ी जिन राज्यों के लिए उन्हें ज़िम्मेदारी दी गई है उसे कैसे संभालते हैं।

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